सोमवार, 24 सितंबर 2012
गोरख...
गोरख...
Scene-1
(यह नाटक.. "रामसजीवन की प्रेम कथा" (उदय प्रकाश) और गोरख पाण्डे के जीवन, उनकी और अन्य कवियों की कविताओं को मिलाकार किया गया एक प्रयास है... जो पूरी तरह काल्पनिक है।) मंच पर अँधेरा है. प्रकाश होता है. कुछ कुर्सियां एक दुसरे को पीठ दिखाते हुए पड़ी हैं.
(Music) एक एक करके कुछ लोग गोगल्स लगाये हुए मंच पर आते हैं. सभी रोबोट की तरह चल रहै हैं. सब ने अपने अपने हाथ में कुछ रोज़मर्रा की इस्तेमाल होने वाली चीज़ें उठा रखी हैं. जैसे की, घडी, छाता, सूटकेस, लैपटॉप बैग, फूल, इत्यादि. एक-एक करके सभी धीरे-धीरे अपने अपने प्रोप को प्रोसीनीयम की दीवार पर टांग देते हैं. सब आकर एक एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं. कुर्सी पर बैठते ही उन सब में जान फूट पड़ती है.
पहली कुर्सी- टन्न्नन्न्न्नन्न… क्लास है क्या बे ?
दूसरी कुर्सी- साला फिर फेल
तीसरी कुर्सी- घूर रहा है साला
चौथी कुर्सी- कैंटीन चलो
पांचवी कुर्सी- प्रेसेंट
छठी कुर्सी- बरगर एंड फ्राइस
सातवी कुर्सी- साइलेंस पलीस
(ये सभी एक साथ हो रहा है और रोबोटिक मुद्रा में ही हो रहा है. तभी लेफ्ट विंग से गोरख भागता हुआ आता है. उसके हाथ में एक सूटकेस है, गले में गमछा है और उसने सफ़ेद कमीज़ और काली पैंट पहनी हुई है. वो हांफता हुआ मंच पर घुसता है और मंच पर पड़ी एक मेज पर जा खड़ा होता है.)
गोरख (चिल्लाते हुए)- हमारा नाम गोरख है. हम देवरिया से हैं. रेलगाड़ी आने में देरी हुई तो लेट हो गए. हमारी जगह कौनसी है?
(कोई चुप नहीं होता. गोरख नीचे उतर कर सभी कुर्सी वाले रोबोट्स के पास जा जा के उनको अपना परिचय देने कि कोशिश करता है. कोई उसकी मौजूदगी को एहमियत नहीं देता और सब वही चीज़ें बोले जा रहै हैं जो वे बोल रहै थे.)
गोरख(चिल्लाते हुए)- गोरख!!!
( सब चुप हो जाते हैं. भगदड़ मच जाती है. सब एक दूसरे की कुर्सी लूट लेते हैं. इसी भगदड़ में गोरख भी एक कुर्सी लूट लेता है और अब उसके गले में गमछा नहीं है. उसने भी औरों कि तरह चश्मा पहना हुआ है. रोबोट्स में से एक से कुर्सी छिन जाती है और उसने गमछा पहना हुआ है)
पहली कुर्सी वाला-
उसकी नज़र कुर्सी पर थी,
कुर्सी लग गई थी उसकी नज़र को,
उसको नज़रबंद करती है कुर्सी,
जो औरों को नज़रबंद करता है.
(फिर से भगदड़. लोग कुर्सियां बदल लेते हैं. इस बीच एक आदमी उठता है और एक कुर्सी कम कर देता हैं और अपने पास रख लेता है. बीच में दो लोग बच जाते हैं. एक के गले में गमछा है. जिसके गले में गमछा नहीं है वो सभी कुर्सी पे बैठे लोगों के पैर पड़ता है. शोर फिर से शुरू हो जाता है.)
गमछे वाला (चिल्लाते हुए) – गोरख!!
(सब शांत हो जाते हैं)
दूसरी कुर्सी वाला-
मेहैज़ ढांचा नहीं है लोहै या काठ का,
कद है कुर्सी,
कुर्सी के मुताबिक,
वो बड़ा है छोटा है, स्वाधीन है या अधीन है,
खुश है या ग़मगीन है,
कुर्सी में जज़्ब होता जाता है एक अदद आदमी.
(फिर से शोर होता है और गमछे वाला फिर से गोरख चिल्लाता है. सभी वापस अपनी अपनी जगह से उठ कर एक दूसरे की कुर्सी लूट लेते हैं. दुबारा एक आदमी गमछे के साथ छूट जाता है और दो बिना गमछे वाले पैर छू रहै हैं.)
तीसरी कुर्सी वाला-
कुर्सी खतरे में है,
तो प्रजातंत्र खतरे में है,
कुर्सी खतरे में है तो देश खतरे में हैं,
कुर्सी खतरे में है तो दुनिया खतरे में है,
न बचे कुर्सी तो भाड़ में जाये प्रजातंत्र, देश और दुनिया.
( एक बार फिर से सब अपनी अपनी जगह से उठ कर खड़े हो जाते हैं और कुर्सियां लूटने लगते हैं. अब तक चौथी कुर्सी वाले ने सभी कुर्सियां उठा ली हैं और बस एक बेंच बची है जिसपर एक व्यक्ति बैठ सकता है. बाकी सब ने कुर्सी मिलने की आशा छोड़ दी है. सब सोचने की मुद्रा लेके स्टेज पर फ्रीज़ हो जाते हैं.)
चौथी कुर्सी वाला-
कुर्सी कि महिमा बखानने का,
ये थोथा प्रयास है,
चिपकने वालों से पूछिए,
कुर्सी भूगोल है,
कुर्सी इतिहास है.
Scene-2
अनुराग(गोरख) - मुझे नही चाहिए कुर्सी. (वो अपना सूटकेस उठाता है और थोड़ा सा आगे बढ़ता है तो कल्याण उसको रोक लेता है)
कल्याण- Hey Chap! कैसे?
अनुराग(गोरख) - पढ़ने
कल्याण- हैं?
अनुराग(गोरख) - पढ़ने…
कल्याण- और हम? कहाँ के born & brought up हो? Ugly… मूह छुपाओ. अब्बे बदसूरत घूम जाओ... १,२...
(अनुराग घूम जाता है)
कल्याण- अभी सीधे भागो पहला लेफ्ट लो पेड़ मिलेंगे पेड़ो के पैर छूओ आशीर्वाद लो और वापस आओ शिरीष- छोड़ बे. नाम क्या है तेरा?
अनुराग(गोरख) - गोरख.
असलम- अबे पूरा नाम बता?
अनुराग(गोरख) - पूरा नाम गोरख है.
असलम- गाँव?
अनुराग(गोरख) - देवरिया
शिरीष- विषय?
अनुराग(गोरख) - हिन्दी साहित्य
असलम- हिन्दी साहित्य? क्या उखाड़ लेगा तू हिन्दी साहित्या पढ़ के?
अनुराग(गोरख) - जो बन पड़ेगा करेंगे,पर चुप नहीं बैठेंगे
कल्याण(अपनी जगह से उठकर गोरख के पास आते हुए) - ये फटा ज्वालामूखी!!!!
असलम-आग है भैया आग…
शिरीष- आग नही है भाई लावा है लावा…
अनुराग(गोरख) - जाएँ?
शिरीष- कहा जाए बे? (नाराज़ होते हुए) हम बात कर रहै हैं ना तुमसे
अनुराग(गोरख) - हॉस्टिल जाना है
कल्याण- हॉस्टिल जाओगे? ले चले हॉस्टिल?
शिरीष- कौन से हॉस्टिल जाओगे बे? लड़को वाले जाओगे या लड़कियों वाले?
(तीनो गोरख के काफ़ी नज़दीक जाते हैं वो थोड़ा सा घबरा जाता है. अचानक कल्याण,शिरीष,असलम ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगते हैं )
कल्याण- देख देख इसकी शकल देख
असलम- अरे डर मत, हम भी जूनियर्स हैं, सीनियर्स नहीं. आराम से., ये कल्याण ,ये शिरीष शिरीष- सॉरी यार असलम- और मैं असलम...
कल्याण- साँस लेले
असलम- ये रहा तेरा कॉलेज और वो देखो हॉस्टिल
अनुराग(गोरख)- बड़ा सही कॉलेज है यार, काफी बड़ा है ना
असलम- पता है कौन कौन पढ़ता है यहाँ पे?
शिरीष- प्रधानमंत्री की बहू,रक्षामंत्री की नातिन,किर्लोस्कर जी की बेटी और बाटाजी का बेटा. कल्याण- और जो देश का सबसे बड़ा साहित्यकार है उसका सबसे छोटा साला यही पढ़ता है… अबे यहा के ज़्यादातर स्टुडेंट्स जो है वो हैलो हाइ संप्रदाया से आते है फक चीक
असलम- और जो लड़किया हैं न लड़किया एकद्म टॉट है टॉट... माशा अल्लाह
कल्याण- असलम भाई उनकी जीन्स देखी,ये कसी कसी जीन्स,ये खुली खुली बाहै, मुलायम खुशबूदार… अनुराग(गोरख) - (गुस्से मे) कैसी बातें कर रहै हो यार (तीनो दोस्त कुछ देर के लिए चुप हो जाते है,उन्है बड़ी हैरानी होती है)
शिरीष- शर्मा गये (तीनो दोस्त प्रस्थान करते है)
SCENE – 3
रूपा(गोरख)- प्रिय कार्ल मार्क्स, चरण स्पर्श, आज तुम्है पत्र लिखने का खूब मन कर रहा था (पत्र बोलते बोलते वो अपना कमरा ठीक कर रही है) वैसे मन तो काफ़ी समय से कर रहा था पर स्याही खत्म हो गयी थी(इसी बीच प्रतीक मंच पर आकर लेट जाता है )
आज लाल स्याही ले आया हूँ… पता है, मैं एक बड़ी जगह आ गया हूँ. यहाँ पे लोगों की मानसिकता को छोड़कर सबकुछ काफी बड़ा है. पता है मार्क्स कभी कभी जब आँख खुलती है तो कुछ पलों के लिए सोचना पड़ता है की वाकई में रात है या मैं ही आँख बंद करके अँधेरे में सो गया था. मेरे टेरीकॉट के कपडों से लेकर मेरा रंग यहाँ तक की मेरा अतीत सबकुछ मुझे मैला मैला सा लगता हैं. लेकिन फिर भी इन ऊँची बिल्डिंगों, इन चौड़ी सड़कों और इस कान फाडू शोर के बीच गली कूचों में छुपी हुई वो ज़िन्दगी अब भी दिखती हैं चिथड़ों में लिपटी हुई भूखी अपने नंगेपन को ढाँकने की कोशिश में जिसे मार्क्स तुम और मैं बेहतर पहचानते हैं. मेरा कद छोटा हो गया है. शायद घिस गया हूं. अपने बौनेपन का एहसास अभी अभी हुआ है मुझे. असमंजस में हूं मैं मार्क्स. क्या मैं अपने कपड़ों की तरह अपना चश्मा भी बदल दूं. या फिर वो करूँ जो तुमने कभी सोचा था, उनका चश्मा तोड़ दूं. गोरख
[चिट्ठी ख़त्म करने के बाद गोरख अपने कमरे से निकल के ज़मीन पर लेट जाता है. अब चार लोग ज़मीन पर हैं. सभी के गले में गमछा है. (म्यूजिक फेड इन) चारो गोरख अलग अलग मुद्राएं ले रहै हैं]
(मंच पर लेटे हुए गोरख परेशान होकर करवटे बदलते हैं और अचानक घबराकर उठ जाते हैं.)
सुहेल (गोरख)- "वो डरते हैं किस चीज़ से डरते हैं वे तमाम धन दौलत गोला बारूद पुलिस फ़ौज के बावजूद? वे डरते हैं की एक दिन निहत्थे और गरीब लोग उनसे डरना बंद कर देगे"
प्रतीक(गोरख) "कही चीख उठी हैं अभी कही नाच शुरू हुआ हैं अभी कही बच्चा हुआ हैं अभी कही फौजे चल पढ़ी हैं अभी"
मनोज(गोरख) "कला कला के लिए हो जीवन को खूबसूरत बनाने के लिए न हो रोटी रोटी के लिए हो खाने के लिए न हो मजदूर मेहनत करने के लिए हो सिर्फ मेहनत "
[जब एक गोरख कविता बोल रहा है, तब बाकी 3 गोरख सोचने की अलग अलग मुद्राए ले रहे है]
सुशांत(गोरख) - ये तो हम सब जानते हैं
[मनोज,प्रतीक,सुहेल तीनो सुशांत को देखने लगते हैं मनोज और प्रतीक सुशांत को एक सोचने वाली मुद्रा में सोचने लगते हैं. सुहेल उठता हैं पेपर में जो लिखा हैं उसको पड़ता हैं और फाड़ के फेक देता हैं और वहा से चला जाता हैं और अपने तीनो दोस्त कल्याण,असलम और शिरीष से मिलता हैं]
कल्याण- ऐ दत्ता मैं इसको चाय नहीं बोलूँगा फिर भी दे दो असलम- जो भी हैं ले आ यार कल्याण- लीजिये साहब सरकारी चाय, ज़हर है {सुहेल(गोरख) वहां आता है. कल्याण उसको देख लेता हैं}
अरे गोरख… हैल्लो! रुक चाय लता हु
सुहेल(गोरख)- नहीं चाहिए चाय…
कल्याण - अरे डार्लिंग रुक लाता हु चाय
सुहेल(गोरख) (गुस्से में)- अरे नहीं चाहिए चाय
असलम- अरे नाराज़ क्यों होते हो
कल्याण- मत पियो चाय
सुहेल(गोरख)- ये जूते बड़े बढ़िया हैं आपके .कितने के लिए आपने?
कल्याण- बारह सौ
सुहेल(गोरख)- बारह सौ !! आपको पता हैं क्या पहना हैं आपने दो कुंटल गेहू पहना हैं आपने
कल्याण- मतलब?
सुहेल(गोरख)- अरे बारह सौ दो कुंटल गेहू की कीमत होती हैं और इन्होने पैर में पहन रखा हैं देखो…
कल्याण- अच्छा ये बताओ ये साहब जो बेठे हैं (एक दर्शक की तरफ इशारा करता है) इनका लगाओ हिसाब किताब
सुहेल(गोरख)-इनका (एक दर्शक की तरफ इशारा करते हुए)
कल्याण-हाँ
सुहेल(गोरख)- साहब ने इकोनोमिक्स की थेओरी वेलू के हिसाब से… तीन कुंटल धान पहन रखा हैं. शिरीष-मतलब घर का हर महीने का किराया हुआ 3.5 कुंटल गेंहू
सुहेल(गोरख)-और बिजली पानी अलग
कल्याण(मज़े लेते हुए )-ये जो अमीर और गरीब की जो खाई हैं न हमारे देश को ले डूबेगी
शिरीष-इस देश की 70 % जनता को जिंदा रहने के लिए जितनी कैलोरी शक्ति की ज़रुरत हैं उतना अन्न तो मिल नहीं पाता हैं और दूसरा 3.5 कुंटल गेहू की शराब 1 बैठक में पी जाता हैं
असलम-और गाँव के मिडल क्लास किसान की हालत शहर के लोवर मिडल क्लास लोगो से बददतर हैं और यहाँ शहर का छोटे से छोटा बाबु भी चमक धमक में रहता हैं
शिरीष-और जो किसान अपनी खून पसीने की मेहनत से देश की जनता का पेट पाल रहा हैं वो कर्जे में डूबकर अपनी जान दे रहा और यहाँ पिज्जा बर्गेर बेचने वाले
शीश महल पर शीश महल बनाये जा रहै हैं…
कल्याण -और ये नेता क्या कर रहै हैं नोट बटोर रहै हैं,
योजनाये बना रहै हैं पर सब फाइलओ में बंद और आप जाओ वहा पुरानी दिल्ली में जामा मस्ज़िद के फूटपाथ पर पुलिया के नीचे जाओ गाँव का आदमी भूखा हैं, गरीब हैं ,नंगा हैं पहनने को बदन पर कपड़ा नहीं हैं…
सुहेल(गोरख) - अरे चुप (गुस्से से ) झूठी…फर्जी…
किताबी बातें चुतियापा है ये सब
असलम -अरे हम भी तो यही कह रहै हैं की गलत है ये सब
सुहेल(गोरख) - क्या गलत है? कौन गलत है? ये गरीब गलत है? गरीब गलत नहीं है,
अमीर भी गलत नहीं है, गलत हो तुम और में
शिरीष- अरे हम कैसे गलत हो गए? हम भी तो यही कह रहै हैं की गलत है ये सब
सुहेल(गोरख) - यही तो चुत्यापा हैं . हम सब कह रहे हैं की ये सब गलत है
फिर भी न तुम कुछ कर रहे हो और न साला मैं (गुस्से में)… क्रांति की ज़रुरत हैं क्रांति की...
(ये कहते हुए सुहेल आगे बढ़ता है और विंग्स से एक्ज़िट लेता है.
उसी के साथ मनोज,सुशांत ,प्रतीक भी खड़े हो जाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं . )
सृष्टि(गोरख) आती है और उन्ही के साथ खड़ी हो जाती है)
(सुहेल(गोरख) विंग्स से अपने कमरे में आता है)
सुहेल(गोरख)- हवा का रुख कैसा हैं हम समझते हैं ,
हम उससे पीठ क्यों दे देते हैं हम समझते हैं ,
हम समझते हैं खून का मतलब ,पैसे की कीमत हम समझते हैं
क्या है पक्ष में ,विपक्ष में क्या हैं हम समझते हैं
हम इतना समझते की समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं
वैसे हम अपने को किसी से कम नहीं समझते हैं
हर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह कर सकते है
हम चाय की प्याली में तूफ़ान खड़ा कर सकते है
करने को तो हम क्रांति भी कर सकते है
अगर सरकार कमज़ोर हो और जनता समझदार
लेकिन हम समझते है हम कुछ नहीं कर सकते है
हम क्यों कुछ नहीं कर सकते ये भी
हम समझते है हवा का रुख कैसा है हम समझते हैं.....
(जब सुहेल (गोरख ) ये कविता बोल रहा होता है तब 4 गोरख, गुस्से और दर्द को दर्शाते हैं, अलग-अलग मुद्राओं से) (कविता समाप्त होते ही वो 4 गोरख जिस गति से गुस्सा और दर्द दर्शा रहै थे वो गति बढ़ जाती है)
(Black out)
Scene-4
दूरदर्शन म्यूजिक सृष्टि न्यूज़ पढ़ती है…
“ब्रेअकिंग न्यूज़ लड़का और लड़की अब साथ हॉस्टल में रहैगे प्रधान मंत्री ने बेहद उत्सुकता जताते हुए कहा की बोयस हॉस्टल के ठीक सामने बनने वाले इस गर्ल्स हॉस्टल में पारदर्शी खिड़कियाँ होगी जिनपर पर्दा अलग से लगाया जायेगा सरकार की इस पहल को विदेश मंत्री ने एक बड़ा कदम बताया हैं उन्होंने कहा की इस प्रकार की प्रक्रिया से भेदभाव की भावना दूर हो जाएगी उन्होंने ये भी कहा की साथ में बन रहै कॉमन मेस से दोनों ही सेक्स एक साथ खाना खा पायेगे जिससे पुरुष महिलाओं को पछाड़ने वाले हीन बर्ताव से अपने को दूर कर पायेगे बताया जा रहा हैं की स्टुडेंट'स उनियन ने सरकार के इस क्रांतिकारी फैसले का स्वागत किया हैं एक छात्र से बातचीत के अंश "अब आप कैसा महसूस कर रहै हैं ?" "अच्हा महसूस कर रहा हु .पहले पढ़ाई में मन नहीं लगता था अब बालकोनी में जा जा कर पढने लगा हु" देश को मज़बूत बनाने के लिए सरकार की सहवास की योजना आ आ ... माफ़ कीजियेगा सह आवास की योजना कारगर साबित होगी. क्रांति आने वाली नहीं है क्रांति आ चुकी हैं ये थे अब तक के मुख्य समाचार, नमश्कार.”
[म्यूजिक lipstick song]
ब्लैक आउट
(ब्लैक आउट के बाद जब स्टेज पर रौशनी होती है तो देखते हैं की स्टेज पर 5 गोरख १ लाइन में खड़े है, वो आगे बढ़ते है और "हवा का रुख" कविता बोलने लगते है .
पहले तो उनकी आवाज़ सुनाई देती है पर कुछ देर के बाद सुनाई देना बंद हो जाती है और सारे गोरख अपनी आवाज़ पहुंचाने की बहुत कोशिश कर रहै है पर कुछ आवाज़ नहीं आ रही )
(ब्लैक आउट)
Scene- 5
(जैसे ही रौशनी आती है स्टेज पर कुछ लोग धीमी गति से नाच रहै होते है उन लोगो में से गोरख के दोस्त कल्याण,शिरीष और असलम भी होते है )
कल्याण - दिस इस बिग्गर रेवोलुशन डैन फ्रेंच रेवोलुशन !!
सभी- वू... हू... (ख़ुशी से)
असलम- सोशल एकुँलटी आ गयी है यार
सभी - वू... हू... (ख़ुशी से)
शिरीष -अबे! अब लड़कियां और लड़के रहैगे साथ-साथ, खायेंगे भी साथ-साथ
सभी - वू... हू... (ख़ुशी से)
असलम- ओई गोरख नीचे आजा
कल्याण- ओई! कॉम्रेड
(मनोज(गोरख) देखता है और वापस कमरे में चला जाता है )
(थोड़ी देर में शिरीष ,कल्याण ,असलम चले जाते है ) ……………………………………………………………………………………………............................ ………………………………………………………………………………………………………………….
मनोज(गोरख)- प्रिय कार्ल मार्क्स, ये अस्सी प्रतिशत भुक्खड़ों और बैलगाड़ियो का देश
अब प्रगति कर रहा है, नाच नाच के…
मेरे तुमसे कुछ सवाल हैं.
ये चिल कैसे मारा जाता है? और इसका क्या मकसद है?
भूख किसी कि स्थिति है या फिर उसकी नियति?
क्या भूख को महसूस किये बिना भी भूख के बारे में लिखा जा सकता है?
बहुत पेट भरा हुआ हो तो नाचा नहीं जाता.
भूखे पेट भी नाच नहीं सकते.
तो फिर ये कौन हैं जो नाच रहे हैं?
कार्ल मार्क्स, ये मार्क्स क्या है?
बंद करो....
(अनीता आती है +म्यूजिक मनोज(गोरख)उसे देखने लगता हैं )
(सब बेठ जाते हैं )
अनुराग-हाँ तुम मुझसे प्यार करो, जैसे हवाएँ मेरे सीने से करती हैं,
जिनको वह गहराई तक दबा नहीं पाती..
जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं
तुम मुझसे प्यार करो जैसे मैं तुमसे करता हूँ
आईनो रोशनाई मैं घुल जाओ और आसमान में मुझे लिखो मुझे पढ़ो
आईनो मुस्कराओ और मुझे मार डालो
आईनो मैं तुम्हारी ज़िन्दगी हूँ
कुंदन- अपनी नज़रे नाज़ारो मैं खोने लगीं, चांदनी उंगलियों के पोरों पे खुलने लगी
उनके होठ, अपने होठों में घुलने लगे और
पाजेब झन झन झनकती रही
हम पीते रहै और बहकते रहै
जब तलक हर तरफ बेखुदी छा गयी
हम न थे, तुम न थे, एक नगमा था पहलु में बजता हुआ
एक दरिया था सेहरा में उमड़ा हुआ
बेख़ुदी थी की अपने में डूबी हुई
(अनीता चली जाती हैं)
(सुहेल और सृष्टि स्लो डांस)
मनोज(गोरख)- tonight… tonight…
Tonight I can write the saddest lines
Right For example, the night is shattered
and the blue stars shiver in the distance
The night wind revolves and sings
I loved her
and sometimes
she loved me too
Tonight! I can write the saddest lines (टूटी फूटी अंग्रेजी में)
(सृष्टि चली जाती हैं )
(सुहेल अकेले ही नाचता रहता हैं) म्यूजिक धीरे धीरे बंद होता हैं ब्लैक आउट )
SCENE-6
कुंदन(गोरख) (बालकनी की तरफ देख रहा हैं)
चौकीदार -कौन है ? कौन है बे ? भोसड़ी के ......कौन है ?
कुंदन(गोरख)-अरे भैया हम हैं हम गोरख .क्या भैया डरा दिया आपने
चौकीदार-गोरख भैया!!यहाँ क्या कर रहै हो?
कुंदन(गोरख)-अरे बस ऐसी ही हवा खाने आये थे चौकी-बीड़ी पिलाये क्या?
कुंदन(गोरख)-नहीं नहीं ठीक हैं (चौकीदार वापस जाने के लिए मुड़ता हैं ) अरे भाई ये जो कमरा हैं रूम ३१६ उसके बारे में आप कुछ जानते हो ?
चौकी-अरे उसको कौन नहीं जानता लन्दन से आई हुई ठहरी यहाँ
कुंदन(गोरख)-लन्दन से? चौकी -पिता केन्या में बहुत बड़ी फैक्ट्री चलाने वाले हुए,सात साल बेबी लन्दन में रह कर आई है.
कुंदन(गोरख)-सात साल..
चौकी-लेकिन स्वाभाव की बड़ी मीठी है हमसे भी हैल्लो कहती हैं
कुंदन(गोरख)-हैं !!
चौकी -सी.पि.स में रिसर्च कर रही है
कुंदन(गोरख)-अच्हा !! अरे भैया सुनो न नाम पता है उसका?
चौकी- ह्म्म्म.इरादे तो तुम्हारे नेक ही लग रहै है, नाम हुआ उसका अनीता चांदीवाला.गुजराती है लेकिन गुजराती आती नहीं है हिंदी भी अटक अटक के बोलती है अच्छा चलते हैं (जाते जाते रुक जाता है और वापस पलट के बोलता है) वैसे माल एकदम मस्त कन्तास ठहरी
प्रतीक,मनोज,सुहेल,[गोरख] (तीनो एक साथ)- अबे ओई !
मनोज(गोरख)- प्रिय कार्ल मार्क्स, आज में जिस फूहड़ सोच से टकराया उसने मुझे पूरी तरह से झकझोड़ के रख दिया
प्रतीक (गोरख)- वोर्किंग क्लास के लोगो में कांशियसनेस पैदा करने के लिए अभी और गहरी शिक्षा की ज़रुरत है
सुहेल(गोरख)- भारत की कोम्मुनिस्ट पार्टियाँ यही काम तो नहीं कर पा रही है
मनोज(गोरख)-इसलिए तो मजदूरों,किसानो और छोटे कर्मचारियों के बीच उनका सप्पोर्ट नहीं है प्रतीक(गोरख)- अब इसी फौर्थ ग्रेड कर्मचारी को ही देखो
सुहेल(गोरख)- इसका ये एंटी फेमिनिस्ट रुख फयूद्ल्स्टिक और कपिठ्लिस्टिक सोसाइटी की
वेलु सिस्टम की देन है
(रूपा एंड सृष्टि मंच के दोनों विंग्स से आती है)
[music ]
प्रतीक(गोरख)-नहीं नहीं ...... भारत की कोम्मुनिस्ट पार्टियाँ
सुहेल(गोरख)- तुम्हारा सरनेम चांदीवाला उसमे चाँदी जैसी खनक है
प्रतीक (गोरख)-इसलिए तो इनको मजदूरों,छोटे कर्मचारियों का सप्पोर्ट नहीं हैं
मनोज(गोरख)-अनीता आई …
प्रतीक और सुहेल- आई वांट……….
मनोज- अनीता आई भौन्त्त टु ……..
अनीता- व्हाट डू यू वांट?
मनोज- आई वांट टु नो अबाउट दी ब्रिटिश राज नौस्टालजिया (टूटी फूटी इंग्लिश में)
अनीता -औ...........
अनीता (सृष्टि)- The British? The British are so stuck up with their imperialistic past and they are so nosalgic about their entire British history that they call themselves the British Raj nostalgia. (with accent)-dekho na anghoote barabar desh he aur apne ko the Great Britain bolta he. isn't that funny
(प्रतीक और सुहेल हँसते है "हैहैहैहैहैहै:)
and they are so proud of the fact that they have ruled the world unlike Germans........
रूपा(अनीता)मनोज के बाल बनाते हुए - they do not even feel guilty about it.in fact they redefine the Indian history so as to glorify their own part, isn't this interesting? ठिफ्फिन कहा है तुम्हारा?(मनोज इधर उधर देखने लगता है ) .
Have you heard about this film transfer of power?
मनोज(गोरख)- हाँ आई हव सीन इट
सुहेल(गोरख)- आई हव सीन इट
प्रतीक (गोरख)- आई हव सीन इट
सृष्टि(अनीता)-hello that is under production (तीनो गोरख अपना सर पीटते है) रूपा(अनीता) -कोई बात नहीं. उस फिल्म में उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की है की इंडिया को फ्रीडम लोर्ड Mountbatten ने दिलाया है नाकि गांधी ने,या फिर नेहरु या फिर सुभाष चन्द्र बोस ने (मनोज अपने बाल बना रहा है और उसको देख कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे वो आईने को देख कर बाल बना रहा हैं)
बाल ठीक करो वरना बच्चे फिर हसेंगे
मनोज(बाल बनाते हुए)- अन्नी यू नो वाट दे हव डन? दे हव टर्न्ड आर लीडर्स इंटो फन्नी पोलिटिकल जोकर्स (दोनों अनीता हँसती है )
सृष्टि(अनीता ) जोकर [गोरख पलट जाता है. वो अनीता से पूछने वाला है कि अब बाल बना के वो कैसा लग रहा है. लेकिन वो देखता है कि वो कमरे में नहीं है. वो प्रेम से अनीता कहता है और उसके प्यार में खो जाता है.]
सुहेल(गोरख)-अनीता की बातो में कितनी जागरुकता है
प्रतीक(गोरख)-हमारे समाज को देखने का कितना सही नजरिया है
सुहेल(गोरख)-उसे हमारे समाज के मौजूदा हालत की कितनी समझ है
प्रतीक(गोरख)-वो हमारे संगठन में एक अहैम रोल अदा कर सकती है
सुहेल(गोरख)-अनीता की सोच कितनी सुन्दर है
प्रतीक(गोरख)-वो खुद कितनी खूबसूरत है
सुहेल(गोरख)-अनीता..
प्रतीक(गोरख)- चांदीवाला…
मनोज(गोरख)-अन्नी आई लव यू एंड I bhaunt to..
सुहेल(गोरख)- अबे bhaunt नहीं चूतिये want… want… WANT… व्… व्…
प्रतीक(गोरख)-मुझे अपनी अंग्रेजी ठीक करनी होगी [मनोज(गोरख) उठता है और तभी सामने से कल्याण आता है )
मनोज(गोरख) कल्याण से- अन्नी, among the रुस्सियन राइटर्स ,dostobisky एंड chekhob are maii phabourite ....
कल्याण -कौन साहब?
[मनोज(गोरख) ये बोलकर बाहर चला जाता है]
सुहेल(गोरख)- phabourite nahi favourite फ फ (मनोज बाल नोचता हुआ चला जाता है)
(मंच के दांये तरफ से शिरीष आता है और प्रतीक उसको अपनी बात बताने लगता है )
प्रतीक(गोरख) शिरीष से- अनीता यू क्नो आई कम फ्रॉम अ वैरी small billage .....
सुहेल(गोरख)- अरे billage nahi village व् व्
प्रतीक(गोरख)- अनीता माय phather इस ...
सुहेल(गोरख)- अबे phather नहीं father... father पिताजी… पिताजी father
प्रतीक(गोरख)-माय father इस अ वैरी progressive man
कल्याण- गोरख!
असलम-क्या गोरख
(प्रतीक(गोरख) तीनो को देखता है और घबरा सा जाता है ) में में अपनी अंग्रेजी ठीक कर रहा था(ऐसा कहते हुए वहा से भाग जाता है )
शिरीष-ये कोनसा तरीका है अंग्रेजी सुधारने का?( हँसते हुए )
Scene-7
(स्कूल की घंटी बजती है.मंच के दोनों विंग्स से छात्र आते है और अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते है सभी छात्र दर्शको की तरफ पीठ करके बेठे है)
कुंदन (टीचर)-साइलेंस ! कल जो कुछ पढ़ा था उसको revise करते है चलो बताओ
कल्याण- स्ट्रेट लाइन
अनुराग- सॉरी मैम
असलम- टाइम टेबल
सृष्टि - मैम वाटर
रूपा- गेट आउट
सुशांत- यूनिट टेस्ट शि
रीष- पास
प्रतीक- मुर्गा बनो
कल्याण-नकल के लिए भी अकल चहिये
अनुराग - ट्राई एंड ट्राई अंटिल यू डाये....
असलम- एजुकेशन र्रूइन्द मी......
सृष्टि-में तो पक्का फेल हो जाउंगी
रूपा -आंसर तो टैली हो रहा हैना मेथड कोई भी हो
सुशांत-में रोज़ सुबह ५ बजे उठके पढता हु
शिरीष-पास
प्रतीक-मंगल पर जीवन है क्या?
कल्याण- गौड हैल्प डोस हू हैल्प देम्सेल्व्स
अनुराग-चरित्र ही सर्व्श्रेष्ट्र पूंजी है
असलम-होनेस्टी इस द बेस्ट पोलिसी
सृष्टि-माता पिता के चरणों में स्वर्ग है
रूपा -प्रक्टिस मेक्स मैन परफेक्ट
सुशांत-घृणा पाप से करो पापी से नहीं
शिरीष-पास
प्रतीक.एस यू कैन ...सर
कुंदन -शाबाश (अटेंडेंस लेता है)
प्रतीक- प्रेसेंट सर
सुशांत -प्रेसेंट सर
सृष्टि -प्रेसेंट सर
गोरख (कोई आवाज़ नहीं) ..गोरख अब्सेंट सर
कुंदन-अब्सेंट है? यह तो पहले भी अब्सेंट था तुम(कल्याण को देखता है ),और तुम
(असलम को देखता है ) तुम दोनों दोस्त हो न उसके ?कहा है वो ? (असलम और कल्याण खड़े होते है ) असलम: सर वोह कैंटीन में है.
टीचर: कैंटीन में क्यूँ है?
कल्याण: चूत्या क्लास है यह. (सब स्टुडेंट्स हँसते hain)
टीचर: क्या!
असलम : ऐसा गोरख कहता है.
टीचर: कर क्या रहा है वो कैंटीन में?
कल्याण: सर सार्त्र पढ़ रहा है.
टीचर: वो कौन है? (स्टुडेंट्स हँसते है)
कल्याण : सर! jean paul सार्त्र.
असलम: सर वोह क्रन्तिकारी प्रेम कवितायेँ लिख रहा है.
कल्याण: नहीं सर वो सार्त्र पढ़ रहा है.
असलम: नहीं वो क्रन्तिकारी प्रेम कवितायेँ लिख रहा है.
कल्याण : सार्त्र पढ़ रहा है!
असलम: क्रन्तिकारी प्रेम कवितायेँ लिख रहा है!
कल्याण: मुझे पता है!
असलम: मुझे पता है !
कल्याण: मे दोस्त हूँ की ये ?
टीचर: चुप! बैठों दोनों. सार्त्र पढ़ रहा है ,क्रन्तिकारी कविता मे सुनाता हूँ कविता :
बगुला बैठा ध्यान मैं,
प्रात : जल के तीर,
जैसी तपसी तप करे,
मलकर भस्म शरीर,
तीर जो देखी मछली,
काहै मीर,
ग्रासी चोंच समूची फ़ौरन निगली (कविता की चौथी लाइन के बाद)
(सभी स्टुडेंट्स पलट जाते है और शिरीष और असलम की बातें सुनने लगते है,टीचर कविता बोल तो रहा है पर उसकी आवाज़ नै आ रही और बोलते बोलते वो निकल जाता है )
कल्याण: ओये वो कैंटीन में नहीं, रूम पर है.
असलम: क्या!
कल्याण: हाँ मे गया था उसके रूम पर.
असलम : हाँ तो रूम पर बैठ कर क्रन्तिकारी कवितायेँ लिख रहा है.
कल्याण: नहीं वो सार्त्र पढ़ रहा है.
असलम: क्रन्तिकारी कवितायेँ...
कल्याण: सार्त्र पढ़ रहा है!
असलम: अच्छा पर रूम से बाहर to आये
कल्याण: हाँ तू तू बात कर उस से.
असलम: तू बात कर.
कल्याण: तू बात कर.
असलम: मै क्यों बात करू.
कल्याण: तू दोस्त है ना उसका!
असलम: तू कर ना बात.
कल्याण: तू कर ना, तेरी आवाज़ में रूतबा भी है. देख वो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है, आ गया!
(अनुराग(गोरख)पलटता है और असलम से बात करने लगता है ,जैसे ही अनुराग पलटता है क्लास में मौजूद दोनों लड़कियां खड़ी हो जाती है और चली जाती है)
असलम-अरे गोरख तुम यहाँ?
अनुराग (गोरख) असलम से- अरे सुन देख लोगों तक पहुचने का प्रेम ही एक रास्ता है. हम प्रेम से लोगों तक क्रांति का सन्देश पहुचाएंगे. मैं अब से सिर्फ क्रांतिकारी कवितायेँ ही लिखूंगा . जिसके लिए प्रेम होना बहुत ज़रूरी है. जो आजकल मुझे महसूस भी कर रहा हु.असलम मुझे प्रेम हो गया है ये सुन मेरी नयी कविता
प्रतीक(गोरख)-शिरीष आजकल न में एक विशेष परिवर्तन महसूस कर रहा हु, लगता है अनीता इस संवादहीनता से ऊब रही है और उसकी उम्र भी तो मेरे से पांच छेह साल कम है इतनी परिपक्वता कहा से आ सकती है इतनी जल्दी.और लड़कियां पहल तो सिर्फ मुम्बैया फिल्म्स में करती है इसलिए आई हैट हिंदी फिल्म्स.पता है आज हर शहर और कसबे का मध्यम वर्ग्य लड़का कंघी वँघी करके सजधज के किसी हीरो डुप्लीकेट करता है
सुशांत(गोरख) कल्याण से- तुमने अनीता एक चीज़ पिछले पांच छेह दिनों में नोट की है? वो आजकल इतना ज्यादा स्लीवेलेस पहनती है की बाहै और बगलों के नीचे का काफी हिस्सा दिखाई देता है .और आज जो उसने हरे रंग का टॉप पहना था उसका गला इतना खुला हुआ था इतना खुला हुआ की समझो मोड लड़कियां भी ऐसा दुसाहस नहीं करेंगी. अब तुम इससे अनीता की बेशर्मी कहोगे ,लेकिन ऐसा हैं नहीं. ये उसका एक संकेत है,ये उसकी खीज और बेचैनी की अभिव्यक्ति है. इतना उत्तेजक कपड़ा पहनकर अपने शरीर को इतना खोल कर वो मुझसे कहना चाहती है की में अपनी मौजूदा निर्णयहीनता को तोडू ,में उससे साफ़ साफ़ बात करू. आखिर लड़की अपने शरीर के माध्यम से ही मौन को भाषा में बदलती है.
कल्याण-हाँ तो लड़की से जाकर बात करो,उससे कहो मुझे आपसे एक ज़रूरी बात करनी हैं ,जो बैठे कर मकड़जाल बुनते रहते हो उससे बंद कर दो .
शिरीष-ज्यादा से ज्यादा करेगी क्या मन ही तो करेगे जाकर बोल दो लड़की से और खत्म करो किस्सा
अनुराग(गोरख)-यही..यही बात अनीता ने कितने अनोखे तरीके से अपने सुन्दर युवा शरीर से मौन को भाषा में बदलते हुए कहा था और तुम कितने भौंडे और फूहड़ तरीके से कह रहै हो ...छी...
शिरीष-अनीता जी मेरा नाम गोरख है और में आपसे प्यार करता हु यार ये छोटी सी बात कहने में आपको तकलीफ किस बात की है
प्रतीक(गोरख)-अरे नहीं है यार,में तो बस एक सही मौके का इंतज़ार कर रहा हु वैसे बाय द वे हमारे इस प्यार को जैसा तुम समाज रहै हो वैसा वो है नहीं,गुरु ये एक अलग और अजब तरह का खेल है,इसमें कोई कपट नहीं है हम दोनों एक दुसरे के लिए बिलकुल पारदर्शी है ट्रांसपेरेंट कुछ भी छुपा हुआ नहीं है कल्याण-अरे यार तो में भी तो यही कह रहा हु की लड़की से जाकर बात कर
सुशांत(गोरख)-यार बात करना कोई बड़ी चीज़ नहीं है .जो जो तुम चाहते हो वो सब हो जायेगा प्रतीक(गोरख)-देख लेना सब हो जायेगा
अनुराग(गोरख)-देख लेना सब हो जायेगा (सुशांत,प्रतीक,अनुराग चले जाते है ) …………………………………………………………………………………………………………………… ............................................................................................................................................................
Scene-8
(नींद न मुझको आये गाना) (गाना सुनते ही जहाँ असलम और कल्याण मस्ती करने लगते है वही शिरीष को गुस्सा आ रहा है.शिरीष उठने को होता है तो दोनों उसको रोक लेते है .लेकिन आखिरकार शिरीष से रहा नहीं जाता और वो सुहेल(गोरख के कमरे में आ जाता है ) ............................................................................................................................................................. .............................................................................................................................................................
शिरीष -गोरख [सुहेल(गोरख) सुनता नहीं है )]
शिरीष-(ज़ोर से)-गोरख
(सुहेल अपनी दुनिया में खोया हुआ है )
शिरीष-(और ज़ोर से ) गोरख!
[गाना बंद हो जाता है.सुहेल(गोरख) शिरीष को देखता है )
सुहेल(गोरख)- शिरीष इधर आओ ,देखो अनीता अपनी खिड़की खुली छोड़ गयी है खिड़की खुली छोड़ के वो ज़रूर मुझसे कुछ कहना चाहती है… वो कहना चाहती है......
शिरीष(गुस्से में )- अरे कुछ नहीं कहना चाहती ये सब आपका भ्रम है अपने कभी पुछा है जाकर की वो लड़की आपको जानती भी है,आपका नाम भी मालूम है उसको? कुछ करते तो है नहीं दिनभर काल कोठरी में बैठे रहते है,जाईये जाकर बोलिए उनसे मैडम मेरा नाम गोरख है और में आपके प्यार में पागल हो रहा हु (चिल्लाते हुए) (असलम और कल्याण शिरीष को खीच कर ले जाते है)
कल्याण- गोरख मैं आता हूँ…
सुहेल(गोरख)-शिरीष मिश्र…..
तुम नहीं जानते,
इतिहास में खुली रह गयी एक अकेली खिड़की का क्या अर्थ होता है.
लेकिन मैं जानता हूँ, खुली खिड़की का एक भविष्य होता है.
जिसमें से प्रतिज्ञाओं और संकल्पों की रौशनी फूटती है,
ये प्रेम की वो खिड़की है जिसका एक पल्ला पूरब तो दूसरा पशचिम की ओर खुलता है.
यह विचारों का पूरब पशचिम है.
ये वो खिड़की है जिसमे बहती हवा कभी निराशा का दीमक नहीं लगने देती.
शिरीष मिश्र कैसे जानोगे तुम खुली खिड़की का अर्थ
(Shift to teacher’s table)
Scene-9
कुंदन(teacher )- नाम?
कल्याण-कल्याण......अ अ गोरख
कुंदन-क्या किया उसने?
कल्याण-सर वो अपने कमरे में ही रहता है
कुंदन- तुम कहा रहते हो, गार्डेन में?
कल्याण-सर उसने दाढ़ी बहुत बड़ी कर ली हैं
कुंदन- तो तुम्हें दाढ़ी से दिक्कत है ?
कल्याण- सर वो सारा टाइम बालकोनी में खड़ा रहता है
कुंदन- तो मैं ये कंप्लेंट लिखूं की वो बालकोनी में खड़ा ..
कल्याण- सर कंप्लेंट तो है ही नहीं. हम तो बस उसकी हालत आपको बता रहे हैं.
कुंदन- ज़रूरी काम कर रहा हूँ. तुम बहार निकलो, चलो निकलो…
कल्याण - सर बस स्टॉप.
कुंदन-क्या बस स्टॉप?
कल्याण- सर कल शाम को गोरख बस स्टॉप पे खड़ा था
(सुशांत(गोरख) तेज़ी से आता है और खड़ा हो जाता जैसे बस का इंतज़ार कर रहा हो )
कुंदन- अकेला खड़ा था?
कल्याण- नहीं सर मैं भी था, और भी लोग थे
(जैसे ही कल्याण ये बोलता है और कई लोग जल्दी से आते है और सुशांत के आगे आकर खड़े हो जाते है सब अपनी अलग अलग पोसिशन मे फ्रीज्ड हैं )
कल्याण- और सर बहुत देर से बस नहीं आ रही थी
कुंदन- कौनसी बस थी?
कल्याण- सर आप समझ नहीं रहे हो आप देखो
(कल्याण बस के लिए इंतज़ार कर रहै लोगों के पास जाकर खड़ा होता है) बस स्टॉप
(जैसे ही कल्याण उनके साथ खड़ा होता है बस स्टॉप का म्यूजिक बजता है और सारे लोग जो फ्रीज्ड थे अपनी अपनी क्रिया करने लगते है )
पहला यात्री -अरे मानव भाई रीलैंस नु किट्टू गब्भ्रेउ (गुजराती भाषा मे )
दूसरा यात्री- एक सौ ने छविस पॉइंट्स
पहला यात्री- एक सौ ने छविस! मारी नाखिया…
कल्याण -भाईसाहब बस नंबर 316 चली गयी क्या ?
दूसरा यात्री - आवे छे आवे छे
कल्याण -अनीता एंट्री
Anita-(अनीता भागती हुई आती है ) रिकक्षा, रिकक्षा एक्स्कीउस मी एक्स्कीउस मी बस नंबर 666 चली गयी क्या ? (कोई उसकी बात नहीं सुनता सब अपने काम मैं लगे हुए हैं) (अनीता परेशान होकर रिकक्षा रिकक्षा चिल्लाती हुई वहा से चली जाती हैं.तभी भीड़ को हटाते हुए सुशांत(गोरख) आगे आता है )
सुशांत(गोरख)-इट इज इस येट टू कम(पर तब तक अनीता जा चुकी होती है )
[म्यूजिक बंद होता है और सब लोग fir से फ्रीज्ड हो जाते है )
कल्याण -सर ये हुआ था
कुंदन -तो इसमें गलत क्या है? क्यों टाइम वेस्ट कर रहै हो बहार निकलो
कल्याण -सर ये हुआ था पर गोरख ने जो इनको (शिरीष और असलम) बताया वो कुछ और था (कल्याण शिरीष और असलम को धक्का देता बस स्टॉप की तरफ )
कल्याण-अब ये कल्याण है
कुंदन-कल्याण कौन है?
कल्याण-सर कल्याण मैं हु
कुंदन-तो अब ये कौन है?
कल्याण -सर अब ये कल्याण है
कुंदन-तो तुम कौन हो ?
कल्याण - सर में तो कल्याण ही हु
कुंदन-तो मैं कौन हु?
कल्याण- सर आप भी कल्याण (झल्लाते हुए) अरे तुम कहै के कल्याण हुए अरे आप देख लो न सर (शिरीष और असलम कल्याण की नक़ल करते हुए बस स्टॉप की तरफ जाते है )
[music ]
(बस स्टॉप पर खड़े लोग फिर से अपनी अपनी क्रिया करने लगते हैं)
पहला यात्री -अरे मानव भाई रीलैंस नु किट्टू गब्भ्रेउ (गुजराती भाषा मे )
दूसरा यात्री-एक सौ ने छविस पॉइंट्स पहला यात्री-एक सौ ने छविस !!!!! मारी नाखिया
असलम और शिरीष(जो कल्याण है)-भाईसाहब बस number 316 चली गई क्या?
दूसरा यात्री -आवे छे आवे छे
तीसरा यात्री-भाईसाहब अखबार देगे (तभी अचानक अनीता आती है और बड़े प्यार से नाचती हुई "रिक्शा रिक्शा" चिल्लाती है ) सब लोग उसी को देखने लगते है और बस देखते ही रह जाते है )
अनीता-एक्स्कीउस मी (सब लोग अपने हाथ खड़े करते है ) "मैं"
अनीता(हँसते हुए)-नॉट यू (इशारा करते हुए) him ..
चौथा यात्री-हम
पहला यात्री-हम नहीं हिम (सब हटते है और पीछे गोरख अपनी कविता हलके से बोल रहा होता है )
अनीता गोरख से - बस नंबर 666 चली गयी क्या?
सुशांत(गोरख) (एकदम हीरो की तरह)- नो इट इस येट टू कम
अनीता- हाउ स्वीट (अनीता बहुत खुश हो जाती है और "taxi.. taxi.. " चिल्लाती हुई चली जाती है )
(जैसे ही अनीता चली जाती है बस स्टॉप की भीड़ पीछे चली जाती है और खड़ी हो जाती है )
कल्याण (असलम और शिरीष से)- अच्हा किया यार
(तीनो दोस्त कुंदन(टीचर ) के पास जाते है. कुंदन अनीता को देख कर खुद कही खो जाता है )
कल्याण-सर
(कुंदन ध्यान नहीं देता )
कल्याण-सर
कुंदन-हाँ !
कल्याण-सर ये वो था जो नहीं हुआ था
कुंदन-तो वो क्या था?
कल्याण -सर वो हुआ था
कुंदन-है?
कल्याण - सर यही तो गोरख को लग रहा है की साड़ी भीड़ में अनीता ने सिर्फ उसी से पुछा "क्या बस नंबर 666 चली गयी है क्या ?
कुंदन-अच्हा .तो बस चली गयी थी या नहीं चली गयी थी
शिरीष कल्याण से -अरे छोड़ न मंध्बुधि हैं इसको नहीं समझ आयेगा
कुंदन-ऐ क्या बोला तू ?किसको नहीं समझ आयेगा समझाओ मुझे
कल्याण -एक और बात सर लैटर वाली
सर एक दिन अनीता अपनी बालकनी में आई …………उसी वक़्त सुहेल( गोरख) भी अपने कमरे की खिड़की पर आया
सुहेल(गोरख)- कविता
उगने दो ये पेढ़,
ये पौधे ये धरती उगने दो
(अचानक सुहेल(गोरख) की नज़र बालकनी पर खड़ी अनीता पर जाती है सुहेल अचानक बोलने लगता हैं "ये इश्क हैं मेरा इश्क हैं" अनीता के हाथ में एक कागज़ है वो उसमे से कुछ पढ़ती है और फिर फ़ेक देती है, उसके बाद वहां से चली जाती है सुहेल(गोरख) अपनी तरफ के मंच के विंग से निकल कर दूसरी तरफ के विंग से आने के लिए दौड़ता है, उसके आने से पहले पीछे खड़ी बस स्टॉप की भीड़ बहुत सारे कागज़ गिरा देती है, जैसे ही सुहेल(गोरख)मंच पर आता है, वो इतने सारे कागज़ देखता है
[music]
और उन्हैं उठाने लगता है और अनीता का लिखा हुआ कागज़ ढूँढने लगता है, वो कागज़ उठा रहा है और कल्याण प्रवेश करता है , गलती से उसका पैर एक कागज़ के टुकड़े पर पड़ जाता है)
सुहेल(गोरख)- पीछे हट पीछे हट ,पैर नहीं
(कल्याण को उसके लिए बुरा लगता है और वो भी कागज़ उठाने लगता है, जैसे ही कल्याण कागज़ उठाने में व्यस्त हो जाता है सुहेल(गोरख) अपने इकट्ठे किये हुए कागज़ लेकर अपने कमरे की तरफ चला जाता हैं )
[अनुराग,सृष्टि प्रस्थान करते हैं और प्रतीक(गोरख), सुशांत(गोरख), मनोज(गोरख) अपने अपने स्थान से आगे बढ़कर सुहेल को देखते हुए अपनी-अपनी कवितायेँ कहते हैं... ऐसा करते हुए वो अपनी जगह पर खड़े होकर घूमने लगते हैं...]
प्रतीक(गोरख) – अरे अनु कल शाम जो तुमने मेरे लिए चिट्ठी फेंकी थी,वो नीचे कागज़ के हज़ार टुकडो मे खो गई ,मेने बहुत ढूंढा रात २ बजे तक ढूंढ़ता रहा लेकिन नहीं मिली वैसे मे जानता हूँ की तुमने चिट्ठी मे क्या लिखा होगा उस चिट्ठी का जवाब मेने लिखा हैं
सुशांत(गोरख ) की कविता-
हाँ, तुम मुझसे प्यार करो,
जैसे हवाएं मेरे सीने से करती हैं,
जिनको वो गहराई तक दबा नहीं पाती,
जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं,
तुम मुझसे प्यार करो जैसे मैं तुमसे करता हूँ,
आइनों रोशनाई में घुल जाओ,
और आसमान में मुझे लिखो और मुझे पढो,
आइनों मुस्कुराओ और मुझे मार डालो,
आइनों मैं तुम्हारी ज़िन्दगी हूँ...
मनोज की कविता-
Tonight i can write the saddest lines,
Write, for example, that the night is shattered,
and the blue stars shiver in the distance,
the night wind revolves and sings,
I loved her, and sometimes, she loved me too.
[इतने में अनीता गोरख के कमरे में आती है और उसके ऊपर कागज़ के टुकड़े गिराने लगती है.. ये सब देखकर गोरख फूट फूट के रोने लगता है... अनीता कमरे से बहार चली जाती है. अनीता के जाते ही मनोज, सुशांत और प्रतीक चुप हो जाते हैं. लेकिन उनका अपनी अपनी जगह पर घूमना भी जारी है. तभी चौकीदार लेफ्ट विंग से आता है]
Scene-10
चौकीदार- अब्बे हटो भोसड़ी वालो...
[राईट विंग की तरफ से वो अनीता और उसकी दोस्त को आते हुए देखता है]
चौकीदार- आ जाइये मैडम, भगा दिया सबको.
[विंग से अनीता और उसकी दोस्त की आवाज़ आती है]
दोस्त- Come on Anita let's go. It's important.
अनीता -Let it be. I don't want to get into it. I am scared. Leave it.
दोस्त- You wait here I'll talk to him.
दोस्त (चौकीदार से)- क्या है ये?
चौकीदार- क्या है?
दोस्त- खुद ही देखो न क्या है ये?
चौकीदार- चिट्ठी है ।
दोस्त- चिट्ठी नहीं प्रेम पत्र है ।
चौकीदार- किसका है?
दोस्त- नाम पता दोनों लिखा है... कोई गोरख है। रूम नंबर 306
चौकीदार- अरे वो...(रुक जाता है और झूट बोलता है) आ... हम नहीं जानते...
अनीता (बहुत डरे हुए है)- This guy is really weird. He has such big scary eyes, long beard, he wears this long dirty t-shits and keeps on staring. Say it in hindi Bhoomi.
दोस्त(चौकीदार से)- उसकी डरावनी आँखें हैं. लम्बी सी दाड़ी है. और गंदे से कुरते पेहैनता है और घूरता रहता है.
अनीता (बिलखते हुए बोलती है) - I'm not safe here. I need security. What's his name?
दोस्त- इसका नाम नोट करते हैं. तेरा नाम क्या है?
चौकीदार- अरे रे रे, हमारा नाम क्यूँ नोट कर रहै हैं?
दोस्त- वो तो हम नोट करेंगे ही. तू बस अपना नाम बता.
चौकीदार (बिलकुल बुरी तरह डर चूका है) - अरे हम कह रहै हैं न....
दोस्त( बात काट देती है)- तू अपना नाम बता (चिल्लाते हुए)
चौकीदार- अरे हम कह रहै हैं हम पक्का कुछ करेंगे. आप हमारा नाम मत लिखिए. हम पक्का कुछ न कुछ करेंगे....
दोस्त- ठीक है खुद ही कुछ कर वरना अगर हम करने पर आये तोह बहुत भारी पड़ेगा.
[दोस्त और अनीता राईट विंग से चले जाते हैं। चौकीदार बहुत डर जाता है और राईट विंग से तीनो दोस्तों की आवाज़ आती है। वो लोग चाय की दुकान पर बात कर रहै हैं। चौकीदार उनकी ओर बढ़ता है। इतने में तीनों दोस्त भी मंच पर आते हैं।]
कल्याण- दत्ता, दूध पता है क्या होता है? वो चाय में डलता है ।
शिरीष- छोड़ यार, ये कैंटीन थोड़ी ना है ।
कल्याण- हाँ, अस्पताल है। [चौकीदार उनकी ओर बढता है]
चौकीदार- अरे कल्याण भैय्या...
कल्याण- ज़हर पिलाते हैं
चौकीदार- कल्याण भैय्या इधर आइये... ये देखो गोरख बाबू क्या किये हैं ।
[चिट्ठी कल्याण के हाथों में देता है। कल्याण असलम को चिट्ठी दिखाते हुए बोलता है]
कल्याण- ये तो लव लैटर है?
चौकीदार- हाँ लव लैटर है और चूतिये ने अपना नाम पता, दोनों लिख दिया है। लड़की बहुत डर गई है। हमारी नौकरी ले लेगी। कुछ करो...
असलम- हाँ ठीक है यार, करते हैं कुछ
चौकीदार- हाँ! कुछ करो... अगर हमारी नौकरी पर आई तो तीनों को घसीटेंगे। गाँव भेजो उस साले पागल को... [कहता हुआ चला जाता है]
कल्याण- अरे, चौकीदार भैय्या..(चौकीदार लेकिन रुकता नहीं हैं )ये क्या मुसीबत है.. कहाँ है ये मेंटल?
शिरीष- मैं उसके रूम पे गया था। दरवाज़ा अन्दर से बंद था अन्दर से अजीब-अजीब सी बडबड़ाने की आवाजें आ रही थीं।
असलम- कल रात दो बजे वो मेरे कमरे में आए। आँखें चौड़ी और लाल थीं। कुछ फ्रेंच जैसी भाषा में बहुत देर तक बोलते रहै। बीच में हकलाते थे और मुंह में लार आ रही थी। और फिर बहुत देर तक हँसते रहै। कल्याण- भाई इनको हो गई है बीमारी, स्चिज़ोफोबिया
असलम(चौंकते हुए)- स्किजोफ्रेनिया !
[म्यूजिक आता है। राईट विंग से सुशांत और रूपा आते हैं और लेफ्ट विंग से सुहेल आता है। उन तीनों की झोली में बहुत सारे कागज़ के टुकड़े हैं। तीनों चलते-चलते मंच के बीच में आके बैठ जाते हैं और कागज़ ज़मीन पर रखकर उनमें से चिठ्ठी ढूँढने लगते हैं। तभी तीनो दोस्त अपने-अपने गोरख की ओर बढ़ते हैं और उनके सामने खड़े हो जाते हैं]
कल्याण- गोरख!
[तीनो गोरख अपने कागज़ के टुकड़ों को छुपाने की कोशिश करते हुए एक दूसरे को पीठ करके बैठ जाते हैं और अपने कागज़ के टुकड़ों को अपने अपने पीछे छुपा लेते हैं। कल्याण के पुकारने पर तीनो गोरख पलटते हैं]
शिरीष- आप जिस लड़की के पीछे पागल हो रहै हैं मजनू की तरह, क्या उसे ये भी मालूम है कि आपका नाम क्या है?
असलम- और ये भी सच हैं की आप बिना कुछ किये सोचते ही सोचते पागल हुए जा रहै हैं… चलिए गोरख बाबू हम आपको उस लड़की से मिलवाते हैं ।
(तीनो गोरख एकसाथ कविता बोलते हैं )
उसे चहिये प्यार,
चहिये खुली हवा.
लेकिन बंद खिडकियों से टकराकर अपना सर ,
लहुलोहान गिर पढ़ी है वो.
कल्याण -ओये गोरख . चल उठ मुंह हाथ धो .दाढ़ी ढूढ़ी बना जब ऐसी लड़की से प्यार किया हैं तो बन उसके जैसा )
(तीनो फिर कविता बोलते हैं )
गिरती है आधी दुनिया,
सारी मनुष्यता गिरती है,
हम जो जिंदा हैं हम सब अपराधी हैं,
हम दण्डित हैं.
(अचानक हर गोरख अपने सामने खड़े दोस्त को उसके collar से पकड़ता है और गिब्बेरिश बोलने लगता है. सभी गोरख हैरान होते हैं की वो क्या बोल रहे हैं. तभी उनके शरीर में बहुत दर्द होने लगता है और वो ज़मीन पर गिर जाते हैं. तीनो दर्द में तड़प रहे हैं और ज़मीन पर लगातार दर्द की चार मुद्राएं बना रहे हैं)
कल्याण - अरे गोरख! होश में आ… होश में नहीं आयेगा तो पागल हो जायेगा… गोरख!
मनोज (गोरख )-
ये आखें हैं तुम्हारी,
तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समंदर.
इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चहिये
(यही कविता प्रतीक (गोरख ) भी बोलता हैं और मंच के पीछे से भी यही कविता बोली जा रही हैं ) (बोलते बोलते प्रतीक और मनोज आगे बढ़ते हैं और रूपा (गोरख ) और सुशांत (गोरख ) को सँभालने की कोशिश करते हैं उन्हैं गले लगाते हैं , लेकिन सुहेल (गोरख ) अब भी तड़प रहा हैं बहुत तकलीफ़ में हैं .धीरे धीरे रूपा और सुशांत शांत हो जाते हैं और उन दोनों के शांत होते ही सुहेल(गोरख) दर्द से करहाते हुए तेज़ी से चारों मुद्राएं करता है और बेहोश हो जाता है. वो तीनो निढाल से ज़मीन पर पड़े हैं . तभी चौकीदार आता हैं कुंदन (टीचर) के साथ )
Scene-11
चौकीदार- साहब ये देखो ये रहा गोरख
कुंदन (अपनी छड़ी से 2-4 बार सुहेल (गोरख) के पैर पे मारता है) - गोरख! गोरख… उठ
कुंदन (कल्याण से )- ए! क्या हुआ इसको ?
कल्याण - वो…
कुंदन (बीच में काटते हुए )- चुप! बहार अमबुलंस खड़ी है लेके चलो इसको
कल्याण -सर इसके गाँव में बात हो गयी है ये गाँव जायेगा. शिरीष इसका सामान ला
कुंदन- तुम तीनो इसको लेके जाओ
कल्याण टीचर से (बेहद गुस्से में ) हाँ! लेके जा… लेके जा… अरे तू लेके जा ना , हाथ लगा इसको तू… जा यहाँ से (कुंदन को धक्का देते हुए, असलम सर को संभालता है और बहार जाने की लिए कहता हैं )
कल्याण -शिरीष सामन ला इसका (शिरीष मंच के उस हिस्से में जाता है जहा गोरख का कमरा हैं )
(music)
मनोज (गोरख )-
तुम वहाँ से बहुत आगे निकल आये हो जहाँ से चले थे,
मगर तुम्हें अभी और भी आगे जाना था.
अभी कल ही तो नाग भूषण पटनायक से मिलना था,
और मौत के खिलाफ उनकी लड़ाई में शामिल होना था.
करने थे सुख दुःख के हज़ार चर्चे,
घट्नाओ को अपने विवेक के चरखे पर कातना था
(कविता के बीच में रूपा और सुशांत उठ जाते है और पीछे आकर खड़े हो जाते हैं )
प्रतीक (गोरख )-
बच्चों में बांटना था नए विचारों का पराग,
पीड़ित लोगों में विद्रोह का राग बांटना था.
लेकिन तुम नहीं हो,
हमने अपना एक सेनापति खो दिया है,
हमारी एक मशाल बुझ गई है,
हमारे गीतों की एक प्यारी कड़ी टूट गई है.
एक गहरे सदमे में तुम्हारी यादों से घिरे हुए,
हम यहाँ खड़े हैं,
जहाँ दूर से आती हुई एक धीमी ललकार सुनाई पड़ती है -------------------------------
(सब अपने गमछे उतार लेते हैं )
(इसी बीच शिरीष गोरख के कमरे मे जाता हैं अपने दोस्त के कमरे मे आकर शिरीष को बहुत बुरा लगता है वो रोने लगता है (कविता के चलते शिरीष सुहेल (गोरख ) का suitcase लाकर उसके पास रख देता है)
मनोज (गोरख )-
आगे बढ़ो दोस्तों,
इस तरह कैसे चल सकता है?
इतनी भूख है, इतनी गुलामी है, इतनी मौत है,
जीवन को चारों ओर से दबोचती इतनी मौत,
आखिर इस तरह कैसे चल सकता है?
दोस्तों आगे बढ़ो,
कि ये अछोर अँधेरा छट जाये,
की ज़िन्दगी जीते और मौत डर के सामने न आ पाए,
और कभी आये भी तो तुम्हारा आदेश लेकर आये,
गरज ये,की जीना आसान हो,
मरना कठिन हो जाये.
(कविता समाप्त होते-होते सुहेल (गोरख ) धीरे-धीरे उठता है और खड़ा होता है अपने गमछे को ऊपर की ओरे जोर से खींचता है और खुद को फ़ासी लगा लेता है सब लोग एक कदम आगे बढ़ते हैं पर रुक जाते हैं और चुप चाप गोरख को देखते रहते हैं
(म्यूजिक तेज़ होता हैं और धीरे धीरे फेड आउट होता है)
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