शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

“हाथ का आया?... शून्य।“

























































हाथ का आया शून्य!







लेखक- मानव कौल
























Scene 0
    
(तीसरी घंटी बजते ही जैसे ही हाउस लाइट जाने को होती है। दर्शकों में बैठा अरुन अपनी जगह से उठता है और दूसरी तरफ़ बैठी हुई लड़की शशी को आवाज़ लगाता है।)
अरुन- अरे शशी! शशी! (शशी के अगल बगल वालों से) अरे भाईसाब, वह जो साड़ी में हैं, वह, शशी! अरे मैंने तुम्हारे लिए यहाँ जगह रोकी है, शशी इधर, शशी!
(शशी पलटकर नहीं देखती है। (Black Out) हो जाता है। (Black Out) में अरुन की आवाज़ आती है- वह मेरे साथ नहीं बैठी है।”) और नाटक शुरू हो जाता है।
(Black Out)


Scene 1

(हमें लोरी की आवाज़ सुनाई देती है। निधी और पूरब, पति पत्नी हैं.. एक सभ्य समाज के चित्र सा सभ्य और हंसमुख जोड़ा।  एक बक्सा खोल रहे है। निधी लोरी गा रही है। वह दोनों धीरे-धीर सामान निकालते हैं, उस बक्से से कुछ कप, प्लेट्स निकलती हैं।)
(एक जोकर दरवाज़ा खटकटाकर प्रवेश करता है। निधी और पूरब उसे आश्चर्य से देखते हैं।)
जोकर- Goooooooood Moooorning Sir! Madam! How are you? Hope you are fine. HAVE A GREAT DAY… BE HAAAAPY & STAY HAAAAPY… BYE! BYE!
(यह कहकर वह चला जाता है। निधी और पूरब एक-दूसरे को देखते रहते हैं।)
(Black Out)

Scene 2
(सर्कस मल्टीनेश्नल का बॉस जो कि बहुत ऊपर कहीं बैठा है, जोकर की सुंदर वेशभूषा में है किसी डॉन जैसा।)

बॉस- कहानी जो कभी ख़त्म नहीं होती, एक और कहानी। हाँ यही है, इसी का तो इंतज़ार था। हज़ारों तरीक़े से जी लेने के बाद यह था असल जो जीना था। इसे जी लो, फिर बस, ख़त्म! इसके बाद सो जाना, चुप हो जाना, इसे सह लो, कह लो, यही है वह।
नहीं, यह नहीं है, वापस शून्य, कुछ ओर है, वह कहीं और है, यह नहीं है। हाँ यह वाली, इसे ही जीना है, कहना है, कह देता हूँ, यही तो है वह जिसका इंतज़ार था। यही है, इसे कह लूँ, फिर बस, कोई नया शब्द नहीं, कोई दूसरे अर्थ नहीं। सब चुप, सो जाना, आँखें बंद कर लेना, फिर कुछ नहीं कहना, जीना, सहना। अरे ना! फिर शून्य! यह कहाँ, यह तो बहुत ही, ना ना ना इसमें तो कुछ नहीं है, मांस नहीं है, कुछ चबाने को भी नहीं है। कब से जी रहा हूँ? चालीस साल! पचास साल! फिर भी पहचाना जाता हूँ। लोग शुरू से पहचान लेते हैं, देखते ही नाम से पुकार लेते हैं। मैं बदला नहीं। पैदा होने के बाद से वैसा का वैसा ही हूँ। यह देखो इसके बाद बदलूँगा, यही है वह, इसे जी लूँ बस। लोग देखेंगे, कहेंगे, यह वह नहीं है। मैं भी चुप रहूँगा, कहूँगा, ऐसा ही तो जीना था, यही है वह, इसे ही कह लूँ, सह लूँ, जी लूँ, फिर चुप, सो जाऊँगा, चुप हो जाऊँगा, कोई नया शब्द नहीं, कोई दूसरे अर्थ नहीं, बस यह, एक बार, बस एक बार जी लूँ। ना, यह तो वही है, वही, वैसा का वैसा। फिर लोगों ने मुझे पहचान लिया, मैं वही हूँ, बदला नहीं, हर बार पहचाना जाता हूँ। फिर-दोबारा-वापस शून्य! शून्य! शून्य!
शून्य की परिधि‍ पर भागता रहता हूँ। परिधि को लाँघते ही प्लस वन पर पहुँच जाता हूँ। वहाँ पहुँचते ही अंकों के जाल में फँस जाता हूँ। प्लस वन, +5, +15, +85, +100 पर जितना भी आगे बढ़ता जाता हूँ, उतना ही माइनस वन, -5, -15, -85, -100 दिमाग़ में घूमता रहता है। यह क्या है, positive में जाते ही negative दिमाग़ में घर बना लेता है। मैं भागकर वापस शून्य की परिधि पर चक्कर लगाने लगता हूँ। भागते रहने से एक महात्मा दिखता है। वह कहता है शून्य के आगे-पीछे भागते रहोगे तो हमेशा प्लस-माइनस में फँसे रहोगे। शून्य के ऊपर नीचे देखो पूरा संसार फैला पड़ा है। मैं खुद को गाली देता हूँ कि मैंने पहले यह क्यों नहीं सोचा! अरे पर वहाँ तो अँधेरा है, अननोन है।तब तक महात्मा जी ग़ायब हो चुके हैं। मैं अननोन में कदम बढ़ाने जाता हूँ तो फँस जाता हूँ, वहाँ तो भीड़ है, धर्म, कॉन्सेप्ट, नियम, भगवान, इंसान से वह भरा पड़ा है। अननोन में कुछ भी अननोन नहीं है। मैं भागकर वापस शून्य पर आ जाता हूँ।

Scene 3

(निधी और पूरब बैठे हैं। वही जोकर भीतर प्रवेश करता है। दोनों उसे देखते रहते हैं।)
जोकर- Goooooooood Moooorning Sir! Madam! How are you? Hope you are fine. HAVE A GREAT DAY… BE HAAAAPY & STAY HAAAAPY… BYE! BYE!
पूरब- अरे ऐ! ओए सुनो!
निधी- अजीब है!
पूरब- अगली बार आने दो।
निधी- रोज़ यही कहते हो।
पूरब- क्यों यह रोज़ नौ बजे चला आता है...
(Black Out)

Scene 4

(अरुन और शशी जो कि दर्शकों के बीच बैठे हैं और बात-चीत ऐसे ही शुरू होती है मानो वे दर्शक ही हों। अरुन और शशी दूर-दूर बैठे हैं।)
अरुन- वह मेरे साथ नहीं बैठी है। वह दूर है। कितनी दूर है? हम दोनों के बीच कितने लोगों का फासला है? कितने लोग- एक, दो, तीन, चार, पांच, सात, दस? वह आप दस लोगों के उस तरफ़ है, सिर्फ़ दस लोग। बस, इतनी सी दूरी वह तय नहीं कर पाई।
(वह भागता हुआ लोगों के बीच से उसके पास पहुँचता है। उसके सामने बैठ जाता है, पर वह उसे नहीं देख पाती। वह लगातार नाटक देख रही होती है।)
मैं नहीं देख पा रहा हूँ सामने क्या हो रहा है। तुम यहाँ क्यों बैठी हो? चलो मेरे साथ वहाँ। मत बात करना मुझसे। मैं तुमसे कुछ भी नहीं पूछूँगा, पर हम यूँ अलग नहीं बैठ सकते हैं, चलो।
(अचानक वह रुक जाता है। खड़ा होता है। और वापस अपनी जगह वापिस चला जाता है।)

Scene 5

(पूरब बाहर से अख़बार लेकर अंदर आते हैं।)
पूरब- अरे निधी जी! निधी जी! मिल गया अख़बार। चाय ले आओ।
निधी- अजीब हरकतें हो रही हैं आजकल? कहाँ मिला पूरब जी?
पूरब- किसी बच्चे की कारिस्तानी थी शायद। पढ़कर बाहर फेंक दिया था। चाय ले आओ।
निधी- गरम करने रखी है। क्या लिख रहे हो?
पूरब- लिखा है कि अगर अख़बार पढ़ना है तो आपका स्वागत है। इसे बाहर चिपका दूँगा।
निधी- क्यों उसे शर्मिंदा कर रहे हो।
पूरब- चाय समेत, चाय समेत आपका स्वागत है। अब मैं सबका ऐसे ही स्वागत करूँगा।
निधी- मैं नहीं बनाऊँगी किसी के लिए चाय। इसे पढ़कर अगर पूरा मोहल्ला आ गया तो?
पूरब- निधी जी आप ऐसा क्यों सोचती हैं कि यह पूरे मोहल्ले वाले आपसे चाय बनवाना चाहते हैं।
(निधी अंदर चाय लेने चली जाती हैं। तभी घंटी बजती है।)
पूरब- कितना बज गया?
निधी- ठीक नौ।
(पूरब अंदर से एक डंडा निकालकर लेकर आता है।
(वही जोकर सूट-टाई पहने अंदर आता है। उसके चहरे पर मुस्कुराहट है। वह अपना सूटकेस नीचे रखता है। दोनों को कुछ देर मुस्कुराता हुआ देखता है। अति-उत्साह में अपनी बात शुरू करता है।)
जोकर- Goooooooood Moooorning Madam! How are you? Hope you are fine.
(पूरब और निधी उसे देखते रहते है। कुछ देर वह मुस्कुराता हुआ खड़ा रहता है। फिर वापस उसी सुर में शुरू करता है।)
जोकर- HAVE A GREAT DAY… BE HAAAAPY & STAY HAAAAPY… BYE! BYE!
(तभी निधी उठती है।)
निधी- ऐ ऐ रुको, यह सब क्या है? क्या है यह?
जोकर- क्या मैडम! कुछ problem है?
निधी- problem? यह देखिए क्या पूछ रहा है कि कोई problem है।
पूरब- मैं समझाता हूँ। देखो भाई तुम रोज़ सुबह नो बजे चले आते हो। जबकि हमने तुम्हें बुलाया नहीं है। है ना? तो यह तो ग़लत है ना?
जोकर- इसमें क्या ग़लत है सर?
निधी- इसमें क्या ग़लत है? अरे, सुनो! हम पुलिस को फोन कर देंगे।
जोकर- जी बिल्कुल कर दीजिए।
पूरब- पुलिस...!
जोकर- जी।
निधी- तुम्हें डर नहीं लगता पुलिस से?
जोकर- क्यों लगेगा... ? आप क्या कहेंगे पुलिस से कि मैं क्या करता हूँ
? क्या मैं चोरी करने आता हूँ?
पूरब- अरे! नहीं नहीं।
जोकर- क्या मैं आपको जबरदस्ती कुछ बेच रहा हूँ?
पूरब- नहीं भाई।
जोकर- देखिए मेरा तो सूटकेस भी ख़ाली है।
निधी- अरे! तो तुम यहाँ क्या करने आते हो?
जोकर- आपका दिन अच्छा करने। एक सुंदर मुस्कुराहट के साथ यह कहने कि “Have a nice day…” अब इस बात के लिए क्या आप मुझे जेल में ठूस देंगे?
पूरब- अरे नहीं भाई। सुनो, चाय बन गई है, आओ एक चाय पी लो। आओ बैठो। (निधी से) अरे सुनो, इनके लिए एक चाय ले आओ।
निधी- जी, सॉरी! हम समझे आप... बिस्कुट भी लाती हूँ।

Scene 6
(अरुन अपनी जगह वापस आ चुका है। शशी को देखते हुए।)
अरुन- वह कैसे यहाँ आती? मैं सोच रहा था मुझे उसके पास जाना चाहिए। मैं बस सोच रहा था, मैं वहाँ गया ही नहीं। मैं वहाँ नहीं गया उससे कहने कि चलो.. यहाँ मेरे साथ चलकर बैठो। मैं यहीं से उसे ताकता रहा।
(कुछ देर उसको देखते हुए।)
कोई नहीं बता सकता कि वह इस वक़्त क्या सोच रही है? उसे पता है मैं यहाँ हूँ। उसने मुझे देख भी लिया है शायद। पर चहरे पर कोई हरक़त नहीं है। जब हम कभी कैफ़े में मिला करते थे तो मैं छुपकर उसे मेरा इंतज़ार करता हुआ देखता था। मजाल है कि किसी को पता चल जाए कि वह किसी का इंतज़ार कर रही है। उसका चहरा देखकर कभी पता नहीं चलता कि वह क्या सोच रही है? वह कहती है कि मैं बहुत ज़्यादा प्रकट हूँ। मुझे तुम्हें इतना नहीं जानना है। वरना मैं बोर हो जाऊँगी। वह बोर हो चुकी है मुझसे... बोर।
वह बहुत सुंदर है। बहुत कुछ मेरी माँ जैसी लगती है। हाँ, पर अगर उसने सुन लिया तो चिढ़ जाएगी। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब मैं उसे कहता हूँ कि तुम बिल्कुल मेरी माँ जैसी लगती हो। सुंदर! मेरे लिए तो सुंदर is equal to माँ ही है। माँ जैसी सुंदर। हा हा हा।
लड़की- shut up!
अरुन- उसने सुन लिया क्या, shit! सुन लिया ना, सुना उसने... है ना? ओह नो! शिट!
शशी- Just shut up!
(Black Out)


Scene 7

(जोकर कुछ देर तक दोनों की तस्वीरे खींचता है.. दोनों अलग-अलग पोज़ बनाते हैं। फिर कैमरा रखकर।)
जोकर- जी बहुत मज़ा आया आप लोगों के साथ, कितने सुंदर हैं आप लोग। लेकिन बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि यह मेरा आख़ि‍री दिन है, अब से मैं नहीं आऊँगा।
पूरब- अरे! ऐसे कैसे? आप क्यों नहीं आएँगे? हम आपको पसंद करते हैं। आप हमें पसंद करते हैं। सुबह नौ बजे हम एक-दूसरे को “have a nice day” पिछले एक साल से कह रहे हैं। भई अब क्यों नहीं आएँगे?
निधी- क्या आपकी शादी तय हो गई है?
जोकर- ना।
निधी- ट्रांसफ़र?
जोकर- ना।
निधी- हमसे कोई ग़लती हो गई?
जोकर- ना। हमारी कंपनी ने अब डोर-टु-डोर सर्विस बंद कर दी है।
निधी- क्या? कंपनी?
जोकर- जी, अब अगर आपको ‘have a nice day’ कहना है तो आप सुबह नौ बजे हमारे ऑफ़ि‍स आकर कह सकते हैं। यह रहा मेरा कार्ड। उसी में पता लिखा है। यहीं तीन सड़क छोड़कर है हमारा ऑफ़ि‍स।
निधी- हम क्यों ऑफ़ि‍स आकर ‘have a nice day’ कहेंगे? ना, हम नहीं आएँगे।
पूरब- हाँ भाई हम क्यों आएँगे?
जोकर- जी, जैसी आपकी मर्ज़ी। वैसे सुबह walk करते हुए आप आ सकते हैं।
निधी- नहीं, हम नहीं आएँगे।
पूरब- ना, हम क्यों walk करें?
जोकर- कार्ड के पीछे देखिएगा। अगर आप walk करते हुए अपने कुछ दोस्तों को भी ‘have a nice day’ करने के लिए लाएँगे, तो आपको स्पेशल प्राइज़ मिलेगा।
निधी- अरे! कहा ना हमें नहीं आना है।
पूरब- नहीं आएँगे हम।
जोकर- Ok Sir! HAVE A GREAT DAY… BE HAAAAPY & STAY HAAAAPY… BYE! BYE!
(पूरब जोकर का कार्ड उठाता है उसे फेंकने को होता है पर फेंक नहीं पाता। निधी को देता है। निधी फाड़ना चाहती है पर फाड़ नहीं पाती। उसे अपने बग़ल में रख लेती है।)

Scene 8

(एक जोकर शशी के बग़ल में बैठा हुआ है। कभी उसके गाल कभी उसके बालों को छूता रहता है।)
शशी- जब बचपन में माँ मेरे बाल बनाया करती थी तो हमेशा उन लड़कों की बात करती थी जिनकी मैं संभावित पत्नी हो सकती थी। उन लड़कों में राजा, राजकुमार से लेकर फिल्म अभिनेता, अफ़सर सब आते-जाते रहते थे। हर दिन माँ को पिछले दिन से बेहतर कोई मिल जाता। उनको नकुल-सहदेव या भरत-शत्रुघन से बहुत चिढ़ थी। बार-बार कहती थी नकुल-सहदेव, भरत-शत्रुघन से बचना। शादी करना तो अर्जुन से या राम से। बस, सीधी बात। ऐ क्या कर रहे हो? प्लीज़ मत करो। अरे! don’t touch me…!
(जोकर अपना हाथ हटा लेता है। यह देखकर अरुन खड़ा हो जाता है।)
अरुन- ऐ क्या कर रहा है? ऐ क्या कर रहा है।?
जोकर- यह कौन है?
अरुन- तू कौन है? ? यह कौन है?
जोकर- तू कौन है?
अरुन- तू कौन है? यह है कौन?
जोकर- यह कौन है?
अरुन- मैं? अरे यह क्या कर रहा है? छोड़ उसको, छोड़। शशी... शशी...
(तभी जोकर अपना एक छोटा एक्ट करता है। जिस पर शशी हँस पड़ती है, पर अरुन उन्हें देखते हुए अपनी जगह वापस चला जाता है। जोकर उसे कुछ गिफ़्ट करता है। शशी के साथ नाचना शुरू करता है। नाचते-नाचते दोनों स्टेज पर जाने लगते हैं कि शशी मना कर देती है।)
शशी- नहीं, मैं नाटक देखने आई हूँ। मैं नाटक देखने आई हूँ। वह बहुत अच्छा गाता है, सुंदर।
मैं वहाँ (मंच पर) नहीं जा सकती। वह झूठ है। सरासर झूठ। यह सब लोग कुछ और जीने की कोशिश कर रहे हैं, जो वह नहीं है। और हम लोग वही जी रहे है जो हम हैं। फिर भी हम उन्हें देखने आते है, हर बार। मैं उस तरफ़ नहीं जा सकती। नहीं। मैं इस तरफ़ के नाटक ज़्यादा बहतर हैं। पर क्या मैं खेल रही हूँ? क्या मैं खेल रही हूँ?
अरुन- मैं हरामी हूँ? कूड़ा भरा है मेरे दिमाग़ में? मैं नहीं देख सकता यह? तुम वहाँ क्यों बैठी हो? क्या करण है?
शशी- क्या कारण चाहिए तुम्हें?
अरुन- तुम यहाँ आ जाओ, मेरे पास।
शशी- तुम यहाँ क्यों नहीं आते?
अरुन- मैं नहीं आ सकता वहाँ।
शशी- मैं वहाँ आ सकती हूँ। मैं जानती हूँ। तुमने मेरे लिए एक जगह भी रोक रखी है। मेरे बग़ल में भी एक जगह ख़ाली है। और तुम्हें इसी बात की तक़लीफ़ है कि यहाँ कोई भी आकर बैठ सकता है।
अरुन- क्या मैं खेल रहा हूँ?
शशी- हा हा हा हा... मैं थक गई हूँ। मुझे वही कहानी बार-बार नहीं सुननी है।
अरुन- काश यह कहानी नहीं होती! नहीं, यह नाटक होता- नाटक। और मैं अपना पात्र चुन सकता। काश मैं तुम्हें चुन सकता।
शशी- काश मैं तुम्हें चुन सकती।
अरुन- मैं तुम्हें बचपन से जानता हूँ, हमने एक-दूसरे को बड़ा होते देखा है। फिर अब हम अलग-अलग क्यों बैठे हैं?
शशी- बचपन खेल नहीं था। है ना? जबकि हम खेल रहे थे। क्या हम अभी भी खेल रहे हैं?
(Black Out)


Scene 9

निधी- जी हेलो! सर्कस मल्टिनेशन! हेलो! हेलो! जी हाँ मैं बोल रहा हूँ। हाँ हाँ। Good morning… जी! हाँ भाई। Have a nice day! Be happy, stay happy जी! मेरे पति walk पर चले गए। ‘WALK पर’... वह अपने साथ अपने कुछ दोस्तों को भी लेकर गए हैं ‘WALK’ करने। समझी आप! अरे Walk... Walk... ओफ़्फ़ो! अजी हम वह कॉन्ट्रैक्ट साइन करने को तैयार हैं। हाँ, हमें Free Gift मिलेगा ना? जी धन्यवाद! वह बस वहाँ पहुँचते ही होंगे। जी ओके जी! Have a nice day… जी Be happy, stay happy…!

Scene 10
(अमल, विमल और कमल तीनों भागते हुए आते हैं। एक लाइन में और टिकट खरीदते हैं। इसमें अमल, विमल, कमल तीनों जोकर है। जो बाक़ी कहानि‍यों में भी आते-जाते रहते हैं। इन्हें अलग भी किया जा सकता है।)
अमल- मैं अमल, एक 9.30 की लोकल का टिकिट देना।
विमल- मैं विमल, एक 9.35 की लोकल का टिकिट देना।
कमल- मैं कमल, एक 9.40 की लोकल का टिकिट देना।
(तीनों एक अजीब सा डांस करते हुए एक साथ आकर प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े हो जाते हैं।)
अमल- मेरी नौकरी पक्की है।
विमल- मेरी नौकरी भी पक्की है।
कमल- हाँ हाँ, मेरी नौकरी... पक्की है।
अमल- क्योंकि आज मैंने रास्ते में एक अर्थी देखी। ये शुभ है।
विमल- बस! क्योंकि आज मैंने एक गर्भवति महिला की अर्थी देखी। ये बहुत शुभ है।
कमल- बस! क्योंकि आज मैंने एक परिवार देखा। जो कभी भी मर सकता है। अति शुभ है।
(तीनों फिर एक तरह का डांस करते हैं और ट्रेन में चढ़ जाते हैं। ट्रेन में...)
अमल- कंपनी बहुत बड़ी है।
विमल- सर्कस मल्टीनेश्नल कंपनी।
कमल- उसका एक विश्व बाँस आज हमारा इंटरव्यू लेगा।
अमल- तुम्हें कैसे पता?
कमल- मैंने अपनी पूरी तैयारी की हुई हैं।
अमल-विमल- हमने भी।
अमल- मुझे पता है असल में उसे तो बस विचार मज़दूरचाहिए।
विमल- ग़लत! एकदम ग़लत! मुझे पता है। वो कहते हैं कि हम बस मज़दूर है और सारे विचारों के अधिकार उनके पास सुरक्षित हैं। हम अगर चाहे भी तो अपने विचार अपनी धरती पर उगा नहीं सकते। वो कहते हैं यह वायूमंडलीय दोष है।
कमल- ग़लत! क्योंकि history उन्होंने ही लिखी है, इसलिए वो हमारे बारे में, हमसे ज़्यादा जानते हैं। इसलिए पहले वो हमें किसी भी चीज़ के लिए तैयार करते हैं, फिर हमें वो चीज़ देते हैं। वह हमारा भविष्य तय करते हैं।
अमल- ग़लत! वह हमें भविष्य दिखाते हैं।
विमल- अरे! वह हमें भविष्य सुँघाते है! उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है।
अमल- वह रहा मेरा भविष्य।
विमल- वह रहा मेरा भविष्य।
कमल- मेरा भविष्य?
(Black Out)

Scene 11
(जोकर exit कर रहा होता है तो अरुन रोक लेता है।)
अरुन- सुनो मुझे तुमसे बात करनी है।
जोकर- कौन हो तुम?
अरुन- अरे अभी मिले थे ना?
जोकर- मिले थे? हम? कहाँ?
अरुन- वो वहाँ, उस तरफ़।
जोकर- अच्छा? क्यों मिले थे?
अरुन- तुम उन्हें, छेड़ रहे थे।
जोकर- मेरी entry आने वाली है। मैं चलता हूँ।
अरुन- सुनो! सुनो! रुको!
शशी- उससे कुछ मत पूछो वह कुछ नहीं बता पाएगा।
जोकर- मैंने कुछ नहीं किया सच में, कसम से।
अरुन- मैं बस यह पूछना चाहता हूँ तुम उसको कैसे जानते हो?
जोकर- मैं नहीं जानता उसे।
शशी- तुम जानते हो मुझे?
(जोकर भागकर शशी के पास जाता है और उससे गले लग जाता है।)
जोकर- तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। वह ना, वह तुम्हारे बारे में पूछ रहा था। मुझे पकड़ लिया, परेशान कर रहा था। वह पागल है क्या?
अरुन- तुमने कहा था हम गाँव नहीं शहर में जाकर रहेंगे। हम शहर में आ गए। मैं शहर सहन नहीं कर सका। लोग तुम्हें बिना बात के छूते हैं, गले लग जाते हैं, तुम हाथ पकड़े किसी का खड़ी दिखती हो। चलो गाँव वापस चलते हैं।
जोकर- यह सच में पागल है। तुम चलो मेरे साथ।
(जोकर शशी को स्टेज के कोने की तरफ़ ले जाता है। वहाँ उसे दीवार से सटाकर खड़ा करता है।  वापिस भागकर अरुन की तरफ़ आता है और उसकी जेब से चॉक निकालता है। फिर शशी को खड़ा करके उसके शरीर के edges draw करता है। पूरा ड्रॉ कर लेने के बाद वह शशी को हटाता है फिर उस Draw edges में वह शरीर के दूसरे अंग बनता है, स्तन, बाहें, पैर...  जिसमें शशी नग्न दिखती है। और फिर वह उस drawing के साथ सेक्स करना शुरू करता है।)
शशी- तुम क्यों अपनी जेब में चॉक लिए घूमते हो?
अरुन- मेरे पास कोई चॉक नहीं है, कसम से।
शशी- अभी भी तुम्हारी जेब में चॉक हैं। मुझे पता है।
अरुन- नहीं है।
(वह जबरदस्ती उसके जेब की तलाशी लेती है। जेब से चॉक निकलती है। वह रोने लगता है।)
अरुन- चलो गाँव वापस चलते हैं।
शशी- तुम्हें गाँव जाने की ज़रूरत है। मुझे नहीं। वहाँ गाव में जाना और जहाँ-जहाँ से यह चॉक बटोरकर लाए हो, उन्हें वहीं दफ़नाकर आना।
अरुन- चलो गाँव वापस चलते हैं।
शशी- फिर से शुरू से शुरू करने से कुछ नहीं होगा हम यहीं पहुँचेंगे। तुम जाओ अपनी जगह जाकर बैठो। जाओ अपनी जगह जाकर बैठो।
अरुन- नहीं मैं यहीं बैठूँगा, मैं यहीं बैठूँगा।
(शशी उसे खींचकर अलग करना चाहती है पर वह बार-बार वहीं आकर बैठ जाता है वह उसे मारती भी है, पर वह नहीं मानता। जोकर सेक्स करता रहता है। उसकी आवाज़ बढ़ती जाती है। अंत में जोकर के सेक्स ख़त्म करने पर शशी उठकर अरुन की जगह जाकर बैठ जाती है।)

Scene 12
(पूरब और निधी सामने रखी नॉल को देख रहे होते हैं... नॉल जो घोड़े के पेरों में लगती है उसे पालतू बनाने के लिए।)
निधी- ये बहुत सुंदर है। एकदम! वाह! है ना?
पूरब- हाँ। मैंने हमेशा ऐसा कुछ अपने घर के लिए लेना चाहा था। वाह! मज़ा आ गया।
निधी- इच्छा तो हो रही है कि बस इसी के सामने दिन भर बैठे रहो।
पूरब- कितना वैसा ही है ना ये, जैसा इसे होना चाहिए।
निधी- ऐसा लग रहा है कि सालों से ये किसी घोड़े में, या टट्टू में लगा था और आज तुम इसे ख़रीद लाए।
पूरब- पर ऐसा नहीं है। उन्होंने कहाँ है कि ये कम-से-कम पाँच हज़ार साल पुराना है, तभी तो ये इतना महँगा है।
(दोनों खड़े होते है एक-दूसरे के हाथों में हाथ डालकर एक मुद्रा बनाते हैं।)
निधी- मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
पूरब- मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
निधी- तुम्हें भिंडी अच्छी लगती है ना?
पूरब- हाँ मुझे भिंडी अच्छी लगती है।
निधी- आज मैं भिंडी बनाऊँगी।
पूरब- आज मैं भिंडी ही खाऊँगा।
(निधी उठके जाने लगती है।)
पूरब- अरे कहाँ जा रही हो?
निधी- भिंडी बनाने।
पूरब- अरे पहले ये तो तय कर लो कि इसे हम रखेंगे कहाँ?
निधी- हाँ पहले ये तो तय कर ले कि इसे हम रखेंगे कहाँ?
(दोनों घर के चारों तरफ़ घूमते हैं, कुछ जगह रुकते हैं, सोचते हैं, फिर अपनी जगह पर वापस आ जाते हैं।)
पूरब- किसी ऐसी जगह, कि लोगों के घुसते ही इस पर नज़र पड़े।
निधी- हाँ घुसते ही नज़र पड़े। जैसे, जूतों के रैक के पास... है ना!
पूरब- नहीं, इतनी महँगी चीज़ जूतों के पास? नहीं, टीवी के ऊपर।
निधी- नही, वहाँ मेरी माँ की तस्वीर लगी है।
पूरब- दरवाज़े के बाहर। सुना है बहुत शुभ होता है।
निधी- अरे! इतनी महँगी चीज़ है कोई चुरा के ले गया तो! नहीं वहाँ नहीं। फ्रिज़ के ऊपर।
पूरब- बेडरूम में।
निधी- किचन की छत पर।
पूरब- गोदरेज की अलमारी के ऊपर।
निधी- मिक्सी के पास।
पूरब- खिड़की पे।
निधी- पलंग पे।
(पूरब मुस्कुराता है और निधी का हाथ पकड़ लेता है।)
पूरब- हम इसे यही पर रखेंगे। यहीं इसी जगह पे। इस कमरे के एकदम बीच में। जो भी आएगा उसे इसी के चारों तरफ़ बेठना पड़ेगा, जब उसके सामने यही होगा तो वो इसी के बारे में बात करेगा। है ना!
(निधी की आँखों में पानी आ जाता है। दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ते हैं, वापस वही मुद्रा बनाते हैं।)
निधी- मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
पूरब- मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
निधी- तुम्हें भिड़ी अच्छी लगती है ना!
पूरब- हाँ मुझे भिंडी अच्छी लगती है।
निधी- आज मैं भिंडी बनाऊँगी।
पूरब- आज मैं भिंडी ही खाऊँगा।
(पूरब बाहर जाने लगता है।)
निधी- अरे कहाँ जा रहे हो?
पूरब- लोगों को बुलाने।
निधी- अरे पहले ये तो तय कर लो कि जब लोग पूछेंगे, कि इसे क्यों लाए हो? तो हम क्या कहेंगे?
पूरब- हाँ! जब लोग पूछेंगे कि इसे क्यों लाए हो तो हम क्या कहेंगे?
(दोनों वापस उठकर कमरे में चारो तरफ़ सोचते हुए घूमने लगते हैं। फिर कुछ देर में वापस उसी जगह पर आ जाते हैं।)
निधी- हम कहेंगे कि...
पूरब- ...कि ये कितना पुरातन है।
निधी- ये हमारी सभ्यता है।
पूरब- हमने ना जाने कितने जंगलि‍यों को नाल पहनाकर Domestic, घरेलू बनाया है।
निधी- नाल धर्म... परम धर्म है।
पूरब- असल में हम सब जंगली हैं। जब तक नाल है, तभी तक हम इंसान है।
निधी- सबसे पहले इसी ने हमें domestic, घरेलू बनाया था।
पूरब- एक खोज में पता चला है कि जब इस देश में कुछ भी नहीं था। तब यहाँ घोड़े हुआ करते थे। ये देश असल में मेहनतकश घोड़ों का ही देश था। फिर आर्य आए, तुर्की, मुग़ल आए, क्रिश्चयन आए, सभी अपने-अपने घोड़े लाए, और हमारे घोड़ों को खच्चर कहने लगे।
निधी- हमें बचाना है। अ, , , हमें, घोड़ों को बचाना है। हर घर में घोड़ा रखें। अगर घोड़ा नहीं रख सकता तो, छोटा लकड़ी का घोड़ा भी चलेगा। अगर वह भी नहीं रख पाया तो कम से कम घोड़े की पूछ का एक बाल भी चलेगा। जो बहुत काम आता है। है ना!
पूरब- और नाल?
निधी- हाँ। असल में, नाल को बचाना ज़रूरी है।
पूरब- लोग शेर बचाने की बात करते हैं। किसानों को बचाने की बात करते हैं?
निधी- नागालैंड बचाओ, पेड़ बचाओ।
पूरब- फ़ि‍लिस्तीन बचाओ, इज़राइल बचाओ।
निधी- पानी बचाओ, खेत बचाओ।
पूरब- ये सब झूठ है। सबसे बड़ा धर्म है- नाल। हमें नाल बचाना है।
तेरा वरदान है, मेरा दान।
हमारी नाल ही है, हमारा भगवान।
(वो दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ते हैं, वापस वही मुद्रा बनाते हैं।)
निधी- मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
पूरब- मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
निधी- तुम्हें भिंडी अच्छी लगती है ना?
पूरब- हाँ मुझे भिंडी अच्छी लगती है।
निधी- आज मैं भिंडी बनाऊँगी।
पूरब- आज मैं भिंडी ही खाऊँगा।

Scene 13

बॉस- अमल?
अमल- प्रेजेंट सर।
बॉस- विमल?
विमल- प्रेजेंट सर।
बॉस- कमल?
कमल- प्रेजेंट सर।
बॉस- हाँ, तो तुम लोग पूरी तैयारी से आए हो?
सभी- हाँ, सर।
बॉस- अमल, विमल, कमल?
सभी- जी!
बॉस- इंद्रजीत कहाँ है?
कमल- इंद्रजीत?
बॉस- इंद्रजीत, तुम्हारा इंद्रजीत जो सवाल करता है, जिसे हर चीज़ का कारण चाहिए। वो कहाँ है?
अमल- वो तो बहुत पहले ही संन्यासी हो गया था।
विमल- नहीं वो संन्यासी नहीं हुआ था, वो चोरी के इल्ज़ाम में पकड़ा गया था, सो एक दिन गाँव से भाग गया।
कमल- नहीं सर। अमल, विमल, कमल यहाँ है। एवं इंद्रजीत मर चुका है।
बॉस- वो संन्यासी है, चोर है और वो मर चुका है। हम्म्म... संन्यासी और चोर नहीं चलेगा। अपने इंद्रजीत को अगली बार मार कर आना। Good कमल!
कमल- Thank you sir!
बॉस- नौकरी मिलने के बाद तुम क्या करोगे?
अमल- मेहनत, बहुत मेहनत।
विमल- Sir, I am confident that, I’ll deliver. And make sure that this company…
बॉस- हाँ हाँ मैं समझ गया। मुझे झूठे जवाब नहीं चाहिए। यह miss world का कंपटीशन नहीं है। मुझे सही जवाब चाहिए।
कमल- Sir, I’ll work sir… work... work and work.
बॉस- जैसे? कैसे काम करोगे?
विमल- सर मैंने कभी किसी भी काम के लिए किसी को भी मना नहीं किया। मुझे भूख भी काम की ही लगती है... और मैं काम में इसलिए व्यस्त रहना चाहता हूँ कि अंत में मुझे स्वर्ग मिले।
बॉस- काम से स्वर्ग... ?
विमल- सर स्वर्ग के लिए ही तो हम सब जी रहे हैं ना..? आपको नहीं पता? सर जब सब नर्क में होंगे तो मैं स्वर्ग में होऊँगा .. मैं उसी के points बटोरने में लगा रहता हूँ।
बॉस- पर मेरी कंपनी में काम करने से स्वर्ग कैसे मिलेगा..।
विमल- सर जब मैं ख़ाली होता हूँ ना तो बहुत ही गंदे-गंदे विचार आते हैं.. और मैं कुछ ऎसे काम भी कर लेता हूँ जिससे मेरे स्वर्ग के points कट जाते हैं। आपकी कंपनी कोलू के बैल की तरह काम करवाती हैं... कमर तोड़ काम... मैं बस वही चाहता हूँ आप काम से मेरी कमर तोड़ दें... ताकि मैं अंत में स्वर्ग जा सकूं।
बॉस- हम्म्म...
कमल- सर, मेरे काम करने का तरीक़ा सामान्य है सर। मैं जब भी सोकर उठता हूँ तो मुझे मेरे कपड़े पड़े दिखते हैं, या कोई कपड़े दे देता है। मैं जैसे ही उन कपड़ों को पहनता हूँ, मैं वह हो जाता हूँ।
बॉस- वह मानी?
कमल- वह, जिसके लिए वह कपड़े होते। तब कोई अगर मुझे विमल नाम से पुकारता तो मैं विमल की तरह काम करना शुरू कर देता हूँ। सर मैं अमल, विमल, कमल कुछ भी हो सकता हूँ। आप जिस नाम से मुझे पुकारेंगे मैं। मैं बिलकुल वैसा ही काम करना शुरू कर दूँगा। अमल विमल कमल एवं इंद्रजीत। Ohh… Sorry sir! इंद्रजीत तो मर चुका है।
बॉस- हम्म्म...
अमल- सर मैं अमल हूँ।
बॉस- I know, I know.
अमल- No sir! मैं अमल करता हूँ। मेरे हिसाब से दुनिया में दो ही किस्म के लोग हैं- पहले जो यह मानते हैं कि दो किस्म के लोग होते हैं और दूसरे जो यह नहीं मानते। मैं मानता हूँ। हम्म्म... उन दो किस्म के लोगों में पहले वह होते हैं जो काम करते हैं और दूसरे जो काम करवाते हैं। मैं काम करने वालों में आता हूँ।
बॉस- तुम्हें कैसे पता?
अमल- सर, बचपन में जब हम स्कूल में थे तो हमें पढ़ाई भी एक काम की तरह कराई जाती थी। हम मज़दूर हैं सर। अब जो भी काम मुझे मिलता है, वह काम नहीं धर्म है। मैं उसे करने में अपने प्राण भी दे सकता हूँ। मुझे बचपन से एक परिश्रमी मज़दूर के रूप में तैयार किया गया है।
बॉस- तो प्राण देकर बताओ?
अमल- जी?
बॉस- कंपनी ने तुम्हें अपने प्राण देने का काम दिया है। प्राण दो?
अमल- Sorry sir!
(विमल और कमल हँसते हैं।)
बॉस- बहुत पहले की बात है, ऐसा मैंने सुना है कि एक गड़रिया हुआ करता था। उसके पास बहुत सारी भेड़ें थीं। वो उनका मांस बेचा करता था। हर बार वो उन्हीं भेड़ों में से एक भेड़ को निकालता और उन्हीं के सामने काट देता। धीरे-धीरे भेड़ों को समझ में आने लगा कि हम सब कटने वाले हैं। गड़रिये कि समझ में आ गया कि भेड़ों में वहाँ से भाग जाने की फुसफुसाहट हो रही है। तो अब बताओ वह गड़रिया अपनी भेड़ें बचाने के लिए क्या करेगा?
अमल- गड़रिया, एक अच्छे dictator की तरह सारी भेड़ों को ज़ंजीरों से बाँधेगा और बहुत सारे कुत्ते पालेगा। जो भी भेंड़ भागेगी कुत्ते उसे चीर देंगे। सर, Dictatorship… Its proved.
विमल- नहीं। गड़रिया, पहले एक भेड़ को भगवान बनाएगा। फिर भेड़ों से कहेगा कि यह तुम्हारे ही भगवान की माँग है कि एक बली उसे रोज़ चाहिए। और वो रोज़ भेड़ काटता जाएगा। Sir, Religion…
कमल- नहीं, गड़रिया सारी भेड़ों को अपने बच्चे की तरह प्यार करने लगेगा। और भेड़ को काटने से पहले उससे कहेगा कि- देखो यह मेरे पेट का सवाल है, मुझे माफ़ कर दो। और फिर वह उस भेड़ को काट देगा। Sir, Love…
बॉस- यह सब गड़रिया सौ साल पहले कर सकता था, अभी बाज़ार पूरी तरह बदल चुका है। अभी तो गड़रिया हर भेड़ के पास जाएगा और उनसे कहेगा कि तुम असल में भेड़ नहीं हो, शेर हो। बस फिर वह रोज़ भेड़ काटेगा। और हर भेड़ यही सोचेगी कि वो तो भेड़ है, इसलिए कट रही है। मैं तो शेर हूँ। मैं कभी नहीं कटूँगा।
(अमल, विमल और कमल तीनों कहते हैं- वाह सर! वाह!)
बॉस- इंटरव्यूह कौन देने आया है? मैं या तुम?
(तीनों कहते हैं- सॉरी सर!)
बॉस- अगर बंदर हमारे पूर्वज हैं तो क्या हमारी history बंदरों का future है?
अमल- हैं!
विमल- Pass…
कमल- सर, आ आ आ...
बॉस- I want an answer. अगर बंदर हमारे पूर्वज हैं तो क्या हमारी history बंदरों का future है?
((Black Out))

Scene 14

निधी- कह आए सबको, कौन-कौन आ रहा है?
पूरब- पता नहीं।
निधी- पता नहीं, मतलब?
पूरब- उन्होंने कहा कि ये जानने का अधिकार हमको नहीं है।
निधी- मतलब, तो ये अधिकार किसको है, अरे खाना बना है तो पता तो होना ही चाहिए कि कितने और कौन-कौन आ रहा है।
पूरब- यह तो मैंने भी कहा पर उन्होंने कहाँ कि पेज 90 पे, rule 23(d) में लिखा है कि अगर आप सोशल कम्यूनिकेशन में एनरोल करते हैं तो फिर वो ही लोग तय करेंगे कि हमारे यहाँ कौन आएगा और कौन नहीं आएगा।
(दोनों एक अजीब मुद्रा बनाकर दुखी हो लेते है, दोनों के मुँह से एक साथ आहनिकलती है। फिर दोनों वापस अपनी जगह पर आकर...)
निधी- पर कुछ तो पता होगा?
पूरब- बताऊँ?
निधी- हाँ।
पूरब- सर्कस मल्टीनेश्नल का बॉस, खुद।
निधी- वाह! और... और?
पूरब- और वही, जानने का अधिकार हमको नहीं है। और ये भी हम किसी को नहीं बता सकते कि बॉस खुद आ रहे हैं। ओह! मुझे तो तुम्हें भी नहीं बताना था। सुनो तुम सरप्राइज़ हो जाना वरना वो हम पर फाइन लगा देंगे।
(दोनों हाथ मिलाते हैं और थोड़ा-सा दुख जी लेते हैं। ओह!कहकर फिर वापस आकर...)
निधी- ओह! हमने ये सोशल कम्यूनिकेशन साइन ही क्यों किया!
पूरब- ऐसा नहीं कहते, हमें उसके कितने फ़ायदे भी तो हैं।
निधी- क्या फायदे हैं?
पूरब- वो हमारा साइकोलॉजिकल बिहेवियर स्टडी कर रहे हैं। हम कैसे बिहेव करें, ये वो हमें बार-बार क्या नहीं बताते रहते हैं? और उनका एक आदमी हमारा पूरा सोशल नेटवर्क सँभालता रहता है। किसको B’day wish करना है, माँ को कब फोन करना है, वट्सेप के फारवर्ड... सारी इन्फरमेशन, व्टसेप यूनिवर्सटी की सारी नालेज हमारे पास है। हमें पता चल जाता है कि आलू-प्याज़ कब महँगा हो रहा है, हमारे पड़ोसी हमारे बारे में क्या सोचते हैं, ये मोहल्ला हमारे घर के बारे में क्या सोचता है, ये शहर हमारे मोहल्ले के बारे में क्या सोचता है, ये प्रदेश हमारे शहर के बारे में क्या सोचता है, ये देश हमारे प्रदेश के बारे में क्या सोचता है, ये विश्व हमारे देश के बारे में क्या सोचता है। और मैं सोचता हूँ मंगल ग्रह पृथ्वी को देखकर क्या सोचता होगा?
निधी- इतना मत सोचो, उन्होंने बहुत ज़्यादा सोचने को मना किया है।
पूरब- मैं बहक गया था।
निधी- मैं भी बहक गई थी, मुझे भी उनकी बहुत-सी बातें अच्छी लगती हैं।
पूरब- क्या?
निधी- उन्होंने हमें जैसे समझाया कि कैसे हम सारे इंसानों को किस्त अच्छी लगती है, चाहे वो टीवी की हो, फ्रिज की हो या घर की। और ठीक इसी किस्त की थ्योरी पर उन्होंने बताया कि हमें सुख और दुख भी किस्तों में लेना चाहिए। ज़्यादा ख़ुशी आए तो एकदम से ज़्यादा खुश मत हो, एक मिनट से ज़्यादा तो कभी भी नहीं। उस ख़ुशी को बाँट दो- दिनों में, हफ्तों में, तो एक ख़ुशी कई दिनों तक कई महीनों तक ख़ुशी देती रहेगी। और ऐसे ही दुख भी बाँट दो। तब दुख असल में कितना बड़ा था, इसका कभी पता ही नहीं चलेगा।
पूरब- हाँ, सोचो हम लोग कब से रोए नहीं हैं?
निधी- मुझे तो याद भी नहीं कि आख़ि‍री बार मैं कब रोई थी। सुनो, इधर आओ!
पूरब- क्या हुआ?
निधी- इधर आओ।
पूरब- देखो...
निधी- प्लीज़! आओ न एक बार।
पूरब- देखो, हमें, ख़ुश रहना है।
निधी- प्लीज़!
(वो दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ते हैं, एक मुद्रा बनाते हैं। एक ओह!निकालते हैं।)
निधी- मैंने कैसा घर सजाया है, अच्छा है न?
पूरब- बहुत अच्छा है।
(पूरब शांत है बहुत। वह अपनी जगह जाकर बैठता है। निधी लोरी गुनगुनाने लगती है।)
(Black Out)

Scene 15

अरुन- हाँ अब मेरी समझ में आ गया कि वह मुझसे दूर क्यों बैठी है। मैं समझ गया। गिलहरी के कारण, है ना?
(वह जवाब नहीं देती है।)
अरुन- मैं सही जवाब नहीं दे पाया। इसके कारण क्या कोई अलग बैठ जाता है?
शशी- बात सही और ग़लत जवाब की नहीं है, तुम बात को ही नहीं समझे।
अरुन- मैं समझ गया था। वह, गिलहरी वाली बात थी ना कि गलहरी... अब मुझे ठीक से याद नहीं है। पर मैं बात को समझ गया था।
शशी- खड़े हो, चलो मेरे साथ।
अरुन- कहाँ?
शशी- खड़े हो, हम उस शाम घूम रहे थे। तभी मुझे एक गिलहरी दिखी।
अरुन- हाँ, वह कूदती हुई तुम्हारे सामने आकर रुक गई थी। वह एकटक तुम्हें देखे जा रही थी। देखो मुझे सब याद है। तब तुमने कुछ पूछा था, आ हाँ, कुछ गिलहरी के बारे में?
शशी- तुम्हें पता है कि गिलहरी की पीठ पर यह तीन निशान कैसे आए?
अरुन- हाँ, और मैंने कहा था कि नहीं मुझे नहीं पता, जबकि मुझे पता था। वह, असल में...
शशी- कहते हैं कि एक बार गिलहरी ज़ख्मी पड़ी थी। तभी वहाँ से भगवान राम गुज़रे। उनकी निग़ाह उस गिलहरी पर पड़ी, उन्होंने उस गिलहरी को उठाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरा और गिलहरी ठीक हो गई। तब से राम की उँगलियों के निशान गिलहरी की पीठ पर रह गए।
अरुन- कितनी सुंदर बात है।
शशी- पर क्या गिलहरी यह बात जानती है कि उसकी पीठ पर जो यह तीन उँगलियों के निशान हैं, ये राम की उँगलियाँ हैं?
अरुन- अरे! यह कहानी गिलहरी की नहीं है, यह कहानी तो राम की है।
शशी- तुमने सही कहा था, यह कहानी तो राम की है। गिलहरी तो बस इस कहानी में आई थी, उसकी अपनी कोई कहानी थोड़ी है। कहानी तो हमेशा राम की ही होती है।
अरुन- मतलब! उसकी भी अपनी कोई कहानी होगी, मतलब कुछ तो होगा?
शशी- हाँ, कुछ तो होगी ही। क्या फ़र्क़ पड़ता उससे, तुमने कभी मेरी पीठ देखी है?
अरुन- क्या? पीठ?
शशी- देखी है? देखो, प्लीज़ मेरी ख़ातिर देखो।
अरुन- यह क्या मज़ाक है! लोग देख रहे हैं।
शशी- मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ। ध्यान से देखो, तुम्हें निशान नज़र आ रहे हैं?
अरुन- यहाँ कोई निशान नहीं है।
शशी- तीन उँगलियों के निशान! दिखे? देखो?
(अरुन वापस जाकर अपनी जगह बैठ जाता है। शशी उसके सामने जाकर खड़ी हो जाती है।)
शशी- तुम्हें मेरी पीठ पर कोई निशान नहीं दिखे?
अरुन- नहीं, मुझे कुछ भी नहीं दिखा।
शशी- मुझे आश्चर्य है, सच में तुम्हें कुछ भी नहीं दिखा?
(अरुन चुप रहता है।)
शशी- बानी कैसी है?
अरुन- हँ!
शशी- बानी, तुम्हारी बीवी बानी कैसी है?
अरुन- तुम अपनी जगह जाकर बैठो। मुझे नहीं बैठना तुम्हारे साथ, जाओ।
शशी- क्यों क्या हुआ? राम की कहानी तो तुमने रट रखी है, अब गिलहरी की कहानी भी सुन लो?
अरुन- मुझे नहीं सुनना।
शशी- गाँव मेरे साथ जाना चाहते हो और शहर में बानी के साथ रहोगे?
(अरुन उठता है और वापस अपनी जगह जाने को होता है कि शशी उसे खींचकर अपने पास बिठा देती है।)
शशी- घर के सुख, घर के सुख होते हैं। नहीं नहीं, उन्हें नहीं छूना। वह सुख बने रहने चाहिए। और जो सच है वह... वह सच घर में दीमक के जैसे है। वह घर में है यह सबको पता है। पर उन दीमकों को घर के सुख की आड़ में छुपे रहने दो। बस, उन दीमकों को पता हैकी आड़ में रहने दो। वरना वह राम की कहानी में अपनी अलग गिलहरी की कहानी की माँग करेंगे। जो राम भक्तों को कतई पसंद नहीं आएगा।

Scene 16
    
बॉस- थ्योरी ऑफ़ बोटकिसकी है?
अमल- Albert Einstein.
विमल- चार्ली चैप्लिन!
कमल- Pass sir.
बॉस- यह थ्योरी मेरी थी, जिसकी वजह से मैं कंपनी का बॉस भी हूँ और बोट हमारी कंपनी का logo है।
अमल- Sir, what is this theory?
बॉस- Good! इस थ्योरी के हिसाब से एक दिन बाढ़ आएगी- FLOOD और हम सब डूब जाएँगे। बचा सिर्फ़ वही रहेगा जिसके पास बोट है- नाव। हमारी कंपनी ने बाढ़ आएगीके डर को फैलाया। नाव बनाने को जीवन का हिस्सा बनाया और आज कंपनी यहाँ तक पहुँच गई। एक दिन बाढ़ आएगीयह मेरा निजी डर था, जिससे कंपनी को फ़ायदा हुआ। अब हम एक ऐसा employee चाहते हैं जो एक नई थ्योरी कंपनी को दे। एक नया डर, एक नया logo…
अमल- Sir Sir! The future you see is the future you get.
विमल- The best way you can predict your future is to create it.
कमल- Tomorrow belongs to those who prepare for it today.
अमल- The past can't see you, but the future is listening.
विमल- Sir Sir! The future is much like the present, only longer.
कमल- I never think of the future- it comes soon enough.
अमल- I have seen the future and it doesn’t work.
विमल- The future will be better tomorrow.
कमल- The future isn’t what it used to be.
बॉस- Shut up! Just shut up! रटा-रटाया नहीं, निजी... अपना ख़ुद का डर बताओ। एक आदमी का डर सबका डर है। इसी से कंपनी चलती है। निजी, अपना, ख़ुद का डर, start…
विमल- सर, मैं grasshopper नहीं बनना चाहता हूँ जो गरमि‍यों में मस्ती करता रहता है, खेलता रहता है, पर ठंड आते ही, बर्फ़ गिरते ही भूखों मर जाता है। सर मैं grasshopper की दोस्त चींटी की तरह पूरी ज़िंदगी काम करना चाहता हूँ। मैं भूखा नहीं मरना चाहता हूँ। कभी भी नहीं। सर, थ्योरी- Grasshopper, Logo- चींटी।
अमल- सर, मुझे लगता है कि एक दिन यह सारे भयानक लोग, मतलब ग़रीब लोग जो सड़कों के किनारे रहते हैं, गाँवों में रहते हैं, झुग्गि‍यों में रहते हैं, हमारे घरों में घुस आएँगे। रोटी की तलाश में। पर सर, वह बहुत सारे हैं। हमारे घरों में घुसते ही उन्हें इतनी रोटीयाँ नहीं मिलेंगी तो वह रोने लगेंगे, चीख-चीखकर। हम सारे लोग ख़ुद को बचाने के चक्कर में रोटियाँ बनाने लग जाएँगे, दिन-रात। पर सालों की उनकी भूख कभी शांत नहीं होगी। सर, मुझे आटा गूँदना नहीं आता है सर। मैं रोटी नहीं बना सकता हूँ सर। मैं पूरी ज़िंदगी रोटियाँ नहीं बनाना चाहता हूँ। सर, थ्योरी- रोटी। Logo- चकला-बेलन।
कमल- सर, मैं मरने से नहीं डरता हूँ। पर मैं पहले मरने से डरता हूँ सर। मैं चाहता हूँ सर कि मैं सबसे आख़ि‍र में मरूँ। मैं अंत में, सबसे आख़ि‍र में जीत जाऊँ, सब से। मैं सर, मरने के पहले एक बार हँसना चाहता हूँ। जीत की हँसी। सबसे आख़ि‍र तक बचे रह जाने की हँसी हँसना चाहता हूँ। और सर, मैं चाहता हूँ जब मैं मरूँ तो हर चीज़ भरी हुई हो। मेरा घर कमरों से, मेरे कमरे चीज़ों से, मेरा फ्रिज सब्ज़ी-फलों से, मेरा टी.वी. दुनिया के सारे चैनलों से, मेरा बैंक पैसों से, मेरा पेट खाने से। गले-गले तक भरा हो। सर, मैं मरना नहीं चाहता, बल्कि मैं फटना चाहता हूँ। मेरे पास इतना सारा सब कुछ हो कि मैं मरूँ नहीं। मैं अंत में फट जाऊँ। सर, थ्योरी- जीत। Logo- रस्सी बम।
बॉस- Good! अमल, You bloody Marxist… Out…!
अमल- सर, पर वह तो मेरा डर है!
बॉस- Out! I said.
(अमल चला जाता है।)
बॉस- अब अंतिम खेल। तुम दोनों में से जो बचा रह जाएगा। जॉब उसे ही मिलेगा। Are you ready?
विमल- Yes sir!
कमल- Yes sir!

Scene 17

(निधी हँसना चालू करती है। बग़ल में पूरब भी बैठा है। वो भी निधी की हँसी में शामिल होने की कोशिश करता है। जैसे किसी की बात बहुत गंभीरता से सुन रही हो, फिर हँस देती है।)
निधी- लीजिए आप पकौड़ी लीजिए। (फिर हँसती है)
पूरब- नहीं नहीं। हँसी ज़्यादा हो रही है।
निधी- कम तो नहीं है ना? ज़्यादा चलेगी? पिछ्ली बार मेरी हँसी ही नहीं निकल रही थी, लोग क्या सोच रहे होंगे। कैसी मूर्ख औरत है, इसे जोक ही समझ में नहीं आ रहा। तुम भी कुछ कहो ना, मैं ही बात करती रहूँगी क्या?
पूरब- हाँ, मैं भी करता हूँ।
(पूरब के चहरे पर अजीब सी परेशानी दिखती है। वह बात करना शुरू करने की कोशिश करता है, पर कुछ घबराई हुई मुस्कान के बाद चुप हो जाता है।)
पूरब- आप पकौड़ी लीजिए ना।
(फिर चुप हो जाता है। निधी उसकी तरफ़ घूम जाती है, तो वह मुँह नीचे कर लेता है।)
पूरब- मैं दौड़ना चाहता हूँ, बहुत दूर तक। भागना चाहता हूँ, पागलों की तरह। यह सारी भीड़ को चीरते हुए, पसीने में लथ-पथ, बिना रुके। दौड़ते-दौड़ते किसी ऊँचे पहाड़ से छलांग लगा दूँगा। मुझे पता है मैं उड़ नहीं पाऊँगा। पर वह मरने से पहले, उड़ सकने का थोड़ा सा भ्रम मैं, पूरी आज़ादी के साथ जीना चाहता हूँ।
(निधी हँसती है। पूरब अपना सिर उठाता है।)
निधी- क्या है यह?
पूरब- आप क्या सोचते हैं इस बारे में?
निधी- यह क्या जोक था? क्या था यह? अच्छा हुआ हम प्रैक्टिस कर रहे हैं। तुम्हें क्या हो रहा है?
पूरब- कुछ नहीं, मैं ठीक हो जाऊँगा।
(अचानक पूरब अपने आपको रोकने में आवाज़ ऊँची करता जाता है। पूनम अपनी घबराहट में अजीब-सी परेशान हो जाती है।)
निधी- सुनो, डिनर कैंसिल करते हैं। वो हम पर फिर फ़ाइन लगा देंगे।
पूरब- नहीं, डिनर कैंसिल नहीं करेंगे।
निधी- डिनर कैंसिल करेंगे।
पूरब- नहीं, डिनर कैंसिल नहीं करेंगे।
निधी- डिनर कैंसिल करेंगे।
पूरब- नहीं, डिनर कैंसिल नहीं करेंगे।
निधी- डिनर कैंसिल करेंगे। डिनर कैंसिल करेंगे।
पूरब- डिनर कैंसिल नहीं करेंगे। मैं जोक बोलूँगा।
(पूरब चिल्लाकर बोलता है। निधी ख़ुश हो जाती है।)
निधी- हाँ हाँ, वो वो वाला, अरे वही... यह ना, वह चूहे और हाथी वाला जोक बहुत ही अच्छा सुनाते हैं। वह जोक तुम बहुत अच्छा बोलते हो। बोलो जल्दी।
पूरब- हाँ याद आया। एक लड़की अपने बॉस के पास जाती है और कहती है कि, ‘बॉस, बॉस मुझे पाँच-सौ रुपए की ज़रूरत है, कल देती हूँ।बॉस कहता है- हज़ार ले-ले ओर आज ही दे दे।
(पूरब हँसने की कोशिश करता है। निधी चुप है।)
निधी- छी...!
(Black Out)

Scene 18

(जोकर ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाता है। कुछ देर में प्रवेश करता है।)
जोकर- माफ़ करना, मुझे लगा दरवाज़ा दूसरी तरफ़ खुलेगा। शशी, शशी...
(वह जोकर शशी को आवाज़ लगाती है।)
अरुन- ओ तेरी! बानी! बानी यहाँ क्या कर रही है?
शशी- बानी, यहाँ है अरुन, इधर इस तरफ़।
(बानी धीरे-धीरे चलती हुई दोनों की तरफ़ बढ़ती है। अरुन खड़ा हो जाता है।)
बानी- अरुन तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
अरुन- श्श् तुम   तुम श्श्ाता    बैठो! बैठो! (शशी बैठ जाती है। तीनों एक साथ बैठे हुए हैं।) मैं तो यहाँ नाटक देखने आया था। अचानक देखा कि शशी भी है तो हम दोनों ने सोचा, साथ ही नाटक देख लेते हैं।
(कुछ शांति के बाद)
बानी- पर, तुम तो कहीं काम से जाने वाले थे?
अरुन- हाँ, वह काम नहीं हुआ।
शशी- झूठ!
बानी- झूठ?
शशी- हाँ झूठ!
बानी- तुम झूठ बोल रहे हो?
अरुन- अरे नहीं।
बानी- तुमने बताया नहीं कि अरुन भी आने वाला है, क्यों शशी?
अरुन- तो तुमने बानी को बुलाया है?
शशी- अरुन ने हम दोनों का टिकित ख़रीदा था और मैंने तुम्हारा।
अरुन- झूठ है।
बानी- यह सच कह रही है?
अरुन- झूठ है।
शशी- सच है।
अरुन- झूठ है।
बानी- सच है।
शशी- झूठ है।
बानी- क्या? झूठ है?
अरुन- माँ कसम, धरती माता की कसम, विद्या माता की कसम! मैंने झूठ नहीं बोला।
(बानी और शशी दोनों हँसना शुरू करते हैं।)
अरुन- मैं धरती माता की कसम झूठ नहीं खाता हूँ, कसम से।
(दोनों और ज़ोर से हँसने लगती हैं।)
अरुन- अच्छा! तुम्हारे मरने की कसम।
(यह सुनते ही दोनों चुप हो जाती हैं। और भागकर दूर खड़ी हो जाती हैं, पहली बार दोनों स्टेज पर आ जाती हैं। अरुन रोने लगता है। तीनों बच्चे हो जाते हैं और एक तरह का खेल शुरू होता है।)
बानी- अब हमें तुम्हारे साथ नहीं खेलना है।
शशी- झूठा! झूठा! झूठा!
(दोनों अलग खेलना शुरू करते हैं। अरुन कोने में अकेला रो रहा है। कुछ देर में दोनों उसके पास जाते हैं। तीनों बच्चे हो चुके हैं और खेलना शुरु करते हैं।)
शशी- अच्छा ठीक है। चल खेलते हैं, पर अब चीटिंग नहीं।
अरुन- कसम से! कोई चीटिंग नहीं।
बानी- फिर कसम खाई?
शशी- चल डॉक्टर-डॉक्टर खेलें?
बानी- हाँ, पर यहाँ बहुत उजाला है, पीछे चलते हैं।
(तीनों पीछे की तरफ़ जाते हैं। अँधेरा हो जाता है।)
शशी- पहले मैं जाती हूँ।
बानी- नहीं पिछली बार भी तू ही गई थी। हर बार तू ही जाती है पहले, इस बार मैं।
शशी- नहीं पहले मैं। डॉक्टर साहब मैं अंदर आ सकती हूँ? मुझे यहाँ-वहाँ बहुत तकलीफ़ है।
बानी- हर बार तू ही जाती है। मैं तेरी माँ को बता दूँगी, सच में कि तुम दोनों अँधेरे में डॉक्टर-डॉक्टर खेलते हो।
अरुन- यह तो बहुत ही ख़तरनाक बीमारी है! इंजेक्शन लगाना पड़ेगा, चलो कपड़े उतारो।
शशी- छी... छी...
अरुन- छी क्या? इंजेक्शन लगाने के लिए कपड़े तो उतारने ही पड़ेंगे।
शशी- अच्छा! तो लगा दो इंजेक्शन डॉक्टर साहब।
बानी- मैं घर जा रही हूँ और माँ को बताऊँगी। ।
शशी- अच्छा रुक। चलो ऑफ़ि‍स-ऑफ़ि‍स खेलते हैं। और तू बीबी बनना बस।
बानी- और तू?
शशी- मैं सेक्रेटरी।
बानी- वहाँ तू पेशेंट बनती है और यहाँ सेक्रेटरी? वाह भई वाह!
शशी- ठीक है तो मैं बीवी, तू सेक्रेटरी। चलो...
बानी- नहीं नहीं। मैं बीवी बनूँगी और ऑफ़ि‍स की छुट्टी चल रही है। तीन चार संडे एक साथ।
अरुन- रुको! पहले कसम खाओ कि हम जो भी खेल खेल रहे हैं, उसका पता उसको नहीं चलना चाहिए, जिसको पता चलने से हमारा खेल बिगड़ जाएगा।
शशी- हम कसम खाते हैं!
बानी- हम कसम खाते हैं!
अरुन- कसम है हमें!

Scene 19
(यहा कोई भी एक खेल हो सकता है विमल और कमल के बीच जो उनको अंत में थका दे। बुरी तरह और वे खेल ना खेल पाएँ।)
एक पोटली में चावल, दाल मिली हुई है। उसके ठीक बगल में दो ट्रांसपैरेंट बर्नी रखी हुई है। विमल-दाल, और कमल-चावल बीनता है। पाँच दाने बीनने के बाद दोनों एक-एक करके बर्नी में डालते हैं। जब बीनना बढ़ता जाता है तो दोनों एक-दूसरे की बर्नी सबसे पीछे बैठे दर्शकों के हाथ में रख देते हैं। अब उन्हें पाँच-पाँच दाने बीनकर उस दर्शक के पास जाना है जहाँ उसकी बर्नी है। यह भाग-दौड़ उस थकान तक पहुँच जाती है जहाँ दोनों घिसटने लगते हैं। और कुछ देर में दोनों थक कर गिर जाते हैं। (ये खेल बाकी चल रहे scenes  के साथ भी हो सकता है।)

Scene 20
(निधी डरी हुई एक कोने में बैठी है। पूरब पागलों जैसा पूरे कमरे में चक्कर काट रहा है।)
पूरब- हा हा हा... पुंगी बना और अंदर डाल दे! हा हा हा... पुंगी बना और अंदर डाल दे! हा हा हा... पुंगी बना और अंदर डाल दे। नहीं नहीं, Sorry! यह गंदा था।
निधी- तुम्हें क्या हो गया है? तुम ठीक हो ना? जोक क्यों सुनाते हैं, पता है ना?
पूरब- जोक वो जो सोशली सुनाया जा सके, और सबको मज़ा आए। सबको मज़ा आए। सबको मज़ा आए।
निधी- हाँ, सुनो रहने दो। हम आज डिनर कैंसिल करते हैं।
पूरब- डिनर कैंसिल नहीं करेंगे।
निधी- मुझे डर लग रहा है! मुझे डर लग रहा है! मुझे डर लग रहा है! मुझे डर लग रहा है! मुझे डर लग रहा है! मुझे डर लग रहा है! मुझे डर लग रहा है!
पूरब- मैं हार गया! मैं जोक़ नहीं सुना सकता हूँ! (रोने लगता है) पर, पर सुनो, मैं जोक नहीं सुना सकता हूँ, लेकिन मैं नाच तो सकता हूँ! क्यों? मैं बचपन में बहुत नाचता था।
निधी- तुम्हें नाचना नहीं आता है। यह क्या कर रहे हो तुम?
(पूरब बहुत धीर-धीरे नाचना शुरू करता है। और काल्पनिक अतिथियों को देखकर पूछता है।)
पूरब- मज़ा आ रहा है? हे? क्यों आपको मज़ा आ रहा है? यह देखो, यह, यह भी...
निधी- तुम्हें नाचना नहीं आता है। तुम्हें नाचना नहीं आता है। तुम्हें नाचना नहीं आता है। तुम्हें नाचना नहीं आता है। तुम्हें नाचना नहीं आता है।

Scene 21

(तीनों तेज़ चलना चालू करते हैं और साथ-साथ में बोलते रहते हैं, बिना रुके।)
अरुन- ऑफ़ि‍स से थका-माँदा आदमी घर पर आता है और घर की दिन-भर की समस्या लेकर बीवी बैठ जाती है। वह बीवी से पक चुका है।
बानी- पर वह मन ही मन बीवी को बहुत चाहता भी है। अभी लगातार छुट्टि‍याँ हैं और बीवी उसे बता देगी कि प्यार क्या होता है। बीवी मदमस्त चाल से, अपनी पूरी जवानी लिए पति के कमरे में जाती है।
अरुन- पति सो चुका है।
शशी- तभी दरवाज़े की घंटी बजती है।
अरुन- पति उठ बैठता है।
बानी- पत्नी उसे वापस लिटा देती है।
शशी- दरवाज़े की घंटी दोबारा बजती है।
अरुन- इस बार पति ग़ुस्से में उठ ही जाता है। वह दरवाज़े की तरफ़ बढ़ता है।
बानी- पर पत्नी उसे दरवाज़े की तरफ़ जाने नहीं देती है। वह उसे वापस ख़ीच लेती है।
अरुन- पति एक थप्पड़ पत्नी् को जमाता है, और पत्नी को अपनी ग़लती का एहसास हो जाता है।
बानी- पर फिर भी वह पति को दरवाज़ा खोलने नहीं देती है।
अरुन- पति एक और थप्पड़ जमाता है।
शशी- तभी सेक्रेटरी को पता चलता है कि अरे, उसके पास तो घर की एक डुप्लीकेट चाबी पहले से ही है।
बानी- यह झूठ है।
अरुन- हाँ मैंने ही दी थी उसे यह चाबी।
शशी- वह धीरे से चाबी से दरवाज़ा खोलती है। वह पहले भी यह खेल खेल चुकी है।
अरुन- पति उसका स्वागत गले लगकर करता है।
बानी- नहीं यह झूठ है।
शशी- सच है।
अरुन- अरे यह सच है।
शशी- ना, झूठ है।
बानी- झूठ है ना?
शशी- ना।
अरुन- सच है यह सब।
बानी- यह खेल झूठ है।
शशी- ना, खेल सच्चा  था।
अरुन- झूठा था।
बानी- सच्चा था।
अरुन- झूठ था।
शशी- सच है।
बानी- झूठ झूठ झूठ।
अरुन- सच है।
शशी- झूठ। सच है।
अरुन- और सच।
बानी- खेल।
शशी- सच है।
अरुन- झूठ है।
बानी- सच है।
(सच और झूठ। पूरब के डांस के साथ बढ़ता जाता है। विमल और कमल, शक्कर और दाल को अलग करने की भाग-दौड़ में थककर गिरने लगते हैं। सब बढ़ते-बढ़ते एक चीख पर ख़त्म होता है।

Scene 22
Final dinner…
(निधी पूरब के यहाँ डिनर पर सभी आए हुए हैं। एक बड़े से डाइनिंग टेबल पर सभी बैठ हुए हैं। सभी लोगों के सिर्फ चहरे दिख रहे  हैं.... बाक़ी सबने एक जैसे कपड़े पहने हुए हैं। डिनर पर बॉस सबसे ऊपर बैठा है। बाक़ी सब नीचे हैं और शांत हैं। तभी सबकी निगाह एक नए लड़के पर पड़ती है (इंद्रजीत) सभी डर जाते हैं।  कुछ देर ही फुसफुसाहट और डर के बाद बॉस पूछ लेता है।)

बॉस- तुम, तुम कौन हो?
इंद्रजीत- मैं इंद्रजीत।
बॉस- हे! इंद्रजीत को तो कबका हमारी कंपनी मार चुकी है! तुम झूठ बोल रहे हो।
इंद्रजीत- नहीं। मैं इंद्रजीत हूँ। और आप जानते हैं कि मैं कभी झूठ नहीं बोलता।
बॉस- हाँ, इंद्रजीत कभी झूठ नहीं बोलता है।
विमल- देखा सर, मैंने कहा था ना कि इंद्रजीत मरा नहीं है, वह गाँव छोड़कर भाग गया था। देखिए सर वह वापस आ गया है।
अमल- नहीं। नहीं सर। इंद्रजीत संन्यासी हो गया था। वह अपना संन्यास ख़त्म करके वापस आ गया है।
कमल- नहीं सर, यह झूठ बोल रहा है। इंद्रजीत को तो हम सबने मिलकर मारा है। हम सब यह जानते हैं।
बॉस- Shut up! Shut up!
अरुन- अरे! ऐसे थोड़ी हो सकता है! इंद्रजीत कॉलेज में मेरे साथ था, वो पागल था।
निधी- हाँ उसे मैं भी जानती थी। उसे आख़ि‍री बार बंदूक लेकर जंगलों में भागते हुए किसी ने देखा था।
पूरब- नहीं, नहीं। वह तो नुक्कड़ नाटक करता था। एक दिन नुक्कड़ नाटक के दौरान ही किसी पार्टी वालों ने मार-मारकर उसकी जान ले ली। हमारे सामने की बात है।
शशी- नहीं। वह तो सुना है कि रायपुर में रहता है। कुछ किताबें लिखता है जिसे कोई नहीं पढ़ता।
अरुन- नहीं, इसने तो अपना नाम बदलकर दया बाई रख लिया था।
बॉस- अगर यही इंद्रजीत है तो यह यहाँ क्यों आया है?
पूरब- हाँ, यहाँ इसका क्या काम?
शशी- यह हमें डराने आया है।
निधी- नहीं, शायद यह किसी कंपनी की तरफ़ से आया है।
अमल- यह प्रचार करने निकला है।
कमल- क्या इसने भी कोई कंपनी ज्वॉइन कर ली?
विमल- हम सब किसी ना किसी कंपनी की तरफ़ से हैं।
पूरब- पर वह तो अकेला खड़ा है।
शशी- मैं जाना चाहती हूँ।
निधी- रुको, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।
अमल- मुझे अकेला छोड़कर मत जाओ।
अरुन- अरे कोई उससे पूछो तो कि वह यहाँ क्यों आया है!
बॉस- ओए सुनो! तुम जो भी हो...
पूरब- इंद्रजीत बोलो ना।
कमल- ए एवम इंद्रजीत।
इंद्रजीत- मैं एवम इंद्रजीत नहीं हूँ। मैं अमल, विमल, कमल और इंद्रजीत हूँ।
शशी- जो भी है, तुम यहाँ क्यों आए हो?
निधी- हाँ, क्यों आए हो?
अरुन- किसने बुलाया तुम्हें?
अमल- मैंने नहीं बुलाया।
विमल- मैंने भी नहीं।
इंद्रजीत- प्रकृति हमें अच्छी लगती है।
कमल- क्या? क्या?
इंद्रजीत- प्रकृति हमें अच्छी लगती है?
पूरब- हाँ, प्रकृति हमें अच्छी लगती है- का एक पक्षी हमने पिंजरे में बंद करके रखा है। है ना?
निधी- हाँ और एक फूल गमले में भी उगा रखा है। है ना?
इंद्रजीत- हमें सुख से रहना चाहिए।
अरुन- हाँ बिलकुल सही बात है। हमें सुख से रहना चाहिए। हमारे यहाँ उसकी आवाज़ें लोगों को बाहर सड़क तक सुनाई देती हैं। क्यों बानी?
बानी- हाँ, हाँ!
इंद्रजीत- पर दुख की लड़ाई नहीं है कहीं। रोना!
बानी- हाँ वह भी कभी-कभी होता है। पर दुख की लड़ाई और रोना सिर्फ़ इसलिए है कि ख़ुशी का पैमाना तय हो सके। है ना!
शशी- हाँ, ख़ुशी का पैमाना तय हो सके।
विमल- हाँ, हम ख़ुश हैं यहाँ।
कमल- हमारे माँ-बाप को हम पर गर्व है।
अरुन- बुज़ुर्गों की इज़्ज़त के माँ-बाप घर के कोनों में ज़िंदा बैठे रहते हैं।
शशी- और घर के कोनों को हम एकदम साफ़ करके रखते हैं।
बॉस- हमें जानवरों से भी प्रेम है।
निधी- हाँ, हमारे घर में जानवरों से प्रेम की बिल्ली और कुत्ते हैं। है ना?
पूरब- हाँ, जो डरे हुए पूरे शहर में धूमते रहते हैं।
इंद्रजीत- हम आपस में कितना प्रेम करते हैं!
बॉस- हाँ, हम इंसान हैं। हम आपसी प्रेम के लिए ही पैदा हुए हैं।
शशी- आपसी प्रेम के त्यौहार भी तो हम मनाते हैं। कितने सारे त्यौहार हैं।
इंद्रजीत- पर इंसानों ने इंसानों को मारा भी तो है।
बानी- हाँ, वह... ऐसा हुआ है कभी-कभी। इसलिए हम अपने सारे त्यौहार इतने चीखते और चिल्लाते हुए मनाते हैं कि इंसान ने ही इंसानों को मारा है कि‍ आवाज़ें लोगों को थोड़ी कम सुनाई दें।
इंद्रजीत- हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है।
अरुन- हाँ, उसके खेल हम खेलते रहते हैं।
अमल- चोर-पुलिस।
विमल- भाई-बहन, घर-घर।
कमल- ऑफ़ि‍स-ऑफ़ि‍स।
(सभी हर बात पर हाँ-हाँ में सिर हिलाते हैं। इंद्रजीत हँसने लगता है। सभी चुप हो जाते हैं।)
इंद्रजीत- कितनी ख़ूबसूरत व्यवस्था है यह। पर असल खेल क्या है कि हमारी व्यवस्था के बीच हमारे नाखून बढ़ते रहने का जनवर भी है। उसका क्या किया हमने?
बॉस- उसके लिए हमारे पास धर्म है, शांति का संदेश है।
इंद्रजीत- हाँ धर्म और शांति की बोटि‍याँ खिला-खिलाकर हमने उसे गुफा में बंद करके रखा है। पर इन्हीं सब दिनों में किसी एक दिन हमें प्रकृति अच्छी लगती हैके पक्षी को जानवरों से प्रेम की बिल्लीपंजा मारकर खा जाती है। हमारे नाखून बढ़ते रहने का जानवरगुफा से निकलकर बिल्ली को मार देता है। वहाँ बुज़ुर्गों की इज़्ज़त के माँ-बापसब चुपचाप देखते रहते हैं। और घर में हमें प्रकृति अच्छी लगती हैका पिंजरा हमेशा के लिए ख़ाली हो जाता है। शून्य!
(सभी इंतजीत को मारने के लिए उसकी तरफ बढ़ते हैं.. वो आँख बंद करता है.. उसके आँख बंद करते ही Black Out होता है। )



The end







1 टिप्पणी:

  1. अभी पूरा नहीं पढ़ा। कुछ अंश पढ़े। देखने की इच्छा बलवती हो गई। देखते हैं कब ये अवसर मिलता है।

    जवाब देंहटाएं