सोमवार, 24 सितंबर 2012
गोरख...
गोरख...
Scene-1
(यह नाटक.. "रामसजीवन की प्रेम कथा" (उदय प्रकाश) और गोरख पाण्डे के जीवन, उनकी और अन्य कवियों की कविताओं को मिलाकार किया गया एक प्रयास है... जो पूरी तरह काल्पनिक है।) मंच पर अँधेरा है. प्रकाश होता है. कुछ कुर्सियां एक दुसरे को पीठ दिखाते हुए पड़ी हैं.
(Music) एक एक करके कुछ लोग गोगल्स लगाये हुए मंच पर आते हैं. सभी रोबोट की तरह चल रहै हैं. सब ने अपने अपने हाथ में कुछ रोज़मर्रा की इस्तेमाल होने वाली चीज़ें उठा रखी हैं. जैसे की, घडी, छाता, सूटकेस, लैपटॉप बैग, फूल, इत्यादि. एक-एक करके सभी धीरे-धीरे अपने अपने प्रोप को प्रोसीनीयम की दीवार पर टांग देते हैं. सब आकर एक एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं. कुर्सी पर बैठते ही उन सब में जान फूट पड़ती है.
पहली कुर्सी- टन्न्नन्न्न्नन्न… क्लास है क्या बे ?
दूसरी कुर्सी- साला फिर फेल
तीसरी कुर्सी- घूर रहा है साला
चौथी कुर्सी- कैंटीन चलो
पांचवी कुर्सी- प्रेसेंट
छठी कुर्सी- बरगर एंड फ्राइस
सातवी कुर्सी- साइलेंस पलीस
(ये सभी एक साथ हो रहा है और रोबोटिक मुद्रा में ही हो रहा है. तभी लेफ्ट विंग से गोरख भागता हुआ आता है. उसके हाथ में एक सूटकेस है, गले में गमछा है और उसने सफ़ेद कमीज़ और काली पैंट पहनी हुई है. वो हांफता हुआ मंच पर घुसता है और मंच पर पड़ी एक मेज पर जा खड़ा होता है.)
गोरख (चिल्लाते हुए)- हमारा नाम गोरख है. हम देवरिया से हैं. रेलगाड़ी आने में देरी हुई तो लेट हो गए. हमारी जगह कौनसी है?
(कोई चुप नहीं होता. गोरख नीचे उतर कर सभी कुर्सी वाले रोबोट्स के पास जा जा के उनको अपना परिचय देने कि कोशिश करता है. कोई उसकी मौजूदगी को एहमियत नहीं देता और सब वही चीज़ें बोले जा रहै हैं जो वे बोल रहै थे.)
गोरख(चिल्लाते हुए)- गोरख!!!
( सब चुप हो जाते हैं. भगदड़ मच जाती है. सब एक दूसरे की कुर्सी लूट लेते हैं. इसी भगदड़ में गोरख भी एक कुर्सी लूट लेता है और अब उसके गले में गमछा नहीं है. उसने भी औरों कि तरह चश्मा पहना हुआ है. रोबोट्स में से एक से कुर्सी छिन जाती है और उसने गमछा पहना हुआ है)
पहली कुर्सी वाला-
उसकी नज़र कुर्सी पर थी,
कुर्सी लग गई थी उसकी नज़र को,
उसको नज़रबंद करती है कुर्सी,
जो औरों को नज़रबंद करता है.
(फिर से भगदड़. लोग कुर्सियां बदल लेते हैं. इस बीच एक आदमी उठता है और एक कुर्सी कम कर देता हैं और अपने पास रख लेता है. बीच में दो लोग बच जाते हैं. एक के गले में गमछा है. जिसके गले में गमछा नहीं है वो सभी कुर्सी पे बैठे लोगों के पैर पड़ता है. शोर फिर से शुरू हो जाता है.)
गमछे वाला (चिल्लाते हुए) – गोरख!!
(सब शांत हो जाते हैं)
दूसरी कुर्सी वाला-
मेहैज़ ढांचा नहीं है लोहै या काठ का,
कद है कुर्सी,
कुर्सी के मुताबिक,
वो बड़ा है छोटा है, स्वाधीन है या अधीन है,
खुश है या ग़मगीन है,
कुर्सी में जज़्ब होता जाता है एक अदद आदमी.
(फिर से शोर होता है और गमछे वाला फिर से गोरख चिल्लाता है. सभी वापस अपनी अपनी जगह से उठ कर एक दूसरे की कुर्सी लूट लेते हैं. दुबारा एक आदमी गमछे के साथ छूट जाता है और दो बिना गमछे वाले पैर छू रहै हैं.)
तीसरी कुर्सी वाला-
कुर्सी खतरे में है,
तो प्रजातंत्र खतरे में है,
कुर्सी खतरे में है तो देश खतरे में हैं,
कुर्सी खतरे में है तो दुनिया खतरे में है,
न बचे कुर्सी तो भाड़ में जाये प्रजातंत्र, देश और दुनिया.
( एक बार फिर से सब अपनी अपनी जगह से उठ कर खड़े हो जाते हैं और कुर्सियां लूटने लगते हैं. अब तक चौथी कुर्सी वाले ने सभी कुर्सियां उठा ली हैं और बस एक बेंच बची है जिसपर एक व्यक्ति बैठ सकता है. बाकी सब ने कुर्सी मिलने की आशा छोड़ दी है. सब सोचने की मुद्रा लेके स्टेज पर फ्रीज़ हो जाते हैं.)
चौथी कुर्सी वाला-
कुर्सी कि महिमा बखानने का,
ये थोथा प्रयास है,
चिपकने वालों से पूछिए,
कुर्सी भूगोल है,
कुर्सी इतिहास है.
Scene-2
अनुराग(गोरख) - मुझे नही चाहिए कुर्सी. (वो अपना सूटकेस उठाता है और थोड़ा सा आगे बढ़ता है तो कल्याण उसको रोक लेता है)
कल्याण- Hey Chap! कैसे?
अनुराग(गोरख) - पढ़ने
कल्याण- हैं?
अनुराग(गोरख) - पढ़ने…
कल्याण- और हम? कहाँ के born & brought up हो? Ugly… मूह छुपाओ. अब्बे बदसूरत घूम जाओ... १,२...
(अनुराग घूम जाता है)
कल्याण- अभी सीधे भागो पहला लेफ्ट लो पेड़ मिलेंगे पेड़ो के पैर छूओ आशीर्वाद लो और वापस आओ शिरीष- छोड़ बे. नाम क्या है तेरा?
अनुराग(गोरख) - गोरख.
असलम- अबे पूरा नाम बता?
अनुराग(गोरख) - पूरा नाम गोरख है.
असलम- गाँव?
अनुराग(गोरख) - देवरिया
शिरीष- विषय?
अनुराग(गोरख) - हिन्दी साहित्य
असलम- हिन्दी साहित्य? क्या उखाड़ लेगा तू हिन्दी साहित्या पढ़ के?
अनुराग(गोरख) - जो बन पड़ेगा करेंगे,पर चुप नहीं बैठेंगे
कल्याण(अपनी जगह से उठकर गोरख के पास आते हुए) - ये फटा ज्वालामूखी!!!!
असलम-आग है भैया आग…
शिरीष- आग नही है भाई लावा है लावा…
अनुराग(गोरख) - जाएँ?
शिरीष- कहा जाए बे? (नाराज़ होते हुए) हम बात कर रहै हैं ना तुमसे
अनुराग(गोरख) - हॉस्टिल जाना है
कल्याण- हॉस्टिल जाओगे? ले चले हॉस्टिल?
शिरीष- कौन से हॉस्टिल जाओगे बे? लड़को वाले जाओगे या लड़कियों वाले?
(तीनो गोरख के काफ़ी नज़दीक जाते हैं वो थोड़ा सा घबरा जाता है. अचानक कल्याण,शिरीष,असलम ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगते हैं )
कल्याण- देख देख इसकी शकल देख
असलम- अरे डर मत, हम भी जूनियर्स हैं, सीनियर्स नहीं. आराम से., ये कल्याण ,ये शिरीष शिरीष- सॉरी यार असलम- और मैं असलम...
कल्याण- साँस लेले
असलम- ये रहा तेरा कॉलेज और वो देखो हॉस्टिल
अनुराग(गोरख)- बड़ा सही कॉलेज है यार, काफी बड़ा है ना
असलम- पता है कौन कौन पढ़ता है यहाँ पे?
शिरीष- प्रधानमंत्री की बहू,रक्षामंत्री की नातिन,किर्लोस्कर जी की बेटी और बाटाजी का बेटा. कल्याण- और जो देश का सबसे बड़ा साहित्यकार है उसका सबसे छोटा साला यही पढ़ता है… अबे यहा के ज़्यादातर स्टुडेंट्स जो है वो हैलो हाइ संप्रदाया से आते है फक चीक
असलम- और जो लड़किया हैं न लड़किया एकद्म टॉट है टॉट... माशा अल्लाह
कल्याण- असलम भाई उनकी जीन्स देखी,ये कसी कसी जीन्स,ये खुली खुली बाहै, मुलायम खुशबूदार… अनुराग(गोरख) - (गुस्से मे) कैसी बातें कर रहै हो यार (तीनो दोस्त कुछ देर के लिए चुप हो जाते है,उन्है बड़ी हैरानी होती है)
शिरीष- शर्मा गये (तीनो दोस्त प्रस्थान करते है)
SCENE – 3
रूपा(गोरख)- प्रिय कार्ल मार्क्स, चरण स्पर्श, आज तुम्है पत्र लिखने का खूब मन कर रहा था (पत्र बोलते बोलते वो अपना कमरा ठीक कर रही है) वैसे मन तो काफ़ी समय से कर रहा था पर स्याही खत्म हो गयी थी(इसी बीच प्रतीक मंच पर आकर लेट जाता है )
आज लाल स्याही ले आया हूँ… पता है, मैं एक बड़ी जगह आ गया हूँ. यहाँ पे लोगों की मानसिकता को छोड़कर सबकुछ काफी बड़ा है. पता है मार्क्स कभी कभी जब आँख खुलती है तो कुछ पलों के लिए सोचना पड़ता है की वाकई में रात है या मैं ही आँख बंद करके अँधेरे में सो गया था. मेरे टेरीकॉट के कपडों से लेकर मेरा रंग यहाँ तक की मेरा अतीत सबकुछ मुझे मैला मैला सा लगता हैं. लेकिन फिर भी इन ऊँची बिल्डिंगों, इन चौड़ी सड़कों और इस कान फाडू शोर के बीच गली कूचों में छुपी हुई वो ज़िन्दगी अब भी दिखती हैं चिथड़ों में लिपटी हुई भूखी अपने नंगेपन को ढाँकने की कोशिश में जिसे मार्क्स तुम और मैं बेहतर पहचानते हैं. मेरा कद छोटा हो गया है. शायद घिस गया हूं. अपने बौनेपन का एहसास अभी अभी हुआ है मुझे. असमंजस में हूं मैं मार्क्स. क्या मैं अपने कपड़ों की तरह अपना चश्मा भी बदल दूं. या फिर वो करूँ जो तुमने कभी सोचा था, उनका चश्मा तोड़ दूं. गोरख
[चिट्ठी ख़त्म करने के बाद गोरख अपने कमरे से निकल के ज़मीन पर लेट जाता है. अब चार लोग ज़मीन पर हैं. सभी के गले में गमछा है. (म्यूजिक फेड इन) चारो गोरख अलग अलग मुद्राएं ले रहै हैं]
(मंच पर लेटे हुए गोरख परेशान होकर करवटे बदलते हैं और अचानक घबराकर उठ जाते हैं.)
सुहेल (गोरख)- "वो डरते हैं किस चीज़ से डरते हैं वे तमाम धन दौलत गोला बारूद पुलिस फ़ौज के बावजूद? वे डरते हैं की एक दिन निहत्थे और गरीब लोग उनसे डरना बंद कर देगे"
प्रतीक(गोरख) "कही चीख उठी हैं अभी कही नाच शुरू हुआ हैं अभी कही बच्चा हुआ हैं अभी कही फौजे चल पढ़ी हैं अभी"
मनोज(गोरख) "कला कला के लिए हो जीवन को खूबसूरत बनाने के लिए न हो रोटी रोटी के लिए हो खाने के लिए न हो मजदूर मेहनत करने के लिए हो सिर्फ मेहनत "
[जब एक गोरख कविता बोल रहा है, तब बाकी 3 गोरख सोचने की अलग अलग मुद्राए ले रहे है]
सुशांत(गोरख) - ये तो हम सब जानते हैं
[मनोज,प्रतीक,सुहेल तीनो सुशांत को देखने लगते हैं मनोज और प्रतीक सुशांत को एक सोचने वाली मुद्रा में सोचने लगते हैं. सुहेल उठता हैं पेपर में जो लिखा हैं उसको पड़ता हैं और फाड़ के फेक देता हैं और वहा से चला जाता हैं और अपने तीनो दोस्त कल्याण,असलम और शिरीष से मिलता हैं]
कल्याण- ऐ दत्ता मैं इसको चाय नहीं बोलूँगा फिर भी दे दो असलम- जो भी हैं ले आ यार कल्याण- लीजिये साहब सरकारी चाय, ज़हर है {सुहेल(गोरख) वहां आता है. कल्याण उसको देख लेता हैं}
अरे गोरख… हैल्लो! रुक चाय लता हु
सुहेल(गोरख)- नहीं चाहिए चाय…
कल्याण - अरे डार्लिंग रुक लाता हु चाय
सुहेल(गोरख) (गुस्से में)- अरे नहीं चाहिए चाय
असलम- अरे नाराज़ क्यों होते हो
कल्याण- मत पियो चाय
सुहेल(गोरख)- ये जूते बड़े बढ़िया हैं आपके .कितने के लिए आपने?
कल्याण- बारह सौ
सुहेल(गोरख)- बारह सौ !! आपको पता हैं क्या पहना हैं आपने दो कुंटल गेहू पहना हैं आपने
कल्याण- मतलब?
सुहेल(गोरख)- अरे बारह सौ दो कुंटल गेहू की कीमत होती हैं और इन्होने पैर में पहन रखा हैं देखो…
कल्याण- अच्छा ये बताओ ये साहब जो बेठे हैं (एक दर्शक की तरफ इशारा करता है) इनका लगाओ हिसाब किताब
सुहेल(गोरख)-इनका (एक दर्शक की तरफ इशारा करते हुए)
कल्याण-हाँ
सुहेल(गोरख)- साहब ने इकोनोमिक्स की थेओरी वेलू के हिसाब से… तीन कुंटल धान पहन रखा हैं. शिरीष-मतलब घर का हर महीने का किराया हुआ 3.5 कुंटल गेंहू
सुहेल(गोरख)-और बिजली पानी अलग
कल्याण(मज़े लेते हुए )-ये जो अमीर और गरीब की जो खाई हैं न हमारे देश को ले डूबेगी
शिरीष-इस देश की 70 % जनता को जिंदा रहने के लिए जितनी कैलोरी शक्ति की ज़रुरत हैं उतना अन्न तो मिल नहीं पाता हैं और दूसरा 3.5 कुंटल गेहू की शराब 1 बैठक में पी जाता हैं
असलम-और गाँव के मिडल क्लास किसान की हालत शहर के लोवर मिडल क्लास लोगो से बददतर हैं और यहाँ शहर का छोटे से छोटा बाबु भी चमक धमक में रहता हैं
शिरीष-और जो किसान अपनी खून पसीने की मेहनत से देश की जनता का पेट पाल रहा हैं वो कर्जे में डूबकर अपनी जान दे रहा और यहाँ पिज्जा बर्गेर बेचने वाले
शीश महल पर शीश महल बनाये जा रहै हैं…
कल्याण -और ये नेता क्या कर रहै हैं नोट बटोर रहै हैं,
योजनाये बना रहै हैं पर सब फाइलओ में बंद और आप जाओ वहा पुरानी दिल्ली में जामा मस्ज़िद के फूटपाथ पर पुलिया के नीचे जाओ गाँव का आदमी भूखा हैं, गरीब हैं ,नंगा हैं पहनने को बदन पर कपड़ा नहीं हैं…
सुहेल(गोरख) - अरे चुप (गुस्से से ) झूठी…फर्जी…
किताबी बातें चुतियापा है ये सब
असलम -अरे हम भी तो यही कह रहै हैं की गलत है ये सब
सुहेल(गोरख) - क्या गलत है? कौन गलत है? ये गरीब गलत है? गरीब गलत नहीं है,
अमीर भी गलत नहीं है, गलत हो तुम और में
शिरीष- अरे हम कैसे गलत हो गए? हम भी तो यही कह रहै हैं की गलत है ये सब
सुहेल(गोरख) - यही तो चुत्यापा हैं . हम सब कह रहे हैं की ये सब गलत है
फिर भी न तुम कुछ कर रहे हो और न साला मैं (गुस्से में)… क्रांति की ज़रुरत हैं क्रांति की...
(ये कहते हुए सुहेल आगे बढ़ता है और विंग्स से एक्ज़िट लेता है.
उसी के साथ मनोज,सुशांत ,प्रतीक भी खड़े हो जाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं . )
सृष्टि(गोरख) आती है और उन्ही के साथ खड़ी हो जाती है)
(सुहेल(गोरख) विंग्स से अपने कमरे में आता है)
सुहेल(गोरख)- हवा का रुख कैसा हैं हम समझते हैं ,
हम उससे पीठ क्यों दे देते हैं हम समझते हैं ,
हम समझते हैं खून का मतलब ,पैसे की कीमत हम समझते हैं
क्या है पक्ष में ,विपक्ष में क्या हैं हम समझते हैं
हम इतना समझते की समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं
वैसे हम अपने को किसी से कम नहीं समझते हैं
हर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह कर सकते है
हम चाय की प्याली में तूफ़ान खड़ा कर सकते है
करने को तो हम क्रांति भी कर सकते है
अगर सरकार कमज़ोर हो और जनता समझदार
लेकिन हम समझते है हम कुछ नहीं कर सकते है
हम क्यों कुछ नहीं कर सकते ये भी
हम समझते है हवा का रुख कैसा है हम समझते हैं.....
(जब सुहेल (गोरख ) ये कविता बोल रहा होता है तब 4 गोरख, गुस्से और दर्द को दर्शाते हैं, अलग-अलग मुद्राओं से) (कविता समाप्त होते ही वो 4 गोरख जिस गति से गुस्सा और दर्द दर्शा रहै थे वो गति बढ़ जाती है)
(Black out)
Scene-4
दूरदर्शन म्यूजिक सृष्टि न्यूज़ पढ़ती है…
“ब्रेअकिंग न्यूज़ लड़का और लड़की अब साथ हॉस्टल में रहैगे प्रधान मंत्री ने बेहद उत्सुकता जताते हुए कहा की बोयस हॉस्टल के ठीक सामने बनने वाले इस गर्ल्स हॉस्टल में पारदर्शी खिड़कियाँ होगी जिनपर पर्दा अलग से लगाया जायेगा सरकार की इस पहल को विदेश मंत्री ने एक बड़ा कदम बताया हैं उन्होंने कहा की इस प्रकार की प्रक्रिया से भेदभाव की भावना दूर हो जाएगी उन्होंने ये भी कहा की साथ में बन रहै कॉमन मेस से दोनों ही सेक्स एक साथ खाना खा पायेगे जिससे पुरुष महिलाओं को पछाड़ने वाले हीन बर्ताव से अपने को दूर कर पायेगे बताया जा रहा हैं की स्टुडेंट'स उनियन ने सरकार के इस क्रांतिकारी फैसले का स्वागत किया हैं एक छात्र से बातचीत के अंश "अब आप कैसा महसूस कर रहै हैं ?" "अच्हा महसूस कर रहा हु .पहले पढ़ाई में मन नहीं लगता था अब बालकोनी में जा जा कर पढने लगा हु" देश को मज़बूत बनाने के लिए सरकार की सहवास की योजना आ आ ... माफ़ कीजियेगा सह आवास की योजना कारगर साबित होगी. क्रांति आने वाली नहीं है क्रांति आ चुकी हैं ये थे अब तक के मुख्य समाचार, नमश्कार.”
[म्यूजिक lipstick song]
ब्लैक आउट
(ब्लैक आउट के बाद जब स्टेज पर रौशनी होती है तो देखते हैं की स्टेज पर 5 गोरख १ लाइन में खड़े है, वो आगे बढ़ते है और "हवा का रुख" कविता बोलने लगते है .
पहले तो उनकी आवाज़ सुनाई देती है पर कुछ देर के बाद सुनाई देना बंद हो जाती है और सारे गोरख अपनी आवाज़ पहुंचाने की बहुत कोशिश कर रहै है पर कुछ आवाज़ नहीं आ रही )
(ब्लैक आउट)
Scene- 5
(जैसे ही रौशनी आती है स्टेज पर कुछ लोग धीमी गति से नाच रहै होते है उन लोगो में से गोरख के दोस्त कल्याण,शिरीष और असलम भी होते है )
कल्याण - दिस इस बिग्गर रेवोलुशन डैन फ्रेंच रेवोलुशन !!
सभी- वू... हू... (ख़ुशी से)
असलम- सोशल एकुँलटी आ गयी है यार
सभी - वू... हू... (ख़ुशी से)
शिरीष -अबे! अब लड़कियां और लड़के रहैगे साथ-साथ, खायेंगे भी साथ-साथ
सभी - वू... हू... (ख़ुशी से)
असलम- ओई गोरख नीचे आजा
कल्याण- ओई! कॉम्रेड
(मनोज(गोरख) देखता है और वापस कमरे में चला जाता है )
(थोड़ी देर में शिरीष ,कल्याण ,असलम चले जाते है ) ……………………………………………………………………………………………............................ ………………………………………………………………………………………………………………….
मनोज(गोरख)- प्रिय कार्ल मार्क्स, ये अस्सी प्रतिशत भुक्खड़ों और बैलगाड़ियो का देश
अब प्रगति कर रहा है, नाच नाच के…
मेरे तुमसे कुछ सवाल हैं.
ये चिल कैसे मारा जाता है? और इसका क्या मकसद है?
भूख किसी कि स्थिति है या फिर उसकी नियति?
क्या भूख को महसूस किये बिना भी भूख के बारे में लिखा जा सकता है?
बहुत पेट भरा हुआ हो तो नाचा नहीं जाता.
भूखे पेट भी नाच नहीं सकते.
तो फिर ये कौन हैं जो नाच रहे हैं?
कार्ल मार्क्स, ये मार्क्स क्या है?
बंद करो....
(अनीता आती है +म्यूजिक मनोज(गोरख)उसे देखने लगता हैं )
(सब बेठ जाते हैं )
अनुराग-हाँ तुम मुझसे प्यार करो, जैसे हवाएँ मेरे सीने से करती हैं,
जिनको वह गहराई तक दबा नहीं पाती..
जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं
तुम मुझसे प्यार करो जैसे मैं तुमसे करता हूँ
आईनो रोशनाई मैं घुल जाओ और आसमान में मुझे लिखो मुझे पढ़ो
आईनो मुस्कराओ और मुझे मार डालो
आईनो मैं तुम्हारी ज़िन्दगी हूँ
कुंदन- अपनी नज़रे नाज़ारो मैं खोने लगीं, चांदनी उंगलियों के पोरों पे खुलने लगी
उनके होठ, अपने होठों में घुलने लगे और
पाजेब झन झन झनकती रही
हम पीते रहै और बहकते रहै
जब तलक हर तरफ बेखुदी छा गयी
हम न थे, तुम न थे, एक नगमा था पहलु में बजता हुआ
एक दरिया था सेहरा में उमड़ा हुआ
बेख़ुदी थी की अपने में डूबी हुई
(अनीता चली जाती हैं)
(सुहेल और सृष्टि स्लो डांस)
मनोज(गोरख)- tonight… tonight…
Tonight I can write the saddest lines
Right For example, the night is shattered
and the blue stars shiver in the distance
The night wind revolves and sings
I loved her
and sometimes
she loved me too
Tonight! I can write the saddest lines (टूटी फूटी अंग्रेजी में)
(सृष्टि चली जाती हैं )
(सुहेल अकेले ही नाचता रहता हैं) म्यूजिक धीरे धीरे बंद होता हैं ब्लैक आउट )
SCENE-6
कुंदन(गोरख) (बालकनी की तरफ देख रहा हैं)
चौकीदार -कौन है ? कौन है बे ? भोसड़ी के ......कौन है ?
कुंदन(गोरख)-अरे भैया हम हैं हम गोरख .क्या भैया डरा दिया आपने
चौकीदार-गोरख भैया!!यहाँ क्या कर रहै हो?
कुंदन(गोरख)-अरे बस ऐसी ही हवा खाने आये थे चौकी-बीड़ी पिलाये क्या?
कुंदन(गोरख)-नहीं नहीं ठीक हैं (चौकीदार वापस जाने के लिए मुड़ता हैं ) अरे भाई ये जो कमरा हैं रूम ३१६ उसके बारे में आप कुछ जानते हो ?
चौकी-अरे उसको कौन नहीं जानता लन्दन से आई हुई ठहरी यहाँ
कुंदन(गोरख)-लन्दन से? चौकी -पिता केन्या में बहुत बड़ी फैक्ट्री चलाने वाले हुए,सात साल बेबी लन्दन में रह कर आई है.
कुंदन(गोरख)-सात साल..
चौकी-लेकिन स्वाभाव की बड़ी मीठी है हमसे भी हैल्लो कहती हैं
कुंदन(गोरख)-हैं !!
चौकी -सी.पि.स में रिसर्च कर रही है
कुंदन(गोरख)-अच्हा !! अरे भैया सुनो न नाम पता है उसका?
चौकी- ह्म्म्म.इरादे तो तुम्हारे नेक ही लग रहै है, नाम हुआ उसका अनीता चांदीवाला.गुजराती है लेकिन गुजराती आती नहीं है हिंदी भी अटक अटक के बोलती है अच्छा चलते हैं (जाते जाते रुक जाता है और वापस पलट के बोलता है) वैसे माल एकदम मस्त कन्तास ठहरी
प्रतीक,मनोज,सुहेल,[गोरख] (तीनो एक साथ)- अबे ओई !
मनोज(गोरख)- प्रिय कार्ल मार्क्स, आज में जिस फूहड़ सोच से टकराया उसने मुझे पूरी तरह से झकझोड़ के रख दिया
प्रतीक (गोरख)- वोर्किंग क्लास के लोगो में कांशियसनेस पैदा करने के लिए अभी और गहरी शिक्षा की ज़रुरत है
सुहेल(गोरख)- भारत की कोम्मुनिस्ट पार्टियाँ यही काम तो नहीं कर पा रही है
मनोज(गोरख)-इसलिए तो मजदूरों,किसानो और छोटे कर्मचारियों के बीच उनका सप्पोर्ट नहीं है प्रतीक(गोरख)- अब इसी फौर्थ ग्रेड कर्मचारी को ही देखो
सुहेल(गोरख)- इसका ये एंटी फेमिनिस्ट रुख फयूद्ल्स्टिक और कपिठ्लिस्टिक सोसाइटी की
वेलु सिस्टम की देन है
(रूपा एंड सृष्टि मंच के दोनों विंग्स से आती है)
[music ]
प्रतीक(गोरख)-नहीं नहीं ...... भारत की कोम्मुनिस्ट पार्टियाँ
सुहेल(गोरख)- तुम्हारा सरनेम चांदीवाला उसमे चाँदी जैसी खनक है
प्रतीक (गोरख)-इसलिए तो इनको मजदूरों,छोटे कर्मचारियों का सप्पोर्ट नहीं हैं
मनोज(गोरख)-अनीता आई …
प्रतीक और सुहेल- आई वांट……….
मनोज- अनीता आई भौन्त्त टु ……..
अनीता- व्हाट डू यू वांट?
मनोज- आई वांट टु नो अबाउट दी ब्रिटिश राज नौस्टालजिया (टूटी फूटी इंग्लिश में)
अनीता -औ...........
अनीता (सृष्टि)- The British? The British are so stuck up with their imperialistic past and they are so nosalgic about their entire British history that they call themselves the British Raj nostalgia. (with accent)-dekho na anghoote barabar desh he aur apne ko the Great Britain bolta he. isn't that funny
(प्रतीक और सुहेल हँसते है "हैहैहैहैहैहै:)
and they are so proud of the fact that they have ruled the world unlike Germans........
रूपा(अनीता)मनोज के बाल बनाते हुए - they do not even feel guilty about it.in fact they redefine the Indian history so as to glorify their own part, isn't this interesting? ठिफ्फिन कहा है तुम्हारा?(मनोज इधर उधर देखने लगता है ) .
Have you heard about this film transfer of power?
मनोज(गोरख)- हाँ आई हव सीन इट
सुहेल(गोरख)- आई हव सीन इट
प्रतीक (गोरख)- आई हव सीन इट
सृष्टि(अनीता)-hello that is under production (तीनो गोरख अपना सर पीटते है) रूपा(अनीता) -कोई बात नहीं. उस फिल्म में उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की है की इंडिया को फ्रीडम लोर्ड Mountbatten ने दिलाया है नाकि गांधी ने,या फिर नेहरु या फिर सुभाष चन्द्र बोस ने (मनोज अपने बाल बना रहा है और उसको देख कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे वो आईने को देख कर बाल बना रहा हैं)
बाल ठीक करो वरना बच्चे फिर हसेंगे
मनोज(बाल बनाते हुए)- अन्नी यू नो वाट दे हव डन? दे हव टर्न्ड आर लीडर्स इंटो फन्नी पोलिटिकल जोकर्स (दोनों अनीता हँसती है )
सृष्टि(अनीता ) जोकर [गोरख पलट जाता है. वो अनीता से पूछने वाला है कि अब बाल बना के वो कैसा लग रहा है. लेकिन वो देखता है कि वो कमरे में नहीं है. वो प्रेम से अनीता कहता है और उसके प्यार में खो जाता है.]
सुहेल(गोरख)-अनीता की बातो में कितनी जागरुकता है
प्रतीक(गोरख)-हमारे समाज को देखने का कितना सही नजरिया है
सुहेल(गोरख)-उसे हमारे समाज के मौजूदा हालत की कितनी समझ है
प्रतीक(गोरख)-वो हमारे संगठन में एक अहैम रोल अदा कर सकती है
सुहेल(गोरख)-अनीता की सोच कितनी सुन्दर है
प्रतीक(गोरख)-वो खुद कितनी खूबसूरत है
सुहेल(गोरख)-अनीता..
प्रतीक(गोरख)- चांदीवाला…
मनोज(गोरख)-अन्नी आई लव यू एंड I bhaunt to..
सुहेल(गोरख)- अबे bhaunt नहीं चूतिये want… want… WANT… व्… व्…
प्रतीक(गोरख)-मुझे अपनी अंग्रेजी ठीक करनी होगी [मनोज(गोरख) उठता है और तभी सामने से कल्याण आता है )
मनोज(गोरख) कल्याण से- अन्नी, among the रुस्सियन राइटर्स ,dostobisky एंड chekhob are maii phabourite ....
कल्याण -कौन साहब?
[मनोज(गोरख) ये बोलकर बाहर चला जाता है]
सुहेल(गोरख)- phabourite nahi favourite फ फ (मनोज बाल नोचता हुआ चला जाता है)
(मंच के दांये तरफ से शिरीष आता है और प्रतीक उसको अपनी बात बताने लगता है )
प्रतीक(गोरख) शिरीष से- अनीता यू क्नो आई कम फ्रॉम अ वैरी small billage .....
सुहेल(गोरख)- अरे billage nahi village व् व्
प्रतीक(गोरख)- अनीता माय phather इस ...
सुहेल(गोरख)- अबे phather नहीं father... father पिताजी… पिताजी father
प्रतीक(गोरख)-माय father इस अ वैरी progressive man
कल्याण- गोरख!
असलम-क्या गोरख
(प्रतीक(गोरख) तीनो को देखता है और घबरा सा जाता है ) में में अपनी अंग्रेजी ठीक कर रहा था(ऐसा कहते हुए वहा से भाग जाता है )
शिरीष-ये कोनसा तरीका है अंग्रेजी सुधारने का?( हँसते हुए )
Scene-7
(स्कूल की घंटी बजती है.मंच के दोनों विंग्स से छात्र आते है और अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते है सभी छात्र दर्शको की तरफ पीठ करके बेठे है)
कुंदन (टीचर)-साइलेंस ! कल जो कुछ पढ़ा था उसको revise करते है चलो बताओ
कल्याण- स्ट्रेट लाइन
अनुराग- सॉरी मैम
असलम- टाइम टेबल
सृष्टि - मैम वाटर
रूपा- गेट आउट
सुशांत- यूनिट टेस्ट शि
रीष- पास
प्रतीक- मुर्गा बनो
कल्याण-नकल के लिए भी अकल चहिये
अनुराग - ट्राई एंड ट्राई अंटिल यू डाये....
असलम- एजुकेशन र्रूइन्द मी......
सृष्टि-में तो पक्का फेल हो जाउंगी
रूपा -आंसर तो टैली हो रहा हैना मेथड कोई भी हो
सुशांत-में रोज़ सुबह ५ बजे उठके पढता हु
शिरीष-पास
प्रतीक-मंगल पर जीवन है क्या?
कल्याण- गौड हैल्प डोस हू हैल्प देम्सेल्व्स
अनुराग-चरित्र ही सर्व्श्रेष्ट्र पूंजी है
असलम-होनेस्टी इस द बेस्ट पोलिसी
सृष्टि-माता पिता के चरणों में स्वर्ग है
रूपा -प्रक्टिस मेक्स मैन परफेक्ट
सुशांत-घृणा पाप से करो पापी से नहीं
शिरीष-पास
प्रतीक.एस यू कैन ...सर
कुंदन -शाबाश (अटेंडेंस लेता है)
प्रतीक- प्रेसेंट सर
सुशांत -प्रेसेंट सर
सृष्टि -प्रेसेंट सर
गोरख (कोई आवाज़ नहीं) ..गोरख अब्सेंट सर
कुंदन-अब्सेंट है? यह तो पहले भी अब्सेंट था तुम(कल्याण को देखता है ),और तुम
(असलम को देखता है ) तुम दोनों दोस्त हो न उसके ?कहा है वो ? (असलम और कल्याण खड़े होते है ) असलम: सर वोह कैंटीन में है.
टीचर: कैंटीन में क्यूँ है?
कल्याण: चूत्या क्लास है यह. (सब स्टुडेंट्स हँसते hain)
टीचर: क्या!
असलम : ऐसा गोरख कहता है.
टीचर: कर क्या रहा है वो कैंटीन में?
कल्याण: सर सार्त्र पढ़ रहा है.
टीचर: वो कौन है? (स्टुडेंट्स हँसते है)
कल्याण : सर! jean paul सार्त्र.
असलम: सर वोह क्रन्तिकारी प्रेम कवितायेँ लिख रहा है.
कल्याण: नहीं सर वो सार्त्र पढ़ रहा है.
असलम: नहीं वो क्रन्तिकारी प्रेम कवितायेँ लिख रहा है.
कल्याण : सार्त्र पढ़ रहा है!
असलम: क्रन्तिकारी प्रेम कवितायेँ लिख रहा है!
कल्याण: मुझे पता है!
असलम: मुझे पता है !
कल्याण: मे दोस्त हूँ की ये ?
टीचर: चुप! बैठों दोनों. सार्त्र पढ़ रहा है ,क्रन्तिकारी कविता मे सुनाता हूँ कविता :
बगुला बैठा ध्यान मैं,
प्रात : जल के तीर,
जैसी तपसी तप करे,
मलकर भस्म शरीर,
तीर जो देखी मछली,
काहै मीर,
ग्रासी चोंच समूची फ़ौरन निगली (कविता की चौथी लाइन के बाद)
(सभी स्टुडेंट्स पलट जाते है और शिरीष और असलम की बातें सुनने लगते है,टीचर कविता बोल तो रहा है पर उसकी आवाज़ नै आ रही और बोलते बोलते वो निकल जाता है )
कल्याण: ओये वो कैंटीन में नहीं, रूम पर है.
असलम: क्या!
कल्याण: हाँ मे गया था उसके रूम पर.
असलम : हाँ तो रूम पर बैठ कर क्रन्तिकारी कवितायेँ लिख रहा है.
कल्याण: नहीं वो सार्त्र पढ़ रहा है.
असलम: क्रन्तिकारी कवितायेँ...
कल्याण: सार्त्र पढ़ रहा है!
असलम: अच्छा पर रूम से बाहर to आये
कल्याण: हाँ तू तू बात कर उस से.
असलम: तू बात कर.
कल्याण: तू बात कर.
असलम: मै क्यों बात करू.
कल्याण: तू दोस्त है ना उसका!
असलम: तू कर ना बात.
कल्याण: तू कर ना, तेरी आवाज़ में रूतबा भी है. देख वो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है, आ गया!
(अनुराग(गोरख)पलटता है और असलम से बात करने लगता है ,जैसे ही अनुराग पलटता है क्लास में मौजूद दोनों लड़कियां खड़ी हो जाती है और चली जाती है)
असलम-अरे गोरख तुम यहाँ?
अनुराग (गोरख) असलम से- अरे सुन देख लोगों तक पहुचने का प्रेम ही एक रास्ता है. हम प्रेम से लोगों तक क्रांति का सन्देश पहुचाएंगे. मैं अब से सिर्फ क्रांतिकारी कवितायेँ ही लिखूंगा . जिसके लिए प्रेम होना बहुत ज़रूरी है. जो आजकल मुझे महसूस भी कर रहा हु.असलम मुझे प्रेम हो गया है ये सुन मेरी नयी कविता
प्रतीक(गोरख)-शिरीष आजकल न में एक विशेष परिवर्तन महसूस कर रहा हु, लगता है अनीता इस संवादहीनता से ऊब रही है और उसकी उम्र भी तो मेरे से पांच छेह साल कम है इतनी परिपक्वता कहा से आ सकती है इतनी जल्दी.और लड़कियां पहल तो सिर्फ मुम्बैया फिल्म्स में करती है इसलिए आई हैट हिंदी फिल्म्स.पता है आज हर शहर और कसबे का मध्यम वर्ग्य लड़का कंघी वँघी करके सजधज के किसी हीरो डुप्लीकेट करता है
सुशांत(गोरख) कल्याण से- तुमने अनीता एक चीज़ पिछले पांच छेह दिनों में नोट की है? वो आजकल इतना ज्यादा स्लीवेलेस पहनती है की बाहै और बगलों के नीचे का काफी हिस्सा दिखाई देता है .और आज जो उसने हरे रंग का टॉप पहना था उसका गला इतना खुला हुआ था इतना खुला हुआ की समझो मोड लड़कियां भी ऐसा दुसाहस नहीं करेंगी. अब तुम इससे अनीता की बेशर्मी कहोगे ,लेकिन ऐसा हैं नहीं. ये उसका एक संकेत है,ये उसकी खीज और बेचैनी की अभिव्यक्ति है. इतना उत्तेजक कपड़ा पहनकर अपने शरीर को इतना खोल कर वो मुझसे कहना चाहती है की में अपनी मौजूदा निर्णयहीनता को तोडू ,में उससे साफ़ साफ़ बात करू. आखिर लड़की अपने शरीर के माध्यम से ही मौन को भाषा में बदलती है.
कल्याण-हाँ तो लड़की से जाकर बात करो,उससे कहो मुझे आपसे एक ज़रूरी बात करनी हैं ,जो बैठे कर मकड़जाल बुनते रहते हो उससे बंद कर दो .
शिरीष-ज्यादा से ज्यादा करेगी क्या मन ही तो करेगे जाकर बोल दो लड़की से और खत्म करो किस्सा
अनुराग(गोरख)-यही..यही बात अनीता ने कितने अनोखे तरीके से अपने सुन्दर युवा शरीर से मौन को भाषा में बदलते हुए कहा था और तुम कितने भौंडे और फूहड़ तरीके से कह रहै हो ...छी...
शिरीष-अनीता जी मेरा नाम गोरख है और में आपसे प्यार करता हु यार ये छोटी सी बात कहने में आपको तकलीफ किस बात की है
प्रतीक(गोरख)-अरे नहीं है यार,में तो बस एक सही मौके का इंतज़ार कर रहा हु वैसे बाय द वे हमारे इस प्यार को जैसा तुम समाज रहै हो वैसा वो है नहीं,गुरु ये एक अलग और अजब तरह का खेल है,इसमें कोई कपट नहीं है हम दोनों एक दुसरे के लिए बिलकुल पारदर्शी है ट्रांसपेरेंट कुछ भी छुपा हुआ नहीं है कल्याण-अरे यार तो में भी तो यही कह रहा हु की लड़की से जाकर बात कर
सुशांत(गोरख)-यार बात करना कोई बड़ी चीज़ नहीं है .जो जो तुम चाहते हो वो सब हो जायेगा प्रतीक(गोरख)-देख लेना सब हो जायेगा
अनुराग(गोरख)-देख लेना सब हो जायेगा (सुशांत,प्रतीक,अनुराग चले जाते है ) …………………………………………………………………………………………………………………… ............................................................................................................................................................
Scene-8
(नींद न मुझको आये गाना) (गाना सुनते ही जहाँ असलम और कल्याण मस्ती करने लगते है वही शिरीष को गुस्सा आ रहा है.शिरीष उठने को होता है तो दोनों उसको रोक लेते है .लेकिन आखिरकार शिरीष से रहा नहीं जाता और वो सुहेल(गोरख के कमरे में आ जाता है ) ............................................................................................................................................................. .............................................................................................................................................................
शिरीष -गोरख [सुहेल(गोरख) सुनता नहीं है )]
शिरीष-(ज़ोर से)-गोरख
(सुहेल अपनी दुनिया में खोया हुआ है )
शिरीष-(और ज़ोर से ) गोरख!
[गाना बंद हो जाता है.सुहेल(गोरख) शिरीष को देखता है )
सुहेल(गोरख)- शिरीष इधर आओ ,देखो अनीता अपनी खिड़की खुली छोड़ गयी है खिड़की खुली छोड़ के वो ज़रूर मुझसे कुछ कहना चाहती है… वो कहना चाहती है......
शिरीष(गुस्से में )- अरे कुछ नहीं कहना चाहती ये सब आपका भ्रम है अपने कभी पुछा है जाकर की वो लड़की आपको जानती भी है,आपका नाम भी मालूम है उसको? कुछ करते तो है नहीं दिनभर काल कोठरी में बैठे रहते है,जाईये जाकर बोलिए उनसे मैडम मेरा नाम गोरख है और में आपके प्यार में पागल हो रहा हु (चिल्लाते हुए) (असलम और कल्याण शिरीष को खीच कर ले जाते है)
कल्याण- गोरख मैं आता हूँ…
सुहेल(गोरख)-शिरीष मिश्र…..
तुम नहीं जानते,
इतिहास में खुली रह गयी एक अकेली खिड़की का क्या अर्थ होता है.
लेकिन मैं जानता हूँ, खुली खिड़की का एक भविष्य होता है.
जिसमें से प्रतिज्ञाओं और संकल्पों की रौशनी फूटती है,
ये प्रेम की वो खिड़की है जिसका एक पल्ला पूरब तो दूसरा पशचिम की ओर खुलता है.
यह विचारों का पूरब पशचिम है.
ये वो खिड़की है जिसमे बहती हवा कभी निराशा का दीमक नहीं लगने देती.
शिरीष मिश्र कैसे जानोगे तुम खुली खिड़की का अर्थ
(Shift to teacher’s table)
Scene-9
कुंदन(teacher )- नाम?
कल्याण-कल्याण......अ अ गोरख
कुंदन-क्या किया उसने?
कल्याण-सर वो अपने कमरे में ही रहता है
कुंदन- तुम कहा रहते हो, गार्डेन में?
कल्याण-सर उसने दाढ़ी बहुत बड़ी कर ली हैं
कुंदन- तो तुम्हें दाढ़ी से दिक्कत है ?
कल्याण- सर वो सारा टाइम बालकोनी में खड़ा रहता है
कुंदन- तो मैं ये कंप्लेंट लिखूं की वो बालकोनी में खड़ा ..
कल्याण- सर कंप्लेंट तो है ही नहीं. हम तो बस उसकी हालत आपको बता रहे हैं.
कुंदन- ज़रूरी काम कर रहा हूँ. तुम बहार निकलो, चलो निकलो…
कल्याण - सर बस स्टॉप.
कुंदन-क्या बस स्टॉप?
कल्याण- सर कल शाम को गोरख बस स्टॉप पे खड़ा था
(सुशांत(गोरख) तेज़ी से आता है और खड़ा हो जाता जैसे बस का इंतज़ार कर रहा हो )
कुंदन- अकेला खड़ा था?
कल्याण- नहीं सर मैं भी था, और भी लोग थे
(जैसे ही कल्याण ये बोलता है और कई लोग जल्दी से आते है और सुशांत के आगे आकर खड़े हो जाते है सब अपनी अलग अलग पोसिशन मे फ्रीज्ड हैं )
कल्याण- और सर बहुत देर से बस नहीं आ रही थी
कुंदन- कौनसी बस थी?
कल्याण- सर आप समझ नहीं रहे हो आप देखो
(कल्याण बस के लिए इंतज़ार कर रहै लोगों के पास जाकर खड़ा होता है) बस स्टॉप
(जैसे ही कल्याण उनके साथ खड़ा होता है बस स्टॉप का म्यूजिक बजता है और सारे लोग जो फ्रीज्ड थे अपनी अपनी क्रिया करने लगते है )
पहला यात्री -अरे मानव भाई रीलैंस नु किट्टू गब्भ्रेउ (गुजराती भाषा मे )
दूसरा यात्री- एक सौ ने छविस पॉइंट्स
पहला यात्री- एक सौ ने छविस! मारी नाखिया…
कल्याण -भाईसाहब बस नंबर 316 चली गयी क्या ?
दूसरा यात्री - आवे छे आवे छे
कल्याण -अनीता एंट्री
Anita-(अनीता भागती हुई आती है ) रिकक्षा, रिकक्षा एक्स्कीउस मी एक्स्कीउस मी बस नंबर 666 चली गयी क्या ? (कोई उसकी बात नहीं सुनता सब अपने काम मैं लगे हुए हैं) (अनीता परेशान होकर रिकक्षा रिकक्षा चिल्लाती हुई वहा से चली जाती हैं.तभी भीड़ को हटाते हुए सुशांत(गोरख) आगे आता है )
सुशांत(गोरख)-इट इज इस येट टू कम(पर तब तक अनीता जा चुकी होती है )
[म्यूजिक बंद होता है और सब लोग fir से फ्रीज्ड हो जाते है )
कल्याण -सर ये हुआ था
कुंदन -तो इसमें गलत क्या है? क्यों टाइम वेस्ट कर रहै हो बहार निकलो
कल्याण -सर ये हुआ था पर गोरख ने जो इनको (शिरीष और असलम) बताया वो कुछ और था (कल्याण शिरीष और असलम को धक्का देता बस स्टॉप की तरफ )
कल्याण-अब ये कल्याण है
कुंदन-कल्याण कौन है?
कल्याण-सर कल्याण मैं हु
कुंदन-तो अब ये कौन है?
कल्याण -सर अब ये कल्याण है
कुंदन-तो तुम कौन हो ?
कल्याण - सर में तो कल्याण ही हु
कुंदन-तो मैं कौन हु?
कल्याण- सर आप भी कल्याण (झल्लाते हुए) अरे तुम कहै के कल्याण हुए अरे आप देख लो न सर (शिरीष और असलम कल्याण की नक़ल करते हुए बस स्टॉप की तरफ जाते है )
[music ]
(बस स्टॉप पर खड़े लोग फिर से अपनी अपनी क्रिया करने लगते हैं)
पहला यात्री -अरे मानव भाई रीलैंस नु किट्टू गब्भ्रेउ (गुजराती भाषा मे )
दूसरा यात्री-एक सौ ने छविस पॉइंट्स पहला यात्री-एक सौ ने छविस !!!!! मारी नाखिया
असलम और शिरीष(जो कल्याण है)-भाईसाहब बस number 316 चली गई क्या?
दूसरा यात्री -आवे छे आवे छे
तीसरा यात्री-भाईसाहब अखबार देगे (तभी अचानक अनीता आती है और बड़े प्यार से नाचती हुई "रिक्शा रिक्शा" चिल्लाती है ) सब लोग उसी को देखने लगते है और बस देखते ही रह जाते है )
अनीता-एक्स्कीउस मी (सब लोग अपने हाथ खड़े करते है ) "मैं"
अनीता(हँसते हुए)-नॉट यू (इशारा करते हुए) him ..
चौथा यात्री-हम
पहला यात्री-हम नहीं हिम (सब हटते है और पीछे गोरख अपनी कविता हलके से बोल रहा होता है )
अनीता गोरख से - बस नंबर 666 चली गयी क्या?
सुशांत(गोरख) (एकदम हीरो की तरह)- नो इट इस येट टू कम
अनीता- हाउ स्वीट (अनीता बहुत खुश हो जाती है और "taxi.. taxi.. " चिल्लाती हुई चली जाती है )
(जैसे ही अनीता चली जाती है बस स्टॉप की भीड़ पीछे चली जाती है और खड़ी हो जाती है )
कल्याण (असलम और शिरीष से)- अच्हा किया यार
(तीनो दोस्त कुंदन(टीचर ) के पास जाते है. कुंदन अनीता को देख कर खुद कही खो जाता है )
कल्याण-सर
(कुंदन ध्यान नहीं देता )
कल्याण-सर
कुंदन-हाँ !
कल्याण-सर ये वो था जो नहीं हुआ था
कुंदन-तो वो क्या था?
कल्याण -सर वो हुआ था
कुंदन-है?
कल्याण - सर यही तो गोरख को लग रहा है की साड़ी भीड़ में अनीता ने सिर्फ उसी से पुछा "क्या बस नंबर 666 चली गयी है क्या ?
कुंदन-अच्हा .तो बस चली गयी थी या नहीं चली गयी थी
शिरीष कल्याण से -अरे छोड़ न मंध्बुधि हैं इसको नहीं समझ आयेगा
कुंदन-ऐ क्या बोला तू ?किसको नहीं समझ आयेगा समझाओ मुझे
कल्याण -एक और बात सर लैटर वाली
सर एक दिन अनीता अपनी बालकनी में आई …………उसी वक़्त सुहेल( गोरख) भी अपने कमरे की खिड़की पर आया
सुहेल(गोरख)- कविता
उगने दो ये पेढ़,
ये पौधे ये धरती उगने दो
(अचानक सुहेल(गोरख) की नज़र बालकनी पर खड़ी अनीता पर जाती है सुहेल अचानक बोलने लगता हैं "ये इश्क हैं मेरा इश्क हैं" अनीता के हाथ में एक कागज़ है वो उसमे से कुछ पढ़ती है और फिर फ़ेक देती है, उसके बाद वहां से चली जाती है सुहेल(गोरख) अपनी तरफ के मंच के विंग से निकल कर दूसरी तरफ के विंग से आने के लिए दौड़ता है, उसके आने से पहले पीछे खड़ी बस स्टॉप की भीड़ बहुत सारे कागज़ गिरा देती है, जैसे ही सुहेल(गोरख)मंच पर आता है, वो इतने सारे कागज़ देखता है
[music]
और उन्हैं उठाने लगता है और अनीता का लिखा हुआ कागज़ ढूँढने लगता है, वो कागज़ उठा रहा है और कल्याण प्रवेश करता है , गलती से उसका पैर एक कागज़ के टुकड़े पर पड़ जाता है)
सुहेल(गोरख)- पीछे हट पीछे हट ,पैर नहीं
(कल्याण को उसके लिए बुरा लगता है और वो भी कागज़ उठाने लगता है, जैसे ही कल्याण कागज़ उठाने में व्यस्त हो जाता है सुहेल(गोरख) अपने इकट्ठे किये हुए कागज़ लेकर अपने कमरे की तरफ चला जाता हैं )
[अनुराग,सृष्टि प्रस्थान करते हैं और प्रतीक(गोरख), सुशांत(गोरख), मनोज(गोरख) अपने अपने स्थान से आगे बढ़कर सुहेल को देखते हुए अपनी-अपनी कवितायेँ कहते हैं... ऐसा करते हुए वो अपनी जगह पर खड़े होकर घूमने लगते हैं...]
प्रतीक(गोरख) – अरे अनु कल शाम जो तुमने मेरे लिए चिट्ठी फेंकी थी,वो नीचे कागज़ के हज़ार टुकडो मे खो गई ,मेने बहुत ढूंढा रात २ बजे तक ढूंढ़ता रहा लेकिन नहीं मिली वैसे मे जानता हूँ की तुमने चिट्ठी मे क्या लिखा होगा उस चिट्ठी का जवाब मेने लिखा हैं
सुशांत(गोरख ) की कविता-
हाँ, तुम मुझसे प्यार करो,
जैसे हवाएं मेरे सीने से करती हैं,
जिनको वो गहराई तक दबा नहीं पाती,
जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं,
तुम मुझसे प्यार करो जैसे मैं तुमसे करता हूँ,
आइनों रोशनाई में घुल जाओ,
और आसमान में मुझे लिखो और मुझे पढो,
आइनों मुस्कुराओ और मुझे मार डालो,
आइनों मैं तुम्हारी ज़िन्दगी हूँ...
मनोज की कविता-
Tonight i can write the saddest lines,
Write, for example, that the night is shattered,
and the blue stars shiver in the distance,
the night wind revolves and sings,
I loved her, and sometimes, she loved me too.
[इतने में अनीता गोरख के कमरे में आती है और उसके ऊपर कागज़ के टुकड़े गिराने लगती है.. ये सब देखकर गोरख फूट फूट के रोने लगता है... अनीता कमरे से बहार चली जाती है. अनीता के जाते ही मनोज, सुशांत और प्रतीक चुप हो जाते हैं. लेकिन उनका अपनी अपनी जगह पर घूमना भी जारी है. तभी चौकीदार लेफ्ट विंग से आता है]
Scene-10
चौकीदार- अब्बे हटो भोसड़ी वालो...
[राईट विंग की तरफ से वो अनीता और उसकी दोस्त को आते हुए देखता है]
चौकीदार- आ जाइये मैडम, भगा दिया सबको.
[विंग से अनीता और उसकी दोस्त की आवाज़ आती है]
दोस्त- Come on Anita let's go. It's important.
अनीता -Let it be. I don't want to get into it. I am scared. Leave it.
दोस्त- You wait here I'll talk to him.
दोस्त (चौकीदार से)- क्या है ये?
चौकीदार- क्या है?
दोस्त- खुद ही देखो न क्या है ये?
चौकीदार- चिट्ठी है ।
दोस्त- चिट्ठी नहीं प्रेम पत्र है ।
चौकीदार- किसका है?
दोस्त- नाम पता दोनों लिखा है... कोई गोरख है। रूम नंबर 306
चौकीदार- अरे वो...(रुक जाता है और झूट बोलता है) आ... हम नहीं जानते...
अनीता (बहुत डरे हुए है)- This guy is really weird. He has such big scary eyes, long beard, he wears this long dirty t-shits and keeps on staring. Say it in hindi Bhoomi.
दोस्त(चौकीदार से)- उसकी डरावनी आँखें हैं. लम्बी सी दाड़ी है. और गंदे से कुरते पेहैनता है और घूरता रहता है.
अनीता (बिलखते हुए बोलती है) - I'm not safe here. I need security. What's his name?
दोस्त- इसका नाम नोट करते हैं. तेरा नाम क्या है?
चौकीदार- अरे रे रे, हमारा नाम क्यूँ नोट कर रहै हैं?
दोस्त- वो तो हम नोट करेंगे ही. तू बस अपना नाम बता.
चौकीदार (बिलकुल बुरी तरह डर चूका है) - अरे हम कह रहै हैं न....
दोस्त( बात काट देती है)- तू अपना नाम बता (चिल्लाते हुए)
चौकीदार- अरे हम कह रहै हैं हम पक्का कुछ करेंगे. आप हमारा नाम मत लिखिए. हम पक्का कुछ न कुछ करेंगे....
दोस्त- ठीक है खुद ही कुछ कर वरना अगर हम करने पर आये तोह बहुत भारी पड़ेगा.
[दोस्त और अनीता राईट विंग से चले जाते हैं। चौकीदार बहुत डर जाता है और राईट विंग से तीनो दोस्तों की आवाज़ आती है। वो लोग चाय की दुकान पर बात कर रहै हैं। चौकीदार उनकी ओर बढ़ता है। इतने में तीनों दोस्त भी मंच पर आते हैं।]
कल्याण- दत्ता, दूध पता है क्या होता है? वो चाय में डलता है ।
शिरीष- छोड़ यार, ये कैंटीन थोड़ी ना है ।
कल्याण- हाँ, अस्पताल है। [चौकीदार उनकी ओर बढता है]
चौकीदार- अरे कल्याण भैय्या...
कल्याण- ज़हर पिलाते हैं
चौकीदार- कल्याण भैय्या इधर आइये... ये देखो गोरख बाबू क्या किये हैं ।
[चिट्ठी कल्याण के हाथों में देता है। कल्याण असलम को चिट्ठी दिखाते हुए बोलता है]
कल्याण- ये तो लव लैटर है?
चौकीदार- हाँ लव लैटर है और चूतिये ने अपना नाम पता, दोनों लिख दिया है। लड़की बहुत डर गई है। हमारी नौकरी ले लेगी। कुछ करो...
असलम- हाँ ठीक है यार, करते हैं कुछ
चौकीदार- हाँ! कुछ करो... अगर हमारी नौकरी पर आई तो तीनों को घसीटेंगे। गाँव भेजो उस साले पागल को... [कहता हुआ चला जाता है]
कल्याण- अरे, चौकीदार भैय्या..(चौकीदार लेकिन रुकता नहीं हैं )ये क्या मुसीबत है.. कहाँ है ये मेंटल?
शिरीष- मैं उसके रूम पे गया था। दरवाज़ा अन्दर से बंद था अन्दर से अजीब-अजीब सी बडबड़ाने की आवाजें आ रही थीं।
असलम- कल रात दो बजे वो मेरे कमरे में आए। आँखें चौड़ी और लाल थीं। कुछ फ्रेंच जैसी भाषा में बहुत देर तक बोलते रहै। बीच में हकलाते थे और मुंह में लार आ रही थी। और फिर बहुत देर तक हँसते रहै। कल्याण- भाई इनको हो गई है बीमारी, स्चिज़ोफोबिया
असलम(चौंकते हुए)- स्किजोफ्रेनिया !
[म्यूजिक आता है। राईट विंग से सुशांत और रूपा आते हैं और लेफ्ट विंग से सुहेल आता है। उन तीनों की झोली में बहुत सारे कागज़ के टुकड़े हैं। तीनों चलते-चलते मंच के बीच में आके बैठ जाते हैं और कागज़ ज़मीन पर रखकर उनमें से चिठ्ठी ढूँढने लगते हैं। तभी तीनो दोस्त अपने-अपने गोरख की ओर बढ़ते हैं और उनके सामने खड़े हो जाते हैं]
कल्याण- गोरख!
[तीनो गोरख अपने कागज़ के टुकड़ों को छुपाने की कोशिश करते हुए एक दूसरे को पीठ करके बैठ जाते हैं और अपने कागज़ के टुकड़ों को अपने अपने पीछे छुपा लेते हैं। कल्याण के पुकारने पर तीनो गोरख पलटते हैं]
शिरीष- आप जिस लड़की के पीछे पागल हो रहै हैं मजनू की तरह, क्या उसे ये भी मालूम है कि आपका नाम क्या है?
असलम- और ये भी सच हैं की आप बिना कुछ किये सोचते ही सोचते पागल हुए जा रहै हैं… चलिए गोरख बाबू हम आपको उस लड़की से मिलवाते हैं ।
(तीनो गोरख एकसाथ कविता बोलते हैं )
उसे चहिये प्यार,
चहिये खुली हवा.
लेकिन बंद खिडकियों से टकराकर अपना सर ,
लहुलोहान गिर पढ़ी है वो.
कल्याण -ओये गोरख . चल उठ मुंह हाथ धो .दाढ़ी ढूढ़ी बना जब ऐसी लड़की से प्यार किया हैं तो बन उसके जैसा )
(तीनो फिर कविता बोलते हैं )
गिरती है आधी दुनिया,
सारी मनुष्यता गिरती है,
हम जो जिंदा हैं हम सब अपराधी हैं,
हम दण्डित हैं.
(अचानक हर गोरख अपने सामने खड़े दोस्त को उसके collar से पकड़ता है और गिब्बेरिश बोलने लगता है. सभी गोरख हैरान होते हैं की वो क्या बोल रहे हैं. तभी उनके शरीर में बहुत दर्द होने लगता है और वो ज़मीन पर गिर जाते हैं. तीनो दर्द में तड़प रहे हैं और ज़मीन पर लगातार दर्द की चार मुद्राएं बना रहे हैं)
कल्याण - अरे गोरख! होश में आ… होश में नहीं आयेगा तो पागल हो जायेगा… गोरख!
मनोज (गोरख )-
ये आखें हैं तुम्हारी,
तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समंदर.
इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चहिये
(यही कविता प्रतीक (गोरख ) भी बोलता हैं और मंच के पीछे से भी यही कविता बोली जा रही हैं ) (बोलते बोलते प्रतीक और मनोज आगे बढ़ते हैं और रूपा (गोरख ) और सुशांत (गोरख ) को सँभालने की कोशिश करते हैं उन्हैं गले लगाते हैं , लेकिन सुहेल (गोरख ) अब भी तड़प रहा हैं बहुत तकलीफ़ में हैं .धीरे धीरे रूपा और सुशांत शांत हो जाते हैं और उन दोनों के शांत होते ही सुहेल(गोरख) दर्द से करहाते हुए तेज़ी से चारों मुद्राएं करता है और बेहोश हो जाता है. वो तीनो निढाल से ज़मीन पर पड़े हैं . तभी चौकीदार आता हैं कुंदन (टीचर) के साथ )
Scene-11
चौकीदार- साहब ये देखो ये रहा गोरख
कुंदन (अपनी छड़ी से 2-4 बार सुहेल (गोरख) के पैर पे मारता है) - गोरख! गोरख… उठ
कुंदन (कल्याण से )- ए! क्या हुआ इसको ?
कल्याण - वो…
कुंदन (बीच में काटते हुए )- चुप! बहार अमबुलंस खड़ी है लेके चलो इसको
कल्याण -सर इसके गाँव में बात हो गयी है ये गाँव जायेगा. शिरीष इसका सामान ला
कुंदन- तुम तीनो इसको लेके जाओ
कल्याण टीचर से (बेहद गुस्से में ) हाँ! लेके जा… लेके जा… अरे तू लेके जा ना , हाथ लगा इसको तू… जा यहाँ से (कुंदन को धक्का देते हुए, असलम सर को संभालता है और बहार जाने की लिए कहता हैं )
कल्याण -शिरीष सामन ला इसका (शिरीष मंच के उस हिस्से में जाता है जहा गोरख का कमरा हैं )
(music)
मनोज (गोरख )-
तुम वहाँ से बहुत आगे निकल आये हो जहाँ से चले थे,
मगर तुम्हें अभी और भी आगे जाना था.
अभी कल ही तो नाग भूषण पटनायक से मिलना था,
और मौत के खिलाफ उनकी लड़ाई में शामिल होना था.
करने थे सुख दुःख के हज़ार चर्चे,
घट्नाओ को अपने विवेक के चरखे पर कातना था
(कविता के बीच में रूपा और सुशांत उठ जाते है और पीछे आकर खड़े हो जाते हैं )
प्रतीक (गोरख )-
बच्चों में बांटना था नए विचारों का पराग,
पीड़ित लोगों में विद्रोह का राग बांटना था.
लेकिन तुम नहीं हो,
हमने अपना एक सेनापति खो दिया है,
हमारी एक मशाल बुझ गई है,
हमारे गीतों की एक प्यारी कड़ी टूट गई है.
एक गहरे सदमे में तुम्हारी यादों से घिरे हुए,
हम यहाँ खड़े हैं,
जहाँ दूर से आती हुई एक धीमी ललकार सुनाई पड़ती है -------------------------------
(सब अपने गमछे उतार लेते हैं )
(इसी बीच शिरीष गोरख के कमरे मे जाता हैं अपने दोस्त के कमरे मे आकर शिरीष को बहुत बुरा लगता है वो रोने लगता है (कविता के चलते शिरीष सुहेल (गोरख ) का suitcase लाकर उसके पास रख देता है)
मनोज (गोरख )-
आगे बढ़ो दोस्तों,
इस तरह कैसे चल सकता है?
इतनी भूख है, इतनी गुलामी है, इतनी मौत है,
जीवन को चारों ओर से दबोचती इतनी मौत,
आखिर इस तरह कैसे चल सकता है?
दोस्तों आगे बढ़ो,
कि ये अछोर अँधेरा छट जाये,
की ज़िन्दगी जीते और मौत डर के सामने न आ पाए,
और कभी आये भी तो तुम्हारा आदेश लेकर आये,
गरज ये,की जीना आसान हो,
मरना कठिन हो जाये.
(कविता समाप्त होते-होते सुहेल (गोरख ) धीरे-धीरे उठता है और खड़ा होता है अपने गमछे को ऊपर की ओरे जोर से खींचता है और खुद को फ़ासी लगा लेता है सब लोग एक कदम आगे बढ़ते हैं पर रुक जाते हैं और चुप चाप गोरख को देखते रहते हैं
(म्यूजिक तेज़ होता हैं और धीरे धीरे फेड आउट होता है)
-x-x-x-
शुक्रवार, 20 जनवरी 2012
’लाल पेंसिल....’
लाल पेंसिल
मानव कौल
Scene 1
सब बच्चे embryo की मुद्रा में लेटे हैं। एक बीट को फ़ॉलो करते हुए सब हल्का हिलना चालू करते हैं मानों पहली धड़कन अभी आई हो... कुछ देर में सब धीरे-धीरे उठते हैं। पास में पड़े पेन और चरों तरफ बिख़रे हुए कोरे काग़ज़ों को देखते हैं। काग़ज़ लेकर अपनी जगह जाते हैं और लिखने लगते हैं।
सब सामने देखते हैं और सीधे बैठ जाते हैं।
उसके बाद सभी क्लास का lesson रट रहे हैं जो सिर्फ़ साउंड है, कुछ gestures है और कुछ rhythm है। उनके बीच में नंदु है जो सब कुछ ग़लत कर रहा होता है। वह कोशिश करता है कि सब कुछ सही करे पर उससे कुछ भी सही नहीं होता। तभी द्रुपद नाम का एक टीचर आ जाता है। वह नंदु को देखता है कि वह सब कुछ ग़लत कर रहा है। वह उससे अलग से करने को कहता है, पर वह नहीं कर पाता।
(नीतू द्रुपद के पास जाती है।)
नीतू- सर ये तो सब ग़लत कर रहा है।
(द्रुपद को कॉपी दिखाती है और करके बताती है। द्रुपद उससे कॉपी ले लेता है और नंदु को देता है। वह फिर भी नहीं कर पाता। द्रुपद उसे वापस अपनी जगह बिठा देता है। द्रुपद पान थूकने के लिए बाहर जाता है तब सभी बच्चे नंदु को चपत लगाते हैं। द्रुपद वापस आता है।)
द्रुपद- तो इस बार कौन-कौन भाग लेगा कविता की प्रतियोगिता में?
(तभी सब फ्रीज़ हो जाते हैं और पिंकी कहती है।)
पिंकी- मैं इसी क्लास में हूँ पर असल में नहीं हूँ। मैं यहाँ रहूँ या चली जाऊँ, किसी को बहुत फ़रक़ नहीं पड़ता। चपरासी के अलावा किसी को मेरा नाम तक नहीं पता। लोग मुझे ‘ए’ कहकर बुलाते हैं, जबकि मेरा नाम पिंकी है। मैं कविता लिखना चाहती हूँ। कैसे भी, किसी भी तरह, सबसे अच्छी कविता!
(फ्रीज़ ख़त्म होता है, द्रुपद वापस बोलना शुरू करता है।)
द्रुपद - पहले इस क्लास में जो अव्वल आएगा वह पूरे स्कूल की प्रतियोगिता में भाग लेगा। फिर जो इस स्कूल में अव्वल आएगा उसे सारे स्कूलों की कविता की सबसे बड़ी प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिलेगा। और उसके बाद भूल जाओ, क्योंकि उस प्रतियोगिता में मैं खुद चालीसवें स्थान पर आया था। और मुझसे आगे अभी तक कोई नहीं गया है। तो कौन-कौन भाग लेना चाहता है?
(पिंकी को छोड़कर सभी लोग अपने हाथ खड़े कर देते हैं।)
द्रुपद- ‘ए’ क्या नाम है तुम्हारा?
पिंकी- पिंकी...
द्रुपद- पिंकी, तुम कविता नहीं लिखोगी?
पिंकी- मुझे नहीं आती है।
द्रुपद- क्यों, पिछली बार तो तुमने लिखी थी कविता।
पिंकी- वह पापा ने लिखी थी।
द्रुपद- तो अब?
पिंकी- असल में यह हुआ था कि...
(पिंकी ऊपर देखती है, पीछे सिलुअट में। उसे अपने माँ-बाप लड़ते हुए दिखते हैं।)
बाप- फिर तुमने वही बात कही?
माँ- मैं वह बात नहीं कह रही हूँ।
बाप- तो क्या कह रही हो?
माँ- मैं वह बात कह ही नहीं रही थी।
बाप- फिर वही बात!
माँ- तुम फिर वही बोल रहे हो!
बाप- मैं वह नहीं बोल रहा हूँ।
माँ- देखो! तुम अभी भी वही बोल रहे हो।
बाप- वही क्या?
माँ- वही, देखो...
बाप- तुम बार-बार वही बात क्यों कर रही हो?
माँ- तुम बार-बार वही कह रहे हो।
बाप- देखो इससे पहले भी तुमने यही कहा था और अब भी तुम वही कह रही हो।
माँ- मैंने यही बात कब कही?
बाप- वाह! तुमने यह बात की ही नहीं?
माँ- तुम्हारी यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती।
बाप- अरे! अब मैंने यही बात कब कही?
माँ- देखो फिर वही बात?
बाप- देखो अभी तुमने ‘फिर वही बात’ कहा ना?
माँ- हाँ।
बाप- हाँ तो मैं भी वही कह रहा हूँ कि तुम बार-बार वही बात कर रही हो।
माँ- अरे तुम बार-बार वही बात कर रहे हो।
बाप- अरी अभी तो तुम मानी थी कि तुमने वही बात कही थी।
माँ- अच्छा ठीक है, अब तुम वही बात करो जो तुम पहले कह रहे थे?
बाप- हाँ यही तो कह रहा था मैं पहले भी।
माँ- यही कहाँ, तुम तो वही बात कर रहे थे?
बाप- हाँ मेरा मतलब वही बात।
माँ- तुम वही नहीं, इससे पहले यही बात कर रहे थे।
बाप- मैं तो कब से वही बात कर रहा हूँ।
माँ- हाँ मैं भी तो कह रही हूँ कि तुम कबसे वही बात कर रहे हो।
बाप- तो सबसे पहले तुमने वह बात छेड़ी ही क्यों?
माँ- अरे मैं वह बात नहीं कर रही थी।
बाप- तो कौन-सी बात कर रही थी?
माँ- अरे मैं वह बात कर ही नहीं रही थी।
बाप- वही बात! यही बात! यही बात! वही बात! उफ़्फ़!
माँ- नहीं, यही बात! वही बात! वही बात! यही बात! उफ़्फ़!
बाप- उफ़्फ़!
माँ- उफ़्फ़!
(पिताजी अपना सामान उठाते हैं और घर छोड़कर चले जाते हैं। पिंकी चुप रहती है। लाइट वापस क्लास में आती है।)
रोमा- सर इसके पापा इनको छोड़कर चले गए हैं।
पिंकी- नहीं, वह वापस आएँगे।
द्रुपद- जो भी है, सबको कविता लिखनी है। कंपलसरी है। ठीक है?
रोमा- सर, मैं तो कविता लाई हूँ, यह रही।
द्रुपद- अभी नहीं, कल देना। ठीक है।
(प्रत्युश कवि-सा दिखने वाला लड़का है।)
प्रत्युश- हाँ सर, मैं तैयार हूँ।
द्रुपद- अच्छे से लिखना, हें! कोई तकलीफ़ हो तो मेरे से पूछ भी सकते हो।
प्रत्युश- सर एक तकलीफ़ है!
द्रुपद- बाद में। तो कविता का विषय है- किताबें...
(सब बच्चे ‘किताबें’ शब्द कहते हैं। द्रुपद चला जाता है। इसी बीच चपरासी आकर बेल बजाता है। सभी बच्चे पीछे सीधी लाइन में बैठ जाते हैं। पिंकी क्लास में अकेली रह जाती है। वह रोमा की कॉपी से उसकी कविता चुराकर पढ़ लेती है फिर उस कविता को फाड़ देती है। तभी उसे एक खट की आवाज़ आती है। वह पलटकर देखती है तो उसे एक लाल पेंसिल दिखती है, जो अभी अभी ऊपर से गिरी है। वह उस पेंसिल को उठाती है। वह बहुत ख़ूबसूरत पेंसिल है। वह घबराकर इधर-उधर देखती है। क्लास में उसके अलावा कोई भी नहीं है।)
पिंकी- कौन है? कौन है? यह पेंसिल किसकी है?
(जब कोई जवाब नहीं देता तब वह लाल पेंसिल अपने पास रख लेती है।)
Scene 2
(पीछे सारे बच्चे लाइन में बैठे हैं। वे कविता लिखने की कोशिश करते हैं। कुछ बहुत ही कविता नुमा लाइनें बोलने की कोशिश करते हैं। जैसे “किताबें दिल का आईना हैं। किताबें जीवन हैं। नवल बुक डिपो पर आज बड़ी भीड़ है। वग़ैरह-वग़ैरह।” पर अंत में कुछ लिख नहीं पाते और चिल्लाकर अपना सिर झुका लेते हैं। इसी चिल्लाहट के साथ पीछे पिंकी भी चिल्लाती है। और माँ और पिंकी का सीन शुरू होता है।)
पिंकी- आह्ह!
माँ- पिंकी, क्या हुआ? क्या कर रही है?
पिंकी- माँ, मैं कविता लिख रही हूँ।
माँ- क्या?
पिंकी- मैं कविता लिख रही हूँ।
माँ- क्यों? क्यों लिख रही है कविता? अरे तबियत तो ठीक है तेरी? देख पूरा शरीर गर्म हो गया है तेरा। क्यों लिख रही है कविता तू?
पिंकी- माँ, कंपलसरी है, सबको लिखनी है।
माँ- अरे! कंपलसरी है, ठीक है। कंपलसरी है तो लिख, पर ज़्यादा दिमाग़ खर्च मत कर। ऐसे ही लिख दे कुछ भी।
पिंकी- कुछ भी।
माँ- हाँ कुछ भी, ऐसे ही दो लाइन। मतलब, चल लिखना तो शुरू कर। मैं हूँ यहाँ, लिख।
पिंकी- कुछ भी क्या माँ! कुछ तो बताओ?
माँ- अरे! मैं... मैं क्या बताऊँ? पागल है क्या?
पिंकी- मैंने पापा को फोन किया था, पर वह फोन ही नहीं उठाते हैं।
माँ- क्यों किया था फोन? क्यों किया था उनको फोन? ऐ! चल लिख मैं बताती हूँ। देख ऐसा कर, पिंकी तू सुन रही है ना?
पिंकी- हाँ।
माँ- हाँ, तो सुन। पहले तो तू कुछ लिख, फिर देख क्या लिखा है। फिर लिख जो देखा है। और ऐसे ही लिखती जा, लिखती जा। जब तेरा लिखना बंद हो जाए तो समझ ले कि हो गई कविता। और फिर वह कविता किसी को सुना दे। मुझे नहीं... किसी दूसरे को। वह हो गया तेरा कविता पाठ। देख कितना सरल है!
पिंकी- हाँ माँ, ‘बहुत’ सरल है!
माँ- अब चल लिख दे। उफ़्फ़!
(माँ के सिर में दर्द होने लगता है, वह चली जाती है। पिंकी वापस लिखने बैठती है तभी उसकी निगाह लाल पेंसिल पर पड़ती है। वह उसे उठाती है। और लिखना शुरू करती है, अचानक लाल पेंसिल उसके हाथों को तीन झटके देती है... जैसे उसने पींकी को अपने वश में किया हो और फिर वो लाल पेंसिल अचानक ख़ुद लिखने लगती है। पिंकी उसे रोकने की कोशिश करती है, पर वह उसके रोके नहीं रुकती है। फिर अचानक पेंसिल उसे खड़ा करती है और बुरी तरह घुमा देती है... पिंकी गिरती है और फिर लिखती है फिर पेंसिल उसे उठाती है धुमाती है गिराती है और लिखाती है। पिंकी बेहोश हो जाती है और पेंसिल धीरे-धीरे लिखने लगती है।)
(सामने बैठे सभी बच्चों ने अचानक अपनी कविता पूरी कर ली है। वे सभी एक के बाद एक, अपनी लिखी कविता को देखकर बोलते हैं-
वाह!
जे बात!
ग़ज़ब!
मार डाला!
क्या कविता है!
वेरी वेरी गुड!
आय हाय!)
(Black Out)
Scene 3
सारे बच्चे सपना देखने की मुद्रा में बैठे हैं।
भूमिका- शोर बहुत हो तो कुछ देर बाद शोर सुनाई नहीं देता। बहुत शोर में हम सब चुप हो जाते हैं। और तब सभी सपना देखते हैं। छोटे सपने, अभी इसी वक़्त के सपने। देखो सब अभी सपने में हैं, मैं भी। पर मैं इनके सपने जानती हूँ। सबके नहीं, कुछ के। जैसे पीहू।
पीहू को हमेशा लगता है कि कुछ कैमरे हैं जो उसे लगातार शूट कर रहे हैं, सालों से। लंदन के ग्लोब थिएटर में उसके जीवन का लाइव नाटक का टेलिकास्ट चल रहा है। एक आदमी उसके पैदा होने के समय से उसके ऊपर फ़िल्म बना रहा है। और लगभग सौ लोग लगातार उसकी यह फ़िल्म देख रहे हैं, सालों से।
(तभी एक आदमी शेडो में दिखता है जो फ़िल्म का डायरेक्टर है और वह फ़िल्म को एनाउंस करता है।)
डायरेक्टर- Ladies and gentlemen! It’s an honor to present you a film. A film which I believe is going to change the face of cinema. A film which I believe is going to redefine the word ‘cult’. Yes ladies and gentlemen, put your hands together for my film- “Peehu”.
(सभी ताली बजाते हैं। पीहू, पेशाब जाने का इशारा करती है पर शायद इशारा बदल गया है। वह आश्चर्य में है। बाक़ी सारे बच्चे जो दर्शक बन गए हैं, वे मूक तालियाँ बजाने का इशारा करते हैं।)
भूमिका- उसे लगता है कि वह लंदन की एक बहुत बड़ी अभिनेत्री है, जबकि इस क्लास में वह महज़ “पीहू” है। यह सोनू है। इसे जहाँ काली चींटी दिखती है उसे वह मुँह में रख लेती है। उसे लगता है कि जिस तरह उसके मुँह में यह काला चींटा चल रहा है। उसी तरह वह भी इस दुनिया के मुँह में चलती है।
(तभी सोनू को चींटा काट लेता है। सोनू चींटे को मुँह से निकालता है।)
सोनू- मैं इस दुनिया को कब काटती हूँ? जब मैं चलती हूँ, न दौड़ती हूँ, न ट्रेन एक्सीडेंट, न जब बम फटता है, तब हम दुनिया को काटते हैं। और दुनिया हमें।
(सोनू चींटे को मार डालती है।)
भूमिका- यह नीतू है। इसे लगता है कि यह एक दिन अचानक मर जाएगी, तब लोग इसकी अहमियत समझेंगे। कुछ लड़के जो इससे प्रेम करते हैं वह इसके प्रेम में आँसू बहाएँगे।
लड़के- नीतू, कभी कह नहीं पाया, उससे पहले ही तू मर गई। यार आई लव यू नीतू!
उसकी दूशमन उससे माफ़ी माँगने के लिए तरसेंगे।
दुशमन 1- ऐ माफ़ी माँग!
दुश्मन 2- अरे मर गई, अब क्या माफ़ी?
दुश्मन 1- बोला ना, माफ़ी माँग!
दुश्मन 2- तेरे लिए...
दोनों मिलकर- ऐ सॉरी यार!
भूमिका- टीचर्स उसे ग्रेट स्टूडेंट कहेंगे।
टीचर- लाखों में एक थी हमारी नीतू बिटिया। अरे बहुत ही ग़ज़ब की पढ़ाई करती थी नीतू। हम तो उसके पूरे खानदान को जानते थे। ग़ज़ब का खानदान था उसका। बताओ मर गई!
उसकी मौत पर स्कूल बंद कर दिए जाएँगे। देश में छुट्टी का ऐलान होगा। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक उसके लिए शोक सभा आयोजित करेंगे।
नेता- नीतू हमारे देश का भविष्य थी, हाँ गौरव थी।
और फिर वह एक दिन वो वापस आ जाएगी। उसके सारे दोस्त ख़ुशी के मारे चिल्ला भी नहीं पाएँगे, और वह कहेगी।
नीतू- श्श्स आ ! अब मैं आ गई हूँ ना, बस!
(और नीतू आशिर्वाद की मुद्रा में एक हाथ उठा देती है। तभी रोमा उठती है।)
रोमा- अबे क्या था यह सब?
भूमिका- ये रोमा है। इसे लगता है एक दिन Bruce Lee की आत्मा इसके अंदर आ जाएगी।
(रोमा ब्रूसली की तरह बहुत तेज़ चिल्लाकर एक कराटे की मुद्रा बनाती है।)
और तब ये बदला लेगी, उससे जिसने इसकी पेंसिल चोरी की थी, उससे जिसने इसका Boy friend छीना था, उससे जिसने उसकी शिकायत टीचर से की थी, असल में वो सबसे बदला लेना चाहती थी।
भूमिका- ये पिंकी है, यह बापू को अपना सच्चा दोस्त मानती है। क्योंकि क्लास में इससे और कोई बात ही नहीं करता।
पिंकी- सारी बापू! फिर लेट हो गई।
भूमिका- ये प्रत्युश है, भारत में कवियों की बुरी हालत के चलते इसका कविता सुनाने का तरीक़ा थोड़ा बदल गया है।
प्रत्युश- अबे उठो, कविता सुनो।
(सभी मना करते हैं कविता सुनाने से। वह डॉली को इशारा करता है।)
डॉली- अबे चुपचाप कविता सुनो वरना एक रापटा दूँगी ना खींच करके।
नीतू- हाँ, एक रापटा दूँगी ना खींच करके।
प्रत्युश- फूल ने कहा ख़ुशबू से...
(सभी चिल्ला देते हैं- वाह! क्या बात है! प्रत्युश नाराज़ हो जाता है।)
प्रत्युश- अबे! अभी शुरू भी नहीं किए थे हम!
(सारे बच्चे तुरंत अपनी जगह खड़े हो जाते हैं।)
Scene 4
(द्रुपद तेज़ी से चलते हुए क्लास में आता है। वह बैठने का इशारा करता है।)
द्रुपद- इस कक्षा में यह कविता अव्वल आई है, पर उसने अपना नाम नहीं लिखा। यह किसकी कविता है?
डॉली- सर, प्रत्युश की।
द्रुपद- तुमने पेंसिल से लिखी थी कविता?
प्रत्युश- नहीं सर! मैंने तो पेन से लिखी थी कविता, जैसा कि आपने कहा था।
(द्रुपद सबसे पूछता है। पिंकी अपना हाथ उठा चुकी होती है, पर कोई भी ध्यान नहीं देता। द्रुपद चिल्लाता है। सभी अपना सिर नीचे कर लेते हैं। तब द्रुपद की निगाह पिंकी पर जाती है।)
द्रुपद- ऐ क्या है? फिर शू शू? जाओ जल्दी जाओ और जल्दी आना। तो बताओ किसने लिखी है कविता?
पिंकी- सर, यह कविता मैंने लिखी है।
द्रुपद- अच्छा! मतलब यह पूरी कविता तुमने लिखी है?
रोमा- सर, झूठ बोल रही है।
द्रुपद- जानता हूँ। अच्छा तो सुनाओ, मैं देखता हूँ। एक भी ग़लती हुई तो तुम्हारी खैर नहीं। सुनाओ।
पिंकी- बस्ते में भर दूँ ये किताबें
मिट्टी से ढँक दूँ ये किताबें
बंद करके रख दूँ ये किताबें
दिखने में छोटी हैं, पर पढ़ने में मोटी हैं
काश! कभी ऐसा हो जाए
पन्नों पर बारिश गिर जाए
टप-टप अक्षर बहता जाए
मैं बूँद-बूँद रख लूँगी
जब जी चाहे तैरूँगी
जब जी चाहे पी लूँगी।
(द्रुपद देखता रह जाता है। सभी बच्चे हैरान होते हैं।)
रोमा- पिंकी! तू मेरी दोस्त बन जा यार।
(सभी उससे दोस्ती करना चाहते हैं। प्रत्युश नाराज़ हो जाता है। वह जबरदस्ती अपनी कविता सुनाने लगता है।)
प्रत्युश- किताबों के मेले हैं
फिर भी हम अकेले हैं
यूँ एक भी किताब जीवन में नहीं है
पर जीवन को देखो तो
वह असल में एक किताब है...
द्रुपद- तुम चुप रहो! चुप, एकदम चुप!
(प्रत्युश चुप हो जाता है।)
डॉली- (प्रत्युश से..) अबे बहुत लाउड कर दिया यार।
द्रुपद- पिंकी, यह कविता सच में तुमने लिखी है? तुम्हारी माँ ने तो नहीं लिखी?
पिंकी- मेरी माँ को तो पता भी नहीं है।
द्रुपद- तुम झूठ तो नहीं बोल रही हो?
रोमा- सर!
द्रुपद- बहुत अच्छी कविता लिखी है तुमने। सुनो अब कल ही तुम्हें अगली प्रतियोगिता के लिए दूसरी कविता लिखनी है। और उस प्रतियोगिता का विषय है- ‘परिवार’।
प्रत्युश- एक परिवार था
भूख थी
दर्द था
संग यह विचार था...
(तभी प्रत्युश की निगाह द्रुपद पर पड़ती है। और वह चुप हो जाता है।)
डॉली- (प्रत्युश से) अबे इस बार कतई सॉफ्ट कर दिया यार।
द्रुपद- पिंकी, तुम लिखो, परिवार।
(द्रुपद जाने लगता है।)
नंदु- सर आप रो रहे हैं?
(द्रुपद कोई जवाब नहीं दे पाता और चला जाता है।)
पिंकी- (रोमा से) तू सच में मेरी दोस्त बनेगी?
(रोमा के साथ बाक़ी लोग भी हाँ बोलते हैं। प्रत्युश और उसका गुट, सब पिंकी के नए दोस्तों को धमकाने लगते हैं। पर वे बहुत ज़्यादा हैं, इसलिए वे उन पर हावी हो जाते हैं। प्रत्युश हारने लगता है। तभी क्लास की घंटी बजती है। सभी चले जाते हैं। पिंकी क्लास में अकेली रह जाती है।)
पिंकी- बापू! मज़ा आ रहा है! हा हा हा हा! बापू, यह सब मुझसे दोस्ती करना चाहते हैं, सभी। बापू कमाल हो गया, कमाल। यही तो चाहिए था मुझे। हा हा हा हा! बापू कमाल का गिफ़्ट दिया है आपने मुझे यह ‘लाल पेंसिल’। यह झूठ है, मैं जानती हूँ। बस अब नहीं लिखूँगी। जो चाहिए था वह मिल गया। मैं इस पेंसिल को चपरासी को दे दूँगी, और माँ को सब सच-सच बता दूँगी। Promise!
(तभी प्रत्युश अंदर आता है।)
प्रत्युश- ए पिंकी, क्या सच सच बता देगी?
(पिंकी डर जाती है।)
प्रत्युश- किससे बात कर रही थी?
पिंकी- बापू से!
प्रत्युश- हा हा हा! बापू से? अरे बापू तो सिर्फ़ फोटो में हैं, सही में थोड़ी हैं। वह तो कब के मर चुके। इतिहास नहीं पढ़ा तूने?
पिंकी- पढ़ा है।
प्रत्युश- सुन, मैं तेरा पक्का दोस्त हूँ। है ना?
पिंकी- पहले भी तूने बोला था कि तू पक्का दोस्त है। पर तूने मेरी शिकायत कर दी थी सर से। कितनी पिटाई हुई थी।
प्रत्युश- अरे तब तो मैं छोटा था बहुत। पक्के दोस्त का मतलब थोड़ी पता था मुझे तब। जो पक्का दोस्त होता है वह कभी किसी को कुछ नहीं बताता।
पिंकी- तू सच में मेरा पक्का दोस्त है?
प्रत्युश- हाँ पागल! झूठ थोड़ी बोल रहा हूँ मैं।
पिंकी- तो चल साथ में लंच करते हैं।
प्रत्युश- अरे नहीं!
पिंकी- नहीं?
प्रत्युश- अच्छा ठीक है, एक शर्त पर। पहले बता कि यह कविता किसने लिखी है?
पिंकी- मैंने लिखी है।
(पिंकी डर जाती है।)
प्रत्युश- अरे चल! बोल किसने लिखी है कविता?
पिंकी- मैंने लिखी है।
(पिंकी भाग जाती है डर के मारे।)
प्रत्युश- अरे सुन, सुन, पिंकी, अरे सच्चे दोस्त को ऐसे छोड़कर जाते हैं क्या? पागल! क्या बापू, अब आपको भी पता चल गया ना कि इसने कविता नहीं लिखी है? झूठ बोल रही है, है ना?
(सभी चिल्लाते हैं। ‘ऐ’ प्रत्युश के मुँह से डर के मारे ‘बापू’ निकलता है।)
(Black Out)
Scene 5
(चपरासी भीतर आता है और वह पिंकी को देखता है। वह उसे आवाज़ लगता है। पिंकी उछलती-कूदती भीतर आती है।)
चपरासी- ऐ पिंकी! इधर आ। वाह! वाह! क्या बात है, बहुत चहक रही है आज?
पिंकी- आज का दिन जादूई था अंकल। एक दिन में सब कुछ उलट-पलट हो गया।
चपरासी- अरे क्या पलट गया?
पिंकी- कुछ नहीं पलटा अंकल। पूरी क्लास को मेरा नाम पता चल गया। मेरे बहुत सारे दोस्त बन गए। मैं अपनी क्लास में फ़ेमस हो गई।
चपरासी- यह सब कैसे हो गया?
पिंकी- असल में यह लाल पेंसिल ने... नहीं नहीं! मैंने, मैंने एक कविता लिखी थी जो क्लास में प्रथम आई।
चपरासी- तुम कविताएँ भी लिख लेती हो?
पिंकी- ऐसे ही कभी-कभी अपने विचारों को... अ अ अ ओह्हो छोड़ो।
चपरासी- अब तो तुम प्रथम आई हो तो कभी-कभी क्यों, हर कभी लिखा करो।
पिंकी- नहीं नहीं! मुझे ना यह पेंसिल पड़ी मिली थी। आप इसे कहीं फेंक देना।
चपरासी- ठीक है फेंक दूँगा।
(चपरासी पेंसिल लेता है और जाने लगता है। पिंकी उसे रोकती है।)
पिंकी- अंकल रुको।
(वह पेंसिल लेती है, उसे कुछ देर देखती है, फिर वापस चपरासी को दे देती है।)
पिंकी- ले लो, और इसे दूर फेंक देना। बहुत दूर, एकदम दूर! ठीक है?
चपरासी- ठीक है, फेंक देता हूँ।
(चपरासी जाने लगता है। पिंकी फिर उसको रोकती है।)
चपरासी- अरे मेरी माँ फेंक दूँगा बहुत दूर... पर तू कम से कम वह कविता ही सुना दे जो प्रथम आई है।
पिंकी- अरे अभी नहीं। अभी टाइम नहीं है। अभी मैं बहुत ख़ुश हूँ, हा हा हा...
(पिंकी चली जाती है। चपरासी कुछ देर लाल पेंसिल को देखता रहता है।)
(Black Out)
Scene 6
(माँ पिंकी के कमरे में पूजा कर रही है। पिंकी अंदर आती है।)
पिंकी- अरे माँ आप मेरे कमरे में यह क्या कर रहे हो?
माँ- यही तो वह कमरा है, जहाँ मैंने तुम्हें कविता लिखना सिखाया था।
पिंकी- अरे माँ आपको कैसे पता?
माँ- अरे सब पता है मुझे। तू बैठ इधर, बैठ। आँखें बंद, हाथ जोड़- हे भगवान! कितने बड़े-बड़े शब्द! कितना दिमाग़ खर्च हुआ होगा इसका! कितनी सुंदर कविता लिखी है मेरी बेटी ने।
पिंकी- माँ! मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ। असल में मैंने वह कविता नहीं लिखी है।
माँ- हे भगवान! देखो, हर बड़ा कवि यही कहता है। कि कविता मैंने नहीं लिखी है। वह तो बस लिखा गई।
पिंकी- माँ आप मेरी बात समझ नहीं रहे हो।
माँ- अरे भगवान क्या मैं इसकी हैंड राइटिंग नहीं पहचानती हूँ?
पिंकी- माँ वही तो! मैंने ही वह कविता लिखी है, पर असल में, नहीं लिखी है।
माँ- अरे तेरे हिंदी के टीचर आए थे।
पिंकी- कौन? द्रुपद सर?
माँ- हाँ, कितने ख़ुश थे। वह लेकर आए थे तेरे हाथ की लिखी कविता अपने साथ। बाप रे मैं तो विश्वास ही नहीं कर पाई।
पिंकी- पर माँ, असल में...
माँ- चल तू यह प्रसाद खा।
पिंकी- माँ! एक बहुत बड़ी समस्या है। मुझे ना, एक कविता और लिखनी है।
माँ- क्या? सच में! रुक मैं तेरे लिए गर्म दूध लेकर आती हूँ।
पिंकी- अरे माँ सुनो तो, मैं कविता नहीं लिख सकती।
(माँ नहीं सुनती है। वह चली जाती है)
पिंकी- हे भगवान क्या लिखूँ मैं! उफ़्फ़! हाँ, अ अ अ सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, परिवार।
(पीछे मास्क पहने द्रुपद, प्रत्युश, डॉली, मॉ और नीतू दिखते हैं। वह धीरे-धीरे पिंकी की तरफ़ बढ़ते हैं।)
प्रत्युश- कविता लिखने बैठी हैं पिंकी जी।
डॉली- चलिए हम भी देखते हैं कैसे लिखती है कविता।
नीतू- अरे उसे ध्यान लगाने दो।
द्रुपद- अरे चुप, पिंकी बेटा लिखो कविता, मैं भी नहीं लिख पाया था ऐसी महान कविता।
प्रत्युश- तूने ही लिखी थी ना कविता पिंकी?
डॉली- अरे अभी देख फिर लिखेगी।
नीतू- एक कवि लिख रहा है और हम उसे देख रहे हैं।
माँ- पिंकी बेटा कविता लिखना सिखाया था ना मैंने? याद है ना?
द्रुपद- प्रिंसिपल साब कितने ख़ुश है तुमसे, वाह!
प्रत्युश- क्या हुआ कुछ लिखा क्या?
डॉली- लिख रही है। लिख रही है।
द्रुपद- अरे चुप! उसे लिखने दो।
माँ- कैसे कवि जैसे दिखने लगी है!
नीतू- लिख लिया?
डॉली- चलो कुछ तो लिखा।
प्रत्युश- सुनाओ।
डॉली- सुनाओ।
नीतू- सुनाओ।
माँ- सुनाओ।
द्रुपद- सुनाओ पिंकी, अपनी महान कविता सुनाओ।
(पिंकी पढ़ना चालू करती है।)
पिंकी- एक था परिवार। पापा नहीं थे सोमवार। मम्मी थी मंगलवार। बुध को हुई मैं बीमार...
(इस पर सभी हँसने लगते हैं।)
प्रत्युश- अबे अख़बार पढ़ रही है क्या पिंकी?
नीतू- अरे इसे तो कविता लिखना ही नहीं आता।
(द्रुपद लाल पेंसिल उठाता है।वो पेंसिल अजीब तरीके से बड़ी हो गई है जैसे पिंकी का झूठ बड़ा हो गया है।)
द्रुपद- ये क्या है पिंकी?
पिंकी- लाल पेंसिल, यह तो चपरासी के पास थी। उसने तो इसे बहुत दूर फेंक दिया था। फिर यह यहाँ कैसे आ गई? और ये इतनी बड़ी कैसे हो गई?
(पिंकी पलटती है।)
माँ– ले ले, ले ले, लिख ले।
डॉली- हाँ हाँ, ले ले वरना कुछ भी नहीं लिखाएगा।
पिंकी- मुझे नहीं लिखना इस लाल पेंसिल से।
माँ- तो कैसे लिखेगी कविता?
पिंकी- मैं नहीं लिखूँगी कविता।
डॉली- तो सब दोस्त, दुश्मन हो जाएँगे। सब तेरा नाम भूल जाएँगे।
पिंकी- मुझे लाल पेंसिल से डर लग रहा है।
माँ- जब जब यह लाल पेंसिल कविता लिखेगी...
डॉली- तब तब यह बड़ी होती जाएगी।
माँ- यह तेरी दोस्त है।
डॉली- सच्ची दोस्त।
सभी- यह ले।
पिंकी- अ अ अ...
(इसमें द्रुपद के हाथ में बड़ी हो चुकी लाल पेंसिल है जिसे वह उछालता रहता है। और नीतू और प्रत्युश को उसे एक चक्कर में घुमाते रहते हैं। पिंकी अंत में चिल्लाकर बिस्तर में अपना चेहरा डर के मारे छुपा लेती है।)
(Black Out)
Scene 7
सारे बच्चे अलग अलग count पर उठते हैं मानो सर ने उन्हें उठाया है या वह कुछ पूछने के लिए उठे हैं। यह सब पपेट की तरह होता है। फिर अचानक उन्हें समझ में आता है कि वे पपेट हैं। उनके दोनों हाथ बिना उनकी इच्छा के उठ जाते हैं। वे उस धागे (अदृश्य) को देखते हैं जिसके ज़रिये उनके हाथ जुड़े हुए हैं। वे उस धागे को छूकर देखते हैं। फिर सभी अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते हैं और अपने से जुड़े सभी धागों को तोड़ देते हैं। धागे टूटते ही सारे बच्चे गिर जाते हैं। फिर अचानक उठते हैं। और कंधे उचकाते हुए, हँसते हुए अपनी नई मिली आज़ादी का मज़ा लेते हैं। तभी वे सभी एक-दूसरे से टकराते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि वे अकेले नहीं हैं। वे डर जाते हैं। और अपने हाथ फैलाकर एक-दूसरे के क़रीब आने लगते हैं। क़रीब आते-आते वे एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। इतने एक-दूसरे से चिपक जाते हैं कि साँस लेना मुश्किल हो जाता है। सभी चीख़ मारकर एक-दूसरे से अलग होते हैं और वापस पपेट बनकर, फिर से वही खेल शुरू करते है कि मानो उन्हें कोई उठा रहा है। या वे कुछ पूछ रहे हैं। तभी द्रुपद क्लास में आता है। सभी अपने काउंट पर ऊपर-नीचे होते रहते हैं।)
द्रुपद- पिंकी, तुम कविता लाई? प्रिंसिपल सर मँगा रहे हैं।
पिंकी- नहीं सर, मैंने कविता नहीं लिखी है।
द्रुपद- क्या? तुमने कविता नहीं लिखी, क्यों? अरे आज जमा करनी है कविता!
(पिंकी कुछ भी नहीं बोलती है। द्रुपद पूछता रहता है।)
द्रपद- बंद करो यह, बंद करो। चलो जाओ, क्लास ख़त्म! जाओ!
(द्रुपद सभी बच्चों को भगा देता है। पिंकी को रुकने के लिए कहता है।)
नंदु- सर, पर हमारी पीटी की क्लास थी।
रोमा- सर, एक ही तो क्लास होती है हमारी पीटी की।
द्रुपद- अरे कभी तुमने निराला, नागार्जुन, मुक्तिबोध को पीटी करते हुए देखा है, हें! कवि हैं वे लोग। एक कवि लिख नहीं पा रहा है और तुम लोग उससे पीटी करवा रहे हो। बेटा पिंकी, तुम्हें नहीं मैं तो इन लोगों को डाँट रहा हूँ। (फिर डाँटना चालू करता है।) मैंने कभी पीटी नहीं की लाइफ़ में। (कुछ बच्चे हँसने लगते हैं।) कौन हँसा, कौन हँसा? मैं कवि नहीं हो पाया पर मेरे अंदर कवि का दिल है। चलो जाओ यहाँ से। चले जाओ।
(सभी चले जाते हैं।)
द्रुपद- क्यों नहीं लिखी कविता? आज जमा करनी है, प्रिंसपल साहब कितने ख़ुश हैं मुझसे, मतलब तुमसे भी। आज कैसे भी कविता लिखनी है। तुम यहीं क्लास में बैठो। कोई तुम्हें तंग करने नहीं आएगा। आराम से कविता लिखो। ठीक है?
पिंकी- पर सर, मुझे कविता लिखनी नहीं आती है। बहुत मुश्किल काम है।
द्रुपद- आसान होता तो मैं क्या सबसे बड़ी प्रतियोगिता में पैंतिसवें स्थान पर आता? लिखो, मैं दरवाज़े के बाहर खड़ा इंतज़ार करता हूँ। जैसे ही कविता ख़त्म हो जाए मुझे आवाज़ लगा देना। मैं तुरंत अंदर आ जाऊँगा। आराम से बैठकर कविता लिखो। ठीक है, मैं बाहर हूँ।
(द्रुपद चला जाता है। पिंकी अकेली बैठी रहती है। उसे समझ में नहीं आता कि कैसे लिखे। तभी बाहर से लुढ़कती हुई लाल पेंसिल भीतर आती है। पिंकी डर जाती है। वह उसे उठाती है। अपनी डेस्क पर आती है और लाल पेंसिल से लिखना शुरू करती है- और वैसे ही वो पिंकी को बीच-बीच में उठाकर गिराती है... तेज़-तेज़। पिंकी लिखते-लिखते थक जाती है और बेहोश हो जाती है। कुछ वक़्फ़े के बाद रोमा कहती है- ‘पिंकी!’ और उठकर पिंकी के बग़ल में बैठ जाती है। फिर सोनू, पीहू और भूमिका भी आकर पिंकी के बग़ल में बैठ जाते हैं।)
प्रत्युश- तो भइया! फिर एक सपना शुरू होता है।
नंदू- किसका सपना?
डॉली- अरे यार प्रत्युश, बोला था इसे अपनी टीम में नहीं लेते हैं।
नंदू- अच्छा, मैं समझ गया। पिंकी का? फिर...
प्रत्युश- हाँ फिर, पिंकी के सपने में...
नंदू- बापू आए, हे ना?
डॉली- अरे यार! इसके सिक्के में चव्वनी कम है।
नीतू- सुन, बापू नहीं आए। एक बूढ़ा आदमी आया जो बापू के जैसा दिखता था। ठीक है?
प्रत्युश- तुम्हीं सब बोल दो। बोलो?
डॉली- सॉरी भाई! बोलो।
प्रत्युश- तो बापू, एक नदी के किनारे बैठे हुए थे।
डॉली- कवि है यार तू, मैं भी बोलूँ- तभी उन्हें एक नाव दिखी, लाल रंग की नाव।
नीतू- मैं भी बोलूँ- जिसमें एक लड़की बेहोश पड़ी हुई थी। कैसा है यह?
नंदू- हट! यह तो पिंकी है! सो रही है क्या?
डॉली- अरे यह पिंकी है। लाल रंग की नाव वाली।
नंदू- अच्छा! यह पिंकी है लाल रंग की नाव वाली, तो मैं नदी किनारे बैठा हूँ।
(नंदू उठकर आगे बैठ जाता है।)
सभी- अबे तू!
(रोमा अचानक नंदू को बापू कहने लगती है। नंदू चौंक पड़ता है।)
रोमा- बापू।
नंदू- हें! मैं?
रोमा- बापू।
नंदू- बोलो बेटी क्या बात है?
(नंदू को हँसी आ जाती है। पीछे से डॉली, नीतू और प्रत्युश भी हँसने लगते हैं।)
रोमा- बापू यह तो सब उल्टा हो गया।
नंदू- मुझे तो सब सीधा दिख रहा है।
(नंदू को फिर हँसी आ जाती है। पर तब तक वह बापू के बैठने की मुद्रा बना चुका होता है।)
सोनू- बापू! बापू!
नंदू- क्या है?
(नंदू बापू हो जाता है।)
सोनू- बापू, सीधा कुछ भी नहीं है। बहुत टेंशन है। वह द्रुपद बाहर दरवाज़े पर खड़ा है कविता के लिए। और यह पेंसिल है कि मेरे हाथ से छूट ही नहीं रही है।
नंदू- तो कविता तो लिख दी ना तुमने?
पीहू- बापू, सभी लिखवाना चाहते हैं मुझसे। माफ़ी! मैंने आपका promise तोड़ दिया, पर सच में मैं नहीं लिखना चाहती थी।
नंदू- नहीं! जो तुम चाहती थी, वही हुआ है।
भूमिका- मैं सब बदल दूँगी।
नंदू- तो बदल दो।
रोमा- मैं इस पेंसिल को जला दूँगी। तोड़ डालूँगी। कहीं गाड़कर आ जाऊँगी।
नंदू- तुम्हें तो सब पता है, तो कर दो।
सोनू- कर दूँ ना बापू?
नंदू- जो सही लगे वही करो।
पीहू- यही सही है बापू। मैं यही करूँगी।
(इसी बीच पीछे गाँधी का शैडो उभर आता है। डॉली, प्रत्युश और नीतू घबराकर नंदू के पास खिसक आते हैं। डॉली नंदू को एक चपत लगाती है।)
डॉली- अबे नंदू! क्या कर रहा था बे?
प्रत्युश- हाँ बे। डरा दिया तूने बे।
नीतू- अबे यह पिंकी का सपना है, तू क्यों इतना सीरियस हो रहा है?
(नंदू की कुछ समझ में नहीं आता कि उसे क्या हुआ था। तभी बाहर से द्रुपद की आवाज़ आती है। पिंकी झटके से उठती है और सपना टूट जाता है। सभी अपनी-अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं।)
द्रुपद- पिंकी बेटा, कविता लिख ली? पिंकी? मैं अंदर आ जाऊँ?
(पिंकी झटके से उठती है। वह उस बड़ी सी पेंसिल को अपने हाथ में लेती है। कुछ फैसला करके, अपनी कविता को वहीं छोड़कर चली जाती है। द्रुपद भीतर आता है।)
द्रुपद- वाह! यही हैं बड़े कवि के लक्षण, कविता ख़तम हुई और कवि निकल लिया, वाह क्या कविता लिखी है वाह! वाह!
बच्चे- सर, आप रो रहे हैं?
द्रुपद- कौन है?
(द्रुपद वापस रोते हुए कविता पढ़ने लगता है।)
(Black Out)
Scene 8
डॉली- प्रत्युश यार, तू जो कविता लिखता है ना, बहुत सही है। मेरी समझ में ज़्यादा नहीं आती, पर दिल को छूती जाती है!
नीतू- अरे निराला जी की कविता किसको समझ में आती है, पर वो फ़ेमस है ना।
डॉली- निराला, भवानी प्रसाद मिश्र, मुक्तिबोध और फिर अपना प्रत्युश, कवि है यार तू।
प्रत्युश- अरे छोड़ो यार जाने दो।
नीतू- अरे नहीं यार, वो कल की छोकरी, सही नहीं है, दाल में कु्छ काला है!
(तभी तीन लड़कियाँ खड़ी होती हैं। तीनों पिंकी की भूमिका में हैं।)
डॉली- हाँ यार, वो कैसे लिख सकती है?
प्रत्युश- वो किसी से लिखवाती है, मैं कह रहा हूँ ना।
(तीनों पिंकी अलग-अलग पूछती हैं तीनों से। फिर तीनों अपनी अपनी पिंकी से संवाद करते हैं।)
पिंकी 1- क्या कहा? (प्रत्युश से)
पिंकी 2- क्या कहा? (डॉली से)
पिंकी 3- क्या कहा? (नीतू से)
प्रत्युश- आज पता कर ही लेते हैं। क्यों पिंकी जी, लिख ली कविता, कहाँ, किससे लिखवाई?
नीतू- हाँ बोलो कवयित्री?
डॉली- आजकल तो कोई भी कविताएँ लिख लेता है। क्यों? बहुत कविताएँ लिख रही हो पिंकी जी।
(तभी बीच में बैठा नंदू बड़ी-सी लाल पेंसिल उठाता है और पूछता है।)
नंदू- ऐ, ये लाल पेंसिल किसकी है?
(तीनों पिंकी चीखती हैं और दूर जाकर बैठ जाती हैं। उनकी चीख़ सुनकर प्रत्युश, डॉली और नीतू भी अलग-अलग जगह छुप जाते हैं।)
नंदू- क्या हुआ यार, क्या हुआ?
डॉली- चुप कर।
(भूमिका और रोमा अचानक खड़ी हो जाती हैं। जो इस चीख़ के बाद जानना चाहते हैं कि क्या हो रहा है।)
पिंकी 1- यह पेंसिल तो पीछे ही पड़ गई है।
पिंकी 2- यह तो मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही है।
(वक़्फ़ा)
रोमा- ओ तेरी, क्या हुआ बे?
भूमिका- कुछ समझ में नहीं आया यार। ओए छोटू, ओए छोटू...
नंदू- मेरा नाम छोटू नहीं है।
रोमा- अबे, बता ना क्या हुआ बे?
नंदू- मुझे नहीं पता यार।
पिंकी 1- ऐ, यह लाल पेंसिल यहाँ कैसे आई?
पिंकी 2- तुम तो इसे जलाने वाली थी ना?
पिंकी 3- हाँ, मैंने इसे जला दिया था।
रोमा- फिर?
भूमिका- फिर?
पिंकी 3- जली नहीं।
पिंकी 2- हाँ यार जली नहीं।
रोमा- फिर क्या हुआ?
भूमिका- फिर क्या हुआ?
पिंकी 2- तोड़ा-मरोड़ा।
पिंखी 3- टूटी नहीं, इसे कुछ भी नहीं हुआ।
रोमा- तो फिर क्या हुआ?
भूमिका- तो फिर क्या हुआ?
पिंकी 1- गाड़ दिया था।
पिंकी 2- हाँ, गहरा गड्ढा खोदकर।
पिंकी 3- नीचे बहुत नीचे दबा दिया था।
पिंकी- ऐ! यह पेंसिल तुम्हारे पास कैसे आई?
नंदु- अरे मुझे क्या पता, मुझे तो पड़ी मिली थी।
(और नंदु पेंसिल को अपने सामने पटक देता है।)
डॉली- प्रत्युश भाई! प्रत्युश भाई!
प्रत्यश- अबे बहुत टेंशन है, छुपे रह।
डॉली- मैं तो कह रही थी, लाल पेंसिल को लपक लो।
प्रत्युश- हाँ सही है, उठा लेते हैं। सुन, तू उठा ले लाल पेंसिल।
डॉली- ना ना, मैं नहीं। ओए नीतू, तू जा, उठा ले।
नीतू- ना, मैं तो ऐसी चीज़ों को हाथ भी नहीं लगाती।
प्रत्युश- अरे डरपोक हो तुम दोनों।
डॉली- अरे तो प्रत्युश, तू ही उठा ले ना।
नीतू- हाँ आप ही उठा लो।
(प्रत्युश, नीतू और डॉली। तीनों पेंसिल उठाने जाते हैं। जैसे ही पेंसिल के पास पहुँचते हैं, नंदू चीख देता है। तीनों भी डर के मारे वापस छुप जाते हैं।)
नंदू- आआआ... अरे वह हिली थी! हिली थी!
(नंदू भागकर पीछे चला जाता है।)
प्रत्युश- अबे बहुत डेंजर है बे। बाद में देखते हैं, अभी निकलो यहाँ से। और तुझे तो बाद में देख लूँगा पिंकी, समझी!
डॉली- हाँ, बाद में देख लेंगे।
नीतू- हाँ, बाद में देख लेंगे।
(तीनों चले जाते हैं। भूमिका और रोमा पेंसिल की तरफ़ देखते हैं। और धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ना चालू करते हैं। जैसे ही पेंसिल के पास पहुँचते हैं। उन्हें पेंसिल हिलती हुई दिखती है। दोनों चीख मारकर पीछे भाग जाते हैं।)
भूमिका- वह हिली थी! वह हिली थी!
रोमा- हाँ, मैंने देखा, वह हिली थी!
(अब सिर्फ़ तीनों पिंकी बचते हैं और बीच में बड़ी सी लाल पेंसिल रखी होती है। तीनों पिंकी धीरे-धीरे उठती हैं। पिंकी धीरे से पेंसिल की तरफ़ जाती है उसे उठाती है और वह पेंसिल उसे नचाना चालू करती है। पीछे दोनों पिंकी भी काल्पनिक पेंसिल को लिए झटके खाती रहती हैं।)
(Black Out)
Scene 9
(पीछे शैडो में बहुत बड़ी लाल पेंसिल दिखाई देती है और वह बोलने लगती है। दूसरी तरफ़ शैडो में पिंकी के अलग-अलग डरे हुए शैडो बदलते रहते हैं।)
लाल पेंसिल- हेलो पिंकी! कैसी हो? तुम्हें मज़ा आ रहा है ना?
(पिंकी की चीखने की आवाज़ आती है।)
लाल पेंसिल- डरो मत पिंकी। मैं तुम्हारी ही इच्छा हूँ, तुम्हारी desire! तुम्हारी चाह! देखो तुम्हारे साथ-साथ मैं भी कितनी बड़ी होती जा रही हूँ। इतनी आसानी से तुम मुझसे छुटकारा नहीं पा सकती। यह तो अभी शुरुआत है पिंकी। तुम तो बस ऐश करो और देखो मैं कैसे तुम्हें ऐश करवाती हूँ।
(लाल पेंसिल अचानक पिंकी की तरफ़ बढ़ने लगती है। पिंकी का शैडो डर के मारे ग़ायब हो जाता है। यहाँ तीनों पिंकी गिर के बेहोश हो जाती हैं।)
(Black Out)
Scene 10
(Down stage- एक तरफ़ एक जूता लटका हुआ है। सारे बच्चे पूरे नाटक में सिर्फ़ एक ही जूता पहने हुए हैं। एक पैर खाली है। सारे बच्चे पीछे लेटे हुए हैं। सभी अपना सिर उठाते हैं एक साथ। जूते को देखते हैं।)
सोनू- यह खेल क्या है?
नंदू- इसके नियम किसने बनाए हैं?
भूमिका- क्या हम सब किसी एक ही आदमी के लिए खेलते हैं?
पीहू- जो लगातार जीत रहा होता है?
नीतू- वह जीतकर करता क्या है?
रोमा- फिर वह वापस हमारे जैसा क्यों दिखना चाहता है?
प्रत्युश- अगर हमें पूरी ज़िंदगी एक ही जूता पहनना है तो हमें दूसरे जूते का सपना क्यों आता है?
डॉली- अबे तो खेलना ज़रूरी है क्या?
सभी- हाँ।
(रेंगते हुए उस जूते की तरफ़ जाते हैं। सभी एक-दूसरे को खींचते हैं और आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। इसमें ‘संघर्ष जीतने का’ बहुत ज़रूरी है। जो भी कोई पहले जूते को छू लेता है वह जीत जाता है। वह उस जूते को निकालता है। सभी चुप-चाप उसे देखते हैं। और तभी अचानक पूरा दृश्य स्लो-मोशन में बदल जाता है। जीता हुआ व्यक्ति स्टेज के एक सिरे से दूसरे सिरे की तरफ़, अपनी जीत का जश्न मनाता हुआ बढ़ता है। बाक़ी जो हार चुके हैं वे ज़मीन पर पड़े रोने लगते हैं। यह सब कुछ बहुत ही धीमी गति में होता है। वे कोसते हैं, अपने एक पैर को जिसमें एक जूता नहीं है। भगवान को, ख़ुद को, वह जो जीता है। वह स्टेज के दूसरी तरफ़ पहुँचता है और वहाँ से एक छुपाया हुआ बैग निकालता है जिसमें बहुत सारे एक पैर के जूते रखे हैं। वह उस बैग में एक और जीता हुआ जूता डाल देता है। बाक़ी बच्चे बार-बार कभी अपने एक पैर को देखते हैं, जिसमें जूता नहीं है और कभी उस बैग को देखते हैं जिसमें जूते ही जूते हैं। तभी द्रुपद भीतर प्रवेश करता है। सारे लोग अपनी-अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं।)
द्रुपद- आप लोगों को जानकर बहुत ख़ुशी होगी कि पूरे स्कूल में मेरी कक्षा की पिंकी प्रथम आई है। आ जाओ पिंकी, अंदर आ जाओ।
(पिंकी के गले में मेडल है। पीछे बड़ी सी पेंसिल फँसी हुई है। वह झुकी हुई चल रही है।)
द्रुपद- अरे खड़े हो।
(सभी खड़े होकर तालियाँ बजाते हैं। पिंकी पीछे अपनी जगह बैठने जाती है। द्रुपद उसे आगे बैठने को कहते हैं।)
द्रुपद- अरे पीछे कहाँ पिंकी, तुम्हारी जगह अब यहाँ है। तुम यहाँ बैठोगी अब से। (प्रत्युश से) चलो तुम पीछे जाओ। आओ पिंकी। अब सारे स्कूलों के बीच जो प्रतियोगिता होगी, वह बहुत कठिन है। बहुत बड़े कवि डॉ रमेश उसे जज करने आने वाले हैं। मैं ख़ुद उस प्रतियोगिता में तीसवें स्थान पर आया था।
नंदु- सर, पिछली बार तो आप चालीसवें स्थान पर आए थे?
द्रुपद- चुप! तो मैं ख़ुद इस प्रतियोगिता में अठाइसवें स्थान पर आया था। पूरे शहर के सारे स्टूडेंट इसमें भाग लेते हैं। विषय भी उसी वक़्त मिलता है। पिंकी इसमें तुम जीत सकती हो। इस कविता को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि सच में तुम जीत सकती हो। सुनो, पिंकी की कविता-
परियों के भी लोक से सुंदर, छोटा सा प्यारा मेरा घर
सपने जो भी रहते मेरे, कुछ सीधे कुछ टेढ़े-मेड़े
हर रात मेरी आँखों से चुराकर, अपनी आँखों में बंद कर लेते
पापा मेरे, उन सारे सपनों को, सोने का बनाकर वापस कर देते
बिठा के काँधे पे मुझको, वो आसमान की सैर कराते
चलते-चलते जब थक जाऊँ, झट से वो घोड़ा बन जाते
माँ तो मेरी, थाली में हर दिन मेरी ख़ुशियाँ लाती है
जितने भी निवाले खा लूँ मैं, भूख बढ़ती ही जाती है।
(जब द्रुपद इसे पढ़ता है तो धीरे-धीरे लाइट जाती है और पीछे खड़ी उसकी माँ पर लाइट आती है। माँ भी चुपचाप कविता सुनती है। द्रुपद कविता ख़त्म करता है।)
माँ- पापा घोड़ा बन जाते? पिंकी, यह तो झूठ है। तुमने झूठ लिखा है?
(माँ पर से लाइट जाती है। सिर्फ़ पिंकी पर लाइट रह जाती है। वह बापू को देखती है। बापू की तस्वीर पर लाइट आती है।)
पिंकी- बापू, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं बस सोना चाहती हूँ। इस झूठ ने मेरी नींद उड़ा दी है। बापू, लाल पेंसिल मेरा पीछा नहीं छोड़ रही है। जहाँ जाती हूँ वहाँ पहुँच जाती है। मैं क्या करूँ? मुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे नहीं चाहिए यह सब। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।
द्रुपद- पिंकी, पिंकी, अरे कहाँ जा रही हो? पिंकी?
(द्रुपद पिंकी के पीछे जाता है। सभी पहले द्रुपद को देखते हैं फिर पिंकी जिस मेडल को फेंककर चली गई है, से देखते हैं। धीरे-धीरे लेटते हैं। इसी बीच प्रत्युश, डॉली और नीतू, पिंकी के पीछे भाग लेते हैं। बाक़ी लोग वापस से competition शुरू करते हैं। चपरासी आकर घंटी बजाता है।)
(Black Out)
Scene 11
(पिंकी अकेली बैठी है। पीछे से चपरासी बहुत से पेपर लेकर आता है और बिछाने लगता है। उसकी निगाह पिंकी पर पड़ती है।)
चपरासी- अरे पिंकी, घर नहीं गई तुम अभी तक?
पिंकी- ना!
चपरासी- क्यों, स्कूल में ही सोना है क्या?
पिंकी- अंकल, मैं कई रातों से सोई नहीं हूँ।
चपरासी- कवि कोई गहरी कविता तो नहीं सोच रहा है? अरे तेरा ख़ुशी का टाइम ख़त्म हो गया है क्या? चल कोई कविता ही सुना दे अपनी।
पिंकी- कविता नहीं अंकल, समस्या है। मेरी एक दोस्त बहुत समस्या में है। वह असल में मेरी बेस्ट फ्रेंड है। उसने ना, एक झूठ बोला।
(इसी बीच प्रत्युश, डॉली और नीतू पीछे से छुपते हुए आते हैं और छुपे रहते हैं।)
चपरासी- क्या झूठ?
पिंकी- वह जाने दो।
चपरासी- फिर क्या हुआ?
पिंकी- फिर वह ना, उस झूठ में बुरी फँस गई।
चपरासी- कैसे?
पिंकी- लोग उस झूठ को सच मानने लगे, जबकि वह कहना चाहती है अब कि वह झूठ था। पर उसका सच कोई सुनने को ही तैयार नहीं।
चपरासी- मतलब जो झूठ था, वह सच हो गया है? और अब जो सच है, वह झूठ हो रहा है? यह तो बहुत बड़ी समस्या है।
पिंकी- झूठ अब बहुत बड़ा हो गया है और भारी भी। अब बताओ, मेरी बेस्ट फ्रेंड को क्या करना चाहिए?
चपरासी- तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड का नाम पिंकी है क्या?
पिंकी- अंकल!
चपरासी- अरे मैं तो मज़ाक कर रहा था। मेरे ख़याल से तुम्हारी दोस्त को...
पिंकी- हाँ मेरी दोस्त को क्या?
चपरासी- मेरे ख़याल से तुम्हारी दोस्त को अपने किसी पक्के दोस्त के साथ चाय पीनी चाहिए।
पिंकी- चाय?
चपरासी- हाँ चाय। कौन है तुम्हारी दोस्त का पक्का दोस्त?
पिंकी- उसका तो... कोई दोस्त नहीं है।
चपरासी- अरे कोई तो होगा?
पिंकी- बस एक बापू हैं।
चपरासी- किसका बापू?
पिंकी- अरे बापू, अंकल आपने इतिहास नहीं पढ़ा?
चपरासी- अरे बस तो आराम से बापू को बिठा और उनके साथ चाय पी। सब सही होगा।
(चपरासी चला जाता है। वह बापू से बात करने को होती है कि एक काग़ज़ उसे आकर लगता है, फिर दूसरा, फिर तीसरा।)
प्रत्युश- अब फँसी है अकेली।
डॉली- अब नहीं छोड़ेंगे बेटा।
नीतू- अब सब सच-सच बोलना पड़ेगा।
प्रत्युश- बता किसने लिखी है कविता?
नीतू- तेरे बस की तो है नहीं।
डॉली- अरे बोल।
प्रत्युश- पापा लिखते हैं?
डॉली- अरे मम्मी से लिखवाती होगी।
नीतू- जब तक बोलेगी नहीं, तब तक नहीं छोड़ेंगे तेरे को।
सभी- बोल! बोल! बोल!
प्रत्युश- रुको! उठो तो कवयित्री जी! अब बताओगी कि और पिटना है?
(तभी पीछे से रोमा आ जाती है।)
रोमा- ऐ!
(रोमा आती है पिंकी पीछे चली जाती है। रोमा तीनों के बीच में आकर बुरी तरह चिल्लाकर कराटे की एक मुद्रा बनाती है। तीनों डर जाते है। फिर तीनों कराटे की मुद्रा बनाने की कोशिश करते हैं।)
प्रत्युश- हमें भी तो आता है कराटे।
डॉली- हाँ हाँ, हमने भी क्लासेज़ की हैं।
नीतू- मेरे पास तो यलो बेल्ट भी है।
(तभी रोमा कराटे के कुछ दाव करती है और खड़ी हो जाती है। तीनों अपना पैर उठाकर चिल्लाने लगते हैं। रोमा सबको चुप होने को कहती है।)
रोमा- चुप! पिंकी! पिंकी!
(पर पिंकी वहाँ नहीं है।)
रोमा- अरे, पिंकी कहाँ चली गई!
तीनों- हम देखकर आते हैं।
(Black Out)
Scene 12
पीछे शैडो में पिंकी जाती हुई दिखती है। तभी पीछे से लाल पेंसिल उसके पीछे-पीछे चल रही होती है। पिंकी रुककर उसको देखती है। पेंसिल भी रुक जाती है। पिंकी फिर चलना शुरू करती है। लाल पेंसिल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगती है। तभी सामने गाँधी जी का शैडो आता है और पिंकी गाँधी जी से बात करती है। पीछे लाल पेंसिल का भी शैडो है।)
बापू- पिंकी!
पिंकी- बापू!
बापू- क्या बात है?
पिंकी- बापू, आप चाय पीते हैं?
बापू- तुम्हारे साथ पी लूँगा।
पिंकी- बापू मैं ना बुरी फँसी हूँ।
बापू- कैसे?
पिंकी- आप तो जानते हैं कि मैंने कविताएँ नहीं लिखी हैं। पर अब कोई मेरी बात का यक़ीन ही नहीं कर रहा है। और यह पेंसिल है कि सब झूठ लिखती ही चली जा रही है।
बापू- और झूठ बड़ा होता जा रहा है।
पिंकी- बड़ा नहीं बापू, बहुत बड़ा। अब मैं कुछ भी करूँ, ये झूठ पीछा ही नहीं छोड रह है। मैं सो भी नहीं पा रही हूँ। मैं क्या करूँ?
बापू- सच बोलो, बस!
पिंकी- मैं कहना चाहती हूँ पर कोई सुनना ही नहीं चाहता।
बापू- किसी से नहीं, अपने से। ख़ुद से सच कहो। पहले ख़ुद सुनो फिर सब सुन लेंगे।
पिंकी- पर मैं कह तो रही हूँ।
बापू- तुम्हारा झूठ तुम्हारी कविताओं में है। है ना?
पिंकी- हाँ।
बापू- तो बस वहाँ सच बोलो।
पिंकी- पर मैं कविता नहीं लिख सकती।
बापू- जब झूठ लिख सकती हो तो सच लिखना तो आसान ही है।
पिंकी- सच क्या लिखूँ?
बापू- अब वह तुम जानो।
पिकी- बापू, मैं सच लिखूँगी।
बापू- चाय का क्या हुआ?
पिंकी- लाती हूँ। लाती हूँ।
(Black Out)
Scene 13
(कविता की अंतिम प्रतियोगिता है। पीछे मास्क पहने चार जज हैं। जिसमें एक डॉ रमेश हैं। सामने सारे लोग मास्क पहने लिखने की मुद्रा में बैठे हैं। पिंकी ने मास्क नहीं पहना है।)
जज 1- मुख्य अतिथी डॉ रमेश का स्वागत है!
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 2- भविष्य के कवि हमारे सामने बैठे हैं।
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 3- अंतिम और निर्णायक प्रतियोगिता है।
जज 1- सफल कवि बड़ा कवि होगा।
जज 2- चुनाव रमेश जी करेंगे।
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 3- तो कवियों, आप लोग तैयार हो?
(सारे लोग अपनी मुद्रा बदलकर लिखने को तैयार हो जाते हैं।)
जज 1- रमेश जी, कविता का विषय बताएँ।
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 2- रमेश जी, विषय... विषय बताना है।
रमेश- हाँ, मुझे यह बताते हुए बहुत ख़ुशी होती है कि...
जज 1- तो आज की कविता का विषय है- ‘ख़ुशी, Happiness!’
(सारे लोग तुरंत लिखना शुरू करते हैं और लिखते-लिखते लोगों की (happiness के साउंड) आवाज़ें सुनाई देती हैं। सारे जज भी अपनी मुद्राएँ बदलते रहते हैं। सारे लिखना बंद करके अपने-अपने कागज़ों को हवा में उठाते हैं। जज ताली बजाकर समय समाप्ति की घोषणा करते हैं। फ्रीज़! पिंकी अपना काग़ज़ नीचे करती है।)
पिंकी- मेरी इच्छा थी कि मैं किसी और की तरह दिखूँ। कुछ और बन जाऊँ। लाल पेंसिल ने वह कर दिया। उसने एक दूसरी पिंकी पैदा कर दी। वह पिंकी बड़ी होती जा रही थी। हाँ बड़ी, बहुत बड़ी! मैं उसमें गुमने लगी थी, पर मैं वह नहीं हूँ। लाल पेंसिल मेरी नहीं है। मैं सिर्फ़ पिंकी हूँ, जिसे कविता लिखना नहीं आता है।
(पिंकी के इस संवाद के बीच में पीछे शैडो में पेंसिल टूटती है। जज आकर सबके काग़ज़ लेते हैं। सारे कागज़ रमेश जी को देते हैं। रमेश सबको रिजेक्ट कर देता है और एक काग़ज़ पर थोड़ा सा हँसता है। और वह काग़ज़ जज 1 को देता है। जज 1 कहता है।)
जज 1- अरे यह तो कोई रमेश ही जीता है।
(बच्चों में से एक बच्चा अपना हाथ उठाता है। बाक़ी सारे लोग अपना सिर झुका लेते हैं। फ्रीज़!)
पिंकी- बापू मुझे नींद आ रही है। मैं सोना चाहती हूँ। मुझे बहुत तेज़ नींद आ रही है।
(पिंकी सोने लगती है और सारे बच्चे अपना सिर उठाकर पिंकी को देखते हैं- सोता हुआ। फिर सभी अपना मास्क उतारते हैं और लेट जाते हैं। सभी embryo की मुद्रा में वापस लेट जाते हैं। नाटक फिर शुरू से शुरू होता है... जैसे नाटक शुरु हुआ था embryo की मुद्रा में..। तभी लाल पेंसिल गिरती है। नंदू झटके से उठता है। बाक़ी लोग नाटक की शुरुआत दोहराते हैं। वह लाल पेंसिल को उठाता है। सबसे पूछता है कि यह किसकी है? जब उसे कोई जवाब नहीं मिलता तो वह उस पेंसिल को देखता है और फिर आश्चर्य से दर्शकों की तरफ़ देखता है कि वह इस लाल पेंसिल का क्या करे। तब तक सभी नाटक की शुरुआत का एक अंश पूरा कर लेते हैं। (Embryo से पैदा होने तक का) धीरे-धीरे लाइट जाती है। और अचानक अँधेरा हो जाता है।...)
(Black Out)
The End…..
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