ममताज़ भाई पतंगवाले
मानव कौल
Scene 1
विवेक और तनु सजे-सजाए घर में सुबह ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर बैठे हैं। विवेक अख़बार पढ़ रहा है, तनु भीतर काम कर रही है। विवेक फोन करता है।)
विवेक- ओए मनोज, कैसा है? अबे मैंने तुझे दो जोक whatssp किए थे। तूने साले जवाब ही नहीं दिया? अच्छा अभी तक हँस रहा है! ग़ज़ब के जोक थे हे ना? मनोज तूने बहुत दिन से कोई जोक नहीं भेजा? अबे थोड़ा हम भी हँस लेंगे तो तेरा कुछ बिगड़ जाएगा क्या? कल का प्लान? रुक तनु से पूछता हूँ, तनु, तनु...
तनु- क्या है?
विवेक- मनोज पूछ रहा है कि वह कल Saturday की फ़िल्म टिकिट बुक करा रहा है? चलोगी?
तनु- मंजू आएगी क्या, पूछो?
विवेक- अबे तेरी बीबी आएगी क्या? हाँ कह रहा है तनु, चलोगी?
तनु- Done.
विवेक- Done है मनोज, कल मिलते हैं। सुना सुना... (झूठा हँसता है।) अबे यह तो नया जोक है बे! यह कभी नहीं सुना था, हा हा हा... मज़ा आ गया। चल तो बॉय! (फोन काटता है) साला आजकल जोक्स पर हँसी ही नहीं आती है। (तीन तरीक़े से अलग-अलग हँसने की कोशिश करता है। अंत में खाँसने लगता है।) तनु! तनु! बॉस! बॉस! आज ऑफ़िस की छुट्टी करते हैं। चलो आज ही हम फ़िल्म देख डालते हैं, क्या कहती हो?
तनु- एक तो तुम मुझे यह घर में बॉस कहना बंद करो। ऑफ़िस की बातें ऑफ़िस में ही खत्म!
विवेक- यार तनु, मुझे आजकल जोक्स पर हँसी ही नहीं आती? क्या है यह? चलो यार कहीं चल देते हैं, माँ चु... मतलब भाड़ में जाए सब कुछ, कहीं भी! बिना किसी को बताए!
तनु- फिर तुम्हें ‘कहीं भाग जाने’ का बुखार चढ़ा है? रिलेक्स! शाम तक उतर जाएगा।
विवेक- अरे! सही कह रहा हूँ मैं। साला कहीं छुप जाते हैं, इस दुनिया में, कहीं किसी को पता ही नहीं चले कि हम कहाँ हैं? और फिर कभी-कभी छुप के देखेंगे कि कैसे लोग हमें तलाश रहे हैं। मैं थक गया हूँ, इस, इस, you know इस... you know मैं क्या कह रहा हूँ?
तनु- No, I don’t know तुम क्या कह रहे हो। और तुम यह सब कह सकते हो क्योंकि तुम्हारी बॉस तो मैं ही हूँ, पर मेरे ऊपर मेरा बॉस है जो मेरा पति नहीं है, सो वह जवाब माँगेगा।
विवेक- कह देना वह पागल था, भाग गया। अब मैं भी पगला रही हूँ, मैं भी भागना चाहती हूँ।
तनु- कल हम जा रहे हैं ना फ़िल्म... कल तक तुम सही हो जाओगे। तुमने अब तक नहाया भी नहीं है, तुम फिर लेट कराओगे। जाओ नहाओ।
विवेक- तुमने जैसे बड़ा नहा लिया!
तनु- तुम्हारे बाद, जल्दी जाओ।
विवेक- चलो ना, साथ चलते हैं, चलो।
तनु- तुम और देर करवाओगे।
विवेक- अभी बहुत टाइम है, चलो ना।
तनु- नहीं! तुम जाओ और जल्दी बाहर आना।
विवेक- ऑफ़िस में भी बॉसगिरी! घर में भी बॉसगिरी! फिर बोलती हो घर में बॉस नहीं हूँ, झूठी!
तनु- जाओ।
(विवेक अंदर जाता है। तनु घर जमाने लगती है तभी फोन की घंटी बजती है।)
तनु- हेलो! हेलो जी! जी नहीं, जहाँ कौनो बिक्की नहीं है। रांग नंबर है... Bloody village people! फोन तक लगाना नहीं आता।
(फिर घंटी बजती है।)
तनु- हेलो! हेलो! अरे भई आपसे कहाँ ना यहाँ कोई बिक्की नहीं रहता, आप अजीब आदमी हैं! रांग नंबर है चचा, चश्मा पहनकर फोन घुमाओ।
(विवेक बाहर आता है। फोन की घंटी दोबारा बजती है। तनु फोन उठाती है। विवेक फोन के पास बढ़ता है। तनु बात करके उसे फोन पकड़ा देती है।)
तनु- हेलो! जी हाँ जहीं रहता है आपका बिबेक, सही नंबर डॉयल कर दिया आपने इस बार। लीजिए बात करिए।
विवेक- हेलो! हाँ मैं विवेक बोल रहा हूँ।
तनु- अरे विवेक! वो बिक्की से बात करना चाहता है, बिक्की बोलो बिक्की, और गाँव वाला बनकर- बिक्की!
(विवेक तनु को देखता है। तनु चुप हो जाती है। कुछ देर में विवेक फोन रखता है।)
विवेक- हाँ आनंद, अरे! अच्छा अच्छा! Oh no! ठीक है! हाँ, मैं सोचता हूँ। Okay bye bye!
तनु- क्या हुआ? अरे कुछ बोलो भी, क्या हुआ?
विवेक- ममताज़ भाई... ममताज़ भाई की तबीयत बहुत ख़राब है, मुझसे एक बार मिलना चाहते हैं।
तनु- यह कौन था।
विवेक- आनंद, मेरे बचपन का दोस्त।
तनु- अरे! तुमने कभी बताया नहीं मुझे?
विवेक- हाँ, तुम तो जानती हो, मुझे बचपन की बातें करना अच्छा नहीं लगता।
तनु- पर यह ममताज़ भाई! कौन हैं?
विवेक- ममताज़ भाई, ममताज़ भाई पतंग वाले।
तनु- बिक्की!
(Black Out)
Scene 2
(ट्रेन की आवाज़ के साथ बहुत से लड़के प्रवेश करते हैं। एक लाइन बनाते, जो कि राशन की लाइन है। विवेक ट्रेन में बैठा है, बैठे-बैठे फोन करता है।)
विवेक- तनु, तनु, थोड़ा तेज़ बोलो... हाँ आवाज़ आई। बॉस, बहले तो धन्यवाद! मेरी एक दिन की छुट्टी मंज़ूर करने के लिए, पर एक बात कहना चाहता हूँ। मुझे नहीं लगता है कि मुझे आना चाहिए था। अरे, वह सब बचपन की बेवकूफ़ियाँ थीं, अचानक भावनाओं में बहकर यह क्या जल्दबाज़ी में हमने रिज़र्वेशन करवा लिया। हाँ हाँ, अरे! पर अब गाँव से, इन लोगों से मेरा कुछ संबंध ही नहीं बचा है। मैं इन लोगों के बीच जाकर क्या करूँगा? अपनी यह छुट्टी अलग बरबाद हो गई, अब अपनी बेवकूफ़ी पर पछता रहा हूँ। थैंक गॉड! तुमने कल शाम का ही वापसी का रिज़र्वेशन करवा दिया। क्यों जा रहा हूँ मैं? चूतियापा है यह सब... सॉरी सॉरी! ठीक है बाबा मैं जाऊँगा। ममताज़ भाई से अच्छे से मिलूँगा और वापस भाग आऊँगा। Sunday तो बचा कम से कम। चलो बॉय! Good night! अगर मैं सो पाया तो! Okay good night! love you… साला क्या चूतियापा है।
Scene 3
(विवेक की बातचीत के दौरान एक लड़का लगातार ‘बिक्की’ का नाम चिल्ला रहा है। उसे ढूँढ़ रहा है। तभी वह राशन की लाइन के पास आता है। वह आनंद है।)
आनंद- अबे तू यहाँ क्या कर रहा है? ममताज़ भाई की काली पतंग नहीं देखी? अबे वह देख ऊपर...
बिक्की- यह साला, पतंग उड़ाने का टाइम ही मेरी माँ को सारे काम सूझते हैं। माँएँ बहुत चालाक होती हैं गुरु।
आनंद- अबे वह तो अवस्थी जी खड़े हैं। हेलो सर!
(अवस्थी जी स्कूल के अंग्रेज़ी के टीचर हैं जो हमेशा टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में ही बात करते हैं। अवस्थी सर आनंद को पसंद करते हैं और बिक्की से चिढ़ते हैं।)
अवस्थी- अरे आनंद! Good morning Anand!
आनंद- Sir, Good afternoon sir!
अवस्थी- हाँ Good afternoon! Good afternoon! Very good, Anand. I was just checking. How are you beta?
आनंद- Good sir, Bye sir!
अवस्थी- Bye Anand! (अपने सामने वाले से) Very good boy…
(आनंद वापस बिक्की के पास आता है।)
आनंद- अबे उन्हें दे दे ना झोला?
बिक्की- बुढ़ऊ खड़ूस है। ममताज़ भाई गोता मारने वाले हैं। रुक कोशिश करता हूँ।
आनंद- मरेगा।
बिक्की- Good morning sir! Sorry! Good afternoon! sir…
अवस्थी- Now you looking at me Sale?
बिक्की- अंकिल! अंकिल! मुझे बहुत ज़रूरी काम से जाना है। आनंद की माँ बेहोश हो गई है। आनंद के साथ पचौरी डॉक्टर के घर पर उन्हें लेने जाना पड़ेगा, तो...
अवस्थी- तो? What I do? हें? What I do?
बिक्की- तो आप राशन की दुकान से दो किलो शक्कर लेकर घर पहुँचा देंगे?
(अवस्थी जी उसे दो थप्पड़ मारते हैं।)
अवस्थी- डॉक्टर? साले सीधे पतंग के पीछे भागोगे... I don’t know you only… क्या? भागो यहाँ से, Stay in line… (अपने सामने वाले से) Very bad boy!
बिक्की- कितने निर्दयी हैं अंकिल आप! भगवान आपको माफ़ नहीं करेगा, अगर आनंद की माँ मर गई तो।
आनंद- अबे साले! मेरी माँ क्यों मरेगी?
बिक्की- चुप!
आनंद- मेरी माँ को क्यों मार रहा है बे?
बिक्की- अबे तू मुझे मरवाएगा।
आनंद- तू मर मुझे क्या? मेरी माँ पर मत जा।
अवस्थी- (अपने पीछे वाले से) This is my place, reservation. I will BE BACK…
(अवस्थी जी आते हैं और बिक्की को एक चपत और लगाते हैं। और वापस अपनी जगह खड़े हो जाते हैं।)
आनंद- अबे ममताज़ भाई की पतंग ने गोता मारा।
बिक्की- काली पतंग मुझे मिल जाए तो मैं, अबे वह काटा, एक और...
आनंद- ममताज़ भाई ने एक गोते में दो-दो पेच काट डाले गुरु, वह जा रही है दोनों पतंग।
बिक्की- अबे तू कहाँ गया?
आनंद- पतंग लूटने।
(बिक्की कुछ देर रुकता है, फिर उससे रहा नहीं जाता। वह सीधा अवस्थी जी के पास जाता है।)
बिक्की- अंकिल, यह रहा झोला, और यह राशन कार्ड। दो किलो शक्कर भरवा लेना, मैं अभी आया।
(बिक्की वहाँ से भाग जाता है।)
बिक्की- अबे आनंद रुक! वहाँ नहीं, पतंग टाल की तरफ़ जा रही है। इधर से, इधर से...
अवस्थी- अबे साले! कुत्ते! कमीने! हरामज़ादे!
Scene 4
(बिक्की और आनंद वापस भागते हुए stage पर आते हैं। तब तक राशन की लाइन के लोग पतंग लूटने वाले बन चुके हैं।)
आनंद- धत तेरी! एक पतंग अवस्थीह जी के घर पर चली गई।
बिक्की- जिन लोगों को पतंग का “प” भी नहीं पता, उनके घर ही हमेशा पतंग कट के जाती है।
आनंद- बिक्की, दूसरी इधर ही आ रही है।
बिक्की- इसमें माँझा बहुत है, मैं उधर जा रहा हूँ।
आनंद- अबे पतंग इधर आ रही है, तू दूसरी तरफ़ क्यों जा रहा है?
बिक्की- पतंग इधर है, पर उसका माँझा, उस तरफ़...
(बिक्की भागता हुआ दूसरी तरफ़ जाता है। फिर भागता हुआ आता है और एक जगह पतंग को लेकर कूद जाता है। वह भीतर से चिल्लाता है- “लूट ली... ममताज़ भाई मैंने पतंग लूट ली... या हूऽऽऽ” तभी सारे बच्चे हँसने लगते हैं। बिक्की चुप हो जाता है। बाहर आता है। वह बुरी तरह कीचड़ में गंदा हुआ पड़ा है। सारे बच्चे उसे चिढ़ाते हैं। उसकी पूरी ख़ुशी काफ़ूर हो जाती है।)
आनंद- पतंग के लिए नाली में कूदने की क्या ज़रूरत थी? अब मरेगा तू।
बिक्की- मरे तेरी माँ।
आनंद- फिर तू माँ पर गया.. तुझे छोडूंगा नहीं।
(बिक्की भागता है उसके पीछे आनंद और बाक़ी सारे लोग भागते हैं।)
(Black Out)
Scene 5
(अवस्थी जी, बिक्की की माँ और उसकी बहन बैठे हैं। शक्कर से भरा हुआ झोला बिक्की की माँ के पास रखा है। बिक्की की बहन होमवर्क करने का नाटक कर रही है। बिक्की और आनंद आते हैं। अवस्थी जी के हाथ में डिक्शनरी है, वह बिक्की की बहन को अंग्रेज़ी के नए शब्द सिखा रहे हैं।)
अवस्थी- Nobody, none, except me can speak अंग्रेज़ी का ‘अ’ in this entire 200 cubic meter of this village territory. PHOTOSYINTHESIS… HA HA HA HA…
बिक्की- मर गए! अवस्थी जी अभी भी बैठे हैं।
(आनंद हँसने लगता है।)
बिक्की- अबे हँस मत, देख अभी भी कीचड़ है क्या? ठीक लग रहा हूँ ना?
आनंद- ला यह पतंग मुझे दे दे।
बिक्की- चल, ममताज़ भाई ने काटी है इसे, पहली बार लूटी है मैंने, किसी को नहीं दूँगा। कल उन्हें जाकर दिखाऊँगा कि देखो आपने जिस पतंग को काटा था मैं उसे लूट लाया।
आनंद- ठीक है। अब तो तेरा ममताज़ ही मालिक हैं, जा।
(अवस्थी जी अंग्रेज़ी का फिर कोई शब्द कहते हैं और हँसने लगते हैं।)
बिक्की- तू जा घर।
आनंद- मैं नहीं जाऊँगा यार।
बिक्की- जा न यार।
आनंद- अबे नहीं जाऊँगा।
बिक्की- अबे चले जा यार।
आनंद- अरे तू गया मैं गया।
बिक्की- अबे क्यों नहीं जाएगा बे।
आनंद- तेरी थोड़ी आवाज़ सुनूँगा- आऽऽऽ मम्मी, नहीं मम्मी, बस करो मम्मी... ऊऽऽऽ! फिर घर जाऊँगा।
बिक्की- तुझे विद्या माता की कसम, जा अपने घर।
आनंद- कसम-वसम चूल्हे में भसम।
बिक्की- तुझे तेरी माँ के मरने की कसम।
आनंद- सड़ी सुपाड़ी बन में डाली सीता जी ने कसम उतारी- अब चढ़ा ले कोई भी कसम, इसके ऊपर तो कोई कसम चढ़ती ही नहीं है। ले बेटा अब जा अंदर।
बिक्की- मर यहीं पर! पर तू देख मैं कैसे पतंग बचा लूँगा।
(बिक्की भीतर जाता है। अवस्थी जी उसे देखकर नमस्ते करते हैं और हँसने लगते हैं।)
अवस्थी- अरे बिक्की जी नमस्ते!
बिक्की- नमस्ते अंकिल!
अवस्थी- आओ आओ... मैं तो कब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।
(बिक्की धीरे से चोरी-छुपे घर में घुसता है और पतंग भीतर रख देता है। अवस्थी जी उसे देख लेते हैं। माँ को इशारा करते हैं कि बिक्की आ गया है और आवाज़ लगाते हैं।)
अवस्थी- बिक्की! बिक्की! Come. come here. sit sit.
(बिक्की अवस्थी जी से बचता हुआ माँ के बग़ल में बैठने लगता है जहाँ शक्कर का झोला पड़ा हुआ है।)
माँ- यहाँ कहाँ शक्कर पर बैठोगे, जाओ सर बुला रहे हैं ना।
अवस्थी- Come beta. Come sit here. हम लोग कब से तुम्हारा waiting कर रहे थे।
माँ- कहाँ रह गए थे तुम? अवस्थी जी कह रहे थे तुम अचानक भाग लिए थे बिक्की बेटा।
(अवस्थी जी हँसने लगते हैं। पीछे से बिक्की की बहन इशारा करती है कि बहुत पिटाई होने वाली है।)
अवस्थी- हाँ, suddenly भाग लिया। मैं पीछे से बिक्की बेटा-बिक्की बेटा चिल्लाता रहा पर he didn’t stop only, there must be some important work.. क्यों बेटा?
बहन- महत्त्वपूर्ण काम!
माँ- हाँ, बोलो?
अवस्थी- Say something?
(बिक्की सबकी तरफ़ देखता है और धीरे से अवस्थी जी के बग़ल में खड़ा होता है।)
AFTER MY BATH I TRY TRY TRY
TO WIPE MYSELF TILL I’M DRY DRY DRY
HANDS TO WIPE AND FINGER AND TOES
TWO WET LEGS AND A SHINY NOSE
JUST THINK HOW MUCH LESS TIME I WOULD TAKE
IF I WERE A DOG AND COULD SHAKE SHAKE SHAKE…
(सभी देखते रह जाते हैं।)
अवस्थी- PHOBIA…
माँ- अरे, बड़ा शरारती है। पूरे घर का काम करता है यह अकेला, बड़ा मन लगाकर। इसकी बहन तो बस बैठी रहती है। जा भाई के लिए पानी लेकर आ।
बिक्की- पानी नहीं चाहिए।
बहन- सच में पानी लाऊँ?
माँ- और जा भाई के लिए चाय भी चढ़ा दे, कब से यह बिना शक्कर की चाय पी रहा है। अब से मिलेगी तुझे शक्कर (चांटा दिखाती है बिक्की को) वाली चाय सुबह शाम, दोनों टाइम।
बिक्की- मुझे फ़ीकी चाय पसंद है।
अवस्थी- अरे ऐसे कैसे बेटा! इतनी दूर से मैं शक्कर लेकर आया हूँ तुम्हारे लिए, अब तो मीठी (चांटे का इशारा करता है।) चाय ही पीनी पड़ेगी। चलिए तो मैं जाता हूँ।
माँ- अरे एक चाय और पी जाते।
अवस्थी- नहीं, अब तो इन्हें दीजिए चाय। यह बदबू कहाँ से आ रही है? ओह बिक्की! तुम्हारे पास से यह बदबू आ रही है क्या?
(माँ ग़ुस्से में शक्कर का झोला लेकर अंदर चली जाती है। अंदर से आवाज़ लगाती है।)
माँ- बिक्की बेटा, ज़रा अंदर तो आना... तुमसे ज़रूरी बात करनी है। अवस्थी जी आते रहिएगा।
अवस्थी- जी! बिक्की, पतंग... जाओ अब चाय पियो! Shake shake shake.
(ख़ूब पिटाई होगी का इशारा करके अवस्थी जी चले जाते हैं। बाहर अवस्थी जी को आनंद मिलता है।)
अवस्थी- आनंद, what are you doing here?
आनंद- I looking for you, sir.
अवस्थी- why?
आनंद- मैं निबंध लिखना चाहता हूँ- My best teacher!
(अवस्थी जी खुश होकर आनंद को आशिर्वाद देते हैं.. और दोनों चले जाते हैं। पीछे से बिक्की के पिटने की आवाज़ आती है। बिक्की चिल्ला-चिल्लाकर रोता है, मगर झूठा।)
बिक्की- अरे नहीं माई.. अरे मर जाऊँगा.. अरे बस..बस कर आईई ईई... आउउउउउ... आआआ।
(बहुत मार खाने के बाद वह झूठा रोता हुआ बाहर बहन के पास आता है।)
बिक्की- देखा, इतना पिटने पर भी कुछ नहीं हुआ, एक आँसू नहीं टपका।
(तभी माँ बाहर आती है उसकी पतंग लेकर और उसके सामने पतंग के टुकड़े-टुकड़े कर देती है। तब बिक्की रोना शुरू करता है। जब माँ अंदर चली जाती है तो बहन उसे गले लगा लेती है।)
(Black Out)
Scene 6
(बिक्की और आनंद बैठा हुए हैं। सामने ममताज़ भाई की पतंग की दुकान अभी खुली नहीं है।)
आनंद- अबे ग़लत है बे यह।
बिक्की- हाँ यार।
आनंद- तेरी माँ तो बहुत ही danger है बे।
बिक्की- हाँ यार।
आनंद- मार-मार के तुझे पतंग बना दिया बे।
बिक्की- माँ के सामने तो बड़े बड़ों की पतंग फट जाती है भाई।
आनंद- मुझसे सुनते नहीं बना बे, मैं तो घर चला गया।
बिक्की- आनंद तू मेरा सबसे पक्का दोस्त है।
आनंद- तू अगर वह पतंग मुझे दे देता तो इतना नहीं पिटता।
बिक्की- हम्मह।
आनंद- कल मैं बहुत पिटा।
बिक्की- क्यों?
आनंद- अबे चाय गिर गई गलती से, माँ ने सूत दिया।
बिक्की- माँएँ बहुत danger होती हैं गुरु।
आनंद- अबे, हम लोग यहाँ क्यों बैठे हैं बे?
बिक्की- माँ ने सब्ज़ी ख़रीदने भेजा है।
आनंद- पर सब्ज़ी बाज़ार तो पीछे है।
बिक्की- पता है।
आनंद- अबे पैसे ऐसे क्यों रखे हैं? और यह पर्ची क्या है? ओह!
(आनंद पर्ची पढ़ता है।)
आनंद- एक किलो आलू, एक किलो प्याज़, आधा टमाटर और धनिया-मिर्च-अदरक मुफ़्त। ढाई रुपए। चल सब्ज़ी लेते हैं। मोल-भाव करते हैं चव्वनी बच जाएगी, चल।
बिक्की- ममताज़ भाई की दुकान खुल रही है।
(एक अज़ान की आवाज़ के साथ... ममताज़ भाई की दुकान धीरे-धीरे खुलती है। दोनों अवाक से ममताज़ भाई की दुकान को खुलते हुए देखते हैं। ममताज़ भाई हल्के अँधेरे में नमाज़ पढ़ रहे हैं।)
बिक्की- सजे-धजे से हर दिन रहते। जब देखो मुस्काते रहते...
आनंद- रहते!
बिक्की- जैसे ही मैदान में आते...
आनंद- आते!
बिक्की- दुश्मन के छक्के छुड़ाते...
आनंद- छुड़ाते!
बिक्की- जो भी इनके सामने आया...
आनंद- आया!
बिक्की- एक गोते में करा सफाया...
आनंद- सफाया!
बिक्की- ग़लती न फिर किसी की दाल...
आनंद- दाल!
बिक्की- काली पतंग है तुर्रा लाल...
आनंद- लाल!
बिक्की- सब लोगों की शामत आई...
आनंद- आई!
बिक्की- आ गए मेरे ममताज़ भाई...
आनंद- भाई! क्या बात है दोस्त, तूने लिखी है यह कविता? क्या बात है बिक्की, मज़ा ही आ गया। लेकिन सुन बे, तू ममताज़ भाई से तो दूर ही रह।
बिक्की- चल।
आनंद- तू पागल है रे? हे! अबे कल की मार भूल गया?
बिक्की- पतंग लूटी थी मैंने, ममताज़ भाई को तो बताना ही है।
आनंद- पिटेगा।
बिक्की- तू नहीं समझेगा। एक पतंगबाज़ ही दूसरे पतंगबाज़ का दुख समझ सकता है। जाते ही सबसे पहले उनको पिटाई वाली बात बताऊँगा कि कैसे एक पतंगबाज़ के साथ, के साथ, छोड़ तू नहीं समझेगा। सुन तू इधर ही रह, मैं उनसे मिलकर आता हूँ।
आनंद- ठीक है। पिटाई भी बताना और जो अभी तू फिर पिटेगा वो भी एडवांस में बता देना।
(बिक्की पतंग की दुकान पर पहुँचता है।)
ममताज़- अरे को भाई? क्या ख़याल है?
बिक्की- ख़याल दुरुस्त है ममताज़ भाई।
ममताज़- अरे मियाँ बड़े बुझे-बुझे लग रिये हो? क्या बात है?
बिक्की- नहीं नहीं ममताज़ भाई। ममताज़ भाई, कल जो आपने एक गोते में दो पतंग काटी थी ना, उसमें से एक तो अवस्थी जी के घर चली गई और दूसरी पतंग, वह दूसरी पतंग मैंने लूटी थी ममताज़ भाई।
ममताज़- क्या बात कर रिये हो मियाँ?
बिक्की- और ममताज़ भाई, ममताज़ भाई, जब वह पतंग लेकर मैं घर गया, तो, तो...
ममताज़- तो क्या हुआ मियाँ?
बिक्की- अरे ममताज़ भाई, कुछ नहीं, जाने दीजिए।
ममताज़- अरे मियाँ, तो लेकर आना था उस पतंग को, अपना शिकार देखने की हमें भी बड़ी तलब है।
बिक्की- वही तो मैं कह रहा था ममताज़ भाई। मैं लाने वाला था, वह, वह असल में रास्ते में याद आया कि ‘ओ तेरी पतंग तो भूल ही गया।’
ममताज़- बड़ा मज़ा आया कल पतंगबाज़ी में! तुम्हें वह ज़ौहर सिखाने थे मियाँ, कैसे एक बार में दो को साफ़ किया जाता है।
बिक्की- ममताज़ भाई मैं सब देख रिया था, आप बहुत ऊपर थे, एकदम ऊपर, फिर आँधी की तरह नीचे आए और एक बार में दोनों साफ़। नीचे खड़े होकर मैंने सब देखा था।
ममताज़- देखना तू बड़ा होकर एक बहुत बड़ा पतंगबाज़ बनेगा।
बिक्की- पर आपने तो मुझे कभी पतंग उड़ाते हुए देखा ही नहीं है?
ममताज़- अरे, इसलिए कह रिया हूँ क्योंकि जब भी मैं कोई पेच काटता हूँ, सिर्फ़ तेरे बारे में सोचता हूँ।
(तभी ममताज़ ने कुछ कपड़ों के नीचे से एक हिचका निकाला। माँझा सुर्ख लाल रंग का था।)
ममताज़- यह इसे छू के देख, देख। अरे अरे, देख के, अभी हाथ कट जाएगा!
बिक्की- ममताज़ भाई, पिछली बार आपने माँझा दिया था और कहा था कि ऊपर से रखकर ढील दे देना, बस दुश्मन का काम तमाम।
ममताज़- कहा तो था मियाँ। तुमने क्या किया?
बिक्की- मैंने वही किया जो आपने कहा था, मैंने ऊपर से रखकर ढील दी, उसने नीचे से खींच दिया। ममताज़ भाई इतनी बुरी तरह कटा था कि महल्ले के बच्चे-बच्चे हँस रहे थे।
ममताज़- तुमसे भी छोटे बच्चे?
बिक्की- ममताज़ भाई!
ममताज़- कौन सा माँझा था वह?
बिक्की- वही कत्थई वाला।
ममताज़- साला! मियाँ, लूटते हैं ये बरेली वाले भी। इस माँझे की बड़ी शिकायत मिली है। अगली बार से मैं अगर यह माँझा दूँ भी ना, तो तुम मत लेना, साफ़ मना कर देना। इसे मैं वापस बरेली भिजवाता हूँ। अपन हमेशा क्वॉल्टी की चीज़ ही लेते हैं। इस लाल माँझे को देख रिया है? इसे सिर्फ़ मैं ही इस्तेमाल करता हूँ, बस। किसी को नहीं दिया मियाँ आज तक यह। छुपा के रखता हूँ। आज पहली बार तुम्हें दे रिया हूँ, सँभाल के। ममताज़ भाई ने दिया है, यह किसी को बक मत देना। यहाँ भीड़ लग जाएगी। जब पचास पेंच (पतंग) काट दो तो ममताज़ भाई को याद रखना, भूलना नहीं। यह ले, पतंग भी निकाल के रखी है अपुन ने तेरे वास्ते। दो रुपए हुए। इस्पेसल है! बस ढील देते रहना, हवा से बातें करेगी।
बिक्की- नहीं ममताज़ भाई, पतंग है मेरे पास, बस माँझा काफ़ी होगा।
ममताज़- पतंग कहाँ से आई? वह लड्डू चोर की दुकान से ले ली क्या मिया?’
बिक्की- क्या कह रहे हो ममताज़ भाई, मैं तो लड्डू की दुकान की तरफ़ देखता भी नहीं हूँ। कल वाली लूटी हुई पतंग रखी है।
(ममताज़ पतंग वापस रख लेता है, बिक्की पैसे देता है। विवेक प्रवेश करता है।)
ममताज़- वैसे मियाँ इस माँझे से वह लूटी हुई पतंग उड़ाओगे तो फिर बच्चे हँसेंगे।
बिक्की- ममताज़ भाई अभी पैसे नहीं हैं पतंग के।
ममताज़- पैसे कौन माँग रहा है मियाँ। पैसे जब हो, तब दे देना। अभी तो उस माँझे की इज़्ज़त रखो।
(बिक्की पतंग लेकर निकलता है, वहाँ उसे आनंद नहीं दिखता है। वह कुछ देर आनंद को खोजता है। तभी सामने विवेक खड़ा दिखता है।)
विवेक- पतंगबाज़ी के बीच में पैसों की बातें करना कितना बड़ा गुनाह है। और वह भी ममताज़ भाई जैसे पतंगबाज़ के सामने। कहाँ जा रहे हो? घर? हाथ में पतंग लेकर? पिटोगे, अब तो शायद मार भी दिए जाओ। आनंद को भूल जाओ, वह घर पर नहीं है, अब। कितनी ओछी बात है। ममताज़ भाई के हाथों दी हुई पतंग फाड़ोगे!
(विवेक चला जाता है। कुछ उसके दोस्त आते हैं।)
बिक्की- फाड़ूँगा... फाड़ूँगा...
(बिक्की बहुत कोशिश करता है पर फाड़ नहीं पाता है और अंत में रोने लगता है।)
माँ- बिक्की बेटा, ज़रा अंदर तो आना, तुमसे ज़रूरी बात करनी है।
(Black Out)
Scene 7
(स्कूल में अवस्थी सर पढ़ा रहे हैं। सारे लोग अपना अंग्रेज़ी का पाठ रट रहे हैं। अवस्थी सर हर वाक्य को ब्लैक-बोर्ड पर लिखते जा रहे हैं।)
अवस्थी- We are human.
बच्चे- Are we human? Are we human? Are we human?
जग्गू- अबे पतंग कट के जा रही है।
बिक्की- कहाँ?
(बिक्की बाहर झाँकता है, तभी माँ की आवाज़ आती है या स्कूल में उसके साथ बैठी बहन ही आवाज़ निकालती है- ‘बिक्की बेटा, ज़रा अंदर तो आना, तुमसे ज़रूरी बात करनी है।’ और सब हँसने लगते हैं। बिक्की डर के मारे वापस पढ़ने बैठ जाता है।)
अवस्थी- Kite is flying.
बच्चे- Is kite flying? Is kite flying? Is kite flying?
(तभी वहाँ से ममताज़ भाई गुज़रते हैं।)
ममताज़- क्या मियाँ, class room में बैठे-बैठे बच्चों से पतंग उड़वा रिये हो?
अवस्थी- Good evening brother Mamtaz!
ममताज़- Good evening मियाँ अवस्थी।
अवस्थी- Brother mamtaz is going.
बच्चे- Is brother mamtaz going?
(ममताज़ भाई चले जाते हैं। सारे बच्चे ममताज़ को देखने कमरे से निकलकर झाँकते हैं)
चिंटू- अबे, ममताज़ भाई कितने लंबे है बे!
मोनू- पहली बार हमारी गली से गुज़र रहे हैं।
जग्गू- अबे उनके हाथ में उनकी काली पतंग है, लाल तुर्रे वाली, किसी को देने जा रहे हैं लगता है।
अवस्थी- What is this? What is this?
(सभी बच्चे घबराकर अपनी जगह बैठ जाते हैं और एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगाने लगते हैं।)
अवस्थी- No Hindi, talk only in English.
चिंटु- Brother mamataz, Hmmmm… tall, very tall.
मोनू- Brother mamtaz first time going.
जग्गू- Brother mamtaz, black kite, red tail, thank you very much.
बिक्की- Sir sir, can I go for suu suu?
अवस्थी- जल्दी! मेरा मतलब QUICK!
आनंद- तेरा अब ममताज़ ही मालिक है।
अवस्थी- No hindi, only in English. Anand stand up… what?
आनंद- Sir, sir! My friend bikki will die today.
अवस्थी- SHUT UP!
(तभी स्कूल की घंटी बजती है और सारे बच्चे भाग जाते है।)
Scene 8
(बिक्की भागता हुआ ममताज़ के पीछे जाता है। पूरा स्कूल मिलकर ममताज़ का घर बन जाता है। दरवाज़ा आता है और ममताज़ भाई उसमें सिर झुका के प्रवेश करते हैं। ममताज़ भाई को देख के उनकी बच्ची दौड़कर उनके गले लग जाती है। वह उसे अपने पास बिठा लेते हैं, तभी भीतर से उनकी बीवी पानी लेकर आती है। उनकी बेटी आकर बड़ी सी ड्रॉइंग बुक उनको दिखाती है। वह उसकी ड्रॉइंग देखकर उसे चूमते हैं। तभी वह लड़की अचानक पलटकर बिक्की की तरफ़ देखने लगती है। बिक्की घबराकर दरवाज़े के पीछे छुप जाता है। वह धीरे-धीरे चलकर बिक्की के पास आती है।)
लड़की- तू कौन है?
बिक्की- मैं कोई नहीं हूँ। कोई भी नहीं...
(और बिक्की रोने लगता है। रोते-रोते वहीं बैठ जाता है। सीन बदलता है। आनंद बिक्की का बस्ता लेकर आता है।)
आनंद- बिक्की! ऐ बिक्की! अरे बिक्की है क्या? अब अँधेरे में क्यों बैठा है? अबे तेरे घरवाले तुझे ढूँढ़ के पागल हो गए बे। अबे ममताज़ भाई भी तुझे ढूँढ़ रहे हैं। बेटा कल अवस्थी सर तेरे कान लाल, नहीं हरे कर देंगे।
(बिक्की चुप है।)
आनंद- क्यों रे, आंटी ने मारा क्या?
(बिक्की चुप है।)
आनंद- मैं जाऊँ क्या?
(आनंद जाने लगता है, बिक्की उसका हाथ पकड़ लेता है।)
बिक्की- ममताज़ भाई का अपना घर है, तुझे पता है? उनकी एक बेटी है, बीवी है।
(यह कहते ही वह रोने लगता है।)
आनंद- तो?
बिक्की- तो? तो ममताज़ भाई झूठे हैं... पूरी की पूरी तरह झूठे।
आनंद- हा हा हा हा... अबे तू बच्चा है क्या?
बिक्की- मैं बच्चा नहीं हूँ।
आनंद- अबे सबके होते हैं बे।
बिक्की- आनंद! ममताज़ भाई के बीवी-बच्चे कैसे हो सकते हैं? वह एक पतंगबाज़ हैं, बड़े पतंगबाज़।
(आनंद फिर हँसने लगता है। बिक्की चिल्लना शुरू करता है।)
आनंद- बेटा, तेरे भी बीवी-बच्चे होंगे, देख लेना।
बिक्की- छी! छी! मेरे नहीं होंगे।
आनंद- सच कह रहा हूँ।
बिक्की- अबे चल हट! तेरे को पता है एक पतंगबाज़ क्या होता है? अबे वह हीरो है... वह सुपरमैन है!
(और फिर उससे कुछ बोलते नहीं बनता वह आनंद को मारने लगता है।)
आनंद- अबे तू पगला गया है क्या? अबे क्या कर रहा है? ओए...
(आनंद वहाँ से भाग जाता है। बिक्की बस्ते से लाल माँझा निकालता है और उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता है।)
बिक्की- नहीं चाहिए लाल माँझा। नहीं चाहिए लाल माँझा। नहीं चाहिए नहीं चाहिए। पतंगबाज़ी एक झूठा खेल है, आज से पतंगबाज़ी बंद।
(Black Out)
Scene 9
(बहन होमवर्क कर रही है। बिक्की बाहर से घर का बहुत सारा सामान लेकर अंदर आता है। वह कुछ बदल चुका है, जाते-जाते बहन को टॉफ़ी देता है और भीतर चला जाता है।)
बहन- भाई, मुझे माँझा पड़ा मिला है, तुझे चाहिए क्या?
बिक्की- नहीं, नाली में फेंक दे उसे।
बहन- भाई, तुम चोरी-चोरी पतंग तो नहीं उड़ाते हो ना?
बिक्की- पागल है, बता तूने आख़िरी बार मुझे पतंग उड़ाते कब देखा था?
बहन- भाई, स्कूल की पिछली छुट्टियों में। अब तो दूसरी छुट्टियाँ आ गईं, पूरा एक साल। पर क्यों?
(बिक्की एक किताब लेकर बाहर आता है और बहन के बग़ल में पढ़ने बैठ जाता है।)
बिक्की- बस नहीं उड़ाना, और तू चुप रह, पतंग की बात मत कर।
बहन- अच्छा। और आनंद कहाँ है?
बिक्की- उससे कट्टी चल रही है। गधा है वह, सूअर, उल्लू... और तू क्या यह होमवर्क करने का नाटक करती रहती है? परिक्षा ख़त्म हो चुकी है कब की, तेरे चक्कर में मुझे भी पढ़ना पड़ता है।
बहन- ऐ! ऐ! चिढ़ क्यों रहा है? पतंग उड़ाना तूने छोड़ा है तो उसका ग़ुस्सा मुझपे क्यों निकाल रहा है?
(तभी बाहर से एक बच्चा ‘पतंग लूट ली’ और दूसरा लड़का ‘क्या काटा है ममताज़ भाई ने’ चिल्लाता है। बिक्की आवाज़ की तरफ देखता है... बहन उसे देखती है।)
बहन- बिक्की, बेटा ज़रा अंदर तो आना, तुमसे ज़रूरी बात करनी है।
(माँ की आवाज़ सुनते ही वह वापिस पढ़ने बैठ जाता है। बहन हँसने लगती है।)
बहन- क्या हुआ?
बिक्की- माँ अंदर हैं क्या?
बहन- नहीं, वह तो अवस्थी जी के घर गई हैं।
बिक्की- मेरे कान बजने लगे हैं।
बहन- तेरे को पता है, जबसे तूने पतंगबाज़ी छोड़ी है, माँ, अवस्थी जी, अवस्थी सर, यूँ समझ ले पूरा गाँव तुझसे कितना ख़ुश रहने लगा है।
बिक्की- इन सबके साथ तू भी बहुत ख़ुश होगी?
बहन- नहीं। मुझे तो तू पतंग उड़ाते हुए बहुत सुंदर दिखता है।
बिक्की- तुझे पता है, बाहर इस वक़्त कितनी पतंगें उड़ रही हैं, आसमान ममताज़ भाई की पतंग की दुकान हो चुका है। एक पतंगबाज़ पतंग उड़ाना बंद कर सकता है, पर उसके बारे में सोचना कभी भी बंद नहीं कर सकता। पतंग का नाम लेते ही मुझे ममताज़ भाई दिखते हैं और मुझसे पूछते हैं कि ‘क्या ख़याल है मियाँ?’
बहन- भाई, जाओ पतंग उड़ाओ जा के।
बिक्की- नहीं नहीं, ममताज़ भाई झूठे हैं। वह पतंगबाज़ नहीं हैं।
बहन- तू ही कहता था कि ममताज़ भाई दुनिया के सबसे बड़े पतंगबाज़ हैं।
बिक्की- नहीं हैं, झूठ है सब। मुझे कभी-कभी बहुत ग़ुस्सा आता है। इच्छा होती है कि ममताज़ भाई की आँखों के सामने मैं लड्डू की दुकान से पतंग ख़रीदूँ या देर रात एक बाल्टी पानी लेकर जाऊँ और ममताज़ भाई की पतंग की दुकान को भीतर-बाहर हर जगह से गीली कर दूँ।
बहन- यह ग़ुस्सा मुझ पर निकालने से तो अच्छा है कि यह कर ही दे।
बिक्की- नहीं कर सकता ना।
बहन- क्यों?
बिक्की- भूल गई, माँ ने क्या कहा था?
बहन- हाँ, भगवान सब देखता है।
बिक्की- हाँ, भगवान सब देखता है।
(तभी बाहर पतंग की आवाज़ आती है और बिक्की खिड़की की तरफ़ भागता है।)
बहन- (फिर माँ की आवाज़ निकालती है।) बेटा, ज़रा अंदर तो आना, तुमसे ज़रूरी बात करनी है।
बिक्की- तू झूठ बोल रही थी। माँ भीतर ही है, है ना?
बहन- नहीं रे।
बिक्की- मैं देखकर आता हूँ।
(बिक्की अंदर जाता है। बाहर ममताज़ भाई दरवाज़ा खटखटाते हैं। बहन दरवाज़ा खोलती है।)
बहन- बिक्की! बिक्की! बिक्की तुमसे कोई मिलने आया है।
(पहले विवेक बाहर निकलता है उसके पीछे बिक्की आता है। दोनों के चेहरों पर ममताज़ भाई को लेकर एक जैसा आश्चर्य है, पर बिक्की ममताज़ भाई से नाराज़ है।)
ममताज़- अरे को भाई? क्या ख़याल है?
विवेक- ख़याल दुरुस्त हैं ममताज़ भाई।
ममताज़- क्या मियाँ, अंदर नहीं बुलाओगे?
बहन- आइए ममताज़ भाई, आइए।
(बिक्की बहन को भीतर धकेल देता है।)
ममताज़- क्या मियाँ, पतंगबाज़ी का शौक़ काफ़ूर हो गया?
विवेक- माँ ने मना किया हुआ है।
ममताज़- क्या मियाँ, पतंगबाज़ी के साथ पुरानी दोस्ती भी छोड़ दी?
(बिक्की चुप रहता है।)
ममताज़- अरे वह लाल माँझे से कितनी पतंग काटी तुमने, बताया ही नहीं मियाँ?
विवेक- वह लाल माँझा गलती से पानी में गिर के ख़राब हो गया था।
ममताज़- अरे मुझे बताया होता मियाँ, मैं, मैं...
बिक्की- मुझे अब लाल माँझा नहीं चाहिए ममताज़ भाई।
ममताज़- ओह! क्या चाहते हो मियाँ?
विवेक- ममताज़ भाई, मैं ठीक इस वक़्त आपकी गोद में बैठना चाहता हूँ। आपको चूम लेना चाहता हूँ और आपकी ख़ूबसूरत काली पतंग, लाल माँझे के साथ उड़ाना चाहता हूँ।
बिक्की- मैंने पतंगबाज़ी छोड़ दी है ममताज़ भाई, अब मैं कंचे खेलता हूँ।
बहन- ममताज़ भाई, हमारा घर पता था?
ममताज़- नहीं, आनंद आया था दुकान पर, उसी से पता चला।
बिक्की- वह क्यों आया था?
ममताज़- पतंग लेने आया था।
बिक्की- पतंग लेने? उसका पतंगबाज़ी से क्या लेना-देना? वह पतंगबाज़ नहीं है। मैं तो उसे अपना हिचका पकड़ने के लिए भी ना खड़ा करूँ। वह पतंग में रखकर भजिए खाएगा।
ममताज़- क्या मियाँ, ख़ुद तो पतंगबाज़ी छोड़ के कंचे खेलने लगे हो, कम-से-कम दूसरों को तो पतंग उड़ाने दो। मेरे बीवी-बच्चों को भूखा मारोगे क्या?
बिक्की- ममताज़ भाई?
विवेक- ममताज़ भाई आप अपना घर चलाने के लिए पतंग बेचते हो? पतंगबाज़ी महज़ एक खेल है, धंधा है? आप बस एक और आदमी हो? नहीं... ममताज़ भाई यह झूठ है, सब झूठ है।
बिक्की- आप झूठे हैं।
ममताज़- क्या?
बिक्की- आप झूठे हैं ममताज़ भाई।
(तभी माँ की बाहर आवाज़ आती है।)
बहन- भाई, भाई। माँ आ गई। भाई माँ आ गई।
(माँ को देखते ही बिक्की ममताज़ भाई से दूर खड़ा हो जाता है। माँ ममताज़ भाई को आश्चर्य से देखती हैं। माँ के हाथ में एक झोला है।)
ममताज़- तो... क्या ख़याल है?
माँ- क्या?
ममताज़- क्या ख़याल है?
बिक्की- ख़याल दुरुस्त है ममताज़ भाई, ख़याल दुरुस्त है माँ।
बहन- माँ यह ममताज़ भाई हैं, इनकी सराफे में पतंग की बहुत सुंदर दुकान है। यह बहुत बड़े पतंगबा...
माँ- जानती हूँ मैं, तू चुप रह। मैं यह रखकर आती हूँ।
ममताज़- मैं झूठा नहीं हूँ मियाँ (बिक्की से), हाँ मैंने तुमसे थोड़ा झूठ बोला था मियाँ। वह लाल माँझे से मैं पतंग नहीं उड़ाता हूँ, वह तो उसी वक़्त नया माँझा आया था। पर मियाँ कथई माँझा उतना ख़राब नहीं है, मैं उससे पतंग उड़ा चुका हूँ।’
(माँ वापस आती है।)
बिक्की- मैं उस झूठ की बात नहीं कर रहा हूँ ममताज़ भाई।
ममताज़- तो फिर क्या बात हैं मियाँ?
बिक्की- ममताज़ भाई आपका...
विवेक- कह दे।
बहन- बिक्की!
ममताज़- मैं समझा मियाँ, पेंच काटने (पतंग काटने) की बात ना? तो ऐसा है कि मैं तुम्हारे बड़े होने का इंतज़ार कर रिया था। पतंगबाज़ी... सिखाई नहीं जा सकती है मियाँ। वह आती है, या नहीं आती है।
बिक्की- मुझे आती है क्या?
ममताज़- अगर नहीं आती तो मैं यहाँ क्यों आता मियाँ?
बिक्की- पर आपने तो कहा था कि कथई माँझे से ऊपर से रखकर ढील देना और हरे से नीचे से खींच देना?
ममताज़- मियाँ यह सब कहने की बातें हैं। जब पतंग लड़ रही होती है, तो उस लड़ाई में पढ़ाई भूलना पड़ता है।’
माँ- अरे यह क्या है? हें! पढ़ाई क्यों भूलेगा वो? तुम दोनों यह क्या बात कर रहे हो?
बहन- माँ असल में...
माँ- क्या?
बिक्की- ममताज़ भाई, आप तो हमेशा ख़ींच के पतंग काटते हो?’
ममताज़- नहीं तो!
बिक्की- मैंने आपके हर पेच देखे हैं।
ममताज़- अच्छा?
बिक्की- हाँ ममताज़ भाई।
ममताज़- मुझे कभी पता नहीं चला। मियाँ, पतंग लड़ाते वक़्त मुझे कुछ भी याद नहीं रहता।
बिक्की- मुझे भी ममताज़ भाई, मुझे भी कुछ याद नहीं रहता। मैं तो पतंग को देखता हूँ और सब कुछ भूल जाता हूँ।
माँ- बिक्की! क्या बातें कर रहे हो आप लोग?
बहन- माँ, बिक्की...
माँ- हाँ तू ही बता, बोल...
बिक्की- ममताज़ भाई, माँ बहुत डेंजर हैं।
(बहन चुप हो जाती है। माँ, ममताज़ भाई के एकदम पास जाती हैं।)
माँ- तुम यहाँ क्यों आए हो ममताज़?
ममताज़- इन साहबज़ादे से मिलने।
माँ- अच्छा, ऐसे ही?
ममताज़- जी?
माँ- मतलब, कोई ख़ास वजह?
ममताज़- ना ना, कोई ख़ास वजह तो नहीं है।
माँ- अच्छा! तो आप ऐसे ही चले आए?
ममताज़- हाँ, ना ना, ऐसे ही तो नहीं आया मैं। वजह है, मगर वह ख़ास वजह नहीं है।
माँ- अच्छा! क्या वजह है?
ममताज़- यह साहबज़ादे बहुत दिन से दिखे नहीं थे सो।
माँ- इनकी परिक्षा चल रही थी।
ममताज़- हाँ मुझे पता था, पर वह तो ख़त्म हुए काफ़ी समय हो गया है, तो मैंने सोचा।
माँ- क्या सोचा?
ममताज़- सोचा, पतंगबाज़ी का मौसम है और यह जनाब नदारद।
माँ- इन्होंने पतंगबाज़ी छोड़ दी है।
ममताज़- हाँ हाँ, अभी बताया इन्होंने कि आपको पतंगबाज़ी पसंद नहीं है सो यह आजकल कंचे खेलने लगे हैं।
माँ- बिक्की?
ममताज़- कंचे जैसा ज़मीनी खेल आपको आसमान की पतंगबाज़ी से अच्छा लगता है?
माँ- ममताज़, यह पतंग नहीं उड़ाएगा यह फैसला इसने ख़ुद लिया है। मैंने इससे कुछ नहीं कहा।
ममताज़- क्या मियाँ, यह सच...
माँ- जी हाँ! और अब यह मेरा भी फ़ैसला है कि अब यह कभी पतंग नहीं उड़ाएगा।
ममताज़- जी, मैं समझा।
माँ- और तुमने कंचे खेलना कब से शुरू कर दिया?
विवेक- माँ, आपको बीच में बोलने की क्या ज़रूरत है? यह मेरे और ममताज़ भाई के बीच की बात है।
ममताज़- मैं चलता हूँ।
(पर ममताज़ भाई वहीं खड़े रहते हैं। कुछ देर में बिक्की उठकर उनके गले लग जाता है।)
विवेक- ममताज़ भाई, देखो आपकी उँगलियाँ और मेरी उँगलियों में माँझे के कटे के बिल्कुल एक जैसे निशान हैं।
बिक्की- ममताज़ भाई, मैं एक पतंगबाज़ हूँ।
(बिक्की बहुत हिंसक तरीक़े से ममताज़ भाई के गले लगने लगता है।)
ममताज़- बिक्की! बिक्की!
माँ- ऐ बिक्की! क्या कर रहा है?
(माँ उसे खींचकर अलग करती है।)
माँ- नमस्ते ममताज़ भाई!
(ममताज़ जाने लगता है तभी दरवाज़े पर जाकर रुक जाता है, मुड़ता है।)
ममताज़- (माँ से) मैं आपसे एक बात कहना चाह रहा था। रहने दीजिए।
(रहने दीजिए कहकर वह चले जाते हैं, माँ ग़ुस्सा हो जाती है।)
माँ- रहने दीजिए क्या? अरे क्या रहने दीजिए? ओए ममताज़! दम है तो कहकर जा, क्या रहने दीजिए!
(यह कहते हुए माँ ममताज़ के पीछे चली जाती है। बिक्की और बहन एक-दूसरे को देखते हैं और बिक्की की बहन बिक्की के गले में अपना हाथ डाल देती है।)
(Black Out)
Scene 10
(ममताज़ भाई की दुकान खुली हुई है। आनंद प्रवेश करता है।)
आनंद- ममताज़ भाई, आज तो मज़ा ही आ गया था।
ममताज़- क्या ख़याल है मियाँ?
आनंद- सही है ममताज़ भाई, सही है। पतंग न, आज पतंग उठ गई थी, इतनी ऊपर उड़ गई थी, फिर पेड़ में फँस के फट गई। ममताज़ भाई, एक पतंग और दे देते?
ममताज़- आनंद, तुम पहले मैदान में पतंग उड़ाना सीखो।
आनंद- मैदान में तो बच्चे जाते हैं।
ममताज़- अच्छा, यह लो, यह कनकइया उड़ाओ।
आनंद- यह उड़ेगी भी! ममताज़ भाई, मैं दूसरों की पतंग काटना चाहता हूँ।
ममताज़- पतंग उड़ाने का मज़ा तो लो पहले मियाँ। उधर क्या बिक्की है?
आनंद- किधर?
ममताज़- उस तरफ़? बिक्की है क्या?
आनंद- अरे नहीं ममताज़ भाई, उसने तो पूरी तरह पतंगबाज़ी छोड़ दी है। पागल है वह, ज़रा-ज़रा सी बात पर चिढ़ जाता है। मुझसे ठीक से बात भी नहीं करता है, मैंने तो उससे मिलना ही बंद कर दिया है।
ममताज़- वह एक पतंगबाज़... वह आएगा वापस। अरे बिक्की! वह देख उधर खड़ा तो है, बिक्की।
आनंद- मैं हूँ पतंगबाज़, ममताज़ भाई, बिक्की कहीं नहीं है।
ममताज़- यह ले, मस्त पतंग है। चलो मियाँ, फिर नमाज़ का बख़्त हो गया है।
आनंद- ठीक है ममताज़ भाई।
(आनंद ममताज़ की दुकान से निकलता है। पीछे से बिक्की उसे आवाज़ लगाता है।)
बिक्की- आनंद! आनंद!
आनंद- बिक्की? बिक्की तू क्या कर रहा है? और क्या हो गया तुझे?
बिक्की- तू ख़ूब पतंग उड़ा रहा है आजकल?
आनंद- हाँ, आज ममताज़ भाई कह रहे थे कि मैं बड़ा पतंगबाज़ हूँ।
बिक्की- तू कंचे खेलने क्यों नहीं आता बे?
आनंद- चल! बहुत बड़ा पतंगबाज़ी का टूर्नामेंट है और मैं ममताज़ भाई की चख़री पकड़ूँगा उसमें।
बिक्की- तू?
आनंद- हाँ मैं! और नहीं तो कौन बे?
बिक्की- सद्दी माँझे में अंतर पता है? ममताज़ भाई की चख़री पकड़ेगा?
आनंद- अबे... चल बे! तुझसे कौन बात करे, मैं जाता हूँ। बिक्की नहा ले बे, अजीब लग रिया है।
(आनंद जाने लगता है। पीछे से बिक्की आवाज़ लगाता है।)
बिक्की- आनंद!
आनंद- क्या?
(आनंद पलटता है और बिक्की उसके सिर पर एक ज़ोर का पत्थर मार देता है। विवेक चिल्लाता है- ‘बिक्की! बिक्की!’ बिक्की रुक जाता है। आनंद रोने लगता है। बिक्की बिना कुछ किए वहीं बुत सा खड़ा रहता है।)
आनंद- तू पागल हो गया है। रुक मैं अभी तेरी माँ को सब बताता हूँ। खून! खून निकलने लगा है, आंटी आंटी...
(आनंद बाहर जाता है।)
विवेक- तुमारी पतंग कट चुकी है और तुम्हारे माँझे को ममताज़ भाई ने कहीं पकड़ रखा है। अब तुम अपने पतंग कटने के दुख को भूलकर अपने मांझे को बचाने की गंदी कोशिश कर रहे हो। ममताज़ भाई का अपना परिवार है, बीवी है, एक ख़ूबसूरत बच्ची है।
बिक्की- और मैं?
विवेक- तुम कोई नहीं हो, कोई नहीं।
(माँ भीतर आती है।)
माँ- बिक्की बेटा, कितना ढूँढ़ रही थी तुझे, स्कूल को देर हो रही है।
(माँ उसे तैयार करके स्कूल भेजती है। दूसरी तरफ़ अवस्थी जी खड़े हैं।)
अवस्थी- यह देख क्रिकेट, यह खेल, वह छक्का।
(बहन आती है।)
बहन- भइया, मेरे साथ खेलो ना।
(आनंद पतंग उड़ाता दिखता है।)
आनंद- ममताज़ भाई काटा है... काटा है।
(बिक्की आनंद को फिर पत्थर मारता है। माँ वापस आती है। इस बार सब बहुत तेज़ी से करने लगते हैं।)
माँ- बिक्की बेटा, कितना ढूँढ़ रही थी तुझे, स्कूल को देर हो रही है।
(माँ उसे तैयार करके स्कूल भेजती है। दूसरी तरफ़ अवस्थी जी खड़े हैं।)
अवस्थी- यह देख क्रिकेट, यह खेल, वह छक्का।
(बहन आती है।)
बहन- भइया, मेरे साथ खेलो ना।
(आनंद पतंग उड़ाता दिखता है।)
आनंद- ममताज़ भाई काटा है... काटा है।
(बिक्की आनंद को फिर पत्थर मारता है। माँ वापस आती है। तीसरी बार में सब बहुत तेज़ी से होने लगता है। चौथी बार में बिक्की चक्कर खाकर गिर जाता है। सब चले जाते हैं और हमें... ममताज़ भाई विवेक की गोदी में लिए अपनी पंतग की दुकान में बैठे दिखते हैं। तभी माँ की लोरी की आवाज़ आती है, वह बिक्की को सुला रही हैं। ममताज़ भाई लोरी गाना शुरू करते हैं। कुछ देर में ममताज़ भाई की बेटी और आनंद उनके पास आते हैं।)
बेटी- तुम कौन हो?
विवेक- मैं कोई नहीं हूँ।
बेटी- तुम कौन हो?
विवेक- मैं कोई नहीं हूँ।
(विवेक ममताज़ भाई की गोदी से उठ जाता है। ममताज़ भाई आनंद को देखते हैं।)
ममताज़- आनंद, देखो मैंने तुम्हारे वास्ते यह काली पतंग लाल तुर्रे के साथ और यह लाल माँझा रखा है। यह आज से तुम्हारा, मेरे पतंगबाज़।
(विवेक ग़ुस्से में जाता है और पतंग फाड़कर वहाँ से चला जाता है। सभी बिक्की-बिक्की ग़ुस्से में चिल्लाने लगते हैं।)
ममताज़- बिक्की बिक्की...!!
Scene 11
(यहाँ बिक्की की नींद खुलती है। वह उठता है, उसे बग़ल में पड़ी हुई माचिस दिखाई देती है। वह उसकी एक तीली जलाता है और कुछ देर उसे देखता रहता है। फिर उठता है, चलते हुए उसे बहुत सा कचरा रास्ते में दिखता है। वह उस कचरे को उठाता चलता है। ममताज़ भाई की दुकान के पास पहुँचता है। सारा कचरा दुकान पर डालता है.. बहुत सी पतंगे गुस्से में फाड़ता है और फिर तीली जलाकर आग लगा देता है। तभी चारों तरफ से आवाज़ आती है -‘आग! आग! आग!’ बिक्की डर जाता है, वह आग बुझाने की कोशिश करता है। कुछ लोगों के इस तरफ़ आने की आवाज़ आती है, बिक्की घबरा जाता है और वहाँ से भाग जाता है।)
Scene 12
(आनंद की आवाज़ आती है- ‘बिक्की! बिक्की! बिक्की!” विवेक रेल्वे स्टेशन पर उतरता है। आनंद की मूँछे हैं.. पेट निकल आया है... बाल कम हो गए हैं। )
आनंद- लाओ सामान मुझे दे दो।
विवेक- अरे रहने दो। बस एक ही बैग़ है। रुको मैं तनु को फोन कर दूँ, मेरी बीवी।
आनंद- मैं तब तक गाड़ी लेकर आता हूँ।
विवेक- ठीक है।
आनंद- हेलो! हेलो! हाँ तनु, मैं पहुँच गया हूँ ठीक-ठाक। हाँ आनंद आ गया था लेने, वह गाड़ी लेने गया है। आनंद अजीब सा हो गया है, गंभीर, बहुत बड़ा। तनु, एक बात सच कहूँ- मैं क्या करूँगा ममताज़ भाई से मिलकर? तनु यह वैसा ही है जैसे आप बचपन के कपड़े जबरदस्ती अभी पहनने की कोशिश करो। कपड़े फट जाएँगे और कुछ भी नहीं होगा। इच्छा तो हो रही है कि शाम तक बस यहीं इसी स्टेशन पर ही बैठा रहूँ, किसी से ना मिलूँ।
आनंद- बिक्की, बिक्की!
विवेक- चलो बिक्की गाड़ी ले आया है, मैं चलता हूँ। कहाँ जाऊँगा? वहीं ममताज़ भाई की दुकान पर और क्या? बॉय! हाँ मिलने के बाद फोन करूँगा।
आनंद- बिक्की, बिक्की!
विवेक- आया।
(तभी एक और फोन आता है।)
विवेक- ओए मनोज, अरे सुन, मैं तेरे को बाद में करता हूँ। हाँ सुन, जोक्स भेजते रहियो, बाद में करता हूँ। Bye! Bye!
(विवेक बाहर जाता है। देखता है कि आनंद साइकिल लेकर आया है।)
विवेक- अबे यह क्या है?
आनंद- चल बैठ।
विवेक- अबे मैं बैठ नहीं पाऊंगा। यार टेक्सी कर लेते हैं।
आनंद- यहीं तो जाना है। आजा, चिंता मत कर।
विवेक- गिर जाऊँगा।
(विवेक बैठता है। आनंद साइकिल चलाना शुरु करता है। विवेक डरा हुआ पीछे बैठा है।)
आनंद- ठीक है?
विवेक- अरे यार, सही चलाता है तू तो। कब सीखी तूने?
आनंद- इस साइकिल पर तू पहले भी चढ़ चुका है।
विवेक- अच्छा? कब रे?
आनंद- जाने दे, तुझे याद नहीं होगा।
(कुछ दूर चलने के बाद।)
विवेक- दो मिनट साइकिल रोक।
आनंद- क्यों?
विवेक- अरे रोक तो। सुन आनंद, मैं सोच रहा था, देख मेरी इच्छा एक चाय पीने की हो रही है।
आनंद- अरे ममताज़ भाई से मिलने के बाद पी लेना।
विवेक- नहीं, अभी चाय पीते हैं।
आनंद- ठीक है। वैसे ममताज़ भाई इंतज़ार कर रहे होंगे।
विवेक- अरे चल देंगे यार। उन्हीं से मिलने मैं यहाँ इतनी दूर आया हूँ।
आनंद- ठीक है। ओए छोटू, दो कट ला।
(आनंद पेशाब का इशारा करके जाता है। छोटू चाय लेकर आता है।)
छोटू- चाय।
विवेक- एक रख दे, वह आ रहे हैं। सुन, तू पतंग उड़ाता है?
छोटू- ना।
विवेक- क्यों नहीं उड़ाता बे?
छोटू- टाइम नहीं है।
विवेक- ममताज़ भाई को जानता है?
छोटू- कौन ममताज़ भाई?
विवेक- अरे जिनकी सराफे में पतंग की सुंदर दुकान है।
छोटू- सराफे में कोई पतंग की दुकान नहीं है।
विवेक- तो उनकी पतंग की दुकान कहाँ है?
(आनंद आता है।)
आनंद- चाय दे।
(एक बार में चाय ख़त्म कर देता है।)
आनंद- चलें?
विवेक- अभी तो पतंग का मौसम हैं गाँव में। तू उड़ाता है पतंग?
आनंद- नहीं। चल ममताज़ भाई इंतज़ार कर रहे होंगे।
(दोनों साइकिल पर बैठते हैं। आनंद कुछ देर साइकिल चलाता है। विवेक उतर जाता है। उसके सामने आता है। आनंद अभी भी साइकिल चला रहा है।)
विवेक- आनंद, मैंने जो तुझे पत्थर मारा था, उसका निशान अभी भी तेरे माथे पर है। तुझे हमारे बचपन की कुछ याद है? कैसे हम लोग पतंग के पीछे भागा करते थे? वह हमारे अंग्रेज़ी टीचर, अवस्थी सर? हाँ मुझे याद आया, तेरी साइकिल पर तेरे ही खेत से आम चुराने हम जाते थे! तुझे कुछ याद है? शायद तुझे सब कुछ याद हो, मुझे कुछ भी याद नहीं है... कुछ भी नहीं। तू बहुत बड़ा हो गया है। यह गाँव पूरी तरह बदल गया है, कुछ भी वैसा नहीं रहा। मैं, मैं विवेक हो गया हूँ। बिक्की बहुत पहले जल चुका है।
(विवेक वापस साइकिल पर बैठता है।)
विवेक- अरे यह तो अवस्थी जी का घर है? जहाँ सबसे ज़्यादा पतंग कट के जाया करती थी?
आनंद- हाँ, अब यहाँ एक मॉल बन रहा है।
विवेक- मॉल और यहाँ?
आनंद- हाँ, मॉल और यहाँ। तू वापस कब जा रहा है?
विवेक- आज शाम की ट्रेन है।
आनंद- कुछ दिन रुक जाता?
विवेक- असल में, यार तुझे तो पता है...
आनंद- जाने दे, तू आ गया यह क्या कम है।
(एक जगह आकर आनंद अपनी साइकिल रोकता है।)
विवेक- अरे यह ममताज़ भाई का घर नहीं है।
आनंद- अब ममताज़ भाई यहीं रहते हैं। मैं साइकिल खड़ी करके आता हूँ। तुम जाओ अंदर।
Scene 13
(विवेक वहीं खड़ा रहता है। बहुत धीमी आवाज़ लगाता है।)
विवेक- ममताज़ भाई! ममताज़ भाई!
(आनंद वापस आता है।)
आनंद- अरे तुम यहीं खड़े हो! चलो आ जाओ। ममताज़ भाई, बिक्की आ गया। ममताज़ भाई, आ जाओ।
(विवेक वहीं खड़ा रहता है। आनंद अंदर चला जाता है।)
आनंद- अरे ममताज़ भाई, यह क्या पहन लिया आपने? अरे! क्या बचपना है? बिक्की, तुम रुको वहीं, ममताज़ भाई बाहर आ रहे हैं।
(भीतर से खटर-पटर की आवाज़ आती है। विवेक थोड़ा सहम जाता है। वह देखता है कि उसकी बहन भीतर से भागती हुई बाहर निकलती है। उसके पीछे बिक्की निकलता है। बहन के हाथ में पतंग है। बिक्की उससे अपनी पतंग वापस देने के लिए बोलता है।)
बहन- ले ले... आ जा ले।
बिक्की- पतंग वापस दे।
बहन- तू पास आया तो फाड़ दूँगी, दूर रह।
बिक्की- दे पतंग।
(दोनों में लड़ाई होती है और पतंग फट जाती है। दोनों फटी हुई पतंग को आश्चर्य से देखते हैं, मानो पहली बार पतंग फटी हो। फिर दोनों घूमकर विवेक को देखते हैं, जो उन्हें देख रहा है। बिक्की और बहन धीरे-धीरे खिसकते हुए एक कोने में जाते हैं, तभी आनंद ममताज़ भाई को लेकर प्रवेश करता है। वह ममताज़ भाई को धीरे-धीरे सँभालते हुए बाहर लाता है। ममताज़ भाई बहुत बूढ़े और दुबले हो चुके हैं, उनकी दाढ़ी बढ़ गई है बहुत। लेकिन उन्होंने वही कपड़े पहने हैं- सफ़ेद लंबे कॉलर वाली शर्ट, सफ़ेद बेलबॉटम पैंट, और सफ़ेद बड़ी हील के जूते बस सारी चीज़े पीली पड़ गई हैं। वह आनंद को वहीं रुकने को कहते हैं और वह धीरे-धीरे चलते हुए विवेक के पास आते हैं। उसके सामने खड़े होकर पहले उसे देखते हैं।)
ममताज़- क्या मियाँ? क्या ख़याल है?
विवेक- जी?
ममताज़- क्या ख़याल हैं मियाँ?
(विवेक कोई जवाब नहीं दे पाता है।)
आनंद- इनके ख़याल दुरुस्त हैं ममताज़ भाई।
विवेक- हाँ, ख़याल दुरुस्त हैं ममताज़ भाई, ख़याल दुरुस्त हैं।
ममताज़- अरे मियाँ क्या बात है! तुम तो बिलकुल नहीं बदले। बस थोड़ा वज़न बढ़ा लिया है अपना।
विवेक- जी!
ममताज़- अरे आनंद, ज़रा बैठने की व्यवस्था करो मियाँ, इतनी दूर से आए हैं, बिक्की मियाँ थक गए होंगे।
(आनंद भीतर जाकर एक खाट ले आता है और एक टिन का डिब्बा जिस पर उसे बैठने का इशारा करता है।)
विवेक- अरे ममताज़ भाई, अंदर ही चलकर बैठते हैं।
ममताज़- अरे वहाँ कहाँ अँधेरी कोठरी में बैठोगे। यहाँ आँगन में बैठते हैं, खुले में। आनंद, ज़रा बज़ार से जलेबियाँ उठा लाओ कुछ।
विवेक- ममताज़ भाई, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।
(आनंद चला जाता है।)
ममताज़- मुँह तो मीठा कर लो, फिर बातें करेंगे।
विवेक- ममताज़ भाई, आप तो बिल्कुल नहीं बदले, आप बिलकुल वैसे ही...
ममताज़- बदल गया हूँ मियाँ, बहुत बदल गया हूँ। इन हड्डियों पर यूँ समझो कि चमड़ी लपेटे घूम रहा हूँ। अपनी पतंग बहुत झोल खा रही है मियां, कभी भी टूट जाएगी। बैठो मियाँ।
विवेक- घर में और कोई नहीं है?
ममताज़- नहीं। तो शादी हो गई तुम्हारी?
विवेक- हाँ। तनु है उसका नाम। बंबई की लड़की है, अच्छी है।
ममताज़- अच्छी ही होगी मियाँ, हमारे बिक्की की जो पसंद है। ख़ुश हो?
विवेक- हाँ, बहुत ख़ुश हूँ।
ममताज़- पतंग उड़ाते हो मियाँ कभी-कभी?
(विवेक चुप हो जाता है। ममताज़ भाई उसे देखते रहते हैं। वह चुप रहता है।)
बिक्की- पतंग के बारे में क्या कहूँ ममताज़ भाई! एक शाप की तरह वह मेरे जीवन से चिपकी हुई है। जब भी रास्ते में, बाज़ार में, आसमान में पतंग को उड़ते हुए देखता हूँ तो आप ही याद आते हो। आप, मेरे ममताज़ भाई, और याद आता है अपना पूरा बचपन। लानत है मुझ पर कि मैं किसी को भी नहीं बता पाया कि मेरा एक गाँव है, और उस गाँव में मेरे एक ममताज़ भाई हैं, जो इस दुनिया के सबसे बड़े पतंगबाज़ हैं।
विवेक- नहीं ममताज़ भाई, पतंग कहाँ उड़ा पाता हूँ, समय ही नहीं मिलता। बंबई तो आप जानते ही हैं, रोटी की दौड़ में ही सारा समय कट जाता है।
ममताज़- रोटी नहीं मियाँ, ब्रेड और बटर में। हाँ, वैसे भी पतंग तो आसमान की बात है, ज़मीन पर भागते रहने से आसमान की सुध कोई कैसे ले सकता है?
विवेक- आपकी पतंगबाज़ी कैसी चल रही है?
ममताज़- मियाँ पतंगबाज़ी कभी की जीवन से नदारद है। पतंगबाज़ी का क़िस्सा तो उसी दिन तमाम हो गया था जिस दिन अपनी दुकान जली थी। भाई की साइकिल की दुकान पर काम कर-कर के पूरा कर्ज़ा उतारा मियाँ। दिमाग़ में पतंग हाथ में मडगार्ड, हा हा हा! साइकिल की दुकान में मन नहीं लगा कभी। सोचा था धीरे-धीरे पैसे जमा करूँगा और फिर से पतंग की दुकान खोलूँगा? आज तक उसी की प्लानिंग कर रिया हूँ। मियाँ, यह पतंगबाज़ी ऐसी बला है कि छूटे नहीं छूटती, पर खोलूँगा मियाँ। ख़ुदा हाफिज़ करने से पहले पतंग की दुकान खुलेगी। तुम आना आपनी बीवी-बच्चों के साथ पतंग लेने। बेहतरीन काली पतंग दूँगा लाल तुर्रे वाली।
(ममताज़ भाई ख़ाँसना चालू करते हैं। विवेक उन्हें लिटा देता है।)
विवेक- पानी लाऊँ?
(ममताज़ भाई मना कर देते हैं। विवेक का फोन बजता है।)
विवेक- हेलो! मनोज बोल, हाँ। अबे मैं बंबई में नहीं हूँ। अपने गाँव आया हुआ हूँ। नहीं, अभी जोक नहीं सुन सकता। सुन ना, नहीं सुन सकता हूँ जोक भाई। नहीं, मैं फ़िल्म देखने भी नहीं आ पाऊँगा। अबे बंबई में नहीं हूँ तो कैसे आऊँगा फ़िल्म देखने। तनु को घर पर फोन करके पूछ ले। गाँव आया हुआ हूँ, ऐसे ही। अबे कोई प्रॉपर्टी बेचने नहीं आया, यूँ ही आया था। मैं तुझसे बाद में बात करता हूँ, बाद में। अरे तू समझ नहीं रहा है, बाद में। अच्छा सुना एक जोक, जल्दी सुना।
(विवेक जोक सुनने लगता है। तभी आनंद आता है। वह जलेबियाँ रखकर भीतर से पानी लाता है। ममताज़ भाई की ख़ाँसी थोड़ी रुक जाती है। विवेक अभी भी फोन पर है।)
विवेक- सुन, तू sms कर दे। मैं पढ़ लूँगा। अरे बहुत लंबा जोक है, ख़त्म हो गया? अच्छा था, बाय! ठीक है sms कर दे। बाद में बात करता हूँ।
(आनंद से) Sorry! इनको अचानक ख़ाँसी आ गई तो मैंने पूछा था पानी के बारे में, पर इन्होंने मना कर दिया।
आनंद- लो जलेबी खा लो।
(विवेक एक जलेबी लेता है और ममताज़ भाई के बग़ल में बैठ जाता है।)
आनंद- लीजिए, जलेबियाँ। गरम-गरम हैं, चख लें।
(ममताज़ भाई उठके बैठ जाते हैं।)
ममताज़- अरे यह ज़ालिम जलेबियाँ, इन्हीं का आसरा है। वाह!
(तभी ममताज़ भाई विवेक का हाथ पकड़ लेते हैं। उसे जलेबी खाने से रोक देते हैं।)
ममताज़- रुको मियाँ, वह जली हुई है।
विवेक- क्या?
ममताज़- जली हुई है वह जलेबी, यह खाओ।
(विवेक वह जलेबी खा लेता है।)
बिक्की- विवेक, तुम्हें जलने की बदबू नहीं आ रही है?
विवेक- अरे अजीब-सी जलने की बदबू आ रही है।
आनंद- यहाँ पीछे किसी ने कूड़े में आग लगा दी होगी।
विवेक- अच्छा! अजीब सी घबराहट हो रही है इस बदबू से...
आनंद- अभी कुछ देर में चली जाएगी।
विवेक- हाँ, रुक मैं देखकर आता हूँ।
ममताज़- तू आ गया मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या कहा था आनंद मियाँ, एक फोन करोगे भागा हुआ आएगा मेरा पतंगबाज़।
आनंद- हाँ ममताज़ भाई।
ममताज़- जब मैं बहुत छोटा था ना, तब मैं पतंग के पीछे पगलाया फिरता था, पर मियाँ यक़ीन करो, कभी उड़ा नहीं पाया, कभी नहीं। अब्बा की साइकिल की दुकान पर काम करता था। और अब्बा ऐसे कि एक बार देख लें, मैं वहीं मूत देता था। जब छोटा था तो सिर्फ़ पंचर बनाना जानता था, फिर धीरे-धीरे मडगार्ड लगाना, स्पोक बनाना सीखा। और जैसे ही पूरी साइकिल बनाना आया तब तक मैं बड़ा हो चुका था। तब तक मेरी पतंग उड़ाने की इच्छा भी मेरी तरह जवान हो चुकी थी। अब्बा ने मेरी जवानी देखकर मेरी शादी कर दी। सुहाग रात के दिन मैं अपनी बेग़म से दूर बैठा था। मेरी बेग़म बहुत इस्मार्ट थी मियाँ! बहुत देर के इंतज़ार के बाद उसने पूछ लिया- ‘क्या चाहते हो मियाँ?’ पहली बार ज़िदग़ी में किसी ने मुझसे पूछा था- ‘क्या चाहते हो मियाँ?’ मैंने कहाँ- ‘पतंग! पतंग और सिर्फ़ पतंग।’
(बिक्की ममताज़ भाई के बग़ल में जाकर बैठ जाता है। विवेक दूर ही खड़ा रहता है। धीरे से विवेक जाकर बिक्की की जगह बैठ जाता है और बिक्की उस जगह से हट जाता है।)
ममताज़- यह मियाँ मुझे अपने बचपन की याद दिलाते थे, जैसा पतंग के पीछे मैं पागल था, यह भी वैसे ही पगले थे। बहुत दिनों से पतंगबाज़ी की बड़ी इच्छा हो रही थी, तो तेरी याद आ गई। आनंद से कहा कि ‘देख पता तो कर मेरा पतंगबाज़ कहाँ है’, और यह देख तू मेरे सामने बैठा है।
आनंद- हाँ ममताज़ भाई।
ममताज़- पतंग उड़ाएँ?
विवेक- क्या?
ममताज़- पतंग उड़ाएँ अभी?
विवेक- इस वक़्त?
ममताज़- हाँ।
आनंद- ममताज़ भाई ने काली पतंग लाल तुर्रे के साथ मँगवा कर रखी हुई है तेरे लिए।
विवेक- चलो ममताज़ भाई, अ अ, उड़ाते हैं।
ममताज़- रुक मैं ज़रा कपड़े बदल लूँ। इस बुढ़ापे में इन कपड़ों में ज़्यादा देर रहा नहीं जाता। मैं अभी आया।
आनंद- धीरे, आराम से...
ममताज़- अरे तू बैठ मैं चला जाऊँगा। अभी पतंग में जोते भी बाँधने हैं। आया मैं।
(ममताज़ भाई अंदर चले जाते हैं। विवेक टहलने लगता है। वह बार-बार बिक्की को देखता है। बिक्की ममताज़ भाई के पीछे-पीछे चला जाता है।)
आनंद- बहुत चाहते हैं तुझे ममताज़ भाई।
विवेक- हाँ यार, मुझे बड़ी घबराहट हो रही है। यह जलने की बदबू जा ही नहीं रही है।
आनंद- मुँह धो ले। मुझे तो नहीं आ रही है बदबू।
विवेक- यहीं कहीं, आस-पास ही कहीं से...
आनंद- छोड़ ना।
विवेक- सुन, मैं जाना चाहता हूँ।
आनंद- क्या? कहाँ?
विवेक- वापस, स्टेशन...
आनंद- मतलब? अभी टाइम है तेरी ट्रेन में!
विवेक- सुन, तू बस मुझे स्टेशन पर छोड़ दे। मैं जाना चाहता हूँ, मैं जाना चाहता हूँ।
आनंद- अरे ममताज़ भाई क्या सोचेंगे! कुछ देर...
विवेक- नहीं, अभी इसी वक़्त मुझे जाना है। मैं जाना चाहता हूँ। चल वरना मैं चला जाऊँगा।
(आनंद कुछ देर रुकता है। एक बार ममताज़ भाई का दरवाज़ा देखता है। एक बार विवेक की तरफ़ देखता है।)
आनंद- चल।
(Black Out)
Scene 14
(विवेक स्टेशन पर अकेला बैठा हुआ है। कुछ चाय वाले, अख़बार वाले निकलते हैं। वह बहुत बोर हो रहा है। वह तनु को फोन लगाता है।)
विवेक- तनु, हेलो! कैसी हो? स्टेशन पर हूँ। हाँ मिल लिया ममताज़ भाई से। अच्छे हैं वह। हाँ आनंद भी ठीक है। बस... हाँ मलतब बस मिल लिया और क्या होगा? कोई ख़ास बात नहीं हुई, बस यहाँ-वहाँ की, ऐसे ही। तुम ठीक हो? मैं ठीक हूँ भाई (चिल्ला देता है।) चलो सुबह मिलता हूँ। ओके bye!
(फोन काटने के बाद कुछ देर बैठा रहता है। फिर मनोज को फोन करता है।)
विवेक- हाँ बे मनोज, अब सुना तेरा जोक, उस समय थोड़ा बिज़ी था। अबे सुना ना! अच्छा नया है? सुना, अच्छा अच्छा! हा हा हा हा हा हा...
(विवेक ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगता है। उसकी हँसी बढ़ती जाती है और धीरे-धीरे अँधेरा हो जाता है।)
(Black Out)
THE END