ऐसा कहते हैं...
मानव कौल
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Scene 1
सैम- मुझसे शादी करोगी?
काया- नहीं।
Black out..
Scene 2
काया- तुमने इतने सालों में कोई दूसरा तरीक़ा नहीं सीखा।
सैम- तुमने इतने सालों में दूसरे तरीक़ों से जवाब देना नहीं सीखा।
काया- हाँ, तुमने कभी गिना है, कितनी बार तुम मुझे शादी के लिए प्रपोज कर चुके हो?
सैम- मैं अपने फ़ेल्योर्स (failures) याद नहीं रखता।
काया- हमने कितना अच्छा समय साथ में गुज़ारा है, अभी भी कहानियाँ कहते ही हो कि उन्हें लिखना भी शुरू किया है?
सैम- सुनने वाले कम हैं पर कहता ही हूँ। मेरी कहानियाँ सुननी हैं तो मेरे पास आना पड़ेगा और वो मेरे साथ ही ख़त्म हो जाएँगी।
काया- कुछ सुनाओ।
सैम- क्या?
काया- कुछ भी।
सैम- एक छोटी कहानी...
बहुत पहले अब तो मुझे याद भी नहीं कब
मैंने अपने हाथ पर लिख दिया था ‘प्रेम’
क्यों? क्यों का पता नहीं पर शायद ये
भीतर पड़े सूखे कुएँ के लिए बाल्टी ख़रीदने की आशा जैसा था।
से मैंने इसे अपने हाथ पर लिख लिया- ‘प्रेम’
आशा? आशा ये कि इसे किसी को दे दूँगा।
जबरदस्ती नहीं, चोरी से भी नहीं
किसी की जेब में डाल दूँगा या किसी की किताब में रख दूँगा
या ‘रख के भूल गया जैसा’ किसी के पास छोड़ दूँगा
इससे क्या होगा ठीक-ठीक पता नहीं
पर शायद मेरा ये ‘प्रेम’ उस किसी के साथ रहते-रहते जब बड़ा होगा, तब
तब मैं बाल्टी ख़रीदकर अपने सूखे कुएँ के पास जाऊँगा
और वहाँ मुझे पानी पड़ा मिलेगा
पर ऐसा हुआ नहीं- ‘प्रेम’ चोरी से मैं किसी को दे नहीं पाया
वो मेरे हाथ में ही गुदा रहा।
फिर इसके काफ़ी समय बाद अब मुझे याद नहीं कब
मुझे तुम मिली और मैंने
अपने हाथ में लिखे इस शब्द ‘प्रेम’ को वाक्य में बदल दिया
‘मैं तुमसे प्रेम करता हूँ’
और इसको लिये तुम्हारे साथ घूमता रहा
सोचा इसे तुम्हें दे दूँगा, जबरदस्ती नहीं चोरी से
तुम्हारे बालों में फँसा दूँगा
या तुम्हारी गर्दन से लुढ़कती हुई पसीने की बूँद के साथ बहा दूँगा।
या अपने किसी क़िस्से-कहानियाँ कहते हुए, इसे बीच में डाल दूँगा।
फिर जब ये वाक्य तुम्हारे साथ रहते-रहते बड़ा हो जाएगा।
तब मैं अपने कुएँ के पानी में, बाल्टी समेत छलांग लगा जाऊँगा।
पर ऐसा हुआ नहीं, ये वाक्य मैं तुम्हें नहीं दे पाया
पर अभी कुछ समय पहले, अभी ठीक-ठीक याद नहीं कब
ये वाक्य अचानक कहानी बन गया।
‘प्रेम’... मैं तुमसे प्रेम करता हूँ- और उसकी कहानी।
भीतर कुआँ वैसा ही सूखा पड़ा था
बाल्टी खरीदने की आशा.. अभी तक आशा ही थी!
और ये कहानी...
इसे मैं कई दिनों से अपने साथ लिये घूम रहा हूँ
अब सोचता हूँ, कम-से-कम, इसे ही तुम्हें सुना दूँगा
जबरदस्ती नहीं, चोरी से भी नहीं, बस तुम्हारी इच्छा से...
काया- ये तो कविता जैसी है!
सैम- मेरे लिए ये कहानी है।
काया- मिलने के लिए तुम्हें ये ही जगह, रेलवे स्टेशन?
सैम- क्या करूँ दिन भर तुम्हारे पास समय नहीं था और शाम की ट्रेन में रिज़र्वेशन नहीं मिला।
काया- नहीं मिला या नहीं लिया।
सैम- जो भी हैं, तुमसे मिलना ज़रूरी था।
काया- कितनी चुप्पी है यहाँ।
सैम- अरे तुम्हें ये कबूतरों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही।
काया- वो दिख भी रहे हैं। पर ये इस चुप्पी को और भी बढ़ा रहे हैं।
सैम- चार पच्चीस की ट्रेन है। शायद इससे कम ही लोग जाते हैं।
काया- ये कोना तो रेलवे स्टेशन का हिस्सा भी नहीं लगता है।
सैम- भई S-1 तो यहीं आएगा।
काया- हम इतने सालों बाद रेलवे स्टेशन पर बात करते पाए जाएँगे, तुम्हें अजीब नहीं लग रहा?
सैम- पता नहीं! असल में मैंने तुम्हें लगभग हर जगह प्रपोज़ किया है, पर रेलवे स्टेशन पर कभी नहीं, इसलिए...
काया- जगह बदलने से कुछ नहीं होगा।
सैम- मैं भी काफ़ी बदल गया हूँ।
काया- बस, तुम्हारी कहानियाँ छोटी हो गई हैं।
सैम- बस, मेरे कहने का तरीक़ा भी बदला है।
काया- क्या कहने का?
सैम- पहले या तो मैं खड़े होकर या बैठकर कहता था, अब ये देखो नया तरीक़ा, मैं अपने घुटनों पर बैठकर कहता हूँ- मुझसे शादी करोगी?
काया- नहीं।
Black out..
Scene 3
सैम- तुम्हें ना कहने में बहुत सुख मिलता हैं न?
काया- मना करने का अपना तो सुख है, पर...
सैम- पर...?
काया- देखो! हम एक-दूसरे को स्कूल से जानते हैं। मुझे पहले अजीब लगता था जब तुम मुझे प्रपोज़ करते थे, पर अब तो ये मुझे अपनी बातचीत का ही हिस्सा लगता है। प्रेडिक्टबल सी बात है और मैं इसके लिए हमेशा तैयार भी रहती हूँ...
सैम- प्रेडिक्टबल?
काया- सॉरी! नहीं प्रेडिक्टबल सही शब्द नहीं है।
सैम- नहीं, सही हैं! मैं यूँ भी काफ़ी प्रेडिक्टबल हूँ।
काया- देखो मैं... अब मैं तुमसे कैसे कहूँ! मेरी इच्छा है, नहीं इच्छा नहीं, मेरी कल्पना है, फ़ैंटेसी है कि जब कोई मुझे प्रपोज़ करे तो वो ऐसा हो कि उसके प्रपोज़ करते ही चारों तरफ मुझे संगीत सुनाई दे। फूल झड़ने लगे और सब कुछ, सब कुछ बदल जाए एकदम। और मैं चाहूँ मेरे मुँह से हाँ ही निकले।
सैम- तुम्हें पता है संगीत के मामले में मैं कौवा हूँ!
काया- शायद! तभी तुम्हारे प्रपोज़ करने पर कभी संगीत सुनाई नहीं दिया।
सैम- कम-से-कम तुम कोशिश तो कर ही सकती हो।
काया- क्या? मैं क्या कोशिश कर सकती हूँ?
सैम- तुम महसूस कर सकती हो कि संगीत सुनाई दे रहा है।
काया- हे भगवान! तुम नहीं समझोगे।
सैम- अच्छा, एक मौका तो दो मुझे, प्लीज! एक बार मेरे लिए एक कोशिश तो करो।
काया- मैंने तुमसे सब कहा ही क्यों?
सैम- देखो, तुम आँखें बंद करो कोशिश करो सब होगा।
काया- ये भी कर लो...
सैम- मुझसे शादी करोगी ?
काया- नहीं।
Black out..
Scene 4
काया- कैसा लग रहा है, मेरा गाँव तुम्हें?
सैम- कैसा लगेगा!
काया- मुझे विश्वास नहीं होता तुमने मेरे पीछे अपना ट्रांसफ़र करवा लिया।
सैम- तुम्हारे लिए नहीं अपने लिए।
काया- अपने लिए?
सैम- मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ, प्योर सेल्फ़िश रीजन।
काया- खैर! इतने समय तुम कहाँ थे?
सैम- क्यों, तुम मेरा इंतज़ार कर रही थी?
काया- नहीं, इतने समय बाद दिखे, इसलिए पूछा इतने समय कहाँ थे।
सैम- वहीं मेरा इलाज चल रहा था, फिर उसी बीच जॉब भी लग गया और पिछले कुछ महीनों से तो सिर्फ़ सरकारी लोगों को घूस खिला रहा था कि मेरा तबादला यहाँ करा दो। वैसे तुम इस गाँव में क्या कर रही हो?
काया- NGOs के लिए काम।
सैम- जब मैं अपना तबादला करता रहा था तो लोग कह रहे थे कि लोग वहाँ से शहर तबादला करवाने के लिए पैसे देते हैं और आप वहाँ जाने के लिए पैसे दे रहे हो! सब हँस रहे थे मेरे ऊपर।
काया- तुम्हें इतना विश्वास कैसे है कि मैं हाँ कर ही दूँगी?
सैम- पता नहीं, बस है। और इसका एक घटिया कारण भी है मेरे पास। देखो, हम सालों पढ़ाई करते हैं कि अच्छा जॉब लग जाए और उस जॉब के साथ हम अपनी पूरी ज़िंदगी काट सकें। जॉब तो मिल गया पर पूरी ज़िंदगी मैं जॉब के साथ नहीं काटना चाहता हूँ। ये समझ लो कि मैं फिर पढ़ रहा हूँ, मेहनत कर रहा हूँ कि पास हो जाऊँ। तुम हाँ कह दो और पूरी ज़िंदगी मैं तुम्हारे साथ काट सकूँ। क्या हुआ? अरे अच्छा नहीं लगा?
काया- बचकाना है।
सैम- इसलिए तो मुझे भी अच्छा लगा।
काया- मैंने तुम्हें इतनी बार कहा है कि तुम मेरे दोस्त हो। एक अच्छे दोस्त बस। और तुम जानते ही हो कि मैं engaged हूँ।
सैम- थी, तुम engaged थी।
काया- ओह तो तुम्हें पता है!
सैम- जैसे ही तुम्हारा उससे रिश्ता शुरू हुआ, क्या नाम था उसका?
काया- ईश्वर।
सैम- हाँ, जो भी हो, मैंने उससे दोस्ती जैसी कर ली थी। उसे फोन करता था, इधर-उधर की बातें करता था, तुम्हारा हाल-चाल पूछता था और बस इंतज़ार करता था।
काया- कहीं तुमने उससे मेरे बारे में कुछ? कहीं तुम्हारी वजह से?
सैम- नहीं-नहीं! मैंने कहा ना मैं अपनी पढ़ाई कर रहा हूँ, मैं अपनी मेहनत से पास होना चाहता हूँ दूसरों से कोई मतलब नहीं।
काया- तुम सच में थोड़ा बदल गए हो।
सैम- मैंने कहा था ना।
काया- इतनी देर से तुमने एक चाय भी नहीं पी।
सैम- इच्छा तो बहुत हो रही है, पर आज ही के दिन दुकान बंद रहती है।
काया- बैड लक!
सैम- क्या तुम्हें मुझमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता?
काया- लगता है न, जब तुम कहानियाँ सुनाते हो। मुझे तुम्हारे मुँह से कहानियाँ सुनना अच्छा लगता है।
सैम- ठीक है मैं तुम्हें ज़िंदगी भर कहानियाँ सुनाऊँगा, ये वादा करता हूँ, क्या अब तुम मुझसे शा...
काया- नहीं!
Black out..
Scene 5
काया- कुछ सुनाओ ना?
सैम- क्या? क्या सुनोगी?
काया- कुछ भी...
सैम- अच्छा ये कहानी सुनो। एक बार सर्कस के दो लड़के छोटू और बंटी चोरी के इल्ज़ाम में पकड़े जाते हैं और... (काया ताली बजाती है, सैम कहानी कहना बंद कर देता है।)
काया- ये नहीं, मुझे प्रेम कहानी सुनाओ।
सैम- प्रेम कहानी?
काया- हाँ, तुम प्रेम कहानी अच्छी सुनाते हो।
सैम- अच्छा।
काया- पर कहानी सुखांत होनी चाहिए।
सैम- क्या? एक तो प्रेम कहानी ऊपर से सुखांत!
काया- हाँ कहानी का अंत बस सुखद होना चाहिए, इतना ही तो कह रही हूँ।
सैम- कोशिश करता हूँ... अ अ अ क्या मैं इस प्रेम कहानी में तुम्हारा ज़िक्र कर सकता हूँ?
काया- तब तो उसका दुखांत होना निश्चित है।
सैम- नहीं पर मैं कोशिश... जाने दो।
काया- क्या हुआ? सुनाओ कहानी।
सैम- मैं सोच रहा था, किसी कहानी में से प्रेम निकाल दो तब भी क्या वो प्रेम कहानी हो सकती है?
काया- तब वो सिर्फ़ कहानी होगी।
सैम- सिर्फ़ कहानी? सिर्फ़ कहानी मतलब सिर्फ़ कहानी?
काया- मैं तुमसे सिर्फ़ प्रेम कहानी सुनना चाहती हूँ।
सैम- हाँ, वो मैं समझा। क्या मैं इस प्रेम कहानी में किसी और नाम से तुम्हारा ज़िक्र कर सकता हूँ?
काया- देखो मैं बात अंत की कर रही हूँ। कहानी सुखांत होनी चाहिए बस।
सैम- मुझसे शादी करोगी?
काया- देखो...
सैम- नहीं-नहीं, ये कहानी है।
काया- अच्छा तुमने अंत से शुरुआत की है।
सैम- नहीं, ये शुरुआत ही है। देखो तुमने कहा था कि अंत सुखद होना चाहिए तो शुरुआत मैं कैसे भी कर सकता हूँ।
काया- देखो फँस जाओगे।
सैम- देखेंगे।
काया- अच्छा फिर, फिर क्या हुआ?
सैम- मुझसे शादी करोगी (पॉज) और लड़की ने मना कर दिया।
(सैम उठकर स्टेज की तरफ आता हैं स्टेज पर पैर रखते ही उसे ट्रेन के सायरन की आवाज़ आती है। वह डर जाता है।)
काया- क्या हुआ? डर गए?
सैम- बहुत दिनों बाद कहानी सुना रहा हूँ। दिमाग़ में काफ़ी पागलपन भरा हुआ है।
काया- जाने दो तुमसे नहीं होगा।
सैम- हम्म अच्छा? तो लो।
Scene 6
(कौआ गाने की कोशिश करता है)
कितनी सारी चाँद की रातें, कितना दिन का उजाला
बाक़ी सब क्यों बने कबूतर, मैं क्यों बना कौवा काला
ज़िंदगी थोड़ी-सी हो जाती बेहतर, जो मैं भी होता कबूतर।
कबूतर-कबूतर
(सब लोग उसे मारकर भगा देते हैं। सारे कबूतर है और उसमें एक कौवा है।)
गाना-
कबूतर-कबूतर
कबूतरों की कहानियाँ
तिनका-तिनका, टुकड़ा-टुकड़ा
चुनके-बुनके निशानियाँ
कबूतरों की कहानियाँ
कबूतर-कबूतर
जो कह ना सके हम डर गए
या कहने से पहले ही मर गए
मरे हुए लोंगो की ज़िंदा परेशानियाँ।
कबूतरों की कहानियाँ
कबूतर-कबूतर
जो बात अधूरी लेके मरेगा
वो बनके कबूतर फिरेगा।
इस शहर का हर इक परिंदा
आधी कहानी लेकर हैं ज़िंदा
कबूतर-कबूतर
पर आज तलक तो हुआ नहीं
किसी आधी कहानी को छुआ नहीं
अब बात फँसी हैं कुछ ऐसी
होंगे आँसू या होगी खुशी।
भाई- तुझसे मना किया ना, बीच में आकर मत गाया कर कौवे।
कौवा- मैं गाना चाहता हूँ।
भाई- चाह लेने से गाना नहीं होता है, रियाज करना होता है, मेहनत करनी होती है, कौवे।
कौवा- कौवा मत बोल मुझे।
भाई- चल दूर जाके बैठ और बीच में गाया तो पड़ेगा एक कौवे।
(वह अलग बैठ जाता है।)
माँ- आज कितना मज़ा आया ना इंसान-इंसान खेलके। है न? क्या हुआ तुझे? वहाँ क्यों बैठा है? अरे सुन ठंड लग जाएगी।
कौवा- हँ...
माँ- तो ऐसा उकड़ू बैठने से अच्छा है, एक चादर ले ले।
कौवा- ना!
माँ- अरे मर जाएगा। चल सब लोग अंदर रियाज कर रहे हैं, हम फिर इंसान-इंसान खेलेंगे।
कौवा- मुझे नहीं खेलना।
माँ- बापू कहाँ हैं तेरे? अच्छा ठीक है जा थोड़ा उड़ ले, गर्मी आ जाएगी।
कौवा- माँ मैं कौवा क्यों हूँ? जब आप सब कबूतर हो तो मैं कौवा क्यों पैदा हुआ?
माँ- फिर किसी ने तुझे कौवा कहा? किसने कहा किसने कहा? तू बस काला है तो क्या हुआ, बोल तू क्या हुआ?
कौवा- काला कबूतर।
माँ- सही जवाब। कहाँ मर गया तेरा बापू? चल रियाज करने चलते हैं। ऐसी आदत पड़ गई है इंसान-इंसान खेलने की कि उसके बिना मेरा खाना ही नहीं पचता।
कौवा- माँ हम ये इंसान-इंसान क्यों खेलते हैं?
माँ- बेटा, हम पहले इंसान ही थे, ये हमें भूलना नहीं चाहिए वरना हर बार हम कबूतर बनके ही पैदा होते, ऐसी बापू की खोज है, अविष्कार है। तेरा बापू बड़ा साइंटिस्ट है।
कौवा- आपने तो बताया था कि हम लोग गवैये थे। ट्रेनों में गा-गाकर पैसा माँगते थे फिर बापू साइंटिस्ट कैसे हो गए?
माँ- देख ऐसा कहते हैं कि ट्रेन का यहीं एक्सीडेंट हुआ था, हम सब यहीं मरे और तेरे बापू साइंटिस्ट हो गए। हज़ार बार बोल चुकी हूँ दोबारा मत पूछना।
(बापू तेज़ी से दौड़ते हुए आते हैं और दोनों के बीच में आकर खड़े हो जाते हैं।)
बापू- डिश डिश डिश।
माँ- क्या हुआ?
बापू- मैं प्रकट हुआ न, डिश।
माँ- अभी यहीं से तो चलकर आ रहे हो।
बापू- छी छी छी! मेरा ये अविष्कार भी असफल रहा।
कौवा- बापू आपने मेरा कुछ किया मैं कौन हूँ?
बापू- बेटा तू कौवा नहीं है, बस ये समझ ले। अगर तू कौवा होता तो काँव-काँव नहीं कर रहा होता, पर तू तो गाता है। गाता है न ये?
बस बेमर से- हाँ हाँ...
कौवा- बापू, पर मेरी कभी-कभी काँव-काँव कहने की इच्छा होती है।
बापू- दबा दे उस इच्छा को। रोक ले कुचल दे वहीं पे। अब सुनो जो मैंने आज खोज की है। जो भी आदमी बीच में मर जाता है, अपनी पूरी कहानी नहीं कह पाता, वो कबूतर हो जाता है।
माँ- ये तो पुराना हुआ।
बापू- अरे आगे तो सुन। मेरे सपने में एक बार फिर ’विचित्र किंतु सत्य’ जैसा एक कबूतर आया, उसने कहा कहानी कहो। बस। अगर तुम्हारी आधी कहानी, उस कही हुई कहानी से पूरी हो जाएगी तो तुम आज़ाद हो गए समझो। आज़ाद आज़ादी।
भाई- उसे कैसे पता ये?
बापू- मैंने भी उससे पूछा तो वो कहने लगा, उसे ठीक-ठीक पता नहीं है पर हाँ ऐसा कहते हैं।
Scene 7
(दूसरी तरफ, बंटी और छोटू दो विदुषक हैं... जिनके हाथ रस्सी से बांधा हुए है।)
बंटी- चाय पीएगा छोटू? छोटू सो गया क्या?
छोटू- नहीं, अभी सोने का बहाना कर रहा हूँ। थोड़ी देर तक बहाना करूँगा फिर सच में नींद आ जाएगी।
बंटी- मैंने क्या समझाया था, जब तक हम भाग नहीं जाते, हम दिन में सोएँगे और रात में जागेंगे। ऐसा ही होता है।
छोटू- बंटी, नया प्लान आया है? सुनाओ ना, बहुत दिनों से कोई नया प्लान नहीं सुना।
बंटी- ये कहानी है क्या जो बहुत दिनों से नहीं सुनी? देख, हमारे पास बस आज की ही रात है, फिर ये हमें डाल देंगे जेल में। वहाँ से हमारे पुरखे भी भाग नहीं सकते।
छोटू- हमारे पुरखे भी जेलों में हैं?
बंटी- छोटू।
छोटू- माफ़ करना! प्लान सुनाओ ना।
बंटी- प्लान गया तेल लगाने बस भागना है।
छोटू- ठीक है। एक बार अभ्यास कर लेते हैं भागने का।
बंटी- नहीं अभी मैं कुछ सोच रहा हूँ।
छोटू- सोच लो अगर मैं भागते समय डर गया और सब कुछ भूल गया तो? एक बार बस एक बार, मज़ा आएगा।
बंटी- ठीक है, तैयार हैं, भाग... (दोनों अलग-अलग भागते हैं) लेफ्ट कौन सा है?
छोटू- ये।
बंटी- तो भाग बोलने पर किधर भागेगा?
छोटू- माफ़ कर दो। एक बार, एक बार और...
बंटी- चल आखिरी बार। भाग भाग... (दोनों आपस में टकरा जाते हैं) क्या कहा था, जब दो बार भाग बोलूँ तो राइट भागना है। अगर लेफ्ट ये है तो राइट कौन सा है?
छोटू- अगर लेफ्ट ये है तो राइट कौन सा है?
बंटी- हाँ, कौन सा है ये? हैं मूर्ख?
छोटू- अरे हाँ, पर मुझे कैसे पता लगेगा कि तुम दो बार भाग बोलने वाले हो?
बंटी- फिर बहस की, चल अब अकेले अभ्यास कर, मुझे सोने दो।
छोटू- भाग-भाग, धोखे में मत रहना कौवे जाग।
(दूसरी तरफ...)
कौवा- भाग-भाग-भाग...
भाई- चुप बेसुरे, मरेगा मेरे हाथ से।
Scene 8
(दूसरी तरफ आशीष मरना चाहता है और सलीम का काम है आत्महत्या में मदद कराना।)
सलीम- मरना चाहते हैं, मैं मदद कर सकता हूँ। मेरा काम है ये धंधा हैं मेरा। बस इसके बदले में जाने दीजिए मैं क्या चाहता हूँ उससे आपको क्या मतलब लेकिन सच बताऊँ, मुझे वो लोग बहुत पसंद हैं जिन्हें पता लग जाता हैं कि अब इसके बाद वो इस दुनिया में जी नहीं रहे हैं, बस ज़िंदा हैं।
आशीष- क्या तुम्हें कैसे? मैं असल में...
सलीम- जाने दो मैं समझता हूँ। देखिए, मेरा तो ये काम है लोगों के मरने में उनकी सहायता करना। किसी ने कहा है- Life, like all other games, becomes fun when one realizes that’s just a game. गेम, खेल और खेल में आपको पूरी आज़ादी होनी चाहिए कि आप कभी भी खेलना बंद कर सकें, तभी खेलने का मज़ा है।
आशीष- हाँ तभी खेलने का मज़ा है।
सलीम- लेकिन तारीफ़ करूँगा आपकी, मतलब आप जैसे लोगों की, जो लोग यूँ ही घिसटते नहीं पाए जाते हैं आप लोग मस्त जीते हें और मस्ती से चले जाते हैं।
आशीष- मस्ती! तुमने कभी मरने के बारे में सोचा है? आत्महत्या? तुम्हारे पास किताबी ज्ञान है जैसे प्रेम के बारे में सारा पढ़ लिया, सीख लिया, पर प्रेम कभी नहीं किया।
सलीम- देखो मैं अभी खेल में हूँ और अभी और खेलना चाहता हूँ।
आशीष- तुमने अच्छा खेल चुना है। पिछले चार दिन से मैं यहाँ रोज आ रहा हूँ।
सलीम- जानता हूँ पहले दिन ही आपकी चाल देखकर समझ गया कि आप यहाँ क्यों आ रहे हो।
आशीष- तो तुम पहले दिन ही...
सलीम- नहीं पहले दिन आप बहुत परेशान थे। अगर उस वक़्त मैं आपके पास आता तो आप डाँटकर भगा देते और बाक़ी दो दिन आप लोगों की आँखों से बच रहे थे पर आज... आज आप कुछ ठानकर आए हैं।
आशीष- मेरे पास दो कहानियाँ हैं, ये दूसरी कहानी मैंने कल ही पूरी की हैं, और इसके पूरी होते ही मुझे लगा कि मुझे मर जाना चाहिए।
सलीम- एक बात कहूँ सौ से ज़्यादा लोगों की मदद कर चुका हूँ अब तक मरने में, लेकिन जितनी गंभीर बात आपने कही बहुत कम ही लोग कह पाते हैं अक्सर जो बेमौसम मरने आते हैं।
आशीष- अब इसका मौसम भी होता है?
सलीम- जब मौसम होता है तो मैं बहुत व्यस्त होता हूँ। खासकर जब स्कूल का रिज़ल्ट निकलता है शादियों के मौसम में प्रेमी आते हैं हारे हुए लोगों का भी एक मौसम होता हैं। धोखा खाए लोगों का भी अपना मौसम होता हैं। और मौसम के साथ-साथ आत्महत्या की एक उम्र भी होती है। बूढ़े लोग बहुत कम आत्महत्या करते हैं क्योकि एक उम्र के बाद खेल में मज़ा आए या ना आए खेल में बने रहने की आदत पड़ जाती हैं।
आशीष- आदत...
गाना-
आदत हैं हमको
जैसे हैं वैसे ही होने की, आदत है हमको
चादर से बाहर रखकर पाँव
सोने की आदत है हमको
सूरज गर ना निकले दिन में भी अँधेरा हो
अंधेरे में जी लेने की
चाय में घोल के गम पीने की, आदत है हमको
अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं, जो सब कह दे वही सही
ग़लत को सही सुन लेने की, आदत हैं हमको
पाँव का जूता काटे तो आँख में आँसू ना आए
दिल चाहे छलनी-छलनी हो होंठ हमेशा मुस्काए
आँसू को रुमाल में रखकर, फिर रुमाल को खो देने की
आदत हैं हमको
Scene 9
(गाना ख़त्म होता है सब लोग अपनी-अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं।)
कौवा- माँ! बापू कब आएँगे?
माँ- पता नहीं अब तो साल होने को आया।
कौवा- इस बार बापू ने वादा किया था कि मेरे लिए कुछ लाएँगे।
माँ- मैंने भी उनसे कहा था कि आते वक्त कुछ खाने के लिए लाना लेकिन वो नाराज़ हो गए कहने लगे कि मैं इस बार बड़ी खोज के लिए जा रहा हूँ। चल आ जा अब रियाज कर लेते हैं।
कौवा- मुझे नहीं करना रियाज-वियाज। हे विचित्र किंतु सत्य जैसे जो भी हैं आप बस मेरे लिए मैं माँ , माँ वो देख अपनी तरफ़ कुछ आ रहा हैं।
माँ- कहाँ? अरे किसी ने रॉकेट छोड़ा होगा नहीं-नहीं पतंग है, नहीं जहाज़, अरे नहीं बेटा, ये तो तेरे बापू हैं।
कौवा- बापू! (धड़ाम से बापू बैक स्टेज से गिरते हुए प्रवेश करते हैं) बापू लगी तो नहीं?
बापू- नहीं। हाँ हाँ हाँ मैं दुनिया घूम आया। मेरी खोज पूरी हुई। मुझे पता लग गया दुनिया के मूल में क्या है, संपूर्ण सत्य क्या है।
भाई- क्या है बापू?
बपू- मूल में कुछ भी नहीं है। सत्य कुछ भी नहीं है।
कौवा- बापू मैं कौवा क्यों हूँ ये पता चला?
बापू- तू कौवा नहीं हैं, ये पता चला, पर तू क्या है ये पता नहीं चला।
माँ- कुछ खाने को लाए?
भाई- माँ चुप करो। और क्या खोजा बापू?
बापू- खोजा कि दुनिया बहुत बड़ी है, बेटा उड़ते-उड़ते वाट लग गई।
भाई- और-और...
बापू- और हाँ, इंसानों की प्रजाति लुप्त होती जा रही है।
माँ- अरे जैसे हम लोग इंसान-इंसान खेलते हैं वैसे ही इंसान भी जानवर-जानवर खेलते हैं। हम इसलिए खेलते हैं कि हम भूल ना जाएँ कि हम इंसान थे। वो इसलिए खेलते हैं कि शायद उन्हें पता है कि असल में हम सभी जानवर हैं। जो भी हैं पर जो इंसान हैं वो लुप्तप्राय प्रजाति हैं।
कौवा- बापू पर मेरा क्या होगा?
बापू- ऐसे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा। ख़ुद के मरने से ही स्वर्ग मिलता है। तू कौन है, ये तुझे ख़ुद ही पता करना पड़ेगा। मैं चला।
माँ- अरे, अब कहाँ जा रहे हो?
बापू- खोज में।
माँ- काहे की?
बापू- खाने की। भूख लगी है।
Scene 10
(दूसरी तरफ...)
छोटू- भूख लगी है।
बंटी- साला हमें बाँधकर कहाँ चला गया? चाय... चाय...
चाय- क्या है? (बीच में चाय की दुकान है जिसमें चाय बाटने वाले का नाम चाय है।)
बंटी- दो चाय देना।
चाय- पैसे कौन देगा?
बंटी- वो साहब देंगे।
चाय- वो बोलेंगे तभी दूँगा चाय।
छोटू- चाय भी नहीं मिलेगी। बंटी ऐ बंटी नाराज़ है क्या?
बंटी- कहते हैं मूर्ख दोस्त से बुद्धिमान दुश्मन ज़्यादा अच्छा।
छोटू- मैंने क्या बेवकूफ़ी की है अब?
बंटी- जब तूने मुझे अपना चोरी का आइडिया सुनाया था, तभी मुझे समझ जाना चाहिए था कि तू कितना बड़ा।
छोटू- क्या-क्या? हमने तय किया था कि हम इस संबंध में कोई बात नहीं करेंगे अब, और मैं बता दूँ कि मेरा आइडिया एकदम सही था। एक तीर से दो शिकार।
बंटी- अच्छा! सर्कस से शेर चोरी करते हैं, ये सही आइडिया था? और तू सही कह रहा है एक तीर से दो शिकार। तीर होता शेर और शिकार होते हम दोनों कभी सुना है तूने किसी ने सर्कस से शेर चोरी की है?
छोटू- तो क्या करते बदला तो लेना था ना? निकाल दिया सर्कस से बताओ। पूरी ज़िंदगी वहीं काटी जगलिंग करते, रस्सी पे साइकिल चलाते और अचानक एक दिन कह दिया तुम्हारी ज़रूरत नहीं है। शेर चोरी करते तो सर्कस का भी घाटा होता और शेर बेचते तो हमें भी फ़ायदा होता है।
बंटी- अरे शेर बाज़ार में लेकर घूमते किए तो शेर खरीद लो।
छोटू- तू मेरे साथ शेर चोरी करने क्यों आया था?
बंटी- तब थोड़ी पता था कि बाहर ऐसे शेर बिकते नहीं हैं।
छोटू- एक दहाड़ मारी शेर ने तो बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगा।
बंटी- तू जब पिंजरे के ऊपर चढ़ा था तो पिंजरा खोलूँ ये पूछा था? सीधे पिंजरा खोल दिया।
छोटू- लेकिन इतना रंगे हाथों कोई नहीं पकड़ाया होगा। मैं पिंजरे के ऊपर बचाओ बचाओ और तू पिंजरा बंद करते हुए बचाओ बचाओ।
बंटी- चिल्ला... सबको बता दे।
छोटू- ग़लती हो गई।
बंटी- उससे अच्छा तो ये था कि खरगोश चुरा लेते। (ईश्वर प्रवेश करता है। वो हवलदार है जो छोटू बंटी को बांधकर जेल ले जा रहा है।)
छोटू- नहीं-नहीं हाथी।
बंटी- श्् अच् श!
छोटू- अरे मैंने देखा है हाथियों को पैसे कमाते हुए।
बंटी- चुप रह।
छोटू- बंटी, हाथी हमें कमा-कमा के पैसे देता रहता और हम दोनों हाथी की पीठ पर एक बड़ा सा घर बना लेते।
ईश्वर- सही है पहले शेर चोरी करते पकड़े गए अब हाथी चोरी करने की प्लानिंग कर रहे हो?
छोटू- अरे नहीं ईशवर भाई..
बंटी- इंस्पेक्टर ईश्वर...
Scene 11
(काया ताली बजाती है। कहानी रुक जाती है।)
सैम- हाँ हाँ हाँ, मैंने जान-बूझकर नहीं किया ये हो गया।
काया- नाम बदलो उसका।
सैम- नाम बदलने से क्या हो जाएगा? यूँ भी ईश्वर मेरे एक पुराने दोस्त का नाम भी है।
काया- झूठ मत बोलो।
सैम- अच्छा ठीक है अब उसे ईश्वर नाम से कोई नहीं पुकारेगा। (सबसे कहता है। सब हाँ बोलते हैं।)
काया- कितने ज़िद्दी हो तुम, और मैंने तुमसे कहा था मुझे छोटू-बंटी की कहानी नहीं सुननी है।
सैम- तुम्हें क्या लगता है अब ये कहानी मैं कह रहा हूँ। कहानी की सिर्फ़ शुरुआत मेरे हाथ में थी। अब जैसी कहानी तुम देखना चाहती हो और जैसी बात ये कहना चाहते हैं...कहानी वो ही चल रही है।
काया- तुम्हारे इस पागलपन का एक अंत है मेरे पास और वो मेरे लिए सुखांत होगा।
सैम- क्या?
काया- अगर कहानी नहीं कह पाओ तो माफ़ी माँग लेना। मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगी।
सैम- माफ़ी तो नहीं माँगूगा और ये ज़िद है।
काया- अच्छा देखेंगे।
सैम- देखते हैं।
(सैम ताली बजाता है... और कहानी फिर शुरु होती है।)
Scene 12
(वर्मा चाय की दुकान चलाता है।)
चाय- वर्मा जी, आज तो ग्राहकी भी कम है तो वहाँ स्टूल पे बैठ जाऊँ?
वर्मा- नहीं।
चाय- अच्छा थोड़ा सा इधर कोने में ऐसे?
वर्मा- नहीं।
चाय- अच्छा ऐसा हाथ करके ऐसे खड़ा हो सकता हूँ ना?
वर्मा- स्टूल से दूर रह।
चाय- वर्मा जी कितना अच्छा लग रहा हूँ देखो।
वर्मा- देख दिमाग़ का दही मत कर, अभी ट्रेन आने में टाइम है कोई ना कोई तो आएगा।
चाय- जब आएगा तो उठ जाऊँगा। बहुत दिनों से कोई क़िस्सा नहीं सुना।
वर्मा- बेटा क़िस्से सुनने के लिए अच्छे कान चाहिए। ये खाना बनाने वाले और खाना खाने वाले के संबंध जैसा होता है। खाना खाने वाला जितना चटकारे मारकर खाना खाएगा, उतना ही खाना बनाने वाले को मज़ा आएगा।
चाय- पर मैं तो आपकी बनाई हुई चाय भी क्या चटकारे मारकर पीता हूँ।
वर्मा- तो अभी चाय ही पियो, खाने में बहुत टाइम है। ज़रा सलीम भाई पे ध्यान दे, बहुत दिनों बाद उनको ग्राहक मिला है। अगर काम हो गया तो तेरे मुंशी की किताब दिलाऊँगा।
चाय- प्रेमचंद... मुशी प्रेमचंद!
वर्मा- जो भी... अभी धंधा देख।
Scene 13
(दूसरी तरफ...)
सलीम- देखो ये मेरा धंधा है तुम जो भी कहोगे वो तुम्हारे मरते ही सब दफ़न हो जाएगा। मैं धंधे में गद्दारी नहीं करूँगा, ये वादा है।
आशीष- मैं तो मरने ही वाला हूँ। उसके बाद तुम कुछ भी करो मुझे कोई मतलब नहीं।
सलीम- ठीक है पर क्या है, क्यों मरना है कि अपेक्षा मरने के बाद सब उनके बारे में क्या सोचेंगे। इससे लोग ज़्यादा डरे हुए रहते हैं इसलिए...
आशीष- मेरी कहानी का नाम भी डर ही है। ये कहानी एक ऐसे आदमी की कहानी है जो सबसे डरता है छिपकली, कॉकरोच, रात से, रात में पहाड़ से, पेड़ से और सन्नाटे से... ये आदमी शादीशुदा है और एक बैंक में कलेक्शन का काम सँभालता है। दिनभर फ़ील्ड पर रहता है। कभी-कभी घर के पास होता है तो घर होता हुआ जाता है। उसकी पत्नी का एक प्रेमी है। पर हमेशा बेवक़्त जब भी वो घर पहुँचता है तो दरवाज़े पर घंटी बजाने के ठीक पहले वो एक डर महसूस करता है। डर कि कहीं वो दोनों साथ तो नहीं होंगे! कैसे होंगे, अभी क्या कर रहे होंगे! मेरे पास सॉरी, उसके पास घर की एक चाबी होती है, पर वो हमेशा दरवाज़े पे खड़े होकर फोन करता है अपनी पत्नी से कहता है कि मैं दस मिनट में आ रहा हूँ और फिर दरवाज़े के बाहर खड़ा होकर इंतज़ार करता है। दस मिनट बाद बिना घंटी बजाए एक अच्छे पति की तरह दरवाज़ा खोलकर अंदर जाता है। कभी-कभी वो दोनों उसे साथ दिखते हैं और कभी नहीं। पर जब भी वो दोनों साथ मिलते हैं, तो वो सीधा अपने बेडरूम में जाकर अपने बेड पर बेतरतीब से बिछी हुई चादर देखता है। फिर अंत में वो दिखावे के सुखी विवाहित जीवन से परेशान होकर उन दोनों को उसी बेड पर रंगे हाथों पकड़ता है और... पर असल में, मैं अभी भी दस मिनट दरवाज़े के बाहर खड़ा होकर इंतज़ार ही करता हूँ।
सलीम- वैसे ये अकेली ही वजह से बहुत से लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
आशीष- नहीं, मुझे लगता है सिर्फ़ ये ही वजह ठीक नहीं है मरने की। इस घटना की प्रतिक्रिया आत्महत्या नहीं हो सकती।
सलीम- चाय पीयोगे?
आशीष- हाँ।
सलीम- चाय... एक चाय लाना। मैं अभी आया। ये कहानी का नाम क्या बताया तुमने?
आशीष- डर...
गाना-
रा... रा... रा... डर है
चारों तरफ़ फैला हुआ जंगल नहीं है
शहर है, डर है
काली रात का डर है, सन्नाटे का डर है
डर है
बंद हैं जो दरवाज़े, नहीं सुनी जो आवाज़ें
उन आवाज़ों के सुनने का
उन दरवाज़ों के खुलने का
डर है... डर है
और बचने को इक छोटा सा घोंसले सा घर है
डर है... डर है
पर घर के कोनों में भी छिपी हुई है छिपकली जैसी रात
होंठों पे सूख के पपड़ी बन गई कह ना सके जो बात
उस छिपी हुई रात का डर है
उस अनकही बात का डर है.. डर है... रा... रा... रा...
Scene 14
(गाना ख़त्म होता है भाई और एक उसका एक दोस्त, कौए को खींचकर अलग ले जाते हैं।
भाई- क्यों बे कौवे, तुझे कितनी बार समझाया है बीच में नहीं गाना?
कौवा- भैया!
भाई- भाई मत बोल! क्या कहा था क्या बोलना? क्या कहा था?
कौवा- उस्ताद...
भाई- अब तू दस बार काँव-काँव करेगा।
कौवा- मैं नहीं करूँगा।
भाई- तू कौवा है और तू काँव-काँव करेगा। यही तेरी सजा है कर नहीं तो देता हूं...
कौवा- काँव-काँव-काँव-काँव...
(भाई हँसता है)
कौवा- माँ! बापू आए तो कहना मैं चला गया।
माँ- कहाँ जा रहा है?
कौवा- बापू ने सही कहा था ख़ुद के मरने से स्वर्ग मिलता है। मैं खोज में जा रहा हूँ कि मैं क्या हूँ?
माँ- बेटा ऐसी बात को दिल पर नहीं लेते, तू जितना तेरे लिए परेशान है, हम लोग भी तेरे लिए उतना ही परेशान हैं। तूने देखा, बापू तेरी कितनी चिंता करते हैं?
कौवा- माँ! बापू के कहने पर कोई कहानी कह रहा है, कोई गाना गा रहा है। सभी कुछ ना कुछ कर रहे हैं। पर मैं क्या कर रहा हूँ? ना तो मैं गाना गा पाता हूँ ना कहानी कह पाता हूँ। मैं जब तक मैं पता नहीं लेता कि मैं क्या कर सकता हूँ मैं वापस नहीं आऊँगा।
(बापू स्केटिंग करते हुए एक विंग से दूसरे विंग पर चले जाते हैं उनके गिरने की आवाज़ आती है)
कौवा- माँ! बापू को भी बता देना।
(चला जाता है)
माँ- बेटा...
कौवा- माँ! मुझे अब रोकना मत मैं जा रहा हूँ।
माँ- बेटा जब मैं तेरे बाप को नहीं रोक पाई तो तुझे क्या रोकूँगी। शाम को जल्दी आना फिर इंसान-इंसान खेलेंगे।
कौवा- माँ...
माँ- अच्छा जा।
Scene 15
(दूसरी तरफ)
ईश्वर- कैसे चुराओगे हाथी?
छोटू- हम लोग सबसे पहले...
बंटी- मज़ाक कर रहे थे हम लोग, टाइम पास। इसे भूख लग रही थी तो मेरा सिर खा रहा था।
ईश्वर- भूख लगी है... पान खाओगे? नहीं एक काम करो पहले खाना खाना फिर तुम लोगों को कुछ मीठा खिलाऊँगा और फिर पान खाना। चलेगा?
छोटू-बंटी- हाँ चलेगा।
ईश्वर- पर खाना तो तुम्हें मिलेगा नहीं और कुछ चाहिए तो बता दो। (छोटू-बंटी एक-दूसरे की ओर देखते हैं। ईश्वर लेट जाता है।)
बंटी- चाय?
छोटू- चाय हाँ चाय?
बंटी- हाँ चाय ठीक रहेगी।
छोटू- एक चाय मिल जाए तो...
ईश्वर- चाय... एक चाय देना।
चाय- पैसे?
ईश्वर- मैं दूँगा... क्या करते हो तुम लोग चोरी-चकारी के अलावा?
छोटू- हम दोनों सर्कस में काम करते थे फिर उस सर्कस वाले ने हम दोनों को निकाल दिया तो...
ईश्वर- सर्कस में जोकर थे?
छोटू- नहीं, ये जगलिंग करता था।
ईश्वर- जगलिंग मतलब?
छोटू- मतलब चार-पाँच गेंदों को एक साथ हवा में उछालने का काम।
बंटी- और ये रस्सी पर साइकिल चलाता था।
ईश्वर- और?
छोटू- और, और क्या?
ईश्वर- और क्या करते थे?
छोटू- और ये वहीं खेल आँख बंद करके भी करता था। है ना?
बंटी- हाँ और ये रस्सी पर आँखे बंद करके भी साइकिल चलाता था।
ईश्वर- और?
छोटू- और... और ये जगलिंग करते हुए एकदम मस्त।
बंटी- और ये साइकिल चलाते वक़्त हाथों को ऊपर-नीचे भी...
छोटू- ऊपर-नीचे नहीं कर पाता था हाथों में डंडा होता था।
बंटी- डंडा भी हाथों में और बहुत बढ़िया... एकदम!
ईश्वर- और?
छोटू- और...
बंटी- और...
छोटू- और, हम दोनों बचपन से सर्कस में हैं ना और...
बंटी- और बस।
ईश्वर- ठीक है। ठीक है समझ गया तुम दोनों क्या थे।
छोटू- तूने वो नहीं बताया कि मैं हाथी को नहलाता भी था?
बंटी- जैसे तूने बड़ा बताया कि मैं तोते को बोलना सिखाता था... बेवकूफ़!
छोटू- बेवकूफ़ मत बोल। गाली सिखाई थी तूने तोते को।
बंटी- अच्छा चुप रह!
छोटू- अब बोलूँ? एक बार चलते शो में तोते ने कहा था तेरी माँ की...
ईश्वर- चुप एकदम! सोने भी नहीं देंगे? (सो नहीं पाता है... गुस्से में उठ जाता है।)
चाय- ये चाय...
ईश्वर- नहीं देना है किसी को।
Scene 16
(चाय लेकर, चाय आशीष के पास जाता है।)
चाय- चाय...
आशीष- धन्यवाद।
चाय- सलीम भाई कहाँ हैं?
आशीष- आ रहे हैं। पैसे चाहिए?
चाय- नहीं वो तो सलीम भाई देंगे।
आशीष- इतने खुश क्यों हो?
चाय- मैं बता नहीं सकता, चलता हूँ।
आशीष- नहीं नहीं, इतने खुश क्यों हो? बोलो?
चाय- बहुत दिन से सलीम भाई खाली बैठे थे, उनकी कमाई होती है तो हमको भी हर चाय का सौ रुपया मिलता है।
आशीष- अच्छा!
चाय- सलीम भाई को मत बताना।
आशीष- नहीं बताऊँगा।
चाय- मरना.... ठीक है। (आशीष हाँ में सिर हिलाता है।)
आशीष- एक चाय और दोगे?
चाय- अभी लाया।
Scene 17
(एक आदमी, ब्रम्हानंद... नाटक के दौरान, स्टेज के बीच में चद्दर ओढ़कर सो रहा है। ईश्वर उसकी बेंच के पास जाता है... उसे थोड़ी जगह दिखती है..)
ईश्वर- अरे ज़़रा उधर खिसकेंगे, मुझे सोना है। अरे भाई सुनाई नहीं दे रहा है क्या, अरे उठो भाई। अबे उठता है कि तेरी तो...
ब्रम्हानंद- आ आ (चीखता है, ईश्वर डर जाता है और वहाँ से अलग हट जाता है और वर्मा की दुकान के पास पहुँचता है.. ब्रम्हानंद वापिस सो जाता है।)
वर्मा- अरे अरे... क्या हुआ?
ईश्वर- अरे कुछ नहीं यार वो तो मैं बस सोना चाह रहा था। मैंने बोला सरक जाओ तो वो चिल्लाने लगा। अगर मेरा एरिया होता तो साले को अंदर कर देता। कौन है ये?
वर्मा- ब्रम्हानंद। (खूफिया तरीक़े से बोलता है।)
ईश्वर- अरे कौन ब्रम्हानंद?
चाय- मैंने देखा था आपको आप ब्रम्हानंद को मारने वाले थे, तभी वो चीखा। ऐसे वो किसी को कुछ नहीं बोलता है।
ईश्वर- तू कौन है बे? ये कोन है?
चाय- चाय।
ईश्वर- क्या?
चाय- चाय, सुनाई नहीं दे रहा।
ईश्वर- अबे नाम पूछ रहा हूँ, तेरा काम नहीं।
वर्मा- अरे वो सच कह रहा है, इसका नाम ही चाय है।
ईश्वर- तो जाके चाय बेच, बीच में मत बोल। चाय.... साला! ये ब्रम्हानंद इसी गाँव का है?
वर्मा- हाँ।
ईश्वर- यहाँ क्या कर रहा है? इसके बाप का स्टेशन है?
चाय- हाँ इसके बाप का ही है।
ईश्वर- अब तू बीच में बोला....
वर्मा- वो सही कह रहा है, इसके बाप का ही है।
ईश्वर- मतलब?
वर्मा- ऐसा कहते है कि ये ब्रम्हानंद के पुरखों की ज़मीन थी, जिस पर सरकार ने रेलवे स्टेशन बना दिया। और वादा किया था कि इनको कहीं और ज़मीन देंगे, पर वो दी नहीं गई तो ये यहीं रहने लगा। पहले इसके दादाजी यहाँ बैठते थे फिर पिताजी और फिर ये।
ईश्वर- ये तो गैर-क़ानूनी है। इसको कोई भगाता नहीं?
वर्मा- क्यों भगाएँगे साहब, ये रेलवे स्टेशन को अपना घर मानता है और यहाँ के हर व्यक्ति को अपना मेहमान। सबकी खैर-तबीयत पूछता है, पूरे स्टेशन को साफ़ रखता है। हर आने वाले को नमस्कार करता है, और हर जाने वाले को फिर आइए का सलाम। और इंतज़ार करता है।
ईश्वर- किसका इंतज़ार?
वर्मा- ये पता नहीं... जब भी कोई ट्रेन आती है तो ये ट्रेन के हर डब्बे में झांकता फिरता है मानों इसका कोई अपना अंदर शायद सो रहा हो और उतरना भूल गया हो.... और कुछ लोग कहते हैं कि ये ब्रम्हानंद के ज़िदा रहने का बहाना भी है।
ईश्वर- कौन कहते हैं?
वर्मा- ऐसा कहते हैं ये एक चमत्कार जैसा जिसका वो इंतज़ार करता रहता है।
ईश्वर- चमत्कार का इंतज़ार!!! ह्म्म्म्म
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार..... (माँ इंतज़ार कर रही है और लोग पीछॆ गुनगुनाना रहे हैं।)
Scene 18
भाई- माँ! चल अब खाना खा ले बापू आते ही होंगे।
माँ- तुझे खाने और गाने के अलावा और कुछ सूझता भी है? महीना होने को आया, अभी तक उसका पता नहीं चला। कहाँ चला गया होगा। तेरे बापू भी उसको ढूँढ-ढूँढकर परेशान हैं।
भाई- माँ! मैं भी उसे पिछले एक हफ्ते से ढूँढने जा रहा हूँ। बाहर जाते ही डर लगने लगता है। शायद मेरे ही डाँटने की वजह से वो चला गया है। वैसे ही मैं बहुत दुखी हूँ, तू खाना खा ले वरना मुझे और बुरा लगेगा।
माँ- जो भी हो, जब तक वो नहीं आएगा मैं खाना नहीं खाऊँगी।
गाना-
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार
वो तो चला गया रे
वो तो चला गया समुंदरों के पार
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार
वो चला गया समुंदरों के पार-3
छोटा सा पंछी वो नन्हीं सी जान रे-2
कैसे वो झेलेगा आँधी तूफ़ान रे-2
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार
वो लेकर के आएगा कोई ऐसी किताब
जिसमें मिलेंगे सब सवालों के जवाब
वो नाम करेगा, ऐसा काम करेगा
चाहे रास्ते में आए मुश्किलें हज़ार।
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार
मेरा काला रे
मेरा कौवा काला रे
मेरा कागा रे
मेरा काला कागा रे
मेरा काक रे
वो जो बोले काँव, सुन के कोयल हो बेहाल, मैं तो हो जाऊँ निहाल
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार
(interval…..)
Scene 19
(गाने से शुरुआत होती है.. फिर छोटू और बंटी।)
छोटू- बंटी, हम कब तक ज़िंदा रहेंगे?
बंटी- क्या?
छोटू- हम कब तक ज़िंदा रहेंगे?
बंटी- एक घंटे तक.... अरे मुझे क्या पता।
छोटू- और बंटी जब तक मैं ज़िंदा रहूँगा मैं छोटू ही रहूँगा और जब तक तू ज़िंदा है तू बंटी ही रहेगा?
बंटी- हाँ।
छोटू- याद है तूने मुझे ध्रुव तारा दिखाया था? सुबह चार बजे? वो कब से ध्रुव तारा ही है, बेचारा ध्रुव तारा!
बंटी- तो क्या है?
छोटू- मुझे इसी बात पे कभी-कभी रोना आ जाता है कि मैं कुछ नहीं होऊँगा। मैं अपने मरने तक छोटू ही रहूँगा, अंत तक छोटू, एकदम अंत तक। अरे ये रस्सी खुल गई साब, साब ये रस्सी खुल गई।
बंटी- अबे!
ईश्वर- इन दो जोकरों को भी तो सँभालना है (ईश्वर छोटू-बंटी के पास जाता है।)
Scene 20
वर्मा- जल्दी से स्टूल साफ़ कर। ऐसे भूखे बहुत कम आते हैं।
चाय- मतलब?
वर्मा- आज खाना बनाने में मज़ा आएगा। ये सँभाल अपनी चाय की केतली और ये रहे गिलास और तू निकल ले।
चाय- मैं चुपचाप यहाँ कोने में बैठा रहूँगा। प्लीज़ प्लीज़!
वर्मा- दिमाग़ का दही मत कर। वरना स्टूल पे बैठना तो दूर उसे साफ़ भी नहीं कर पाएगा।
चाय- और बीच में अगर चाय ठंडी हो गई तो।
वर्मा- तू जो मोटी-मोटी किताबें पढ़ता है ना, उसे जलाकर गर्म कर लेना। चल अब जा भूखा आ रहा है।
Scene 21
(दूसरी तरफ...)
आशीष- मेरी अगली कहानी का नाम फ़ादर है- पिता।
सलीम- क्या हुआ?
आशीष- कुछ नहीं।
सलीम- देखो वैसे ये तुम्हारे किसी काम का नहीं है, पर चूँकि ये मेरा धंधा है सो मैं बता दूँ कि मैं अपनी क्लाइंट को क्या-क्या प्रोवाइड कराता हूँ। कागज़, कलम, डेथ नोट लिखने के लिए। किसे देना है, कितने दिनों में देना है आप ये भी बता सकते हैं। डेथ नोट लिखने में समस्या हो तो मेरे पास कुछ सौ से ज़्यादा लोगों के डेथनोट हैं आपको उससे मदद मिल सकती है। और आपको बता दूँ कि ये जगह आत्महत्या के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। बाहर-बाहर से लोग यहाँ आत्महत्या करने के लिए आते हैं। मरे अधिकतर क्लांइट ने चार दस की सुपर फास्ट ट्रेन से आत्महत्या की है। वो यहाँ रुकती नहीं है धड़धड़ाती आती है और एक झटके में काम ख़त्म। और अब मुख्य बात इसके बदले में मुझको क्या मिलता है? मुझे मिलता है वो सब जो इस वक़्त आप के पास है। पर्स से लेकर घड़ी, अँगूठी, चेन वगैरह-वगैरह... अरे आप हँस रहे हैं। इसमें मुझे घाटा भी होता है कई बार मुझे लोगों का अंतिम संस्कार अपने पैसों से करना पडा। अमीर ही नहीं गरीब लोग भी आत्महत्या करते हैं।
आशीष- ये लो। मुझे किसी को कुछ नहीं बताना (आशीष अपने जेब से पर्स, अँगूठी और घड़ी निकालकर उसे दे देता है।)
सलीम- ये कहानियाँ भी दे दो।
आशीष- नहीं, मैं इन्हें अपने साथ ले जाना चाहता हूँ।
सलीम- ठीक है आखिरी कहानी।
आशीष- हाँ फ़ादर, पिता, बाप।
Scene 22
(दूसरी तरफ....ईश्वर, ब्रम्हानंद के चेहरे को देख रहा है)
ईश्वर- मुझे इस पर शक है। वर्मा जी मुझे इस आदमी पर शक है।
वर्मा- क्या बात है मान गए आपको। आप पहले आदमी हैं जो समझ गए।
ईश्वर- क्या समझ गए?
वर्मा- यही कि ब्रम्हानंद असल में जाग रहा है।
ईश्वर- क्या? हाँ, अ अ मैं समझ गया वो जाग रहा है कैसे?
वर्मा- ब्रम्हानंद ने एक बार कहीं पढ़ लिया था कि एक आदमी ने एक बार तितली का सपना देखा। पर जब वो जागा तब उस आदमी को समझ में नहीं आया कि वो आदमी है जिसने तितली का सपना देखा या वो तितली है जो अभी आदमी का सपना देख रही है।
ईश्वर- हैं?
वर्मा- ऐसा कहते हैं कि ब्रम्हानंद ने इस बात को बहुत गंभीरता से लिया और अब वो खोज रहा है कि वो असल में क्या है तितली या आदमी?
ईश्वर- तो क्या है वो?
वर्मा- अरे आप तो देखते ही समझ गए थे। है ना?
ईश्वर- हाँ हाँ, मैं समझ गया।
Scene 23
(दूसरी तरफ...)
आशीष- ये एक ऐसे आदमी की कहानी है जो अपने पिता के साथ अकेला रहता है। माँ थी नहीं और बड़ा भाई सालों पहले दुबई में काम करने चला गया। सुना था अब वो काफ़ी पैसे कमाने लगा है। इसकी अभी-अभी छोटी नौकरी लगी थी जैसे-तैसे वो घर का गुज़ारा करता था। तभी पिताजी को पैरालेटिक अटैक आ जाता है। उनका चलना, फिरना, बोलना सब बंद हो गया। कुछ समय तक ये अपने पिताजी का इलाज कराता है, पर कुछ फ़ायदा नहीं होता। यहाँ कर्जा भी बहुत बढ़ जाता है। वो अपने भाई को पैसे के लिए खबर करता है.. पर वहाँ से कोई जबाव नहीं आता है... तो ये कारण बटोरने लगता है।
सलीम- कारण किसके?
आशीष- कारण अपने बाप की हत्या के। उसमें बचकाने से बुद्धिजीवी सारे कारण मौजूद थे... इतनी तकलीफ़ में घिसटते-घिसटते जी रहे हैं, जीवन से सारे संबंध ख़त्म हैं फिर क्यों ज़िंदा हैं, वगैरह-वगैरह और फिर एक दिन वो अपने पिताजी के खाने में जहर डाल देता है। पिताजी की मृत्यु के कुछ ही दिन बाद भाई का दुबई से पैसा आ जाता है पिताजी के इलाज के लिए...।
सलीम- अरे!!!
आशीष जबकि असल में भाई का दुबई से पैसा पिताजी के मरने से पहले आया था पर वो इतना पैसा था कि उन पैसों को पिताजी के इलाज के लिए खर्च करना मुझे बेवकूफ़ाना लगा।
सलीम- असल में तुमने पिताजी को ज़हर...
आशीष- हाँ दिया था और जिन कारणों को उस वक़्त अपने साथ रखा था वो सारे कारण अब मुझ पे लागू होते हैं।
सलीम- मतलब?
आशीष- मतलब मैं बस साँस ले रहा हूँ जीवन से मेरा संबंध कब का छूट गया है हर आदमी मेरा क्लाइंट है या मैं किसी का क्लाइंट हूँ। सबकी आँखों में मैं अपना भारीपन देखता हूँ अपने होने का भारीपन, जो मैंने मेरी आँखों में तब महसूस किया था जब मैं अपने बाप को मारने के कारण जमा कर रहा था।
सलीम- तो अब?
आशीष- अब तुम बताओ कैसे करना है?
सलीम- चार बज गया है ट्रेन आती ही होगी तैयार हो जाओ।
आशीष- एक आख़िरी चाय।
सलीम- हाँ, क्यों नहीं चाय! चाय! कहाँ मर गया। मैं ख़ुद बोल कर आता हूँ।
Scene 24
ईश्वर- ब्रम्हानंद ऐ ब्रम्हानंद!
वर्मा- वो नहीं सुनेगा।
ईश्वर- क्यों?
वर्मा- क्योंकि हम उसे ब्रम्हानंद कहते हैं लेकिन शायद उसे नहीं पता कि उसका नाम ब्रम्हानंद है।
ईश्वर- क्या? वो ब्रम्हानंद है उसे नहीं पता! लेकिन तुम उसे ब्रम्हानंद कहते हो तो तुम्हें कैसे पता उसका नाम ब्रम्हानंद है?
वर्मा- क्योंकि बहुत पहले ट्रेन में से एक आदमी ने ब्रम्हानंद चिल्लाया था और तब ये मुड़ा था, दूसरे ब्रम्हानंद में ये खड़ा हुआ था और तीसरे ब्रम्हानंद चिल्लाने पर ये बहुत तेज़ी से भागा था, मगर तब तक ट्रेन निकल चुकी थी। ओह अब समझ में आया ये हर ट्रेन के डिब्बे में इसलिए झाँकता-फिरता है कि ये शायद पता करना चाहता है कि किसने इसे इसके नाम से पुकारा था।
ईश्वर- हाँ हाँ।
वर्मा- शायद!
ईश्वर- शायद! अब शायद क्या?
वर्मा- देखो सच किसी को नहीं पता ऐसा कहते हैं।
ईश्वर- ये तुम्हारे स्टेशन पे कौन हैं जो कहते हैं? कौन हैं ये?
गाना-
ये हम हैं जो कहते हैं, हाँ हाँ हम हैं जो कहते हैं
ज़रा नज़रें उठाकर देखो तो हम आसपास ही रहते हैं
ये हम हैं जो कहते हैं
कहते हैं दुनिया को ऊपर वाले ने हाथों से अपने बनाया था
कहते हैं आदम अकेला था पहले फिर हौवा ने आके मुस्कुराया था
उसके ही कहने से फल खाया पहले खाया पहले फिर?
फिर कहते हैं धक्का भी खाया था
कहते हैं उसकी ही संतान हैं सब, कौन हैं जो ये कहते हैं?
ये हम हैं जो कहते हैं, हाँ हाँ हम हैं जो कहते हैं
ज़रा नज़रें उठाकर देखो तो हम आसपास ही रहते हैं
ये हम हैं जो कहते हैं...
Scene 25
(गाना ख़त्म होता है सभी एक जगह इकट्ठे होकर बैठ जाते हैं।)
बापू- अरे क्या हुआ? चलो अपनी-अपनी जगह। अरे जाओ खड़े क्या हो? अरे चलो अपनी-अपनी कहानियाँ शुरू करो।
भाई- अभी क्या कहें?
बापू- मतलब कहानी किसने रोकी? कहानी किसने रोकी?
सैम- कहानी मैंने रोकी।
बापू- ये बेईमानी है।
सैम- माफ़ करना दो मिनट।
काया- मैं कुछ कहूँ?
सैम- हाँ, बस शुरू कर रहा हूँ।
काया- मैं बस बताना चाहती हूँ कि तुम्हारी ट्रेन का टाइम हो रहा है।
सैम- मैं जानता हूँ।
काया- क्या करोगे प्रेम कहानी, ऊपर से सुखांत?
सैम- हँ...
काया- मैं जानना चाहती हूँ कैसे करोगे?
सैम- मृत्यु के बारे में इतना सोचोगी तो जीयोगी कब?
काया- क्या?
सैम- क्या हम जीते हुए लगातार मरने के बार में सोचते हैं? नहीं ना? अंत अपनी गति से होगा।
काया- पर अंत बोलने से तो नहीं होगा ना। अंत करना पडेगा, पहली बार तुम इतनी बुरी तरह फँसे हो। है ना?
सैम- हँ...
काया- मुझे तुम्हारे ऊपर बड़ी दया आ रही है।
सैम- हा हा हा!
काया- क्या हुआ?
सैम- मिल गया मुझे अंत।
काया- क्या?
सैम- हाँ अंत मिल गया अब मेरी इस प्रेम कहानी का अंत तुम्हीं करोगी। अब अंत तुम्हारे हाथ में है।
काया- मैं? मुझे नहीं पता तुम क्या करने वाले हो? पर तुम्हारे पास समय कम है। अगर अंत नहीं हुआ तो मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगी।
सैम- पक्का! हा हा हा... (हँसता है) शुरू करें?
(सैम कबूतरों की तरफ़ पलटता है, कहता है)
सैम- अंत है, ज़रा जमाके।
बापू- ताली तो बजा दो।
(सैम ताली बजाता है सब घूमकर एक तरफ़ देखने लगते हैं वहाँ से कहानी शुरू हो जाती है। कौवा प्रवेश करता है आकर बापू के गले लग जाता है।)
कितनी सारी चाँद की रातें, कितना दिन का उजाला
क्या होता मतलब सफ़ेद का यारों, जो ना होता रंग काला
माँ- बेटा कहाँ चला गया था इतने दिन? कितनी चिंता हो रही थी तेरी।
कौवा- माँ मुझे पता लग गया है कि मैं कबूतरों के बीच एक कौवा हूँ।
बापू- किसने कहा तुझसे, किसने कहा?
कौवा- इस बार किसी ने नहीं कहा मुझे पता लग गया है और मुझे इसमें कोई समस्या नहीं है। बापू मैं बाहर गया था बाहर संसार में मैं उड़ता रहा उड़ता रहा, ना ज़मीन ख़त्म होने का नाम ले रही थी ना आसमान और तभी अचानक पता नहीं कहाँ से बहुत सारी भीड़ आ गई। बापू वो सब हवाई जहाज़ की तरह उड़ रहे थे बहुत तेज़ पता नहीं कितने तरीक़े के कितने सारे पक्षी उड़ रहे थे और वो कौए भी नहीं थे, कबूतर भी नहीं थे, फिर मैंने उनसे पूछा-
(सैम कौवा बनकर उसका दृश्य जीता है....।)
सैम- आप लोग कौन से स्टेशन पर रहते हैं और कौन से स्टेशन जा रहे हैं?
(सभी हँसने लगे)
मैं कौवा क्यों हूँ? (सभी हँसते हैं)
जब सभी कबूतर हैं तो मैं कौवा क्यों हूँ
(तभी एक बूढ़ा आदमी सैम के बगल में आकर उड़ता है।)
बूढ़ा- तुमने क्या कबूतर कहा?
सैम- हाँ कबूतर।
बूढ़ा- बहुत पहले की बात है कि मैं जब उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव की ओर जा रहा था अचानक मुझे प्यास लगी। मैं नीचे ज़मीन पे एक पोखर में पानी पीने रुक गया। मैंने देखा वहाँ बहुत से सफ़ेद-सफ़ेद मोटे-मोटे पक्षी थे जो अपने आपको कबूतर कहते थे। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ जा रहा हूँ तो सब मुझ पर हँस दिए, पर उसमें से एक कबूतर था जो मुझ पे हँसा नहीं था। जब मैं दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ रवाना हुआ तो वो काफ़ी दूर तक मेरे साथ चला। फिर बीच में थक गया तो मैंने उससे कहा वापस लौट जाओ। पर वो नहीं माना फिर वो बीच में कहीं भटक गया।
सैम- क्या वो दक्षिणी ध्रुव तक पहुँचा था?
बूढ़ा- वो तो पता नहीं पर ऐसा कहते हैं कि उसे अलग-अलग समय में अलग-अलग जगह देखा गया था, तुम कहाँ जा रहे हो?
सैम- खोज में।
बूढ़ा- किसकी?
सैम- मैं कौवा क्यों हूँ?
बूढ़ा- तुम्हारी आँखों में भी उस कबूतर की आँखों जैसी चमक है। मैंने उससे भी यही कहा था कि हम कितने किस्मत वाले हैं जो हमारे पंख हैं। ज़रा उन बेचारों के बारे में सोचो जिनके पंख ही नहीं हैं। तुम्हारे पास पंख है, उड़ने की क्षमता है। क्या ये काफ़ी नहीं है?
सैम- पर मैं कौन हूँ?
बूढ़ा- हा हा हा... अगर इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें उड़ने में मदद होगा तो उत्तर ढूँढो? मैंने इस तरीक़े के सारे प्रश्न अपने बुढ़ापे के मनोरंजन के लिए रख छोड़े हैं जब मैं उड़ नहीं पाऊँगा।
सैम- आप कौन हैं?
बूढ़ा- मैं!
(तभी बहुत सारे पक्षी आकर उन दोनों को अलग कर देते हैं।)
सैम- अरे अपना नाम तो बताते जाइए?
कौवा- उसने चिल्लाकर अपना नाम बताया पर मैं सुन नहीं पाया।
बापू- विचित्र किंतु सत्य
कौवा- क्या?
बापू- बेटा मैं दक्षिणी ध्रुव तक गया था।
भाई- बापू क्या हो गया आपको?
बापू- मैं दक्षिणी ध्रुव गया था बेटा ये वही विचित्र किंतु सत्य कबूतर हैं जो मेरे सपनों में आता है। तू उसी कबूतर से मिलकर आया है।
भाई- तू भी दक्षिणी ध्रुव तक गया था?
कौवा- नहीं।
भाई- तो कहाँ तक गया था?
कौवा- बहुत दूर तक।
भाई- अगली बार मुझे भी लेकर जाएगा?
कौवा- भाई! ख़ुद के मरने से ही स्वर्ग मिलता है। (सब हँसने लगते हैं)
Scene 26
ईश्वर- वो देखो ब्रम्हानंद उठ रहा है।
वर्मा- ओ तेरी ये आज जल्दी क्यों उठ गया (वो आदमी कुली के कपड़े पहनता है अँगड़ाई लेता हुआ वर्मा के पास आता है ईश्वर हक्का-बक्का उसे देख रहा है।)
कुली- क्या भाई ब्रम्हानंद कैसे हो साला नींद टूट गई। (वो वर्मा को ब्रम्हानंद कहता है।) चल मुँह धोके आता हूँ। मेरे लिए चाय बोल ब्रम्हानंद मैं आता हूँ। (कुली निकल जाता है ईश्वर गुस्से में वर्मा को देखता है वर्मा मुस्कुरा देता है।)
Scene 27
बंटी- अब शांत रह और प्लान सुन।
छोटू- नया प्लान।
बंटी- नया नहीं आख़िरी प्लान। अभी चार दस की फ़ास्ट ट्रेन निकलेगी वो क्रॉस करे उसके पहले हमें पटरी के उस पार कूद जाना है।
छोटू- और ये रस्सी?
बंटी- मैंने काट दी है और तू चुप रहना। सिर्फ़ भाग बोलूँगा और सीधा पटरी के उस पर कूद जाना जब तक ट्रेन क्रॉस करेगी हम भाग चुके होंगे।
छोटू- बंटी! बिना भागे काम नहीं चलेगा?
बंटी- छोटू! मार खाएगा।
छोटू- सॉरी!
Scene 28
चाय- ये चाय!
आशीष- हँ...
चाय- चलता हूँ।
आशीष- सलीम भाई तुम्हें ही बुलाने गए हैं।
चाय- पता है। मैं पीछे से आया आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।
आशीष- बोलो...बोलो।
चाय- पश्चाताप जीने में है मरने में नहीं। माफ़ करना चलता हूँ।
Scene 29
(ईश्वर, वर्मा का कॉलर पकड़े हुए हैं।)
वर्मा- बताता हूँ बताता हूँ। मैं ही ब्रम्हानंद हूँ। मेरा नाम ब्रम्हानंद वर्मा है।
ईश्वर- अबे तो मुझे बेवकूफ़ बनाने की क्या ज़रूरत थी?
वर्मा- मुझे क्या पता था आज ये जल्दी उठ जाएगा। देखो मुझे रात भर जागना पड़ता है और ये रात भर सोता है। ये मेरे मनोरंजन का साधन है। आज पहली बार पकड़ा गया हूँ। माफ़ कर दो।
ईश्वर- ठीक है लेकिन एक शर्त पर कि तूने मुझे बेवकूफ़ बनाया ये बात किसी को नहीं बताएगा।
वर्मा- अच्छा, ठीक है।
Scene 30
छोटू- बंटी हमने अभी तक सिर्फ़ भागने के बारे में बात की है भागे कभी नहीं है।
बंटी- मतलब?
छोटू- मतलब हमने कभी भागना सीखा ही नहीं है हम भागने के लिए बने ही नहीं हैं। हमें बस एक जगह रहना आता है।
बंटी- तू चुप रहेगा? ट्रेन आने वाली है, तैयार हो जा।
Scene 31
सलीम- तो चलें
आशीष- कहाँ?
सलीम- यहाँ नहीं आगे। उस खंभे के पास ट्रेन आने वाली है।
आशीष- मेरी एक बात मानोगे?
सलीम- बोलो।
आशीष- मैंने तुम्हें कहा था ना कि मैं सबसे डरता हूँ कहीं मैं उस आख़िरी क्षण में डर ना जाऊँ। मुझे पता नहीं तो क्या तुम मुझे धक्का दे दोगे?
सलीम- नहीं नहीं, ये तो हत्या होगी।
आशीष- तुम्हारा धंधा है। तुम आत्महत्या में मदद करते हो, तो मैं मदद ही तो माँग रहा हूँ। ये हत्या कैसे हुई?
सलीम- ये हत्या है बस और यूँ भी मैं तुम्हें वहाँ छोड़ के आ जाऊँगा। मैं कभी आत्महत्या के समय किसी के साथ नहीं रहता, इसमें फँसने का डर है। चलें? समय हो रहा है।
आशीष- चलो।
Scene 32
बंटी- चल ट्रेन आ रही है।
छोटू- बंटी, हम दोनों के बीच भाग-भाग एक खेल है, भेड़िया आया, भेड़िया आया जैसा एक खेल। इसमें सच के भेड़िये को मत लाओ।
बंटी- चुप ट्रेन आ गई है। भाग बोलूँगा, सामने कूद जाना।
छोटू- बंटी इसे खेल ही रहने दे मुझसे नहीं होगा।
बेटी- अपना हाथ दे मुझे।
छोटू- नहीं।
बंटी- हाथ दे।
(सलीम आकर नीचे खड़ा हो जाता है और आशीष को देख रहा होता है। ब्लैक आउट होता है... ट्रेन की लाईट स्टेज पर चमकती है.. हम भगदड देखते हैं...। छोटू के चिल्लाने की आवाज़ आती है और साथ में ट्रेन के तेज़ी से निकल जाने की आवाज़ और गाना शुरू होता है स्पॉट आता है। आशीष अपनी जगह नहीं खड़ा है। दूसरा स्पॉट आता है, बंटी अकेला बैठा रो रहा है ईश्वर, बंटी के पास जाता है और पूछता है छोटू कहाँ है और बंटी रोता रहता है।)
गाना-
अँधेरे में ढूँढते हैं टुकड़ा-टुकड़ा ज़िंदगी
सांसों से छूके देखा अपनी है कि अजनबी
अँधेरे में ढूँढते हैं, रा रा रा रा
एक कतरा आँसू का या चमकती इक ख़ुशी
हाथ जाने क्या लगेगा जानता कोई नहीं
अँधेरे में ढूँढते हैं, रा रा रा रा
एक टुकड़ा मेरे हिस्से का दर्द में डूबा हुआ
एक टुकड़ा मुस्कुराकर पूछता है क्या हुआ
एक टुकड़ा चुप्पी साधे
मेरे हाथें ही मौत माँगे, रा रा रा रा
ऐसे कितने टुकड़े सीकर
जैसे-तैसे मरके जीकर
बन रही है कहानी
चल रही है कहानी
बुन रही है कहानी
तेरी मेरी कहानी
चाय- क्या हुआ सलीम भाई?
सलीम- अभी देख के आया हूँ बुरी तरह कट गया है। वो बता देना उनको और ये ले पैसा बहुत कमाई हुई इस बार... क्या हुआ?
चाय- कुछ नहीं, अच्छा आदमी था।
सलीम- अच्छे तो सभी होते हैं। तू ऐश कर।
Scene 33
(आशीष आता है, चाय उसे देखकर उसके गले लग जाता है।)
आशीष- ये मेरी कहानियाँ हैं। अब मुझे इनकी ज़रूरत नहीं है। मैं चार पच्चीस की ट्रेन से जा रहा हूँ।
चाय- कहाँ?
आशीष- नया जीवन शुरू करने। ज़िंदा रहकर पश्चाताप करने, मरकर नहीं।
चाय- ये कुछ पैसे रख लीजिए टिकट तो ख़रीदना पड़ेगा ना।
आशीष- नहीं चाहिए।
चाय- आप ही के हैं।
Scene 34
सैम- कहानी, हमारा पूरा संबंध ये शब्द हैं। कहानी, मुझे पता ही नहीं चला कब तुम्हारी उँगलियों ने कहानी कहना सीख लिया, हाँ सच। जब मैंने तुम्हें पहली बार कहानी सुनाई थी तब उस कहानी को मैंने तुम्हारी उँगलियों से ही बाहर झाँकते हुए देखा था। मैं हमेशा उस क्षण, उस पल को याद करता हूँ जब तुम्हारी उँगलियाँ हिली थीं और मैंने एक कहानी को बाहर आते हुए देखा था। और मैंने आज तक वही कहानियाँ पढ़ी हैं जिसे तुम्हारी उँगलियों ने दिखाया और तुमने सुनना चाहा।
काया- नहीं तुमने किसी न किसी ब्रम्हानंद के नाम से हमेशा अपनी ही कहानी कही है और तुमने अंत में आशीष को बचा लिया।
सैम- तुम्हीं चाहती थीं कि आशीष ना मरे। तुम्हें अजीब लगेगा पर पता नहीं कितनी बार मैंने आशीष को मारना चाहा, पर हर बार किसी ना किसी चाय ने आकर उसे बचा लिया और कई बार तो चाय बनकर तुम ख़ुद आई हो।
काया- मैंने तुम्हें आत्महत्या से नहीं बचाया।
सैम- मैं आत्महत्या की बात ही नहीं कर रहा हूँ। मैं तो अपने उस आदमी की बात कर रहा हूँ जो स्कूल के दिनों से तुमसे प्रेम करता था कई बार मैंने उसे मार देना चाहा और हर बार तुम्हारी किसी ना किसी बात ने उसे ज़िंदा रहने दिया और देखो वो आज तक ज़िंदा है।
काया- अरे तुम्हारी ट्रेन आ गई।
सैम- हाँ...
काया- पर ये सुखांत नहीं है।
सैम- मैं जानता हूँ ये सुखांत नहीं है।
काया- और मुझे सुखांत चाहिए।
सैम- वरना?
काया- वरना तुम्हें मुझसे माफ़ी माँगनी पड़ेगी।
सैम- मैंने आज तक जितना तुम्हें प्रपोज़ किया उससे कहीं ज़्यादा तुम्हें कहानियाँ सुनाई है। उन कहानियों का एक घर है जिसके लगभग हर कोने में तुम रह चुकी हो, पर ये कहानी उस अँधेरे कमरे की है जो घर की छूटी हुई चीज़ें लिये पता नहीं कब से बंद पड़ा था स्टोर रूम जैसा और इसके हर पात्र हाशिये पर रखे हुए पात्र थे जो मुख्य पात्र को ख़ूबसूरत दिखाने के लिए हमेशा कहानी के पीछे चुपचाप खड़े रहे। आज तुमने ये कमरा भी खोल दिया। अब क़िस्सों में नहीं, टुकड़ों में नहीं, जबरदस्ती नहीं, चोरी से भी नहीं, बल्कि ये पूरा घर उसके मालिक के साथ तुमसे पूछता है- मुझसे शादी करोगी?
(सारे कहानी के पात्र अपने घुटनों पर आते हैं... और सभी काया से एक साथ पूछते हैं... मुझसे शादी करोगी।)
ये प्रेम कहानी है और अंत तुम्हारे हाथ में है। अगर तुम हाँ कह दोगी तो सुखांत और ना कह दोगी, तो दुखांत।
काया- ये तो तुमने...
सैम- मैंने कहा था अंत तुम्हारे हाथ में है।
काया- तुम्हारी ट्रेन...
सैम- जल्दी बोलो, मुझसे शादी करोगी? (ट्रेन का साउंड, सारे कबूतर भाग जाते हैं ट्रेन निकल जाती है। ब्लैक आउट। लाइट आती है। काया अकेली खड़ी है। वो मुस्कुकराकर चली जाती है। कबूतर प्रवेश करते हैं, गाना गाते हैं।)
अब बात फँसी है कुछ ऐसी
होंगे आँसू या होगी हँसी
पर अंत तो हमने सुना नहीं
जब अंत हुआ हम उड़े कहीं
अब ख़त्म ये क़िस्सा कैसा हो
गर चाहे आँख नम रहे
और साथ में थोड़ा सा ग़म रहे
तो थी ये कहानी इस दुखांत
गर चाहे होंठों पे हँसी खिले
और सबको सबका मीत मिले
तो थी ये कहानी इक सुखांत
तो थी ये कहानी इक सुखांत
तो थी ये कहानी...
The End…