सोमवार, 28 दिसंबर 2009
शक्कर के पाँच दाने....
RED SPARROW...( नया हिन्दी नाटक... अरण्य)
Red sparrow...
Manav kaul...
Scene-0
(रस्कोलनिकोव एक कमरे में अकेला खड़ा है। वह इधर-उधर देखता है... एक आदमी प्रवेश करता है वह दूसरे को इशारा करता है अंदर आने का... Charles bukowski.. प्रवेश करता है... दूसरी तरफ से विनोद कुमार शुक्ल भी भीतर आते है.. सभी बेमतलब से धूम रहे है... तभी रुमी प्रवेश करती है वह सीधे विनोद कुमार शुक्ल के पास जाती है....)
काया- जी कहिए?
शुक्ल- आप कहिए..? मैं क्या कहूं?
काया- देखिए मुझे थोड़ी जल्दी है मैं कहानी छोड़कर आई हूँ... तो बताईए?
शुक्ल- अरे भाई मैं क्या बताऊँ... आप बताईए?
काया- अरे आपने बुलाया है आप ही बताएगें?
शुक्ल- मैंने नहीं बुलाया है... मैं भी यहाँ बुलाया ही गया हूँ।
(तभी निर्मल वर्मा प्रवेश करते है उसके साथ एक लड़का है...)
लड़का- निर्मल जी... निर्मल जी... मैं ने आपका डेढ़ इंच नीचे पढ़ा है चार बार... लेकिन कुछ समझ में नहीं आया?
निर्मल- वह ड़ेढ़ इंच ऊपर है... आप मुझे अपना नंबर दें...
लड़का- अरे विनोद कुमार शुक्ल जी... वाह आप भी यहीं है।
शुक्ल- नमस्कार निर्मल जी...यह किसे पकड़ लाए आप..
निर्मल- काफी समय से पीछे लगा हुआ है...आप जाईये यहाँ से.. जाईए..
(लड़का निकल जाता है... तभी निर्मल जी काया को देखते है।)
निर्मल- अरे काया तुम.. तुम यहाँ क्या कर रही हो?
काया- मुझे भी बुलाया गया है...
निर्मल- अरे कोई भी तुम्हें बुलायगा और तुम कहानी छोड़कर चली आओगी... चलो वापिस जाओ..
काया- पर निर्मल...
निर्मल- कहाँ ना जाओ...
शुक्ल- क्या हुआ भाई?
निर्मल- अरे यह मेरी उपन्यास की पात्र है काया.. बताईये इसे बुला लिया..।
शुक्ल- किसने बुलाया है?
बूको- shut up.. shut up…
(आनंद प्रवेश करता है....।)
आनंद- जी मैंने बुलाया है इन्हें.. और आप सभी को...
निर्मल- इन्हें कैसे बुलाया आपने यह तो मेरी कहानी की पात्र है... काया।
आनंद- ठीक है मैं अपनी कहानी में इनका नाम बदल दूगां... रुमी नाम कैसा रहेगा?
काया- मैं अपना नाम क्यों बदलू...।
निर्मल- बुलाया किसलिए है?
आनंद- असल में मैं पहली बार कुछ लिखना चाहता हूँ।
शुक्ल- तो लिखो बैठके हमारा क्या काम है?
आनंद- मैं आप लोगो को लेकर ही अपनी कहानी लिखना चाहता हूँ।
शुक्ल- लेखकों लेकर क्या लिखना चाहते हो?
आनंद- आप लोगों से बेहतरीन कहानी...।
(सभी आनंद को घेर लेते है.. तभी वहाँ काफ़्का का बाप आता है।)
बाप- काफ़्का कहाँ है? काफ़्का कहाँ है?
आनंद- आंकल मैंने आपको नहीं बुलाया था आप कौन है?
बाप- अबे मैं काफ़्का का बाप हूँ?
(सभी आनंद पर झपट पड़ते हैं...)
black out...
Scene-1
शुक्ल- “शब्दहीनता में मैं किसी भी कविता के पहले मुक्ति को मुक्तियों में दुहराता हूँ, शब्दश: नहीं ध्वनिश:, एक झुंड पक्षियों का पंख फड़फड़ाकर उड़ जाता है।“-विनोद कुमार शुक्ल...
आनंद- आप आँखें बंद कीजिए।
शुक्ल- अरे.. यह क्या है...? ऎसे ही दिखा दो।
आनंद- नहीं, आप आँखे बंद कीजिए...।
शुक्ल- ठीक है...।
आनंद- चोरी नहीं... आँखें पूरी बंद...।
शुक्ल- अरे बुढ़ापे में आँखें ऎसे ही बंद होती है... उससे अच्छा तुम कह देते कि चश्मा उतारों..।
आनंद- नहीं...नहीं...., चश्मा उतारते ही आप मेरे लिए गायब हो जाते हैं...।
शुक्ल- चलो जल्दी।
आनंद- अब आखें खोलो...।
शुक्ल- यह... यह... ओह! तुम्हारी कहानी... पूरी हो गई..। अरे इसमें शरमाने की क्या बात है... किसी ने पढ़ी है?
आनंद (सिर हिलाता है ना में)
शुक्ल- ( शुक्ल कहानी पढ़ता है…..रुमी, मैं के कमरे में प्रवेश करती है… भीतर आकर बिस्तर पर बैठ जाती है… मैं हड़बड़ाता हुआ अंदर आता है।)
रुमी- अच्छा कमरा है तुम्हारा।
मैं- दरवाज़ा में जंग लगी है.. इसलिए बंद नहीं हो रहा था।
रुमी- कमरा वास्तु के हिसाब से जमाया है।
मैं- ऎ??? हाँ.. पंखा चालू करुं।
रुमी- माँ कैसी है तुम्हारी….
(आनंद हाथ रख देता है...)
शुक्ल- अरे क्या हुआ… अच्छी है… नहीं.. अच्छा तुम्हारे जाने के बाद पढ़ूगाँ...। अरे... रो क्यों रहे हो... चुप... अरे... क्या हुआ..।
आनंद- मुझे लग रहा है कि मैं बेईमानी कर रहा हूँ।
शुक्ल- बेईमानी??
आनंद- पहली बार मैं यह कहानी किसी और को पढ़ने को दे रहा हूँ... शुक्ल जी क्या मैं इस कहानी से बेईमानी कर रहा हूँ?
शुक्ल- हाँ...।
(वह रोने लगता है शुक्ल जी उसे गले लगा लेते है... वह रोता रहता है।)
Scene-2
(रुमी, मैं के कमरे में प्रवेश करती है… भीतर आकर बिस्तर पर बैठ जाती है… मैं हड़बड़ाता हुआ अंदर आता है।)
रुमी- अच्छा कमरा है तुम्हारा।
मैं- दरवाज़ा में जंग लगी है.. इसलिए बंद नहीं हो रहा था।
रुमी- कमरा वास्तु के हिसाब से जमाया है।
मैं- ऎ??? हाँ.. पंखा चालू करुं।
रुमी- माँ कैसी है तुम्हारी?
मैं- ऎ? अच्छी है। पानी?
रुमी- तुम…
मैं- असल में… क्या??
रुमी- कुछ नहीं… तुम कुछ.. अगर..
मैं- क्या?? अगर मैं..
रुमी- नहीं.. नहीं..
मैं- नहीं…
रुमी- हाँ….
(रुमी मैं के पास जाती है मैं घबरा जाता है वह उसकी टी-शर्ट उतारती है…)
मैं- मैं लाईट आफ करता हूँ.. रुको मैं लाईट आफ करता हूँ.. रुको।
(मैं की टी-शर्ट उतर जाती है… वह भागता है और लाईट आफ कर देता है।)
मैं- where are you??
रुमी- come here..
(अंधेरे में दोनों की आवाज़े आती हैं।)
रुमी- Not so fast baby… slow down.. slow down… no… no… wait.. wait… what???
मैं- That was… that was…
रुमी- FAST…
SCENE-3
(निर्मल वर्मा और bukowski हँसने लगते हैं....निर्मल वर्मा और bukowski, chess (or any other game…) खेल रहे है...)
निर्मल- आप हार रहे हैं।
बूको- मुझे फर्क नहीं पड़ता।
निर्मल- आप थोड़ा सोचकर क्यों नहीं चाल चलते।
बूको- मेरे खेलने का तरीक़ा यही है।
निर्मल- ओ! यह move.... यह मैंने नहीं सोचा था।
बूको- तुम नहीं सोच सकते.... क्योंकि तुम बहुत ज़्यादा सोचते हो।
निर्मल- इस तरह instinctive खेलने की वजह से तुम हारते ज़्यादा हो और जीतते कम हो।
बूको- हारने और जीतने के अलावा तीसरा option है तुम्हारे पास...।
निर्मल- तीसरा option क्या हो सकता है???
बूको- खेलना।... मैं आजकल काफ़्का पढ़ रहा हूँ...।
निर्मल- मैं उसे अपना करीबी दोस्त मानता हूँ।
बूको- साले को कुछ अलग ही चीज़ पता थी।
निर्मल- मेरे हिसाब से उसे ही सही चीज़ पता थी।
बूको- काफ़्का... काफ़्का....।
निर्मल- तो इस बार दाव पर क्या है?
बूको- कितनी बुरी आदत है तुम्हारी... बीच game में दाव की बात करते हो। जब तुम्हें पता है कि मैं हार रहा हूँ।
निर्मल- हार रहे थे... यह last move से दोनों की स्थिति बराबर है।
बूको- तो बोलो?
निर्मल- तुम बोलो???
बूको- क्या लिख रहे हो?
निर्मल- तुम्हें भी लिखने का मौका दूंगा...।
(निर्मल एक पर्ची पर कुछ लिखता है... और बूकोवह्स्की को दूसरी पर्ची पकड़ाता है।)
निर्मल- यह रक्खों तुम्हारे जेब में.... अगर तुम हारे तो यह इस पर्ची पर जो लिखा है वह तुम मुझे दोगे... और अगर मैं हारा तो जो तुम उस पर्ची पर लिखोगे... वह मैं तुम्हें दूगां।
बूको- तुमने क्या लिखा है?
निर्मल- अपनी हार के बाद तुम उसे खोलकर देख लेना।... तुम तो सोचते नहीं हो??? अब क्या हुआ?
बूको- ठीक है....
(बूको पर्ची पर कुछ लिखता है और निर्मल की जेब में डाल देता है... दोनों फिर खेलना शुरु करते हैं। कुछ ही देर में बूकोवहस्की उठता है.. और जाने लगता है।)
निर्मल- कहाँ जा रहे हो???
बूको- सोचने....? (पिशाब करने का इशारा करता है।)
निर्मल- ठीक है... जाओ जल्दी आना।
बूको- तुम जब तक अपनी चाल चलोगे मैं वापिस आ चुका होऊगाँ।
(कुछ देर निर्मल बैठा रहता है... तभी वह जेब से पर्ची निकालता है.... झांककर देखता है कि बूकोवहस्की आ तो नहीं रहा.... पर्ची खोलने के पहले कुछ सोचता है... तभी बूको का आदमी आकर बूको का टाईप्राईटर लेकर भाग जाता है। निर्मल वापिस पर्ची जेब में रखकर बूकोवस्की को आवाज़ लगाता है।)
निर्मल- बूकोवस्की... बूकोवस्की.....।
(कोई जवाब नहीं आने पर बाथरुम की तरफ भागता है... भीतर से तेज़ आवाज़ आती है निर्मल की ’बूकोवस्की’.....निर्मल वर्मा बाहर आता है जेब से पर्ची निकालता है और उसे पढ़ता है।)
निर्मल- shit....
(पर्ची पढ़ते ही वह दूसरी तरफ भागता है।)
Black out....
Scene-4
(मैं बैठा हुआ है..... रुमी कुछ सोचते हुए उसके सामने चक्कर कट रही है।)
मैं- तुम मुझे डरा रही हो।
रुमी- तुम्हे तय करना पड़ेगा।
मैं- रुमी I love you…
रुमी- shut up.. तुम छोटे शहर वालों का यहीं समस्या है, तुम्हें sex देखते ही प्यार हो जाता है।
मैं- No rumi, I really….
रुमी- shut up… तुम तय करों।
मैं- मेरा तो इस कहानी में अभी तक नाम ही नहीं रखा है.... मैं क्या तय कर सकता हूँ।
रुमी- देखो.. यह दो तरह की writing की लड़ाई है... इसमें तुम्हें किसी एक को चुनना ही पड़ेगा। BUKOWSKI या निर्मल वर्मा...? बोलो?
मैं- तुमने किसे चुना है?
रुमी- देखों मैं तो निर्मल की पात्र तो हूँ ही... सो मुझे एक और मौका मिला है मैं दूसरी writing explore करना चाहती हूँ।
मैं- निर्मल को पता लगा तो वह बहुत नाराज़ होगें।
रुमी- कौन बताएगा उन्हें...।
मैं- माँ कसम... विद्या माता की कसम... मैं नहीं...।
रुमी- तुम इस कहानी के डरे हुए writer हो... अगर बोला.. तो...
मैं- मैं विद्यामाता की कसम झूठी नहीं खाता...
रुमी- आज मेरा interview है... wish me luck…|
मैं- मुँह मीठा करके जाओ... रुको मैं शक्कर लेकर आता हूँ....
(मैं अंदर जाता है रुमी गुस्से में चली जाती है। कुछ देर में निर्मल अंदर आता है... मैं अंदर से ही बात कर रहा है।)
मैं- रुमी वैसे सच कहूँ तो...मैं खुद निर्मल के साथ नहीं रहना चाहता, वह अजीब है.. अजीब-अजीब लोगों से मुझे मिलना पड़ता है... ढुंढ़वा रहे हैं वह मुझसे... अरे मेरा तो दिमाग़ खराब कर दिया है.... अबकी बार मिलेगें तो साफ बोल दूंगा..........enough is……
( जैसे ही मैं शक्कर लेकर बाहर आता है... उसे निर्मल सामने खड़े दिखते हैं.....।)
निर्मल- क्या?
मैं- कुछ नहीं...
(मैं हाथ की शक्कर झाड़ देता है... निर्मल मैं के पास आते हैं...)
निर्मल- एक ड्रिंक मिलेगी?
मैं- विस्की है चलेगी?
निर्मल- हाँ। ice है?
मैं- नहीं... ठंड़ा पानी चलेगा?
निर्मल- हाँ।
(भीतर जाता है।)
मैं- sorry ठंड़ा पानी नहीं है।
निर्मल- विस्की है ना, बाद में कह दोगे कि विस्की भी नहीं है।
मैं- विस्की है.... सादे पानी में दे दूं।
(विस्की लेकर बाहर आता है।)
निर्मल- तुम्हारा पेग कहाँ है?
मै- आज मेरी इच्छा नहीं है।
निर्मल- तुम जानते हो मैं अकेला नहीं पीता।
मैं- आप शुरु कीजिए मैं join करता हूँ।
(निर्मल एक घूंट में आधा गिलास खत्म कर देते हैं।)
निर्मल- तुम गए थे ’उसे रोटी ना खिलाओ तो वो गिर जाता था’ के book store में?
मैं- हाँ, मेरी मुलाकात हुई वहाँ... एक डरे हुए आदमी से।
निर्मल- क्या वह वही था?
मैं- नहीं?
निर्मल- तुमने उससे वह कहाँ जो मैंने तुम्हे बोला था?
मैं- क्या?
निर्मल- क्या? तुम्हें याद नहीं है?
मैं- हाँ मैंने कहाँ था।
निर्मल- फिर क्या हुआ?
मैं- वह पढ़ता रहा।
निर्मल- क्या पढ़ता रहा?
मैं- गोदो...
निर्मल- गोदो क्यों?
मैं- मैंने पूछा था गोदो क्यों तो कहने लगा.. मैं इंतज़ार कर रहा हूँ।
निर्मल- तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है... तुमने उसका नाम पूछा? शुरु से बताओ क्या हुआ?
Scene-5
(वह आदमी उसे गोदो लिए खड़ा दिखता है। वह ’उसे रोटा ना खिलाओ तो वो गिर जाता था’ से पूछता है...)
मैं- यह आदमी कौन है?
शुक्ल- पता नहीं मैं तो पहली बार देख रहा हूँ।
मैं- शायद यह वही है।
शुक्ल- यह कुछ भी खरीदता नहीं है बस किताबे तलाशता रहता है।
(वह उसकी तराफ बढ़ता है…. वह आदमी डर के मारे अपना चहरा गोदो में छुपा लेता है। मैं उसके करीब जाता है और धीरे से कहता है।)
मैं- I am like the butterfly with no memory of the caterpillar.
(वह आदमी डर जाता है… अपना सिर घुमा लेता है.. मैं फिर कोशिश करता है… उस लाईन को act भी करता है पर उसपर कुछ असर नहीं होता। वह मायूस होकर जाने ही लगता है कि वह बोलता है।)
रो.- आपके पास सिग्रेट होगी?
मैं- यहाँ सिग्रेट नहीं पी सकते, गैर कानूनी है।
वह चुप हो गया। बात वहीं पर रुक गई।
मैं- मेरी भी सिग्रेट पीने की इच्छा हो रही है कहो तो बाहर चलकर कुछ कश लगा सकते है।
रो.- हाँ तो आप एक काम क्यों नहीं करते, आप बाहर जाकर सिग्रेट क्यों नहीं पी लेते...
मैं- पर आप???
रो.- मैं सिग्रेट नहीं पीता।
मैं- तो फिर आपने मुझसे...?
रो.- मैं शांति से पढ़ना चाहता हूँ।
मैं- आप काफी मज़ाकियाँ तबियत के लगते है....
इतना सुनते ही वह गोदो लेकर चलता बना.... शुक्ला जी के रजिस्टर में उसने कुछ लिखता है, एक बार पलटकर देखता है और चला जाता है...। मैं भागकर शुक्ला जी के पास पहुँचता है।
मैं- क्या लिखा...?
शुक्ल- किताब ले गया है, नाम ही लिखा होगा?
मैंने नाम पढ़ा।
मैं- रोस्कोलनिकोव। रोस्कोलनिकोव...???
शुक्ला- साला हरामी, अब यह किताब वापिस नहीं आनी।
मैं- अरे क्यों?
शुक्ला- रोस्कोलनिकोव? दोस्तोव्हस्की? Crime and punishment?
मैं- उसने पता भी लिखा है। ओह! पता तो उसने आप ही के पुस्तकालय का लिखा है।
शुक्ला- हरामी।
(और मैं वहाँ से चल देता है।)
Scene-6
(निर्मल यह बात सुनकर चौकते नहीं... अगले ड्रिंक की मांग की जिसे मैं ठुकरा देता है।)
निर्मल- तुम्हें अपनी कहानी लिखनी चाहिए...।
निर्मल- सभी अपनी कहानी लिखते है... यह सभी मुझे मेरे अपने लगते हैं।
निर्मल- “All stories are metaphors in frames of time and space.”-(आलम्मा)
निर्मल- दूसरों की लेखनी चुराने से अच्छा... लेखको और पात्रों को ही चुरा लो...।
निर्मल- तुम जुगनू के चमकने की कहानी लिख रहे हो... वह आसान है।
मैं- मेरे लिए जुगनू का चमकना ही जुगनू है।
निर्मल- तुम कभी उसकी कहानी नहीं लिख पाओगे.. क्योंकि जुगनू की कहानी उसके चमकने में नहीं है उसकी कहानी उस अंधेरे में छिपी हुई है जिसे वह दो चमकने के बीच में जीता है।
मै- तो उसका चमकना क्या है?
निर्मल- दृश्य मात्र, जो सत्य है।
मैं- तब तो ठीक ही है मैं सच्ची कहानी लिख रहा हूँ।
निर्मल- red sparrow...
मैं- मैं कोशिश तो कर रहा हूँ... आपने कहाँ था शुक्ला जी की दुकान में एक आदमी आता है उससे कुछ पता लग सकता है.... मैं उसी lead को फ़ालो कर रहा था।
निर्मल- मुझे काफ़्का की help लेनी पड़ेगी... हम दोनों यह काम अकेले नहीं कर सकते...।
मैं- हाँ और वैसे भी... मैं अपनी कहानी लिख रहा हूँ... उसके लिए भी वक़्त नहीं निकाल पा रहा हूँ।
(निर्मल वर्मा जाने लगते हैं.....)
मैं- अरे आप कहाँ जा रहे हैं....???
निर्मल- अरे तुम्हें आगे कहानी लिखने का समय दे रहा हूँ।
मैं- ठीक है... by the way... यह I am like the butterfly with no memory of the caterpillar.... क्या कोड है???
निर्मल- आलम्मा को जानते हो??? वह पहला आदमी था जिसने Red sparrow को पा लिया था। I am like the butterfly with no memory of the caterpillar.... यह वाक़्य उन्होने पहली बार red sparrow से कहाँ था... जो आदमी इस वाक़्य को जानता है वह red sparrow का पता भी जानता होगा।... चलता हूँ।
(निर्मल वर्मा जैसे आए थे वैसे ही चल देते हैं…. वह गिलास लेकर भीतर जाने लगता है कि तभी खिड़की के टूटने की आवाज़ आती है….. कुछ सामान गिरने की आवाज़ आती है.. वह डर जाता है… एक आदमी भीतर आता है वह आते ही लाईट आफ कर देता है।)
रो.- आप रात में बत्तियाँ को जलाए रखते है? कोई विशेष कारण?
मैं- बंद करने का मौका ही नहीं मिला।
रो.- आपको अंधेरे से डर लगता है।
मैं- मैं डरपोक हूँ... उसमें अधेरा हो या उजाला कोई फर्क़ नहीं पड़ता।... आप?
रो- इतनी जल्दी भूल गए मुझे?
मैं- मुझे आपका चाहरा नहीं दिख रहा है... मैं लाईट आन करता हूँ।
रो- नहीं लाईट आन मत करिए...।
मैं- यहाँ मेरे अलावा कोई नहीं है।
रो.- आप red sparrow को तलाश रहे हैं?
मैं- हाँ, तुम्हें कैसे पता चला।
रो.- मैं काफ़्का नाम के एक आदमी से मिला हूँ जो उसके बारे में जानता है।
मैं- कैसे???
रो.- उस दिन उस bookstore से निकलने के बाद मैं बार बार वह वाक्य दोहरा रहा था.. I am like the butterfly with no memory of the caterpillar. तभी काफ़्का ने मुझे रोका और पूछने लगा कि तुम red sparrow क्यों तलाश रहे हो???
मैं- उससे तुम्हारी क्या बात हुई?
रो.- उसने बहुत दिन से खाना नहीं खाया था... वह बहुत भूखा था।
मैं- तो?
रो.- तो क्या? हमने खाना खाया।
मैं- उसने कुछ बताया नहीं???
रों- नहीं... खाना खाने के बाद वह चला गया।
मैं- ओफ!!!
रो.- वह मुझसे दुबारा मिलने वाला है।
मैं- कब???
रो- कल।
मैं- तुम कल भी उससे मिलने वाले हो।
रो.- पता नहीं मैं उससे मिलूगाँ कि नहीं।
मैं- मेरा उससे मिलना बहुत ज़रुरी है... हम दोनों कल साथ चलेगें।
रो.- एक शर्त पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा।
मैं- क्या काम?
रो.- एक औरत मैरे पीछे पड़ी है... मुझे उससे छुटकारा चाहिए।
मैं- कौन औरत?
रो.- देवयानी... उसके पास एक हंटर है... वह जो भी कहती है मुझे करना पड़ता है, मैं उसी से बचता फिरता हूँ।
मैं- औरतों से बचने की दवाई अभी बनी नहीं है।
रो.- मैं जाता हूँ।
मैं- तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला?
रो,- किताब वापिस करने गया था, शुक्ला जी ने बता दिया।
मैं- तो तुमने किताब वापिस कर दी?
रो.- हाँ, क्यों इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है।
मैं- तुम्हारा नाम क्या है?
रो.- रोस्कोलनिकोव।
मैं- मुझे बेवकूफ मत बनाओ!
रो.- क्यों मेरे ऊपर यह नाम जचता नहीं है क्या?
मैं- तुमने किसका खून किया है।
रो.- क्या???
मैं- दोस्तोव्हस्की तुम्हारा बाप है?
रो.- तुम सच में पागल हो। मेरे बाप को crime and punishment बहुत पसंद थी सो उसने मेरा नाम रस्कोलनिकोव रख दिया।
मैं- यह जानते हुए कि कितना painful जीवन था उसका?
रो.- उन्होने कभी उसका अंत नहीं पढ़ा।
मैं- तो बताओ कल कहाँ और कितने बजे मिलना है?
रो.- पहले तुम बताओ तुम मेरा काम करोगे?
मैं- ठीक है... तुम उस लड़की का नाम और पता यहाँ छोड़ दो...।
रो.- नौ बजे, उसे रोटी ना खिलाओ तो वह गिर जाता था के बुक स्टोर के बाहर कैफे में...।
(रोस्कोल निकोव बाहर जाने को होता है तभी वहाँ से एक लड़की उसे लात मारती है। रोस्कोलनिकोव लुड़कता हुआ वापिस कमरे में आ जाता है। देवियानी प्रवेश करती है उसके हाथों में हंटर है। वह दो बार हंटर ज़मीन पर मारती है... रोस्कोलनिकोव यहाँ वहाँ भागने की कोशिश करता है। देवियानी उसे दबोच लेती है।)
देवयानी- साले... चुप मिमियाना बंद कर। मेरे से छुटकारा चाहता है। और कौन दिलाएगा छुटकारा तुझे यह... यह, एक और कायर।
मैं- ऎ! मैं कायर नहीं हूँ।
देव- चुप साले हिजड़े। एक अंधा दूसरे अंधे से कह रहा है कि मुझे रास्ता पार करा दो।
रो.- यही है वह, तुम क्या कर रहे हो खड़े-खड़े मुझे बचाओ।
मैं- ऎ छोड़ो उसे वरना।
देव- वरना क्या? वरना क्या?
मैं- एक तो देर रात किसी भले आदमी के घर बिन बुलाए चली आई... तुम मैं पुलिस को फोन करता हूँ।
देव- बिल भरा नहीं है फोन का और फोन करने की धमकी दे रहे हो।
मैं- तुम्हें कैसे पता?
देव- लाईट आन करो।
रो.- लाईट चालू मत करना।
देव- चुप! लाईट आन करो।
रो.- इसकी आँखों को देखते ही मुझे कुछ हो जाता है... लाईट चालू मत करना।
देव- मैं खुद ऑन करती हूँ।
लाईट चालू होते ही मैं और रोस्कोलनिकोव दोनों मंत्र मुग्ध से उसे देखते रहते है।
देव- ऎ मेरे पैर चाट... चाट...।
मैं- रुको मत करना... रुको....।
(रोस्कोलनिकोव उसके पैर चाटने लगता है। मैं सामने पड़ा एक चाय का कप उठाकर देवयानी की तरफ मारने वाला होता है कि उसके हाथ अटक जाते है। देवयानी उसे देखती रहती है।)
देव- अपनी औकात में रहना... यह मेरा है... बीच में आने की कोशिश बेकार है। अगर बीच में आया तो तेरा भी यही हाल करुगीं। वैसे भी तेरी हालत तो इससे भी बद्तर है। चलो मेरे पीछे पीछे... दुम हिलाते हुए।
(मैं कुछ भी नहीं कर पाता वह दोनों उसके सामने से निकल जाती हैं। मैं चाय के कप को हाथ में उठाए खड़ा रहता है... उनके जाने के बाद वह हिलने की कोशिश करता है पर हिल नहीं पाता.. चिल्लाना चाहता है पर चिल्ला नहीं पाता। धीरे से उसकी उंग्लिया काम करना शुरु करती है… फिर हाथ, फिर सिर और कमर…. वह जैसे-तैसे अपने पलंग की तरफ बढ़ता है और वहाँ पहुचते ही गिर जाता है)
Scene-7
(बूकोवस्की अपनी मे़ज़ पर बैठा हुआ है… सामने shark पब्लिशर का बॉस बैठा है….। बॉस की पीठ पर shark fin लगा हुआ है।)
बॉस- बूकोवस्की… यह बाज़ार है, तुम्हारी writing इस बाज़ार में एक और आलू है….बाज़ार आलू मांग रहा है,
आलू कहाँ है?
बूको- तुम लोगों को अंत में हर चीज़ आलू ही लगती है ना?
बॉस- हमने दाम चुकाए हैं... जिसकी म्याद पूरी हो चुकी है।
बूको- देखो मैं writer हूँ.. I wait for things to come, I don’t go around searching for them..
बॉस- sorry.. हम शार्क पब्लिशर्स हैं... we eat पेंग्विन..हम तुम्हें और समय नहीं दे सकते हैं।
बूको- I am trying my best…
बॉस- अब try करने का समय नहीं है.. you have to do it now.. वरना…
बूको- वरना क्या तुम मुझे मार दोगे?
बॉस- इतनी आसानी से नहीं।… तुम्हें यह contract साईन करना पड़ेगा।
बूको- इसमें क्या है?
(बॉस contract पढ़ता है।)
बॉस- अब से यह हमारा आदमी है..
(बूको अपने आदमी को देखता है वह पलटता है उसकी पीठ पर भी शार्क fin है।)
बूको- क्या???
बॉस- हाँ... तुम्हारे पास एक हफ्ता है red sparrow खत्म करने के लिए, अगर तुम नहीं कर पाए तो हर हफ़्ते तुम्हें 142 रुपये देने पड़ेगें…. अपनी जान बचाने के लिए… sign it…
बूको- shut up… मज़ाक बंद करो…
(बॉस आदमी को इशारा करता है… वह बूको का गला पकड़ लेता है…. बूको जल्दी से sign कर देता है।)
बॉस- थेंक्स… see you next week… same day… same time..bye..
(बॉस चला जाता है।)
बूको- देवयानी... देवयानी...|
(देवयानी की अंदर से आवाज़ आती है...।)
देव- चिल्लाओ मत मैं फिल्म देखने जा रही हूँ.... see you..
बूको- what????
Scene-8
मैं- मैं सिनेमा हाल में जाकर बैठ गया... मैं अच्छा इंतज़ार करने वाला नहीं, मतलब मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो बहुत अच्छी तरह किसी महत्वपूर्ण चीज़ का इंतज़ार करते रहें और किसी को पता भी नहीं चलता। ’इंतज़ार कैसे किया जाए’ की कोई किताब होगी जो मैंने कभी पढ़ी नहीं, ट्रेनिंग होगी जो मैंने कभी ली नहीं... मैं किसी का भी इंतज़ार ठीक से नहीं कर पाया... जीवन का, खुद का, रुमी का, अगर सुबह उठने का मुझे इंतज़ार करना होता तो शायद मैं कभी सो भी नहीं पाता।
निर्मल- शु.. शु....।
मैं- क्या है...?
निर्मल- you are thinking aloud.... मैं disturb हो रहा हूँ।
मैं- अरे! आप यहाँ?
निर्मल- शू.. शू...।
मैं- आप रो क्यों रहे हैं?
निर्मल- यह मेरी पसंदीदा फिल्म है।
मैं- यह???
निर्मल- शू...शू... मेरा पसंदीदा सीन...। कहाँ जा रहे हो?
मैं- मुझे नहीं पता।
निर्मल- बैठो... बैठो... क्या हुआ?
मैं- मैं आज एक आदमी से मिल रहा हूँ जो red sparrow के बारे में जानता है.. रात नौ बजे कैफ़े में...।
निर्मल- तो यहाँ क्या कर रहे हो?
मैं- बारह बजे से वहाँ जाकर बैठ जाऊँ... यहाँ मैं टाईम काटने आया था।
निर्मल- उसे कैसे पता red sparrow के बारे में?
मैं- वह एक आदमी से मुझे मिला रहा है जो red sparrow के बारे में जानता है।
निर्मल- कौन है वह आदमी?
मैं- आपको उससे क्या करना है?
निर्मल- कौन मिला रहा है?
मैं- रस्कोलनिकोव..।
निर्मल- ओह! नो...।
मैं- आप उसे नहीं जानते।
निर्मल- मैं रस्कोलनिकोव को नहीं जानता? मेरी वजह से तुमने crime and punishment पढ़ी है।
मैं- मेरे कहने का मतलब है कि… यह रस्कोलनिकोव है लेकिन... रस्कोलनिकोव नहीं है।
निर्मल- साला वह बहुत चालाक है।
मैं- कौन, रस्कोलनिकोव?
निर्मल- नहीं बूकोव्हस्की।
मैं- कौन bukowski?
निर्मल- कौन bukowski? वही bukowski जो यह सब घटिया चीज़ तुमसे लिखवा रहा है। उसके चक्कर में मत पड़ना... फस जाओगे।
मैं- मैं क्यों फसूगाँ?
निर्मल- रस्कोलनिकोव तुम्हें उस आदमी से क्यों मिलवा रहा है?
मैं- क्योंकि मैं उसके बदले उसका एक काम कर रहा हूँ।
निर्मल- क्या काम?
मैं- मैं उसे छुटकारा दिला रहा हूँ एक लड़की से।
निर्मल- किस लड़की से?
मैं- देवयानी।
निर्मल- देवयानी? Oh God! सुनों मुझे नहीं पता तुम क्या सोचकर उसपर इतना विश्वास कर रहे हो... पर मेरी एक सलाह मानों... देवयानी से दूर रहना।
मैं- आप जानते है देवयानी को? कौन है वह?
निर्मल- अरे! मूर्ख... देवयानी का कहना है.... आह!
मैं- क्या हूआ?
निर्मल- मैं अभी आया... तुम रुको कहीं जाना नहीं।
मैं- पर देवयानी का क्या कहना है?
निर्मल- मूर्ख....।
मैं- देवयाना का कहना है.... मूर्ख।
मैं- मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था... निर्मल को हर बात पर पिशाब क्यों लग आती है? देवयानी का क्या कहना है? Prostitution को लीगल क्यों नहीं किया जा सकता? क्या मैं जी नहीं पाता हूँ इसलिए लिखता हूँ? Bukowski मुझसे क्या लिखवाना चाहता है? क्या मंगल ग्रह पर पानी है? रुमी से कब मिलूगाँ? गांधी और बाबरी मस्जिद के बीच क्या संबंध है?
(Black out...)
Scene-9
(बूकोवस्की अपनी मेज़ पर पैर फैलाए बैठा है... सामने टाईप्राईटर, एक दारु की बोतल, सिगार रखा हुआ है...। देवयानी भीतर एक आदमी को मार रही है.... उसके पिटने की आवाज़ बाहर आती है...।)
बूको.- बस.. बस...।
देवयानी बाहर आती है.. वह अपने साथ उस आदमी को भी लाती है जिसे वह मार रही थी… उसके हाथ बधें है और मूँह पर पट्टी बधीं हुई है। देवयानी उसे लेकर बुकोवस्की के बगल में बैठ जाती है...।
बूको- साला बहुत सख्त जान है।
देवयानी- बोलेगा... अभी नहीं तो कुछ देर में बोलेगा।
बूको- bitch.
देवयानी- वह मर्द है।
बूको- मैं तुम्हारी बात कर रहा हूँ।... you bitch.
देवयानी- मैं क्या किया है।
बूको- तुम रस्कोलनिकोव को जानती थी तुमने कभी बताया नहीं?
देव- मैं बहुतों को जानती हूँ... इसका यह मतलब नहीं है कि मैं सबके बारे में तुम्हें बताती फिरुं।
बूको- वह डरा हुआ चूतिया है।
देव- मैं तुम्हारे लिए काम कर रही हूँ और वह मेरे लिए... और चूतिया कौन है यह हम दोनों अच्छे से जानते हैं।
बूको- कौन दोनों?
देव- मैं और... !
बूको- और... रस्कोलनिकोव या मैं....? Don’t you laugh... say it...
देव- say what???
बूको- fuck you.
देव- don’t you dare...
बूको- I want red sparrow anyhow....
देव- तुम अचानक इतने despret क्यों हो गए???
बूको- मैं तुम्हें नहीं बता सकता... I need that.
देव- तुम्हें रस्कोलनिकोव पर विश्वास करना होगा... उसे कुछ पता चला है।
बूको- क्या???
देव- वह एक आदमी से मिलने वाला है जो red sparrow के बार में जानता है।
बूको- कौन है? कब मिल रहा है वह उससे???
देव- आज रात नौ बजे केफ़े में...
बूको- lets go there...
देव- पर उसने मना किया है।
बूको- fuck him....
(देवयानी बूको की कालर पकड़लेती है वह डर के मारे बैठ जाता है।)
देव- मना किया है उसने…।
(कुछ देर में वह उठता है और उस आदमी को पागलो की तरह मारने लगता है…
बूको- मैंने कान्ट्रेक्ट साईन किया है… शार्क... मुझे red sparrow.. डिलिवर करना ही है… मैं मरना नहीं चाहता… किधर है… बोल… कहाँ है red sparrow….
(तभी रुमी प्रवेश करती है… बूको मारना बंद कर देता है।)
रुमी- …..Interview???
बूको- क्या???
रुमी- टाईपिंग.. interview..?
बूको- speed..??
रुमी- 90 words per minute…
बूको- इसकी 89 words per minute थी... you still want to join..
रुमी- I am positive…
बूको- come with me…
(दोनों निकल जाते हैं... देवयानी उस आदमी की तरफ बढ़ती है...वह चीखता है।)
black out…
Scene-10
(रस्कोल निकोव और मैं दोनों कैंफे में बैठे-बैठे एक आदमी का इंतज़ार कर रहे हैं... तभी वहाँ बूको आ जाता है... तीनों की आपस में बहस और लड़ाई होती हैं। ’मैं’ को बहुत चोट पहुँचती है रस्कोलनिकोव भाग जाता है।)
रो- coffee???
मैं- नहीं.. तुम्हें चाहिए तो मैं ले आता हूँ?
रो- मैं coffee नहीं पीता?
(तभी वह वहाँ निर्मल आते हैं।)
निर्मल- अरे तुम्हें मना किया था तुम फिर भी यहाँ चले आए...
(रस्कोल निकोव को देखता है)
निर्मल- अरे यह मैं.....
मैं- आप यहाँ क्या कर रहे हैं? आप सारा काम बिगाड़ देंगें।
निर्मल- मैं उससे बात करना चाहता हूँ?
मैं- वह बहुत डरा हुआ है... सारा मामला उलझ जाएगा।
निर्मल- वह तुम्हें बेवकूफ बना रहा है...।
मैं- आप यहाँ से जाईए.. अभी कुछ ही देर में पता चल जाएगा।
निर्मल- यह देखों काम तो अब बिगड़ेगा तुम्हारा... बूकोवस्की।
मैं- बूकोवस्की.. बूकोवस्की...
निर्मल- उधर मत देखो... चुप चाप बैठे रहो।
मैं- अरे मैंने देखा नहीं है उसे?
निर्मल- शू.. चुप... तुम जाओ मेरे लिए एक काफ़ी लेकर आओ…।
(मैं वहाँ से चला जाता है।bukowski और रुमी साथ है…. बूकोवस्की को देखते ही रस्कोलनिकोव भागने की कोशिश करता है बूकोवस्की रोक लेता है...। वह वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है। bukowski उसके बगल में बैठ जाता है।)
बूको- (रुमी से…) you can go now…
(रुमी जाती है दूसरी तरफ उसे निर्मल वर्मा खड़े दिखते है... वह उसे देखकर घबरा जाती है... वहाँ से जाने को होती है कि निर्मल वर्मा उसका हाथ पकड़ लेते हैं....)
बूको- NOTHING... sitting in a café having breakfast.NOTHING, the waitress, and the people eating, the traffic runs by, dosen’t matter what Napoleon did, what Plato said, Turgenev could have been a fly. we are worn-down, hope stamped out. We reach for coffee cups like the robots about to replace us....
देव- The impossibility of being human...
(निर्मल और रुमी….)
निर्मल- तुम यहाँ… क्या कर रही हो???
रुमी- I am sorry nirmal…
निर्मल- मेरी कहानी से इस जगह आने की क्या ज़रुरत थी। मुझसे मिल लेती..
रुमी- तुम्हारी कहानी से ज़बारदस्ति उसने मुझे बाहर निकाला गया है... अब मैं क्या कर सकती हूँ।
निर्मल- चोर.. उसे मैं छोडूगाँ नहीं।
रुमी- निर्मल..
निर्मल- मैं तुम्हें ऎसे नहीं देख सकता। कहाँ जा रही हो?...
(रुमी निर्मल के पास बैठ जाती है।)
(बूको, देवयानी... रोस्कोलनिकोव)
बूको- Van Gogh writing his brother for paints... Hemingway testing his shotgun... Faulkner drunk in the gutters of his town... Maupassant going mad in a rowboat, Dostoevsky lined up against a wall to be shot, Lorca murdered in the road by the Spanish troops,
देव- The impossibility of being human...
बूको- Shakespeare a plagiarist, Beethoven with a horn stuck into his head against deafness... Nietzsche gone totally mad...
देव- the impossibility of being human... all too human... this breathing in and out out and in these punks these cowards these champions these mad dogs of glory...moving this littile bit of light toward us impossibly.
बूको- enough... बस... वह कहाँ है?
रो- मैं देखकर आता हूँ?
देव- चुप-चाप बैठे रहो।
(बूको गन निकालता है... रस्कोलनिकोव देवयानी को धक्का देकर भागने की कोशिश करता है.... वहाँ वह निर्मल वर्मा से टकरा जाता है... और वापिस भागने की कोशिश करता है... बूको, वर्मा जी पर गन तानते है... वर्मा जी भी गन निकाल लेते हैं... एक दो fire होते हैं... लाईट बदल जाती है सभी डॉस करना शुरु कर देते हैं… अंत में, शुक्ल जी के अंदर आते ही वह सभी… एक नृत्य की मुद्रा में फस जाते है। शुक्ल जी कहानी पढ़ना बंद कर चुके है… सारे पात्र उनसे कहानी को लेकर शिकायत करते है….(अगला सीन))
Scene-11
(सारे पात्र यहाँ वहाँ धूम रहे हैं... शुक्ल जी बार-बार दरवाज़े की तरफ जाते हैं… वापिस आ जाते हैं।)
निर्मल- यह क्या है??? मेरे कपड़े देखों… ऎसा मैं अपने सपने भी नहीं दिखना चाहूगाँ।
बूको- bloody we are writer’s… have some respect…
रुमी- क्या है यह सब... मैं क्या लौंड़ो के पीछे भागती फिरती हूँ... nirmal stop this pls...
निर्मल- come here… ऎ बंद करो यह सब।
देव- और मैं क्या हूँ एक... emotionless bitch... I don’t want to play this childish game.
रो- मैं थक चुका हूँ... मैं मार दूगाँ किसी को...
शुक्ल- आनंद बस आता ही होगा...
बूको- ऎ तुम रोस्कोल.. you don’t kill… ऎ.. एक ड्रिंक मिलेगा?
निर्मल- हाँ.. एक चिल्ड़ बियर मेरे लिए भी...
रुमी- wine pls..
रो- मुझॆ जलजीरा...
शुक्ल- इसमें लिखा नहीं है कि... आप लोग पी रहे हैं...
(सभी लोग इस बात पर गुस्से में आ जाते हैं.... शुक्ल की तरफ बढ़ते हैं... तभी पीछे आनंद खड़ा दिखता है।)
शुक्ल- वह आ गया...।
बूको- इसे तो मैं...
निर्मल- हम इससे बात नहीं कर सकते हैं... शुक्ल जी जाईये।
बूको- kill him.. बाक़ी मैं संभाल लूगाँ... एक ड्रिंक भी नहीं है।
(शुक्ल, आनंद के पास पहुँचता है।)
शुक्ल- तुम्हारा दिमाग़ खराब है क्या?... वह तो अच्छा हुआ कि सिर्फ अभी यह मैंने ही पढ़ा है...| यह सब लेखक हैं.. बड़े लेखक.., संजीदा पात्र हैं... तुम.. तुम अभी बच्चे हो।
आनंद- क्या हुआ???
शुक्ल- क्या हुआ??? क्या हुआ?? यह कहानी क्या मज़ाक उड़ाने के लिए लिखी है।
आनंद- पर शुक्ल जी यह सब मेरे हीरो हैं..... great writers, amazing characters … वह मेरे लिए महज़ कुर्ता पेजामा और झोले वाले आदमी नहीं है... मुझे यह सब rock star’s लगते हैं.... सो जैसे दिखे मैंने वैसा लिख दिया।
शुक्ल- तुमने इन्हें पढ़ा है तो क्या मतलब.. इनकी बजा दो।
आनंद- नहीं मैंने ऎसा तो.....।
शुक्ल- shut up…|
आनंद- आप ही ने कहाँ था कि रिल्के ने एक यूवा कवी को सलाह दी थी कि...
शुक्ल- मुझे मत समझाओ कि रिल्के ने क्या कहाँ था।
आनंद- कि रात की सबसे खामोश घड़ी में अपने से पूछो...
शुक्ल- मैंने कहाँ ना मुझे नहीं सुनना है यह...
आनंद- पूछो, क्या लिखना अनिवार्य है?
शुक्ल- तुम चुप नहीं रह सकते...
आनंद- उत्तर हाँ में होना चाहिए... अगर तुम अकेले रह रहे हो और...
शुक्ल- इन्हीं सब चीज़ो ने तुम्हारा दिमाग़ खराब कर दिया है.. चुप..
आऩंद- और सिवा अपने के, कहीं और नहीं मुड़ सकते।
शुक्ल- चुप.. चुप...(शुक्ल उसका मुँह बंद कर देता है।)
(आनंद अपने पन्ने उठाता है और जाने लगता है।)
शुक्ल- रुको...
(आनंद रुक जाता है...।)
शुक्ल- मैंने अभी पूरा नहीं पढ़ा है...
आनंद- आगे भी यह ऎसा ही है...
शुक्ल- जो भी है मैं पूरा खत्म करना चाहता हूँ।
(आनंद पन्नों को उसे दे देता है।)
आनंद- मैं वापिस नहीं आऊगाँ... आप पढ़कर इसे फाड़ देना...।
शुक्ल- क्यों यह पाप मैं क्यों उठाऊ... तुमने पैदा किया है यह.. तुम्हीं मारोगे इसे।
आनंद- चलता हूँ....
शुक्ल- ’उसे रोटी ना खिलाओ तो वह गिर जाता था’ से बहतर तुम्हें कोई नाम नहीं मिला।
आनंद- लाईये मैं उसे बदल देता....
शुक्ल- रहने दो... क्या-क्या बदलोगे...???
आनंद- मैं अब नहीं आऊगाँ आप इसे कूड़े में फैंक देना....
शुक्ल- ऎ!... रुको...आनंद.. आनंद... रुको...
(वह भाग जाता है... शुक्ल वापिस आकर कहानी उठाते है... सारे पात्र शुक्ल जी के पास आते है और चीखते है... )
सभी- नहीं कहानी आगे मत पढ़ना.. नो.. प्लीज़.. नहीं पन्ना मत पलटना... नो.. नो...।
(शुक्ल जी पन्ना पलट देते है सभी पात्र.. धीरे-धीरे करके... exit करने लगते हैं.. सिवाए रुमी और मैं के... उनका सीन शुरु होता है।)
Scene-12
रुमी- यह क्या हो गया?
मैं- writers पर कभी विश्वास मत करो... अगर उनपर गलती से कर भी लिया तो कम से कम
उनके पात्रों से तो दूर रहो।
रुमी- मैं भी तो चोरी हुई एक पात्र हूँ।
मैं- इसी चक्कर में निर्मल वर्मा को मैं इतना झेल रहा हूँ।
रुमी- कल मैं नौकरी के चक्कर में एक आदमी से मिली... खडूस आदमी था, मुझे लगा यह नौकरी तो हाथ से गई... पर तुम्हारा नाम लेते ही वह चौक पड़ा...
मैं- अरे मेरा नाम.. मैंने अभी इस कहानी में अपना नाम ही नहीं रखा है।
रुमी- अरे.. मतलब निर्मल वर्मा के रिफरेंस में... तो उसने मुझे झट से नौकरी पर रख लिया।
मैं- काम क्या है?
रुमी- वही जो मैं तुम्हारे साथ करती हूँ।
मैं- क्या मतलब?
रुमी- टाईपिंग...।
मैं- वह writer है।
रुमी- दिखता तो नहीं है... पर कुछ उपन्यास लिखना चाहता है... CHARLES BUKOWSKI.
मैं- बूकोवस्की...? बूकोवस्की.. के यहाँ तुम्हें.. पता है वह कितना कमाल writer है। मैं तो.. तुमने उसे मेरे बारे में क्या बताया?
(तभी वहाँ से रोस्कोलनिकोव निकलता है उसके पीछा करते हुए देवयानी है... रोस्कोलनिकोव बीच में रुक जाता है उसे शक़ होता है कि कोई उसका पीछा कर रहा है.. वह देवयानी के पीछे भागता वह उससे तेज़ भाग जाती है... रोस्कोलनिकोव वापिस आता है और हारा हुआ दूसरी तरफ चला जाता है।)
रुमी- वही घटना कैसे तुम और निर्मल उनके दोस्त के घर पर गए और तुम्हारी कैसी फट गई थी।
मैं- thanx तुमने याद दिला दिया... मुझे निर्मल के साथ उसके दोस्त के घर जाना था।.. क्या??? तुम पागल हो... निर्मल के दोस्त की बात तुम्हें उसे बताने की क्या ज़रुरत थी?
रुमी- मुझे कुछ सूझा नहीं सो मैंने वह ही सुना दिया।
मैं- बहुत गलत किया किया तुमने यह... वह अपने उस दोस्त के बारे में बहुत कम बात करता है.. और.. और अभी तो निर्मल और मैं उसके दोस्त से मिले भी नहीं है.. फिर तुमने यह घटना कैसे सुना दी...।
रुमी- मैंने ही टाईप किया है, मुझे पता है...अगला सीन वही है ना...???
मैं- what ever.. मैं चला।
रुमी- सुनों मुझे आज से ही join करना है.. मैं चली जाऊगी।... डरपोक...।
Scene-13
(निर्मल वर्मा... काफ़्का के घर में बैठे हुए हैं। काफ़्का का बाप उसके सामने बैठा हुआ है। बहन चाय लेकर आती है।)
बाप- चाय लीजिए... आपका नाम नहीं बताया आपने?
निर्मल- निर्मल... और यह मेरे दोस्त...।
बाप- इनका नाम दोस्त है?
निर्मल- इन्होने अभी अपना नाम नहीं रखा कहानी में।
बाप- बिस्किट्स भी लाओ।
निर्मल- नहीं उसकी कोई ज़रुरत नहीं है। चाय ठीक है...।
बाप- तो..?
निर्मल- जी..?
बाप- तो..? और क्या..?
निर्मल- और... और कुछ नहीं।
बाप- मतलब यहाँ...?
निर्मल- पहले मैं यहीं रहता था।
बाप- यहीं???
निर्मल- मतलब यहीं पास में ही...
बाप- पास में..?
निर्मल- हाँ.. पीछे की गली में... यहाँ से गुज़र रहा था..।
बाप- हं!
निर्मल- सोचा मिलता चलूं... बहुत दिन से फ्रेंस दिखा नहीं...।
बाप- आप काफ़्का को कैसे..?
निर्मल- दोस्त है वह मेरा...।
बाप- दोस्त..? उसने तो कभी आपका ज़िक्र...।
निर्मल- आपके बेटे के कितने दोस्त इस दुनियाँ में बिखरे पड़े है आपको कोई अंदाज़ा भी नहीं है।
(तभी भीतर से किसी के दरवाज़ा खरोंचने की आवाज़ आती है।)
निर्मल- ये...????
बाप- कुछ नहीं एक कीड़ा... बड़ा सा कीड़ा पीछे कमरे में घुस आया है... कुछ दिनों से... उसी की आवाज़ है।
निर्मल- वह तो काफ़्का का कमरा है???
बाप- हाँ...।
निर्मल- फेंज़ कहाँ है?
बाप- वह बीमार है।
(फिर आवाज़ आती है।)
मैं- चलो यहाँ से चलते हैं।
निर्मल- शु.. शु...।
बाप- आप आराम से चाय ख़त्म कीजिए।
मैं- मुझे यह ठीक नहीं लग रहा।
बाप- काफ़्का ठीक नहीं है... उसकी तबियत खराब है...
निर्मल- मैं उसे एक बार देख सकता हूँ?
बाप- वह किसी से मिलना नहीं चाहता।
(आचानक भीतर से आती हुई आवाज़ तेज़ होने लगती है।)
मैं- मैं बाहर हूँ... आपका जब हो जाए तो बाहर आ जाईयेगा।
बाप- यह चाय आप खत्म करके जाएगें।
(वह वापिस बैठ जाता है।.. बाप काफ़्का की बहन को आवाज़ लगाता है।)
बाप- सुनो... वह....
(इशारे समझ बहन अंदर चली जाती है।)
मैं- चाय खत्म हो गई... चलो।
बाप- ठीक है तो फिर...।
मैं- चलो.. चलो...।
निर्मल- मैं फ्रेंस को बिना मिले नहीं जाऊगाँ... तुम बैठो यहीं पर...।
बाप- आप फ्रेंस के दोस्त है... वरना...।
मैं- सुनों बाद में मिल लेना.. अभी...।
निर्मल- वर्ना क्या???
(बाप एक लकड़ी उठा लेता है...। निर्मल खड़े हो जाते हैं।)
निर्मल- हम समझ गए.. हम चलते हैं।
(तभी भीतर से चीख़ने की आवाज़ आती है।... काफ़्का की बहन भागती हुई बाहर आती है... और उसके पीछे-पीछे काफ़्का कीड़े के रुप में भागता हुआ बाहर आता है।.... ’मैं’ की चीख़ निकल जाती है। बाप लकड़ी लिए उसके डराता है।)
काफ़्का- नि... मा.... आ.....।
बाप- चलो... अंदर.. अंदर... चलो... तुम बाहर की दुनियाँ के लायक नहीं हो... पहले इंसान बनो...इंसान...।
बहन- काफ़्का अंदर चलो... काफ़्का भगवान के लिए अंदर चलो... उसे मत मारो.. मत...।
(बाप उसे मारता है, मैं और निर्मल अचानक कुछ step करते हैं... और चिल्लाना शुरु करते है।)
निर्मल- यह काम पर क्यों नहीं आया?
मैं- बिना काम के जीने की इजाज़त नहीं है।
निर्मल- इस हाथ दे उस हाथ ले... तुम्हें पता है?
बाप- हाँ मुझे पता है।
मैं- इसकी बीमारी का पता चलते ही...
बाप- क्या हुआ?? नहीं.. नहीं...
निर्मल- हाँ.. सारे आफिसों के बाहर लाईन लगी है.. इससे भी तगड़े...
मैं- इससे भी मज़बूत.. महनती...जवानों की..
बाप- यह एकदम चीटीं जैसा दिखता है... पर अपने वज़न से चार गुना बोझा ढ़ो सकता है।
निर्मल- तो...क्या.. क्या.. problem क्या है?
बाप- वह बीमार है।
निर्मल- एक दिन से ज़्यादा बीमार होने का हक़ नहीं है उसे।
बाप- आप उसकी तनख़्वा से काट लेना।
मैं- work is worship... you know that.. work is worship..
बाप- हाँ.. हाँ.. work is worship... मैंने उसे यही सिखाया था। The erly bird gets the worm...”.”Early to bed and early to rise makes a man...”God takes care of those who..”
निर्मल- ठीक से नहीं सिखाया..
बाप- मैंने मार-मार के सिखाया है... उसे सब रटा दिया था।
निर्मल- कल...
बाप- कल...
मैं- लोकल 8.45..
बाप- लोकल 8.45..
निर्मल- काम.. work.. life.. survival...
(निर्मल.. और मैं एक तरीक़े के step करते हैं और वापिस डरे हुए वहाँ से निकल जाते हैं।)
बाप- yes... work... life.. survival...
(बाप यह कहते हुए भीतर काफ़्का के कमरे की तरफ जाता है। काफ़्का के चीखने की आवाज़ आती है।)
Black out...
Scene-14
रोस्कोलनिकोव भागता हुआ अंदर आता है... इधर-उधर देखता है... सीधा चलने लगता है... तभी उसे भीतर से एक आवाज़ आती है... वह उस तरफ जाता है आवाज़ दूसरी तरफ से आती है... वह भागता हुआ उसके पास जाता है... और एक लड़की को घसीटता हुआ अंदर लेकर आता है|
रो- मेरे पीछे क्यों हो? मेरा पीछा क्यों कर रही हो?
रुमी- मैं तुम्हारे पीछे नहीं थी... बस तुम मेरे आगे चल रहे थे.. छोड़ो मुझे.. छोड़ो...।
रो- पहले बताओ तुम मेरा पीछा क्यों कर रही थीं।
रुमी- बूकोवस्की सही कहता है... तुम सच में एक डरे हुए चूतिये हो।
रो- ओ तो वह bukowski है?
रुमी- तुम अगर छोड़ोगे तो हम बात कर सकते है...।
रो- नहीं..।
देवयानी- छोड़ो उसे..।
रो- तुम...?
देवयानी- छोड़ो उसे (उसे एक हंटर मारती है....रुमी छूटते ही देवयानी के पास जाती है...।)
रुमी- यह तो मुझे मार ही देता।
देव- तुम यहाँ क्या कर रही हो?
रुमी- बूकोवस्की ने इसपर नज़र रखने को कहाँ था।
देव- और यह काम उसने तुम्हें सोपा?
रुमी- वह मुझपर विश्वास करता है।
देव- पर तुम तो एक टाईपिस्ट हो?
रुमी- अच्छा!!! बूकोवस्की इसे मरवाना चाहता है... तुम्हें पता थी यह बात।
(यह सुनते ही रुमी... रोस्कोलनिकोव के पास जाती है....)
देव- तुम्हें बचाते-बचाते मेरा दिमाग़ खराब हो गया है।
रो- मैंने कुछ भी नहीं किया है... सोनिया।
रुमी- यह तुम्हें सोनिया क्यों बोल रहा है?
देव- stay out of it....
रो- मुझे मत डराओ... मैंने कुछ भी नहीं किया है।
देव- मुझसे बचने के लिए तुम उस चूतिये के पास गए थे कि नहीं...?
रुमी- किसके पास?
देव- तुम नहीं जानती उसे...।
रुमी- मैं अब बूकोवस्की के लिए काम करती हूँ... किसके पास गए थे तुम???
रो- मैं नहीं जानता हूँ उसे।
देव- अरे! वह नहीं बता सकता क्योंकि उसने अभी तक इस कहानी में अपना नाम ही नहीं रक्खा है।
रुमी- क्या? तुम उस बेवकूफ़ के पास..
देव- वह एक और writer है।
रुमी- जानती हूँ मैं उसे... वह तुमसे ज़्यादा डरपोक है.. डर के मारे उसने अभी तक इस कहानी में अपना नाम तक नहीं रक्खा।
रो- वह ही मुझे बचा सकता है।
देव- किससे मुझसे?
रो- नहीं... सोनिया...।
रुमी- यह तुम्हें सोनिया क्यों बोल रहा है।
देव- shut up...| तुमने क्या किया है?
रो- मैं Lizaveta को नहीं मारना चाहता था।
रुमी- यह LIZAVETA कौन है?
Scene-15
(बूकोव्हस्की, काफ्का को एक कुर्सी पर बिढ़ाकर father पर बात करता है... काफ्का हर बार father का नाम आने पर चिढ़ जाता है। अंत में वह रोने लगता है।)
काफ्का- मैं नहीं जानता।
बूको- निर्मल को???
(काफ्का हाँ में सिर हिलाता है।)
बूको- My father had little sayings which he mostly shared during dinner sessions; food made him think of survival: “succeed or suck eggs...”. “The erly bird gets the worm...”.”Early to bed and early to rise makes a man (etc.)...”.”Anybody who wants to can make it in America...”.”God takes care of those who (etc.)...”
I had no particular idea who he was talking to, and personally I thought him a crazed and stupid brute, but my mother always interspersed these sessions with:”henry, listen to your father.” At that age I didn’t have any other choice but as the food went down with the sayings the appetite and the digestion went along with them. It seemed to me that I had never met another person on earth as discouraging to my happiness as my father. And it appeared that I had the same effect upon him.”You are a bum,” he told me, “and you’ll always be a bum!” and I thought, if being a bum is to be the opposite of what this son-of-a-bitch is, then that’s what I’m going to be. And it’s too bad he’s been dead so long for now he can’t see how beautifully I’ve succeeded at that.(Bukowski...)
काफ्का- why you doing this to me....
बूको- तुम जानते हो क्यों...???
काफ्का- मैं नहीं जानता???
बूको- देखों मेरी 45 कविताओं की किताबें अभी तक छप चुकी है... and you know I love my father...
काफ़्का- खबरदार जो एक भी कविता ओर सुनाई तो...।
बूको- तो मुझे red sparrow का पता चाहिए।
काफ़्का- red sparrow को भूल जाओ।
बूको- shut up... shut up...
काफ़्का- तूम्हें अपना आखिरी उपन्यास आधा ही छोड़ना पड़ेगा।
बूको- नहीं... मैं red sparrow की गुत्थी सुलझाए बगैर नहीं मर सकता।
काफ़्का- तुम red sparrow की बजाए कुछ और खोज सकते हो... कुछ आसान सा सरल...।
बूको- जैसे...???
काफ़्का- भगवान... truth... life...
बूको- fuck you... oh...
(bukowski भागते हुए अंदर जाता है....)
काफ़्का- और भी चीज़े है... जैसे... स्वर्ग.. नरक... कद्दू... टमाटर... अनार... father...
Scene-16
(काफ़्का का बाप भागता हुआ ’उसे रोटी ना खिलाओ तो वो गिर जाता था’ के पास आते हैं... )
बाप- वह आया???
शुक्ल- कौन?
बाप- तीन बार आ चुका हूँ एक ही सवाल पूछता हूँ और तुम फिर भूल जाते हो?
शुक्ल- मुझे चक्कर आ रहे हैं।
बाप- तो मैं क्या करुं?
शुक्ल- मैंने कहाँ था... रोटी लाए हो?
बाप- हाँ... पहले बताओ निर्मल कब आ रहा है?
शुक्ल- पहले रोटी वरना मैं गिर जाऊगाँ।
बाप- पहले बताओ?
शुक्ल- रोटी।
(रोटी बोलते ही वह गिर जाता है।)
बाप- अरे! यह लो खाओ।
(रोटी खाते ही वह खड़ा हो जाता है।)
बाप- निर्मल.... कब...???
शुक्ल- उनका यही समय है आते ही होगें। वह रहे।
(बाप निर्मल को देखते ही उसकी गर्दन पकड़ लेता है। निर्मल घबरा जाता है।)
बाप- मेरा बेटा कहाँ है? काफ़्का कहाँ है? बोलते क्यों नहीं काफ़्का कहाँ है।
शुक्ल- उसका आप गला छोड़ेगें तभी तो वह बता पाएगा।
(निर्मल छूटते ही सांस लेने की कोशिश करते हैं।)
निर्मल- मुझे नहीं मालूम है।
(बाप फिर गला पकड़ लेता है।)
बाप- झूठ मत बोलो... जिस दिन तुम हमारे घर आए थे वह उसी रात गायब हुआ है। उसके कमरे की खिड़की टूटी हुई थी...। बोलो कहाँ है वह.. कहाँ है?
शुक्ल- आपने फिर उनका गला पकड़ रक्खा है वह नहीं बोल पाएगें... पहले गला छोडिये।
(निर्मल फिर सांस लेता है।)
निर्मल- मैं... मुझे कुछ नहीं पता।
बाप- यह red sparrow क्या है???
(बाप... निर्मल... और शुक्ल... )
बाप- मैं तुम्हारे अक्षर अच्छे से पहचानता हूँ.... यह तुम्हीं ने लिखा है ना...
निर्मल- यह पर्ची तुम्हारे पास कैसे पहुची...?
बाप- यह काफ़्का के रुम से मिली है...।
निर्मल- काफ़्का खतरे में है... मैं जाता हूँ...।
बाप- नहीं इतनी आसानी से नहीं... मुझे बताओ वह कहाँ है?
निर्मल- यह मेरे ही अक्षर है... और मैं ही ला सकता हूँ उसे।
बाप- मुझे बता के जाओ कि यह red sparrow... क्या है...???
निर्मल- काफ़्का ने आपको कभी नहीं बताया?
बाप- उसने आपको क्या बताया?
निर्मल- उसने मुझे कुछ नहीं बताया... यह red sparrow है.. मुझे लगता है काफ़्का जानता है।
बाप- उसको पता है?... ओ! इसी red sparrow ने उसका दिमाग़ खराब कर दिया है.... काम में उसका मन
नहीं लगता है दिन भर कमरे में घुसा रहता है।
निर्मल- देखिए मेरे पास समय थोड़ कम है...
बाप- तुम जब तक red sparrow मुझे समझा नहीं दोगे मैं तुम्हें जाने नहीं दूगाँ।
शुक्ल- अगर red sparrow आप समझ सकते तो आप काफ़्का के बाप क्यों रहते आप काफ़्का हो जाते।
बाप- ऎ! मैं काफ़्का हूँ इसीलिए वह काफ़्का है।
निर्मल- ओ... यह ’जिसे रोटी ना खिलाओ तो वह गिर जाता था’ हैं... इन्हें red sparrow के बारे में सारी जानकारी है... यह आपको विस्तार से समझा देगें।
शुक्ल- मैं????
निर्मल- अब मुझॆ जाने दीजिए?
बाप- हुं...(शुक्ल से पूछता है वह हाँ में सिर हिला देता है....निर्मल निकल जाता है।)
बाप- हाँ तो बताए... मैं सुन रहा हूँ...।
शुक्ल- असल में हुआ यूं था कि... कि... नहीं हुआ कुछ भी नहीं था...।
बाप- तो क्या हुआ था (चिल्लाता है।) ???
Scene-17
(रुमी ने देवयानी को गले से पकड़ा हुआ है... रस्कोलनिकोव उसके पैरों पर है..)
रुमी- देखों मैं बेवकूफ नहीं हूँ... मुझे सच-सच बताओ यह क्या चक्कर है..?
रो- जो कुछ भी है तुम्हारे सामने है... उसे छोड़ दो।
रुमी- तुमने lizeveta का खून क्यों किया?
देव- यह crime and punishment की बात कर रहा है बेवकूफ...।
रो- मैं उसका खून नहीं करना चाह रहा था.... वह तो बीच में आ गई।
देव- वह novel है...और रोस्कोलनिकोव एक काल्पनिक पात्र है।
रुमी- यही रस्कोलनिकोव है... इसके सिर पर खून सवार है।
देव- यह अब किसी का खून नहीं कर सकता।
रुमी- मैंने उसे छोड़ दिया है... अब तुम मेरे पास क्यों आ रहे हो?
रो- बिलकुल ऎसे ही वह भी डर गई थी... उसकी आँखें... मैं तुम्हें नहीं मारना चाहता हूँ।
रुमी- तुम दूर रहो मुझसे...
रो- सोनिया.. तुम मुझे छोड़के तो नहीं जाओगी।
देव- खबरदार जो तुमने मुझे अब सोनिया कहाँ?
रुमी- यह तुम्हें नहीं.. मुझे... बचाओ..।
रो- काश तुम मुझे पहले मिल गई होती तो मेरी यह हालत नहीं होती... बोलो तुम मुझसे प्यार करती हो?
रुमी- ब..चा...ओ...।
देव- मैं तुम्हारी रखैल हो सकती हूँ... तुम्हें प्यार करना मेरे बस में नहीं है।
रो- झूठ ही बोल दो कि तुम मुझे प्यार करती हो?
रुमी- i…love…u…
देव- मैं झूठ नहीं बोलती...।
रुमी- i.. love…you.. मैं.. मर.. जाऊगीं।
देव- अर! छोड़ो उसे.. छोड़ो...
रो- मैं इसे मारना नहीं चाहता हूँ...।
देव- छोड़ो... छोडो....
(देवयानी उसे मारती है... वह रुमी को छोड़कर अलग कोने में जाकर रोने लगता है... रुमी मूर्छित है।..)
देव- तुमने मार दिया इसे..??? तुमने इसे मार डाला हराम ज़ादे...
रो- मैं उसे मारना नहीं चाहता था।
Scene-18
बूको- My Old man had told me, ‘Get into anything where they hand you the money first and then hope to get it back. That’s banking and insurance. Take the real thing and give them a piece of paper for it. Use their money, it will keep coming. Two things drive them: greed and fear. One thing drives you: opportunity,’ seemed like good advice. Only my father died broke.’
काफ़्का- मैं एक advise दूं... give up Red sparrow... u’ll see it before you die.
बूको- shut up...shut up…
काफ़्का- fiction को इतना seriously मत लो।
बूको- I have to deliver Red Sparrow…
काफ़्का- you don’t have to do anything in writing… इससे अच्छा तो तुम्हारा पोस्ट आफिस का जॉब
था।
बूको- मैंने बहुत पैसा ले रखे हैं... मेरे इस आखिरी novel के लिए... अगर मैं इसकी गुत्थी नहीं सुलझा
पाया.. तो वह लोग मुझे मार डालेगें। They wan’t red sparrow…
काफ़्का- कौन है वह लोग...
बूको- बाज़ार के लोग है...
काफ़्का- कौन??
बूको- The publishers… तुम नहीं जानते क्योंकि तुम्हें उनका बहुत सामना नहीं करना पड़ा है। यह जो आदमी है यह उन्हीं का आदमी है...।
काफ़्का- यह???
बूको- उसकी पीठ देखो...
काफ़्का- ओ, शार्क....you know they wan’t to kill red sparrow… they want to take meaning out of it… just give some stupid meaning and they’ll be happy…
(तभी निर्मल भागता हुआ अंदर आता है, और सीधे बूकोवस्की के ऊपर झप्पटा मारता है। दोनों लड़ना शुरु कर देते हैं।)
निर्मल- बूकोवस्की....stop it.. this is crazy...
बूको- I am in a deep shit okay.. out.. out now…
निर्मल- can we talk… देखों तुम काफ़्का को torture नहीं कर सकते... उसने बहुत torture झेला देखा है... तुम जितना उसे torture करोगे वह उतना red sparrow के करीब होगा और तुम उतने ही दूर…।
काफ़्का- तुम ऎसे red sparrow को नहीं पा सकते…
बूको- मेरे पास बात करने का वक़्त नहीं है...
(एक अलार्म बजने की आवाज़ आती है।)
बूको- oh god... time up..
निर्मल- क्या time???
काफ़्का- मुझे कोई खोलेगा...
आदमी- सर आपका समय समाप्त होता है...
बूको- मुझे बस थोड़ा सा समय चाहिए.. मैं काफ़्का पढ़ रहा हूँ... I am almost there…
आदमी- माफी चाहता हूँ.. पर शार्क पब्लिशर के इस contract के हिसाब से...या तो आप red sparrow दीजिए या एक हफ़्ते अपनी जान बचाने के one forty two रुपये दीजिए... तो बताए आप क्या दे रहे है।
निर्मल- यह क्या पागलपन है... यह क्या contract साईन किया है तुमने?
काफ़्का- मुझॆ कोई खोलेगा?
आदमी- time up हो चुका है जल्दी तय कीजिए... red sparrow या one forty two रुपये?
(तीनो साथ बोलते है... one forty two ठीक है)
(तीनों पैसे निकालते हैं.... )
बूको- मेरे पास इस वक़्त तीस रुपये है...
निर्मल- सात रुपये मेरे पास भी है... यह लो..
काफ़्का- यह मेरे पाँच.... कितने हुए?
आदमी- 42… मेरे पास यह एक सौ का नोट है...
निर्मल- अरे यह तो एकदम ठीक हो गया.. वाह!
बूको- thank god.. he was working with me.. thank you..
आदमी- सर.. मैं पब्लिशर का आदमी हूँ... और हम ऎसे ही पैसे नहीं देते... मैं एक काम कर सकता हूँ.. अगर आप इसे जीत जाए तो मैं...
काफ़्का- जीत जाए मतलब...
आदमी- मतलब... जीतना.. गेम में...
निर्मल- क्या गेम?
आदमी- जो आप तय करें?
निर्मल- और दाव पर क्या होगा?
आदमी- मैं जीता तो forty two मेरे और बूकोव्हस्की की ज़िदगी... और हारा तो.. उसे एक हफ़्ते की और मौहलत।
काफ़्का- यह क्या पागलपन है... नहीं हम interested नहीं है...
निर्मल- एसी कम तैसी कराओ तुम अपने पैसों की...तुम क्या writers को चूतिया समझते हो?
काफ़्का- हम लिखना बंद कर देगें तो तुम उसी वक़्त खत्म हो जाओगे।
निर्मल- निकलो तुम यहाँ से हम कल पैसा भिजवा देगें... जाओ
बूको- मैं खेलना चाहता हूँ....। यह रहे हम writers के forty two....दाव पर..।
आदमी- खेल शुरु करते हैं....।
Scene-19
शुक्ल- देखों... बहुत पहले की बात है... ऎसा सुना है।
बाप- ऎ! सुना है नहीं, जो सही है वह बताओ।
शुक्ल- तुम्हारे पेदा होने के पहले जो भी कुछ इस दुनियाँ में हो रहा था वह सब सुना ही हुआ है... अगर उसपर यकीन नहीं करोगें तो जीना... बस समय काटना है... और असल में जीना समय काटना ही है।
बाप- समझा में.... आगे बोलो।
शुक्ल- हाँ तो... बहुत पहले एक गाँव हुआ करता था... जिसमें सभी लोग झूठ बोलते थे... कहानीयाँ झूठी.. बातें झूठी.. आगे झूठ..पीछे झूठ...पर क्योंकि सभी, सभी से झूठ बोलते थे..इसलिए सभी सुख शांति से रहते थे।
बाप- ऎसा कोई गाँव नहीं था...।
शुक्ल- तो जाईये मैं नहीं बताता।
बाप- अच्छा बोलो।
शुक्ल- उस गाँव में, ऎसा सुना है कि red sparrow थी। उसी वक़्त एक सच्चा आदमी उस गाँव में रहने आया... और वह सब सच-सच बातें कहने लगा। तब पहली बार पूरे गाँव को पता चला कि जो वह अभी तक कहते आ रहे हैं वह तो असल में झूठ है। सभी गाँव वाले उसके पास गए और कहाँ... कि देखो यह झूठ का गाँव है... आप भी वही भाषा बोले जो यहाँ बोली जाती है.. याने झूठ.. पर वह नहीं माना...उसने तो सच बोलने की कसम खाई थी।... उसके कई सालों बाद... उस गाँव की यह स्थिति हो गई कि... वहाँ कुछ लोग सच की तरफ थे.. और कुछ झूठ की... कुछ अमीर हो गए.. कुछ गरीब.. कुछ चोर हो गए.. और कुछ, चोर थे इसलिए पुलिस बन गए... और उस दिन एक झुंड़ पक्षियों को उस गाँव से हमेशा के लिए उड़ गया था, उसमें red sparrow भी थी।.... कहानी खत्म....
(बाप आगे बढ़ता है और शुक्ल का गला दबाने लगता है।)
Scene-20
(रोस्कोल निकोव.. और देवयानी…)
रो- मुझे अच्छा लग रहा है सोनिया..।
देव- तुम सो जाओ..
रो- हाँ मुझे नींद भी आ रही है… सोनिया पर तुमने मेरे हाथ की नसें क्यों काट दी।
देव- इसलिए कि सोनिया उसमें से बहकर बाहर निकल जाए।
रो- पर तुम तो मेरे सामने सामने हो सोनिया।
देव- नहीं.. वह देखों सोनिया.. तुम्हारे सामने से जा रही है।
रो- कहाँ…
देव- वह सामने… सोनिया… जा रही है….
रो- हाँ… वह जा रही है।
देव- उसके पीछे दोस्तोव्हस्की है… है ना…
रो- वह दोस्तोव्हस्की है… हाँ….मुझॆ सब धुंधला दिखाई दे रहा है। सब कुछ… कुछ दिखा…
देव- दिखा…. Crime… and punishment…
रो- देवयानी... देवयानी...
देव- हाँ...
रो- मुझे नींद आ रही है...देवयानी...मुझे छोड़के मत जाना...
देव- नहीं जाऊगीं... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ.. बहुत..
रो- एक बार फिर से... कह.. कह...
देव- रोस्कोलनिकोव... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
Scene-21
शुक्ल- बताता हूँ मेरा गला छोड़ो… छोड़ो..।
बाप- सब सच… मुझे अपने सवाल का सही उत्तर चाहिए।
शुक्ल- तो सुनो… सही उत्तर- बहुत पहले इस book store में एक पागल आदमी आता था… उसने मुझे यह
किस्सा सुनाया था।
बाप- फिर किस्सा..?
शुक्ल- हाँ.. सुनना है...?
बाप- मेरे सवाल का सही जवाब इसमें होना चाहिए।
शुक्ल- आपके नहीं... सभी सवालों का यही जवाब है, उस पागल के अनुसार... उसका एक दोस्त था DOUGLAS ADAMS… जिसने उसे यह कहाँ था कि... कई हज़ार साल पहले.. एक Hyperintelligent race थी जिन्होने अपने लिए एक बहुत बड़ा super computer बनाया जिसका नाम रखा Deep Thought… उस computer से उन्होने उनका ultimate question पूछा... what is the meaning of life, Red sparrow and everything….साड़े सात million साल तक Deep thought, deep thought में रहा और फिर उसने Calculate करके उत्तर कहाँ... कि life, Red sparrow and everything का जवाब है- FORTY-TWO...
बाप- क्या???
शुक्ल- सबका यही reaction था। तब deep thought ने कहाँ कि हर चीज़ का जवाब 42 ही है, अब आप लोगों को इस जवाब, याने 42 का सही सवाल बनाने के लिए एक और कम्यूटर बनाना पड़ेगा जो मुझसे भी बड़ा हो और दुगना तेज़ हो.... और आखिर कार वह computer बना जिसका नाम रखा गया EARTH… याने पृथ्वी... उस पागल के अनुसार वह लोग बेवकूफ है जो इसे planet मानते हैं... असल में हम सभी इस विशाल computer के महज़ छोटे से हिस्से है जिनका असल में काम है उस प्रश्न को तलाशना जिसका जवाब हो-FORTY TWO….
बाप- पर मेरा जवाब???
शुक्ल- अरे जवाब तो आपके पास पहले से ही है...42.. आपको बस अब सवाल ढ़ूढ़ना हैं।... क्या हुआ???
बाप- काफ़्का जानता है??? सवाल???
शुक्ल- वह बहुत करीब है।
बाप- मुझे मेरे बेटे से मिलना है… अभी इसी वक्त.. pls.
शुक्ल- देखों… मैं…
बाप- मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ… pls
शुक्ल- चलिए मेरे साथ... लेकिन आप उसके साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करेगें?
बाप- मैं बस उससे बात करना चाहता हूँ।
शुक्ल- चलिए।
Scene-22
(लेखक (बुकोव्हस्की) और पब्लिशर के बीच मैच शुरु होने को है... वहाँ पर सभी पात्र मौजूद है... मैच में शोर शराबा है....बूको और शार्क पब्लिशर का आदमी खेलते है। बूको करीब सात चाटें उसे उसके हाथ पर मारता है.. हाथ हटा नहीं पाता... आठवें चाटे पर वह हाथ हटा लेता है।)
निर्मल- good… बूकोव्हस्की तुम्हें बस सात में से एक को डाज करना है…
(बूको चुप है... वह अपना हाथ बढ़ाता है.. आदमी चाटे मारना शुरु करता है... बूको हाथ नहीं हटाता है...चाटें पड़ते जाते है... बूको चुप रहता है वह पिटता जाता है.. सभी चिल्लाने लगते हैं... घबरा जाते हैं...| आखिरी मिनिट पर बूको हाथ हटता है और वह जीत जाता है।)
(इस गेम के बीच यह सारे सीन चलते हैं)
बाप- अरे यह कौन सी जगह ले आए हो? काफ़्का कहाँ है...।
शुक्ल- तुम्हारी दिक्कत यही है तुम अपने बेटे नहीं पहचानते हो? वह सामने खड़ा है...।
बाप- काफ़्का... काफ़्का...
शुक्ल- शु.. शु... चुप....वह देखो खेल शुरु हो गया...
(मैं रुमी के पास पहुँचता है...)
मैं- रुमी... रुमी...
रुमी- sorry… who are you??
मैं- रुमी मैं.. हूँ... ’मैं’..
रुमी- मैं कौन... मैं आपको नहीं जानती... आप थोड़ा दूर रहिए...
(काफ़्का का बाप काफ़्का के पास पहुँचता है....)
बाप- चलो फ्रेंज़ घर चलो... मुझे तुमसे बात करनी है।
काफ़्का- आप चलिए मैं आ जाऊगाँ।
बाप- फ्रेंज़… मैंने कहाँ.. घर चलो.. अभी।
(मैं रोने लगता है.... )
रुमी- ये क्या तुम फिर रोने लगे? रस्कोलनिकोव ने मुझे मार ही दिया था...।
मैं- तुम ज़िदा हो ना।
रुमी- I hate you.. तुम जानते हो ना कि red sparrow जैसी कोई चीज़ नहीं है... और देखो सभी कैसे पागल हुए जा रहे हैं।
मैं- अरे मैं भी तो इसी पागलपन का हिस्सा हूँ।
रुमी- तुम इस पागलपन में बेचारा play करना चाह रहे थे?
मैं- रुमी... I am sorry…
रुमी- shut up.. मैं रुमी नहीं हूँ... मैं काया हूँ.. काया।
(शुक्ल बाप को रोकता है।)
शुक्ल- यह क्या है? मैंने कहाँ था ना तुम ज़बरदस्ती नहीं करोगे।
बाप- यह अभी इस दुनिया के लायक नहीं है...
शुक्ल- यह दुनिया इसके लायक नहीं है.. छोड़ो उसे...
(बूको जीत जाता है... पर वह खुश नहीं है.. पब्लिशर का आदमी हारते ही वहाँ से भाग जाता है।)
आदमी- एक हफ्ता बस... और अब मैं गेम नहीं खेलूगाँ.. तुम्हें लेकर जाऊगाँ।
बूको- no.. no.. यह सही नहीं है... मैं चीट कर रहा हूँ।
निर्मल- तुम्हारे पास एक हफ्ते है...
बूको- यह red sparrow क्या है?
निर्मल- यह red sparrow क्या है?
(तभी एक गन शॉट की आवाज़ आती है... सभी नीचे झुक जाते हैं... काफ़्का अकेला गन लिए ऊपर खड़ा रहते है... )
काफ़्का- दूर हटो.. मैं मार दूगां...
(सभी कुछ देर तक चुपचाप नीचे झुके रहते है। काफ़्का हड़बड़ाता हुआ इधर-उधर चक्कर काटता रहता है। काफ्का का बाप खड़ा होता है... काफ़्का डर के मारे उसपर गन लगा देता है...।)
बाप- माफी चाहता हूँ... फ्रेंज़ अगर red sparrow जवाब है तो मेरा सवाल क्या होना चाहिए???
निर्मल- काफ्का तुम्हारी डेस्क पर उस शांति में.. उस एकांत में... जब red sparrow उड़ती है तो क्या मर जाता है?
बूको- red sparrow का मिल जाना कैसे पता चलता है???
शुक्ल- आनंद खोजने में मिल जाना कितना महत्वपूर्ण है???
(सभी उसकी तरफ बढ़ने लगते है...)
काफ़्का- मुझे नहीं पता.. हम शायद अपने उड़ने को पिजरें बैठकर महसूस करना चाहते है.. यह झूठ है। क्या पिंजरे में बंद करके हम किसी भी चिड़िया को चिड़िया कह सकते हैं..? भले ही कभी उसके उड़ने के हम ही गवाह थे। शायद यह अपनी ही तरफ भागने की दौड़ नहीं... उड़ान है... जिसमें भटकना मज़ा है और पा लेना हार है.. इसमें red स्याही है... sparrow पंख़... उसकी चोंच कलम नहीं है... मृत्यु है। यह निर्मल तुम्हारे जुगनु जैसा है जिसकी कहानी उसके अंधकार में है उसके चमकने में नहीं... या बूकोव्हस्की शायद तुमने इसे पोस्ट आफिस में देख लिया था... मुझे नहीं पता। मेरे पास तो बस चंद टुकड़े हैं जिनसे मैं अपने ही एकांत में खेलता रहता हूँ... यह देखो... चाहो तो इन्हें ले लो...।
(और काफ़्का जेब से कुछ निकाल कर उड़ा देता है... वह टुकड़े चारो तरफ बिखर जाते है... और उन टुकड़ों के नीचे काफ़्का खड़ा रहता है।
शुक्ल- “शब्दहीनता में मैं किसी भी कविता के पहले मुक्ति को मुक्तियों में दुहराता हूँ, शब्दश: नहीं ध्वनिश:, एक झुंड पक्षियों का पंख फड़फड़ाकर उड़ जाता है।“-विनोद कुमार शुक्ल...
The end
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
ILHAAM (Enlightenment)
ILHAAM
(Enlightenment)
A play by Manav Kaul
(The play is divided between two spots. One is on a park bench and the other is in the drawing room of a middle class family)
(As light fades in, one can see the silhouette of a man in the dimness, waving about. Music starts)
Fade out
Fade in
( The man is playing all by himself before the bench)
Fade out
Fade in
( He is asleep on the bench)
Fade out
Fade in
( He is seen dancing )
Fade out
SCENE –I
( Poonam lifts the gifts, the bouquet and other stuff and is seeing off her guests at the main door and one hears her voice outside)
Shukla : So Tiwariji please come again…..yes ….yes….I’ll inform Bhagwan…..oh! Bhabhiji! Namaskar!
( Shukla comes in. Shukla and Poonam both look worried when he suddenly bursts out laughing.)
Poonam : Why are you laughing?
Shukla : Think about it Bhabhi. After all the effort we put in for that idiot!. We secretly gathered all his bank colleagues to give him a surprise…..and….. he the swine gives us a surprise by not showing up!
Poonam : Where could he be ?
Shukla : Yeah... where could he have gone? All his friends were right here. ……Bhabhi…hope there isn’t any hanky panky going on…
Poonam : Oh No! When does he get time off from counting notes. At night, his fingers keep working even in his asleep. He licks his finger and keeps counting notes. I said now there are machines to count notes …and he replies, if machines even count notes, what will I do?…… Till he doesn’t finish counting notes, he feels he hasn’t got any work done... and today… you ruined your whole day too..
Shukla : It’s just a day spent for friend.. no problem at all.
Poonam: You must be getting late ……he must be on his way.
Shukla : Who is waiting for me anyway… I just go down, open the shop’s shutter and spread out to sleep. Bhabhi…..I am getting a bit worried. It’s getting quite late now. ..the idiot was absent on his own birthday. I don’t remember him doing this ever before.
Poonam : Well, for the past few months he has been coming home a little late …but never this late. I always thought he went to your shop downstairs. But he was telling me about a park close to his office, where he goes and spends time… It feels good, he says.
Shukla : Oh….that’s strange. The creep never told me
Poonam : In fact….for the last few days…he has been looking particularly happy
Shukla : Look, I had got this for the jerk …..imported…thought we’d drink together and chat about our golden future. It’s ok Bhabhi. I’ll leave now. I’ll go and drink alone. Just give me a glass.
( Bhagwan comes in)
Bhagwan : If you are going to take the glass also from here, you might as well drink here too
Shukla : You…swine.. Where were you Bhagwan? Your birthday just ended five minutes back. Never mind…. Happy birthday. I was so worried about you.
Bhagwan : Where is the stuff?
Shukla : The stuff is here. But first go and meet your wife. She is very furious.
(Bhagwan goes to Poonam… Poonam tries to open a box, she can’t manage)
Bhagwan : Arre.. not opening?
Poonam : Do you know how many people had come? Your whole bank was here. No body ate anything. All the food is left untouched…..now for the whole week, I’ll heat it and feed you leftovers.
Bhagwan : Oh…if there were going to be so many, shouldn’t you have told me?
Shukla : Do you know what surprise means?
( Suddenly the box opens)
Bhagwan : There, it opened by itself. Where is Pinky?
Poonam : She’s got collage in the morning. She waited and waited and fell asleep. Do you know what time it is?
Bhagwan : Gosh! I didn’t realize it.
Poonam : Where were you, if I may ask?
Bhagwan : Oh.. I went to the park. I lost track of the time. You know… today in the park..
Poonam : I don’t want to know what happened in the park. I am exhausted. Bhaisaab….there is water, soda and all inside. Please help yourself. I am going to bed.
( Poonam leaves. As Bhagwan moves forward to take the glass from Shukla, Poonam comes back. Bhagwan quickly returns the glass)
……I forgot to say….wish you a very happy birthday…..
Bhagwan : Are you angry?
Poonam: Do you care? (Poonam exits)
Bhagwan : Ha ha……Shukla…..today I am very happy. I never had a birthday celebration like this before.
Shukla : Here you are..cheers! Do you know how hard Bhabhi worked today….. I left my shop in the hands of my staff today….went to the houses of all your friends ..told them about the party today… all the poor sods landed up. Only you were missing.
Bhagwan: No wonder.. I was curious about how they all found out
Shukla : Didn’t I just tell you….I informed all of them.
Bhagwan : No…to those kids….
Shukla : Kids…..? Whose?
Bhagwan : Park….kids in the park…
Shukla : What’s this park business, now?
Bhagwan : The park near the office.. the tiny one.. a few kids come there to play every evening. Just seeing them play, washes off the day’s fatigue. I have even made friends with those kids. I taught them all those games I used to play as a kid, and today they all even celebrated my birthday. I kept asking them how they knew… but they didn’t tell me anything.
Shukla : Whose kids are they?
Bhagwan : No idea. By the way….even Uncle came to meet me today.
Shukla : Uncle? You have an uncle here?
Bhagwan: No. he’s not my uncle. He is just Uncle. But how did he come there?
Shukla : Listen Brother…I am a bit high. I do not understand a word of what you are saying. What Uncle? What kids? ….Now forget all that… Like every year, this time too I got you some good booze. Didn’t I?
Bhagwan : Yes. You did.
Shukla : And like every year, this year too, we will talk about our beautiful future..won’t we?
Bhagwan : Yes. We will…..but this time, you start first.
Shukla : Arre ...what can I say….you always get me into a corner… no buddy…
Bhagwan: Shukla…..stop grumbling. Just start.
Shukla : Alright…so I begin… look there ...the shop…..is it there?
Bhagwan : Yes. The shop.
Shukla : Then…..two shops.
Bhagwan : Two shops. …then?
Shukla : Then….three shops.
Bhagwan : Yes three……then?
Shukla.: Yes, yes, what else... my future is quite clear-cut. Now am selling a few clothes, later I’ll be selling more clothes. Okay. I’m done, now your turn.. And yes….start from Pinky’s wedding.. it will be great fun.
Bhagwan : No. I’ll start before that, from home. This house will be mine in two years.
Shukla : Done..
Bhagwan : Then Pinky’s wedding
Shukla : That’s done too…! What fun! Then…
Bhagwan : Billu would have become an engineer in a few years.
Shukla : He is already making a building. He is making a bridge too…
Bhagwan: Then his marriage…
Shukla : A grand wedding.
Bhagwan : By then pinky would have had kids.
Shukla : Lots!
Bhagwan : Then Billu’s kids
Shukla : Wow! That was fun….!
Bhagwan : Then we will raise them….. and if we’re still alive, we’ll give them a lot of love and also get them married.
Shukla: We will Bhagwan.. we will
Bhagwan : And we are still around, we will have the pleasure of seeing their kids too ….and then…
Shukla : Yes… then?
Bhagwan : Then…..then what? What else?
Shukla : Then fun! Loads of fun! …But the difference is that is that today your heart was not in it… do you remember how much we had enjoyed it the last time? What happened to you Bhagwan?
Bhagwan : Nothing….Shukla. today I remembered a very strange incident. My school was across the river. I would take a small ferry to the other side everyday. I was good friends with the boatman. Once on my way to school on the boat, we saw that, instead of rowing, he was shooing away a bird with his oar… but it would fly right back and perch at the same spot.. The boatman started getting increasingly angry.. We were all scared because the boat was rocking wildly. I shouted…’Arre…what are you doing? Are you planning to sink the boats?’. He replied ‘No sir. This bird has got used to a free ride across the river’. We all laughed. Many days later, we saw the boatman and the bird sitting with their faces turned the other way, as they were angry with each other. Then, after a few days, we see the boat man was continuously talking to the bird…. He would laugh one moment and yell the next.. Everyone started saying that he had gone mad. I couldn’t stop myself, and went on to ask him,. ‘What are you doing? Have you gone mad? You are taking to a bird?’ And he retorted, ‘I think all of you have gone mad. This bird wants to talk to all of you. Why don’t you folks talk to it? We were thinking he was mad, and he was thinking the same about us.
Shukla : So what happened to him?
Bhagwan : When the word spread, people stopped travelling in his boat. For some time he would row the boat all alone. Later I heard that people had stoned him and driven him away from village.
Shukla : That’s it…..
Bhagwan : Yes….that’s it.
Shukla : Arre, isn’t that a rather strange tale?
Bhagwan: I remember all this when I sit on that, when I sit on that park bench. And then those kids come by. But you don’t know Shukla…today after so many years…I danced..
Shukla : You danced ?
Bhagwan : Yes. And it was fun. What was that tune….( Bhagwan starts humming a strange and starts dancing At first Shukla does not find it odd. Then he starts getting worried and then he gets frightened)
Shukla : Very good ! That was fun! Come here now…. Listen to me, come here… that’s enough now.. Bhagwan….sit down! What are you doing pal, listen.. sit down…..Bhagwan…..I am getting uncomfortable….Bhagwan….Bhagwan….have you gone mad?
BLACK OUT
Scene 2
(Bhagwan is sitting on the park bench, and seems to be talking to someone)
Bhagwan : Inside the water was clean... Pure cold water. …..like in a well. Like when we are born….as we grow…we started chucking in toys into our well, then words, books, people’s expectations as heavy as stones….and lots of moulds of the way to live like humans, and when there is no space for water in our well…. we say… this is quite normal!
SCENE 3
( Pinky comes in with tea. Poonam , Shukla and Saurabh are seated)
Poonam : Please have some tea. Sorry, he had some urgent work come up on his birthday. He came home very late. Even we were very worried. Now it’s fine. Even we are meeting only today...after that day.
Shukla : Bhabhi, he knows everything. He is here to tell you something.
Saurabh : Actually ….( Saurabh looks towards Pinky)
Poonam : Pinky…. go inside….. yes…please go on...
Saurabh : Yes…sir is my senior. I have come with this letter from the bank. I didn’t have the courage to come alone…..so I requested Shuklaji to accompany me….sir has been suspended from work…
Poonam : Why?! Why has he been suspended? He goes to work everyday. All these years he has devoted to the bank….and now….suddenly…
Saurabh : He has not been coming to the bank for nearly month….that’s why I had to personally deliver this letter.
Poonam : But every morning…I would pack his tiffin… why has he been sacked?
Saurabh : Sir had actually started giving away money.
Shukla : Meaning… he was not distributing it……just to one…
Poonam : Who to?
Saurabh : Bhagwan sir…?
Poonam : He is not home. Tell me…
Saurabh : An old woman would come every month to collect her pension. Who knows why, Bhagwan sir started giving her 500 rupees extra. The manager asked him how did such a mistake happen. And sir said it was not a mistake….he did it deliberately. The manager asked – did she demand it? Sir said she hadn’t. Then there was a huge argument. When we tried reason with sir, he told us that he heard her ‘anguish’ (Saurabh wants to laughs but and suppresses it)…..Sorry…..and then, sir started muttering strangely like a mad man…I mean……I am not saying this ….but people in the bank were saying that giving away money like that is a sign of lunacy.. no?
Poonam : He is not mad…..!
BLACK OUT
Scene 4
Bhagwan :
Out of habit...I fumble for my future
in the lines on my palm
A something is hidden somewhere kind of miracle…..
Like a little cloud that always walks along
In the blaze of the sun, this little cloud is of no help
Like a spot on the palm….it just stays idle….
A spot is lucky
And it will bring gain.
And that’s why I cherish this little cloud.
Then I wish to go some place
Where the rain is born.
Where the clouds are dispersed
But maybe it’s too late
The thumb of my faith has become so stiff
That it refuses to bend to anyone else’s belief
And then I think of those fate lines
That vanished somewhere mid-way
In the hope of ‘He will one day live out my destiny’
They lay on my palm for a long time.
What was their destiny?
What new worlds awaited,
On the other side of these doors…
That I was never able to open…..
Then I saw something strange….
I saw… the lines on my palm had expanded…suddenly…
Now what are these lines?
Do these also have their own destiny? Their own doors?
No….they have nothing
Much later I understood, they mean nothing.
These are lines of silence.
Silence- of those lines that had risen up on my palms…
But I was never able to open their doors…
I’ve seen the truth….
Whenever a line has vanished from my palm
I’ve felt its silence on my brow
I feel it is this silence that ages it
feel this is the same silence that ages us
The day there is no space on the brow…
This silence will descend on to the face…..
And we will grow old
FADE OUT…
SCENE- 5
(Pinky is seated outside. Shukla emerges out from inside.)
Shukla : He is asleep. Where is Bhabhi?
Pinky : She has gone to make a phone call. Where was papa all week? Where did you find him?
Shukla : I don’t know where he was for a week…. I just found him in the park. He was sleeping on the bench.
Pinky: Meaning… he was in the park all of last week!?
Shukla : No….I had gone there earlier.. I don’t know where he was all these days…child….could you get me some water..
Pinky : I never told Ma. Or she would have panicked, but Uncle, Papa spoke to me a lot.
Shukla : What? What did he say?
Pinky : Anything. Stories, incidents. I could not understand much, but I loved listening to him talk. He was a little scared….when I asked him what the matter was…he said, ‘Enlightenment has happened to me.’
Shukla : Enlightenment ? What is that?
Pinky : No idea… and then he said… ‘I find everything around me very new….washed clean. I am living all over again, like a child I am going to become a child.’ So I asked him ‘What are you now?’ And he said – ‘Right now I am a lion and before that I was a camel’..
Shukla : What happened to him? How did this happen?...Did he ever tell you why he was anxious?
Pinky : He is not anxious. He is just scared. ….he is afraid….and that’s probably why he didn’t come home all these days.
Shukla : You should have told us all this before ……Scared of what? Of whom?
Pinky : Scared of contentment….
Shukla : Contentment?
Pinky : Yes…fear of becoming content …..Papa was saying that he felt content. A state that eliminates all purpose, all desires. He was saying….. ‘there is no purpose left ….except one…..just one desire….that I have to return to this house….everyday….to my family….to my daughter…..and he is afraid of losing even this purpose.
Shukla : I can’t understand any of this ….what else was he saying?
Pinky : And he would tell stories… from his childhood….from here and there….about Uncle…
Shukla : Who…who is this Uncle? He was saying that Uncle had come to meet him. Do you know where he lives?
Pinky : He lives here? I didn’t know that..
(Poonam enters)
Poonam : Arre.. where is he?
Shukla : He is inside… sleeping …….let him sleep…..the doctor says he badly need rest
Poonam : I’ll just go in and check on him. ( Poonam goes inside)
Shukla : Does your mother know anything about this Uncle?
Pinky : She has never spoken to me about it.
( Poonam returns)
Poonam : Oh God! Just make him well. I don’t want anything more. Here….take this prasad. I made an offering for him. Everything will be alright. He came back home on his own didn’t he?
Shukla : No. He was asleep in the park. He was in a deep slumber. I tried hard to wake him up…then sprinkled water….but he still didn’t get up? I was really scared, with the help of some people, I tool him to the doctor. It was only after that , that he came to his senses.
Poonam : The doctor…..what did he say?
Shukla : He caught the doctor by the neck, and I don’t know what he was saying.. I couldn’t understand a word. He needed to be sedated to get all the tests done...the doctor only said to let him rest.
Poonam: Even I went to the park yesterday…….to search for him……he had told me it was a beautiful park…..but it looks like a ruin. There is a bench lying there. A couple of broken swings…and that’s it…
Shukla : And Bhabhi…..those people who helped me take him to the doctor were saying that this park has been shut for years now…. only he goes here….and keeps sitting on the bench. People have seen him muttering to himself…….or dancing….
Poonam: And the kids….?
Shukla: Or he would wave a newspaper in the air
Poonam: The kids….?
Shukla : Bhabhi….no kids go there to play
Poonam : Oh God! (She closes her eyes, she takes a deep breath and calms herself) Just last year, we went on a holiday, .do you remember Pinky….there were these mountains, a lot of snow.. Billu was there too. We made these four huge snowballs, made eyes out of marbles… Billu made one…Pinky another….and me. Pinky….go get that photo we clicked there..
Pinky : Ma……
Poonam : Go get the photo… Beta!
Shukla : Go Child …( Pinky goes inside) . Bhabhi…Bhabhi………who did you call?
Poonam: Ah yes, I called Billu, but he never has time. I even called up his brother, thinking maybe he went to his village. His brother told me that when he was twelve or thirteen years old, for some reason, his father had beaten him up and he had left home. No one knows where he was for two years. And when they found him…..it took another year to get him to utter a single word .. I tell you… it is all because of evil spirits.
Shukla : Bhabhi…all this is pointless talk… Bhagwan will be fine.
( From inside, the voice of Pinky’s screech is heard. She comes out running)
Pinky : Mummy……
Poonam : What happened….?
Pinky: Papa……Papa was not asleep…he was sitting up on the bed….I asked him ‘Are you ok? What happened?’ And he pounced on me and snatched the photo album from my hands and …( the sound of Bhagwan’s cough is heard. And he enters looking at the album….his head feels heavy. Every one is scared. Bhagwan comes straight to Poonam.)
Bhagwan : Poonam…..what day is it…..what is the date…( Poonam starts crying out of fear)….What happened Poonam….( Bhagwan sees the album again and starts smiling)
Bhagwan: All this is so beautiful….it’s lovely….( he throws the album on the floor) But what are we to do with all this beauty… sometimes, I remember my most beautiful dream….even my most beautiful dream….was not at all very beautiful ….even my dreams are like plucking lots of joys out of a little happiness.. Like a bird pecking on its food…..but when it finds a whole piece of bread….it doesn’t eat the whole piece….it starts pecking little pieces of bread from that big piece. From a whole big sky, we still peck our little share of sky. If we want to, we can see a big beautiful sky, but to be able to live, we only get the piece of sky, that we have learnt to pick out from the window of our home. ( Bhagwan starts laughing)
Shukla : Bhagwan…….( Shukla shouts. Poonam stops him)….Bhabhi…let me talk to him. This drama of his has been going on for many days now.. ( Shukla comes up to Bhagwan and starts talking in gibberish)
Shukla : + : : = “ ‘; _) %*&^*&^$^%%**&*& +++++/+/+///
Bhagwan : What are all of you saying? …..Pinky came inside and I didn’t know what she was saying….( Shukla again tries to say something when Bhagwan interrupts) What….what’s it?
Shukla : Bhabhi….I don’t know what he is saying. What language is this…..I can’t understand anything….what happened? ( He shakes Bhagwan)
Poonam : Bhaisaab…..please wait…..I’ll speak to him.
@%#$%^%^^*&^&*&^*&^++++++?????
Bhagwan : What is all this……. Poonam….
Poonam : $%#$^%&^^&^****__+++++( Poonam starts to cry even as she says this)
Shukla : (starts to shout)
^$#$%#%#$&^*&&*&(**(>>>>>>>>>>++++++++’’”’’’’
Bhagwan : I am not mad
Shukla : $%#^%%&^*&&(*&…..
Bhagwan : I am not mad……….
Shukla : $%#^%%&^*&&(*&…..
Bhagwan : I am not mad……….
BLACK OUT
SCENE – 6
Poonam : Namaskar……Doctor saab……I am Poonam…..his wife. Yes….he is a little better than before….he sleeps soundly. Till he doesn’t speak….he seems quite alright. But what do I tell you… he either has brain fever, or he is possessed by an evil spirit. Yea…..I believe in them…. I believe in everything. If someone tells me that rubbing my nose here a hundred times will cure my husband, I am willing to do it.. It’s been a whole year….and I am sick and tired of going from one doctor to another. Enough….it’s enough…..I can’t bear it anymore….please forgive me doctor….but will everything be alright…
Shukla : Namaskar…..my name is P.P.Shukla. I have a small cloth store here, below his house. My friendship with him goes back a long way. I’ve known him even before he got married. What happened…….sir…..only god knows… only god… I felt that there was something wrong somewhere. One day he came to me and said, ‘Shukla tell me something’. I said, ‘ask’…And he ‘When birds are born, do they buy their nests and trees, and do they select their gods?’ I said I didn’t think so. Then he said, if they carried all these burdens, they would never be able to fly… and he went away laughing. Now you tell me…….a person with a family, wife and kids….a decent job in a bank……does such talk suit him? Now nobody even understands what he says and what not.
Pinky : I am Pinky…my brother’s name is Billu. Papa loved me a lot……I mean he loves me… Yes….I did try to talk to him alone a couple of times….but…once he gave me a piece of paper and gestured for me to read it. When I opened that piece of paper, there were doodles on it.. they were strange. I am scared... I am scared of my own father.
Saurabh : Yes.. I know a lot of loonies like this. In the lot of them lose it…. Pardon me Doctor saab, you know better.. but tell me, in old age, can oldies utter anything but groans? Now with every such groan, if you start distributing money, the bank will be empty in two days. You can’t trust these mad people. In our village there was a mad man. He once broke a man’s head. …imagine! Let me tell you one thing, Doctor saab...there is no cure for these crazies…. It’s just a waste of time.
SCENE -7
( Bhagwan comes in and behind him comes Mohan the beggar.)
Bhagwan : Poonam…..( then to Mohan)..come ….come on in.
Mohan : What boss……this is your house, right? …or we will both get thrashed.
Bhagwan : This is really my house. Poonam…Poonam….
Mohan: Who is Poonam?
Bhagwan: She is my wife…. Didn’t I tell you?
Mohan: No, I was asking….where is Poonam?
Bhagwan : She must have gone somewhere. Arre, you come inside.
Mohan: No. I am a beggar. I know my place. I am fine here.
Bhagwan : Ok… fine. I will just look inside and come back
( Bhagwan’s voice is heard from inside. He is asking Pinky something. Pinky comes out scared and Bhagwan follows her)
Bhagwan: Listen child………where is your mother? ….What happened to you…..ok look at me…Ma.. Ma…
Pinky : $#@$^%$^%%^%%>...”_-_--‘’
Bhagwan: Listen …what are you saying?!
Mohan : Should I tell you… should I……Ma has gone to bring some Baba……I am really scared…papa…papa…
Pinky : @!##@$#%$%&^>
Mohan : Who is this? This is some beggar. Papa…..you have brought this beggar….
Bhagwan : He understands what I say. I just wanted to let you know that I will get cured by myself. Come here…….Mohan….can you just tell her that…
Pinky : #$%%&^%&^%&^%&^&^&……….
Mohan : Papa, you have really gone mad. You stay away from me…
Bhagwan : Please listen to me child…
Pinky : %$^%^&(**(*(()()^$#$^%%&^^*….( Pinky runs out of the house)
Bhagwan: Pinky….where did she go? What was she saying?
Mohan : I am going to come back with Ma………ma…..ma….
Bhagwan : Why didn’t you stop her?
Mohan : She was so frightened (he starts laughing)
Bhagwan : Why are you laughing?
Mohan : Your game is up….my friend… I thought you were fooling me….what are you going to do now?
Bhagwan : I don’t know……I only know this much….that I want to return.
Mohan : Return? You are right here…
Bhagwan : That is what I want to explain my family.. that I am fighting to be here. And I want that…when Poonam comes back here…I want you to tell her once that I am trying….You saw, didn’t you, that they are nut understanding what I say?….And if they think this is some illness … only I can cure it.
Mohan : Look. I will try….but I don’t know whether or nor they will understand my words. By the way…what happened to you? Pardon me, it is making me laugh, but I really want to know.
Bhagwan : You know something…..as a child…I would sing a hymn with my father. ‘O Shankar mere….Kab honge darshan tere’….my father would sing this song with so much involvement and devotion….Everyday I would think that if I were Shankar, I would definitely have appeared to my father…and then what would my father have done…..And this thought got stuck in my head. Really…what would my father have done? I kept thinking of this for many months and roamed around with my father and finally, one day I asked him…. ‘father what would you do?’ He ignored the question.. But I wanted an answer. So, when ever he would be in front of me I would ask him ‘What would you do?’. One day he got really angry and beat me up… a lot…but the question still remained unanswered. So after a few days I ran away from home. Then I don’t remember what happened. My family tells me that I was missing for two years and later I was admitted to a mental hospital for a while, and they say, that I had forgotten everything…meaning, I had become alright.
Mohan : Were you alright then….?
Bhagwan : After we sweep the house, we feel it’s totally clean. But actually, the dirt is all right there, outside the house and in hiding in corners, lying in wait
Mohan: Listen pal, I will try my best to explain your family… I have seen that nobody is listening to you…but then even can’t understand, what to tell them… I mean…..what do I tell them, what’s the matter with you?
Bhagwan: ‘Does the world ever come up to you and say –look here I am’…( Ramana Maharishi)…I don’t remember when and where I heard this line, ….which, like the dirt in the house….is lying in wait outside just my door for a who knows how long One day, when I was going home, soaked in sweat, without a thought in my head, just like an empty well….it felt like somebody had turned me numb…. Then, at that very moment, this line grabbed me tight.. ‘Does the world ever come up to you and say – look here I am’….That was the first time I went and sat down on that park bench. After a while, I stopped sweating. I straightened my shoulders and opened out my arms as if I had just spotted a long lost friend and wanted to embrace him. Just then felt as is someone came to sit beside me, he suddenly moved close to me and whispered in my ear ‘Does the world ever come up to you and say – look here I am’…and I started trying to reply..that day …the next day….for weeks…months …and then I started feeling everything around me was washed clean. As if someone had scrubbed everything hard with soap……the roads…the garbage cab...all the animals….that furrows under the eyes of that cobbler sitting in the corner….the whole city…..everybody….and then I started to see those lines…
Mohan : Lines..?
Bhagwan : Lines…..like those on the palm….and those on your brow …..there were lined just like those on the ground….like a pathway had opened up.
Mohan : Meaning?
Bhagwan : Like in this house…..can’t you see these lines?
Mohan No……where are they?
Bhagwan : Right now they have gone a bit blurred, because from a while now, I have been crossing my lines.. and why the whole house is upset. …the lines of our lives, of our movements are spread all over the town….like your lines….no….I didn’t see your lines….Mohan….
Mohan: You didn’t see ……because I never move. I sleep at the spot where I do my business. People like us have to sit so much at one spot so that people begin to feel that we have sprouted there and will, one day, seep in there …wait…how do you know my name is Mohan? I have never told anyone my name till date.
Bhagwan: I even know the name of that little bird that’s chirping outside. Nowadays I am a little angry with it….that’s why see how it’s trying to pacify me.
Mohan : Your wife hasn’t returned yet?
Bhagwan : She must be on her way.
Mohan: Listen…..for some time I haven’t been able to tell this to anyone….now that you are listening to me….can I tell you something?
Bhagwan: Go on
Mohan: The food that I eat…sometimes people’s leftovers …or often scraped from somewhere, while eating…I always wonder if the taste I get while eating it is the same as the taste the others get, or am I tasting some other flavour? I always slurp my food with. Even now, see…my mouth is watering.
Bhagwan : Can you tell me exactly, what taste you get?
Mohan: Yes..this …this one…I just had it now….wait…yes …this….this one….oh…
Bhagwan: You can’t tell… No one can tell. I also have the same problem…..the taste I get from my food…..I am unable to describe to anyone
( Mohan starts singing a song. From behind an old man (baba) can be seen walking in, sprinkling something along the way. He goes in. Pinky and Poonam come.)
Poonam : Who is this, Pinky?
Pinky : Didn’t I tell you that Papa got some beggar home…
Bhagwan : Mohan….my wife is here…..tell her all that I told you……quick..
Mohan : Ok ….I’ll try…( Mohan goes near Poonam) ….uh….uh….uh…
( Mohan comes back to Bhagwan)…didn’t I tell you…these people won’t understand what I’m saying.
Bhagwan: Why won’t they understand….? You speak……you tell them
Mohan : uh…..uh….uh….
Baba : Throw this dumb fellow outside! ( Poonam and Pinky drag Mohan outside but he runs and comes back inside again. Poonam and Pinky, catch hold of him again and throw him out.)
Here Bhagwan and Baba are left alone. Bhagwan wants to get away from Baba out of fear. Baba grabs him by the hair and drags him around the house, chanting mantras. He sprinkles something on him, drags him to the centre of the stage, and slaps him. By then Pinky and Poonam come inside.)
Pinky : Papa…
( There is a black out. The sound of slaps is heard. The lights are back. Bhagwan is lying there unconscious while Baba, Pinky and Poonam are standing behind)
Baba : Now leave him here alone, all night. Lock the door from outside. He’ll be fine by morning. Come along now
Poonam : Beta….get the key…
(Pinky brings the key. Everyone leaves. Black out. Then the lights come on. Bhagwan gets up moaning goes towards the wing and sits down there. Suddenly there is a strong light from the wing falls on Bhagwan’s face. Like the sun has risen. Just then Bhagwan sees Chacha Chaudhury there. )
Bhagwan : Uncle.. Chachajii….
Uncle: Those who are dancing are always though of as mad by those who can’t hear the music ( Nietzsche)
Bhagwan : I want to come back. Uncle….I am not the same...I no longer want to know everything….It was a pleasure earlier….not now….Everything is slipping out of my hands. I can’t bear it.
Uncle : When you had run away after that beating from your father, what were you? Then you were a camel….a camel…..that was wandering aimlessly in the desert bent double with the burden of its own soul…till now…. You have only just been transformed and can stand straight… Now you are a lion that wants to rule in the same desert. God says – you must do this. The lion says – won’t do it. For you…all the values and boundaries are without context. You want to rewrite everything afresh, and in the process of this re-writing, you will soon undergo another transformation…..and you will become an infant… a child...and that’s what is necessary…that is the new beginning, which is also what you desire. (Nietzsche)
Bhagwan : Did I really want to achieve this? Then why do I see everyone weeping and beating me up….
Uncle : Now that is guilt…when everyone in the village was stoning the boatman and driving him out of the village… you too had a stone in your hands.
Bhagwan : Yes….but I did not throw it at him.
Uncle : You didn’t throw it at him ,but you did not save him either. And now when you yourself are talking to a bird…how can you stop those stones that are seen in other people’s hands.
Bhagwan : Can’t I stop all this……how did all this suddenly happen?
Uncle : All this did not happen suddenly….I have been with you since your childhood and did you ever think why you named your kids Billu and Pinky? Weren’t these your favorite characters from comic books?
Bhagwan : No… I liked Sabu the most… Where is Sabu…..Uncle…didn’t you bring Sabu with you?
Uncle : I have brought him along...he is waiting outside.
Bhagwan : Sabu…..Sabu……( Bhagwan goes outside. He tries to open the door but it is locked from outside. Bhagwan comes back.) Please call him in, I want to meet him.
Uncle : He wants to meet you too. But what to do…..you have made your house so tiny….that Sabu cannot come in here. But as soon as you become an infant, he will come inside…..not just him….everything will come inside.
Bhagwan : Uncle….cant we get both these pleasure together?
Uncle: You are talking like humans now
Bhagwan : I feel like I am swimming in the river against a strong current. I keep swimming and swimming but never seem to reach anywhere…..and if I stop swimming, then I’m afraid the river will carry me along. What do I do now….why is all this so difficult?
Uncle : It is all very easy. In this world….life is as simple as that of a bird. But we have created so many tales and fables on ‘How to live’ that it now feels that only a Buddha can live like this. We cannot manage it… whereas a bird just lives like it has to.
Bhagwan: But who am I……and what am I searching for?
Uncle : You are not searching for anything. You have just discovered that you have been separated from your home…from yourself…from your being….and you just want to return home…and you are walking in that direction.
Bhagwan: Have you seen god?
Uncle : You need to ask if you have seen god. This is your enlightenment , you already know this .
Bhagwan : Have I seen god?
Uncle : I have not seen god…..but yes….I have had a dream
Bhagwan: Yes….in that dream, I saw a pond … covered with moss…( Ramakrishna Paramahamsa)
Uncle : At that moment, there came a gust of wind, and slowly the moss started to move to one side
Bhagwan : And then I saw blue water.
Uncle : So I thought this blue water is the truth….it is god.., and then another gust of wind blew the moss right back over the pond
Bhagwan : Then I this must have been Maya… an illusion.
Uncle: That is the truth…..that is also illusion…. Both cannot live without each other. Ha ha ha..
Bhagwan: Ha…ha…ha….Uncle…..come, let’s go and sit in the park. I have so much to tell you.
Uncle : No. I’ll leave now. You rest…..you need rest.
Bhagwan : Now when will you come and meet me again?
Uncle : When you call me…..
Bhagwan : Why don’t you stay with me ….. here in this house?
Uncle : Didn’t I tell you, when you become a child….not just me, everybody….the whole world will start living with you. ( Uncle starts to leave). Does the world ever come to you and say – look, here I am?
Bhagwan: Uncle. Yes it does say, but now I don’t want to hear it. What will I do with the whole sky….when I haven’t even learnt to fly in it…I only want to live as much of the sky as I can see from the little window in my house.
Uncle: So fine…..consider this to be our last meeting.
( Uncle leaves humming a song, and Bhagwan also starts singing the same song and then slowly he starts dancing. Bhagwan’s song and dance start getting scary when it ends with his scream) FADE OUT
SCENE – 8
( Bhagwan is seen sitting in the park, defeated)
I thought it was golden, it turned out to be black
Just then a wave of sleep came by
And I turned it golden again
Now….for fear of the morning…
I am sitting up in my sleep
Either I wake and find it black
Or I let it remain golden forever….
.. and never awaken,
SCENE – 9
( Bhagwan is seen sitting and working with a lot of papers and his behaviour seems so normal, that is abnormal. Pinky is getting ready to go out.)
Pinky : Ma…hurry up… I’m getting late for college…..and Papa….you haven’t left yet. Shuklaji must be waiting.
Bhagwan : I was just going through the accounts of his shop…I didn’t realize how time flew
Pinky : Did you forget to take your medicine again?
Bhagwan: Did I forget?.( Poonam enters)
Pinky : Did you take your medicine?
Bhagwan : I’ll just take it
Poonam : Oh… haven’t you left yet?
Bhagwan : Okay, it’s just done… done.
Pinky : Ma…come on…I am getting late!
Poonam : Come…shut the door when you leave. I have a key with me. (just then the bell rings and Pinky goes to answer it)
Pinky : Ma…….
Poonam : Who is it?
Pinky : Him….
Poonam : Who… who is it?
Pinky : That beggar is here…
Bhagwan : Who? …..I….I….want to meet him. Shall I.. now am totally alright.
Poonam : But please so to the shop fast. I’ll inform Shuklaji. Don’t forget to take your medicine . Pinky…..come on..
Pinky : Ma….?
Poonam : Nothing will happen……you come along.( both of them leave) Go on, he is sitting inside.
( Mohan comes inside and hugs Bhagwan and offers him a gift)
Mohan : uh….a…a..a….
Bhagwan : Now I can’t understand what you are saying. Now you are just a mute beggar for me.
Mohan : uh…a….aa…aa….
Bhagwan : No Mohan……Isn’t your name Mohan?... I remember this only because I haven’t taken my medicine as yet.
Mohan : (What’s this medicine) aa…a..a…..aa…
Bhagwan : I don’t know. Didn’t I tell you that I wanted to return? After a lot of effort when I still wasn’t able to return, I took the easy way out. I thought I’d die. I got these pills with great difficulty. As soon as I swallowed them, I started feeling drowsy. One hand got numb, my head started getting heavy. Just then someone came up to me and said ‘You are standing in the middle of the road. Please come this way’. I thanked him.. He left without saying anything. And then I saw that I understood everything….and everyone understood what I was saying. That’s it. I was cured. I still don’t sleep too well, this hand stays slightly numb, my head constantly feels heavy……they say I am getting better….now I am normal.
( Mohan takes the medicines in his hands and gestures towards Bhagwan)
This …..this is actually a broom….that I need to sweep my house with everyday……so like everybody else’s my house stays clean too.
( Mohan tries to drag Bhagwan to the other side and gestures while dancing that he should go towards the direction of enlightenment. Bhagwan moves back )
Bhagwan : Why do I need enlightenment…what use is the whole truth to me….if I am to be on this side of life….then I can make do with very little …a little truth…a little happiness…a few dreams. If you need it all then you have to go to the other side….completely. To stay on this side and talk of that side, is also a fallacy……it’s like fooling yourself….I don’t want to make a fool of myself anymore.
Mohan : ( He wants to break the bottles of medicine) aa….aaa…..aaa..!!
Bhagwan : No…please…...I beg of you ..( Mohan puts the medicines back)
Bhagwan : Mohan…..now I am a unit….not of this world….I don’t want to have anything to do with this world. I am like one unit of this world that we have created, of this society, and I have to live like a pinch of salt in food… Not more. Not less. Just enough to lend a kind of flavour to the food… always
(Bhagwan tries to take his medicine. Mohan stops him and asks permission to leave. He leaves the gift on the table and goes away. Bhagwan takes his medicine. He picks up all his papers and starts to leave. Just then he hears the chirping of a bird and he stops to look back)
Are you angry? Forgive me…I’ll never be able to understand you now.