लाल पेंसिल
मानव कौल
Scene 1
सब बच्चे embryo की मुद्रा में लेटे हैं। एक बीट को फ़ॉलो करते हुए सब हल्का हिलना चालू करते हैं मानों पहली धड़कन अभी आई हो... कुछ देर में सब धीरे-धीरे उठते हैं। पास में पड़े पेन और चरों तरफ बिख़रे हुए कोरे काग़ज़ों को देखते हैं। काग़ज़ लेकर अपनी जगह जाते हैं और लिखने लगते हैं।
सब सामने देखते हैं और सीधे बैठ जाते हैं।
उसके बाद सभी क्लास का lesson रट रहे हैं जो सिर्फ़ साउंड है, कुछ gestures है और कुछ rhythm है। उनके बीच में नंदु है जो सब कुछ ग़लत कर रहा होता है। वह कोशिश करता है कि सब कुछ सही करे पर उससे कुछ भी सही नहीं होता। तभी द्रुपद नाम का एक टीचर आ जाता है। वह नंदु को देखता है कि वह सब कुछ ग़लत कर रहा है। वह उससे अलग से करने को कहता है, पर वह नहीं कर पाता।
(नीतू द्रुपद के पास जाती है।)
नीतू- सर ये तो सब ग़लत कर रहा है।
(द्रुपद को कॉपी दिखाती है और करके बताती है। द्रुपद उससे कॉपी ले लेता है और नंदु को देता है। वह फिर भी नहीं कर पाता। द्रुपद उसे वापस अपनी जगह बिठा देता है। द्रुपद पान थूकने के लिए बाहर जाता है तब सभी बच्चे नंदु को चपत लगाते हैं। द्रुपद वापस आता है।)
द्रुपद- तो इस बार कौन-कौन भाग लेगा कविता की प्रतियोगिता में?
(तभी सब फ्रीज़ हो जाते हैं और पिंकी कहती है।)
पिंकी- मैं इसी क्लास में हूँ पर असल में नहीं हूँ। मैं यहाँ रहूँ या चली जाऊँ, किसी को बहुत फ़रक़ नहीं पड़ता। चपरासी के अलावा किसी को मेरा नाम तक नहीं पता। लोग मुझे ‘ए’ कहकर बुलाते हैं, जबकि मेरा नाम पिंकी है। मैं कविता लिखना चाहती हूँ। कैसे भी, किसी भी तरह, सबसे अच्छी कविता!
(फ्रीज़ ख़त्म होता है, द्रुपद वापस बोलना शुरू करता है।)
द्रुपद - पहले इस क्लास में जो अव्वल आएगा वह पूरे स्कूल की प्रतियोगिता में भाग लेगा। फिर जो इस स्कूल में अव्वल आएगा उसे सारे स्कूलों की कविता की सबसे बड़ी प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिलेगा। और उसके बाद भूल जाओ, क्योंकि उस प्रतियोगिता में मैं खुद चालीसवें स्थान पर आया था। और मुझसे आगे अभी तक कोई नहीं गया है। तो कौन-कौन भाग लेना चाहता है?
(पिंकी को छोड़कर सभी लोग अपने हाथ खड़े कर देते हैं।)
द्रुपद- ‘ए’ क्या नाम है तुम्हारा?
पिंकी- पिंकी...
द्रुपद- पिंकी, तुम कविता नहीं लिखोगी?
पिंकी- मुझे नहीं आती है।
द्रुपद- क्यों, पिछली बार तो तुमने लिखी थी कविता।
पिंकी- वह पापा ने लिखी थी।
द्रुपद- तो अब?
पिंकी- असल में यह हुआ था कि...
(पिंकी ऊपर देखती है, पीछे सिलुअट में। उसे अपने माँ-बाप लड़ते हुए दिखते हैं।)
बाप- फिर तुमने वही बात कही?
माँ- मैं वह बात नहीं कह रही हूँ।
बाप- तो क्या कह रही हो?
माँ- मैं वह बात कह ही नहीं रही थी।
बाप- फिर वही बात!
माँ- तुम फिर वही बोल रहे हो!
बाप- मैं वह नहीं बोल रहा हूँ।
माँ- देखो! तुम अभी भी वही बोल रहे हो।
बाप- वही क्या?
माँ- वही, देखो...
बाप- तुम बार-बार वही बात क्यों कर रही हो?
माँ- तुम बार-बार वही कह रहे हो।
बाप- देखो इससे पहले भी तुमने यही कहा था और अब भी तुम वही कह रही हो।
माँ- मैंने यही बात कब कही?
बाप- वाह! तुमने यह बात की ही नहीं?
माँ- तुम्हारी यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती।
बाप- अरे! अब मैंने यही बात कब कही?
माँ- देखो फिर वही बात?
बाप- देखो अभी तुमने ‘फिर वही बात’ कहा ना?
माँ- हाँ।
बाप- हाँ तो मैं भी वही कह रहा हूँ कि तुम बार-बार वही बात कर रही हो।
माँ- अरे तुम बार-बार वही बात कर रहे हो।
बाप- अरी अभी तो तुम मानी थी कि तुमने वही बात कही थी।
माँ- अच्छा ठीक है, अब तुम वही बात करो जो तुम पहले कह रहे थे?
बाप- हाँ यही तो कह रहा था मैं पहले भी।
माँ- यही कहाँ, तुम तो वही बात कर रहे थे?
बाप- हाँ मेरा मतलब वही बात।
माँ- तुम वही नहीं, इससे पहले यही बात कर रहे थे।
बाप- मैं तो कब से वही बात कर रहा हूँ।
माँ- हाँ मैं भी तो कह रही हूँ कि तुम कबसे वही बात कर रहे हो।
बाप- तो सबसे पहले तुमने वह बात छेड़ी ही क्यों?
माँ- अरे मैं वह बात नहीं कर रही थी।
बाप- तो कौन-सी बात कर रही थी?
माँ- अरे मैं वह बात कर ही नहीं रही थी।
बाप- वही बात! यही बात! यही बात! वही बात! उफ़्फ़!
माँ- नहीं, यही बात! वही बात! वही बात! यही बात! उफ़्फ़!
बाप- उफ़्फ़!
माँ- उफ़्फ़!
(पिताजी अपना सामान उठाते हैं और घर छोड़कर चले जाते हैं। पिंकी चुप रहती है। लाइट वापस क्लास में आती है।)
रोमा- सर इसके पापा इनको छोड़कर चले गए हैं।
पिंकी- नहीं, वह वापस आएँगे।
द्रुपद- जो भी है, सबको कविता लिखनी है। कंपलसरी है। ठीक है?
रोमा- सर, मैं तो कविता लाई हूँ, यह रही।
द्रुपद- अभी नहीं, कल देना। ठीक है।
(प्रत्युश कवि-सा दिखने वाला लड़का है।)
प्रत्युश- हाँ सर, मैं तैयार हूँ।
द्रुपद- अच्छे से लिखना, हें! कोई तकलीफ़ हो तो मेरे से पूछ भी सकते हो।
प्रत्युश- सर एक तकलीफ़ है!
द्रुपद- बाद में। तो कविता का विषय है- किताबें...
(सब बच्चे ‘किताबें’ शब्द कहते हैं। द्रुपद चला जाता है। इसी बीच चपरासी आकर बेल बजाता है। सभी बच्चे पीछे सीधी लाइन में बैठ जाते हैं। पिंकी क्लास में अकेली रह जाती है। वह रोमा की कॉपी से उसकी कविता चुराकर पढ़ लेती है फिर उस कविता को फाड़ देती है। तभी उसे एक खट की आवाज़ आती है। वह पलटकर देखती है तो उसे एक लाल पेंसिल दिखती है, जो अभी अभी ऊपर से गिरी है। वह उस पेंसिल को उठाती है। वह बहुत ख़ूबसूरत पेंसिल है। वह घबराकर इधर-उधर देखती है। क्लास में उसके अलावा कोई भी नहीं है।)
पिंकी- कौन है? कौन है? यह पेंसिल किसकी है?
(जब कोई जवाब नहीं देता तब वह लाल पेंसिल अपने पास रख लेती है।)
Scene 2
(पीछे सारे बच्चे लाइन में बैठे हैं। वे कविता लिखने की कोशिश करते हैं। कुछ बहुत ही कविता नुमा लाइनें बोलने की कोशिश करते हैं। जैसे “किताबें दिल का आईना हैं। किताबें जीवन हैं। नवल बुक डिपो पर आज बड़ी भीड़ है। वग़ैरह-वग़ैरह।” पर अंत में कुछ लिख नहीं पाते और चिल्लाकर अपना सिर झुका लेते हैं। इसी चिल्लाहट के साथ पीछे पिंकी भी चिल्लाती है। और माँ और पिंकी का सीन शुरू होता है।)
पिंकी- आह्ह!
माँ- पिंकी, क्या हुआ? क्या कर रही है?
पिंकी- माँ, मैं कविता लिख रही हूँ।
माँ- क्या?
पिंकी- मैं कविता लिख रही हूँ।
माँ- क्यों? क्यों लिख रही है कविता? अरे तबियत तो ठीक है तेरी? देख पूरा शरीर गर्म हो गया है तेरा। क्यों लिख रही है कविता तू?
पिंकी- माँ, कंपलसरी है, सबको लिखनी है।
माँ- अरे! कंपलसरी है, ठीक है। कंपलसरी है तो लिख, पर ज़्यादा दिमाग़ खर्च मत कर। ऐसे ही लिख दे कुछ भी।
पिंकी- कुछ भी।
माँ- हाँ कुछ भी, ऐसे ही दो लाइन। मतलब, चल लिखना तो शुरू कर। मैं हूँ यहाँ, लिख।
पिंकी- कुछ भी क्या माँ! कुछ तो बताओ?
माँ- अरे! मैं... मैं क्या बताऊँ? पागल है क्या?
पिंकी- मैंने पापा को फोन किया था, पर वह फोन ही नहीं उठाते हैं।
माँ- क्यों किया था फोन? क्यों किया था उनको फोन? ऐ! चल लिख मैं बताती हूँ। देख ऐसा कर, पिंकी तू सुन रही है ना?
पिंकी- हाँ।
माँ- हाँ, तो सुन। पहले तो तू कुछ लिख, फिर देख क्या लिखा है। फिर लिख जो देखा है। और ऐसे ही लिखती जा, लिखती जा। जब तेरा लिखना बंद हो जाए तो समझ ले कि हो गई कविता। और फिर वह कविता किसी को सुना दे। मुझे नहीं... किसी दूसरे को। वह हो गया तेरा कविता पाठ। देख कितना सरल है!
पिंकी- हाँ माँ, ‘बहुत’ सरल है!
माँ- अब चल लिख दे। उफ़्फ़!
(माँ के सिर में दर्द होने लगता है, वह चली जाती है। पिंकी वापस लिखने बैठती है तभी उसकी निगाह लाल पेंसिल पर पड़ती है। वह उसे उठाती है। और लिखना शुरू करती है, अचानक लाल पेंसिल उसके हाथों को तीन झटके देती है... जैसे उसने पींकी को अपने वश में किया हो और फिर वो लाल पेंसिल अचानक ख़ुद लिखने लगती है। पिंकी उसे रोकने की कोशिश करती है, पर वह उसके रोके नहीं रुकती है। फिर अचानक पेंसिल उसे खड़ा करती है और बुरी तरह घुमा देती है... पिंकी गिरती है और फिर लिखती है फिर पेंसिल उसे उठाती है धुमाती है गिराती है और लिखाती है। पिंकी बेहोश हो जाती है और पेंसिल धीरे-धीरे लिखने लगती है।)
(सामने बैठे सभी बच्चों ने अचानक अपनी कविता पूरी कर ली है। वे सभी एक के बाद एक, अपनी लिखी कविता को देखकर बोलते हैं-
वाह!
जे बात!
ग़ज़ब!
मार डाला!
क्या कविता है!
वेरी वेरी गुड!
आय हाय!)
(Black Out)
Scene 3
सारे बच्चे सपना देखने की मुद्रा में बैठे हैं।
भूमिका- शोर बहुत हो तो कुछ देर बाद शोर सुनाई नहीं देता। बहुत शोर में हम सब चुप हो जाते हैं। और तब सभी सपना देखते हैं। छोटे सपने, अभी इसी वक़्त के सपने। देखो सब अभी सपने में हैं, मैं भी। पर मैं इनके सपने जानती हूँ। सबके नहीं, कुछ के। जैसे पीहू।
पीहू को हमेशा लगता है कि कुछ कैमरे हैं जो उसे लगातार शूट कर रहे हैं, सालों से। लंदन के ग्लोब थिएटर में उसके जीवन का लाइव नाटक का टेलिकास्ट चल रहा है। एक आदमी उसके पैदा होने के समय से उसके ऊपर फ़िल्म बना रहा है। और लगभग सौ लोग लगातार उसकी यह फ़िल्म देख रहे हैं, सालों से।
(तभी एक आदमी शेडो में दिखता है जो फ़िल्म का डायरेक्टर है और वह फ़िल्म को एनाउंस करता है।)
डायरेक्टर- Ladies and gentlemen! It’s an honor to present you a film. A film which I believe is going to change the face of cinema. A film which I believe is going to redefine the word ‘cult’. Yes ladies and gentlemen, put your hands together for my film- “Peehu”.
(सभी ताली बजाते हैं। पीहू, पेशाब जाने का इशारा करती है पर शायद इशारा बदल गया है। वह आश्चर्य में है। बाक़ी सारे बच्चे जो दर्शक बन गए हैं, वे मूक तालियाँ बजाने का इशारा करते हैं।)
भूमिका- उसे लगता है कि वह लंदन की एक बहुत बड़ी अभिनेत्री है, जबकि इस क्लास में वह महज़ “पीहू” है। यह सोनू है। इसे जहाँ काली चींटी दिखती है उसे वह मुँह में रख लेती है। उसे लगता है कि जिस तरह उसके मुँह में यह काला चींटा चल रहा है। उसी तरह वह भी इस दुनिया के मुँह में चलती है।
(तभी सोनू को चींटा काट लेता है। सोनू चींटे को मुँह से निकालता है।)
सोनू- मैं इस दुनिया को कब काटती हूँ? जब मैं चलती हूँ, न दौड़ती हूँ, न ट्रेन एक्सीडेंट, न जब बम फटता है, तब हम दुनिया को काटते हैं। और दुनिया हमें।
(सोनू चींटे को मार डालती है।)
भूमिका- यह नीतू है। इसे लगता है कि यह एक दिन अचानक मर जाएगी, तब लोग इसकी अहमियत समझेंगे। कुछ लड़के जो इससे प्रेम करते हैं वह इसके प्रेम में आँसू बहाएँगे।
लड़के- नीतू, कभी कह नहीं पाया, उससे पहले ही तू मर गई। यार आई लव यू नीतू!
उसकी दूशमन उससे माफ़ी माँगने के लिए तरसेंगे।
दुशमन 1- ऐ माफ़ी माँग!
दुश्मन 2- अरे मर गई, अब क्या माफ़ी?
दुश्मन 1- बोला ना, माफ़ी माँग!
दुश्मन 2- तेरे लिए...
दोनों मिलकर- ऐ सॉरी यार!
भूमिका- टीचर्स उसे ग्रेट स्टूडेंट कहेंगे।
टीचर- लाखों में एक थी हमारी नीतू बिटिया। अरे बहुत ही ग़ज़ब की पढ़ाई करती थी नीतू। हम तो उसके पूरे खानदान को जानते थे। ग़ज़ब का खानदान था उसका। बताओ मर गई!
उसकी मौत पर स्कूल बंद कर दिए जाएँगे। देश में छुट्टी का ऐलान होगा। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक उसके लिए शोक सभा आयोजित करेंगे।
नेता- नीतू हमारे देश का भविष्य थी, हाँ गौरव थी।
और फिर वह एक दिन वो वापस आ जाएगी। उसके सारे दोस्त ख़ुशी के मारे चिल्ला भी नहीं पाएँगे, और वह कहेगी।
नीतू- श्श्स आ ! अब मैं आ गई हूँ ना, बस!
(और नीतू आशिर्वाद की मुद्रा में एक हाथ उठा देती है। तभी रोमा उठती है।)
रोमा- अबे क्या था यह सब?
भूमिका- ये रोमा है। इसे लगता है एक दिन Bruce Lee की आत्मा इसके अंदर आ जाएगी।
(रोमा ब्रूसली की तरह बहुत तेज़ चिल्लाकर एक कराटे की मुद्रा बनाती है।)
और तब ये बदला लेगी, उससे जिसने इसकी पेंसिल चोरी की थी, उससे जिसने इसका Boy friend छीना था, उससे जिसने उसकी शिकायत टीचर से की थी, असल में वो सबसे बदला लेना चाहती थी।
भूमिका- ये पिंकी है, यह बापू को अपना सच्चा दोस्त मानती है। क्योंकि क्लास में इससे और कोई बात ही नहीं करता।
पिंकी- सारी बापू! फिर लेट हो गई।
भूमिका- ये प्रत्युश है, भारत में कवियों की बुरी हालत के चलते इसका कविता सुनाने का तरीक़ा थोड़ा बदल गया है।
प्रत्युश- अबे उठो, कविता सुनो।
(सभी मना करते हैं कविता सुनाने से। वह डॉली को इशारा करता है।)
डॉली- अबे चुपचाप कविता सुनो वरना एक रापटा दूँगी ना खींच करके।
नीतू- हाँ, एक रापटा दूँगी ना खींच करके।
प्रत्युश- फूल ने कहा ख़ुशबू से...
(सभी चिल्ला देते हैं- वाह! क्या बात है! प्रत्युश नाराज़ हो जाता है।)
प्रत्युश- अबे! अभी शुरू भी नहीं किए थे हम!
(सारे बच्चे तुरंत अपनी जगह खड़े हो जाते हैं।)
Scene 4
(द्रुपद तेज़ी से चलते हुए क्लास में आता है। वह बैठने का इशारा करता है।)
द्रुपद- इस कक्षा में यह कविता अव्वल आई है, पर उसने अपना नाम नहीं लिखा। यह किसकी कविता है?
डॉली- सर, प्रत्युश की।
द्रुपद- तुमने पेंसिल से लिखी थी कविता?
प्रत्युश- नहीं सर! मैंने तो पेन से लिखी थी कविता, जैसा कि आपने कहा था।
(द्रुपद सबसे पूछता है। पिंकी अपना हाथ उठा चुकी होती है, पर कोई भी ध्यान नहीं देता। द्रुपद चिल्लाता है। सभी अपना सिर नीचे कर लेते हैं। तब द्रुपद की निगाह पिंकी पर जाती है।)
द्रुपद- ऐ क्या है? फिर शू शू? जाओ जल्दी जाओ और जल्दी आना। तो बताओ किसने लिखी है कविता?
पिंकी- सर, यह कविता मैंने लिखी है।
द्रुपद- अच्छा! मतलब यह पूरी कविता तुमने लिखी है?
रोमा- सर, झूठ बोल रही है।
द्रुपद- जानता हूँ। अच्छा तो सुनाओ, मैं देखता हूँ। एक भी ग़लती हुई तो तुम्हारी खैर नहीं। सुनाओ।
पिंकी- बस्ते में भर दूँ ये किताबें
मिट्टी से ढँक दूँ ये किताबें
बंद करके रख दूँ ये किताबें
दिखने में छोटी हैं, पर पढ़ने में मोटी हैं
काश! कभी ऐसा हो जाए
पन्नों पर बारिश गिर जाए
टप-टप अक्षर बहता जाए
मैं बूँद-बूँद रख लूँगी
जब जी चाहे तैरूँगी
जब जी चाहे पी लूँगी।
(द्रुपद देखता रह जाता है। सभी बच्चे हैरान होते हैं।)
रोमा- पिंकी! तू मेरी दोस्त बन जा यार।
(सभी उससे दोस्ती करना चाहते हैं। प्रत्युश नाराज़ हो जाता है। वह जबरदस्ती अपनी कविता सुनाने लगता है।)
प्रत्युश- किताबों के मेले हैं
फिर भी हम अकेले हैं
यूँ एक भी किताब जीवन में नहीं है
पर जीवन को देखो तो
वह असल में एक किताब है...
द्रुपद- तुम चुप रहो! चुप, एकदम चुप!
(प्रत्युश चुप हो जाता है।)
डॉली- (प्रत्युश से..) अबे बहुत लाउड कर दिया यार।
द्रुपद- पिंकी, यह कविता सच में तुमने लिखी है? तुम्हारी माँ ने तो नहीं लिखी?
पिंकी- मेरी माँ को तो पता भी नहीं है।
द्रुपद- तुम झूठ तो नहीं बोल रही हो?
रोमा- सर!
द्रुपद- बहुत अच्छी कविता लिखी है तुमने। सुनो अब कल ही तुम्हें अगली प्रतियोगिता के लिए दूसरी कविता लिखनी है। और उस प्रतियोगिता का विषय है- ‘परिवार’।
प्रत्युश- एक परिवार था
भूख थी
दर्द था
संग यह विचार था...
(तभी प्रत्युश की निगाह द्रुपद पर पड़ती है। और वह चुप हो जाता है।)
डॉली- (प्रत्युश से) अबे इस बार कतई सॉफ्ट कर दिया यार।
द्रुपद- पिंकी, तुम लिखो, परिवार।
(द्रुपद जाने लगता है।)
नंदु- सर आप रो रहे हैं?
(द्रुपद कोई जवाब नहीं दे पाता और चला जाता है।)
पिंकी- (रोमा से) तू सच में मेरी दोस्त बनेगी?
(रोमा के साथ बाक़ी लोग भी हाँ बोलते हैं। प्रत्युश और उसका गुट, सब पिंकी के नए दोस्तों को धमकाने लगते हैं। पर वे बहुत ज़्यादा हैं, इसलिए वे उन पर हावी हो जाते हैं। प्रत्युश हारने लगता है। तभी क्लास की घंटी बजती है। सभी चले जाते हैं। पिंकी क्लास में अकेली रह जाती है।)
पिंकी- बापू! मज़ा आ रहा है! हा हा हा हा! बापू, यह सब मुझसे दोस्ती करना चाहते हैं, सभी। बापू कमाल हो गया, कमाल। यही तो चाहिए था मुझे। हा हा हा हा! बापू कमाल का गिफ़्ट दिया है आपने मुझे यह ‘लाल पेंसिल’। यह झूठ है, मैं जानती हूँ। बस अब नहीं लिखूँगी। जो चाहिए था वह मिल गया। मैं इस पेंसिल को चपरासी को दे दूँगी, और माँ को सब सच-सच बता दूँगी। Promise!
(तभी प्रत्युश अंदर आता है।)
प्रत्युश- ए पिंकी, क्या सच सच बता देगी?
(पिंकी डर जाती है।)
प्रत्युश- किससे बात कर रही थी?
पिंकी- बापू से!
प्रत्युश- हा हा हा! बापू से? अरे बापू तो सिर्फ़ फोटो में हैं, सही में थोड़ी हैं। वह तो कब के मर चुके। इतिहास नहीं पढ़ा तूने?
पिंकी- पढ़ा है।
प्रत्युश- सुन, मैं तेरा पक्का दोस्त हूँ। है ना?
पिंकी- पहले भी तूने बोला था कि तू पक्का दोस्त है। पर तूने मेरी शिकायत कर दी थी सर से। कितनी पिटाई हुई थी।
प्रत्युश- अरे तब तो मैं छोटा था बहुत। पक्के दोस्त का मतलब थोड़ी पता था मुझे तब। जो पक्का दोस्त होता है वह कभी किसी को कुछ नहीं बताता।
पिंकी- तू सच में मेरा पक्का दोस्त है?
प्रत्युश- हाँ पागल! झूठ थोड़ी बोल रहा हूँ मैं।
पिंकी- तो चल साथ में लंच करते हैं।
प्रत्युश- अरे नहीं!
पिंकी- नहीं?
प्रत्युश- अच्छा ठीक है, एक शर्त पर। पहले बता कि यह कविता किसने लिखी है?
पिंकी- मैंने लिखी है।
(पिंकी डर जाती है।)
प्रत्युश- अरे चल! बोल किसने लिखी है कविता?
पिंकी- मैंने लिखी है।
(पिंकी भाग जाती है डर के मारे।)
प्रत्युश- अरे सुन, सुन, पिंकी, अरे सच्चे दोस्त को ऐसे छोड़कर जाते हैं क्या? पागल! क्या बापू, अब आपको भी पता चल गया ना कि इसने कविता नहीं लिखी है? झूठ बोल रही है, है ना?
(सभी चिल्लाते हैं। ‘ऐ’ प्रत्युश के मुँह से डर के मारे ‘बापू’ निकलता है।)
(Black Out)
Scene 5
(चपरासी भीतर आता है और वह पिंकी को देखता है। वह उसे आवाज़ लगता है। पिंकी उछलती-कूदती भीतर आती है।)
चपरासी- ऐ पिंकी! इधर आ। वाह! वाह! क्या बात है, बहुत चहक रही है आज?
पिंकी- आज का दिन जादूई था अंकल। एक दिन में सब कुछ उलट-पलट हो गया।
चपरासी- अरे क्या पलट गया?
पिंकी- कुछ नहीं पलटा अंकल। पूरी क्लास को मेरा नाम पता चल गया। मेरे बहुत सारे दोस्त बन गए। मैं अपनी क्लास में फ़ेमस हो गई।
चपरासी- यह सब कैसे हो गया?
पिंकी- असल में यह लाल पेंसिल ने... नहीं नहीं! मैंने, मैंने एक कविता लिखी थी जो क्लास में प्रथम आई।
चपरासी- तुम कविताएँ भी लिख लेती हो?
पिंकी- ऐसे ही कभी-कभी अपने विचारों को... अ अ अ ओह्हो छोड़ो।
चपरासी- अब तो तुम प्रथम आई हो तो कभी-कभी क्यों, हर कभी लिखा करो।
पिंकी- नहीं नहीं! मुझे ना यह पेंसिल पड़ी मिली थी। आप इसे कहीं फेंक देना।
चपरासी- ठीक है फेंक दूँगा।
(चपरासी पेंसिल लेता है और जाने लगता है। पिंकी उसे रोकती है।)
पिंकी- अंकल रुको।
(वह पेंसिल लेती है, उसे कुछ देर देखती है, फिर वापस चपरासी को दे देती है।)
पिंकी- ले लो, और इसे दूर फेंक देना। बहुत दूर, एकदम दूर! ठीक है?
चपरासी- ठीक है, फेंक देता हूँ।
(चपरासी जाने लगता है। पिंकी फिर उसको रोकती है।)
चपरासी- अरे मेरी माँ फेंक दूँगा बहुत दूर... पर तू कम से कम वह कविता ही सुना दे जो प्रथम आई है।
पिंकी- अरे अभी नहीं। अभी टाइम नहीं है। अभी मैं बहुत ख़ुश हूँ, हा हा हा...
(पिंकी चली जाती है। चपरासी कुछ देर लाल पेंसिल को देखता रहता है।)
(Black Out)
Scene 6
(माँ पिंकी के कमरे में पूजा कर रही है। पिंकी अंदर आती है।)
पिंकी- अरे माँ आप मेरे कमरे में यह क्या कर रहे हो?
माँ- यही तो वह कमरा है, जहाँ मैंने तुम्हें कविता लिखना सिखाया था।
पिंकी- अरे माँ आपको कैसे पता?
माँ- अरे सब पता है मुझे। तू बैठ इधर, बैठ। आँखें बंद, हाथ जोड़- हे भगवान! कितने बड़े-बड़े शब्द! कितना दिमाग़ खर्च हुआ होगा इसका! कितनी सुंदर कविता लिखी है मेरी बेटी ने।
पिंकी- माँ! मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ। असल में मैंने वह कविता नहीं लिखी है।
माँ- हे भगवान! देखो, हर बड़ा कवि यही कहता है। कि कविता मैंने नहीं लिखी है। वह तो बस लिखा गई।
पिंकी- माँ आप मेरी बात समझ नहीं रहे हो।
माँ- अरे भगवान क्या मैं इसकी हैंड राइटिंग नहीं पहचानती हूँ?
पिंकी- माँ वही तो! मैंने ही वह कविता लिखी है, पर असल में, नहीं लिखी है।
माँ- अरे तेरे हिंदी के टीचर आए थे।
पिंकी- कौन? द्रुपद सर?
माँ- हाँ, कितने ख़ुश थे। वह लेकर आए थे तेरे हाथ की लिखी कविता अपने साथ। बाप रे मैं तो विश्वास ही नहीं कर पाई।
पिंकी- पर माँ, असल में...
माँ- चल तू यह प्रसाद खा।
पिंकी- माँ! एक बहुत बड़ी समस्या है। मुझे ना, एक कविता और लिखनी है।
माँ- क्या? सच में! रुक मैं तेरे लिए गर्म दूध लेकर आती हूँ।
पिंकी- अरे माँ सुनो तो, मैं कविता नहीं लिख सकती।
(माँ नहीं सुनती है। वह चली जाती है)
पिंकी- हे भगवान क्या लिखूँ मैं! उफ़्फ़! हाँ, अ अ अ सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, परिवार।
(पीछे मास्क पहने द्रुपद, प्रत्युश, डॉली, मॉ और नीतू दिखते हैं। वह धीरे-धीरे पिंकी की तरफ़ बढ़ते हैं।)
प्रत्युश- कविता लिखने बैठी हैं पिंकी जी।
डॉली- चलिए हम भी देखते हैं कैसे लिखती है कविता।
नीतू- अरे उसे ध्यान लगाने दो।
द्रुपद- अरे चुप, पिंकी बेटा लिखो कविता, मैं भी नहीं लिख पाया था ऐसी महान कविता।
प्रत्युश- तूने ही लिखी थी ना कविता पिंकी?
डॉली- अरे अभी देख फिर लिखेगी।
नीतू- एक कवि लिख रहा है और हम उसे देख रहे हैं।
माँ- पिंकी बेटा कविता लिखना सिखाया था ना मैंने? याद है ना?
द्रुपद- प्रिंसिपल साब कितने ख़ुश है तुमसे, वाह!
प्रत्युश- क्या हुआ कुछ लिखा क्या?
डॉली- लिख रही है। लिख रही है।
द्रुपद- अरे चुप! उसे लिखने दो।
माँ- कैसे कवि जैसे दिखने लगी है!
नीतू- लिख लिया?
डॉली- चलो कुछ तो लिखा।
प्रत्युश- सुनाओ।
डॉली- सुनाओ।
नीतू- सुनाओ।
माँ- सुनाओ।
द्रुपद- सुनाओ पिंकी, अपनी महान कविता सुनाओ।
(पिंकी पढ़ना चालू करती है।)
पिंकी- एक था परिवार। पापा नहीं थे सोमवार। मम्मी थी मंगलवार। बुध को हुई मैं बीमार...
(इस पर सभी हँसने लगते हैं।)
प्रत्युश- अबे अख़बार पढ़ रही है क्या पिंकी?
नीतू- अरे इसे तो कविता लिखना ही नहीं आता।
(द्रुपद लाल पेंसिल उठाता है।वो पेंसिल अजीब तरीके से बड़ी हो गई है जैसे पिंकी का झूठ बड़ा हो गया है।)
द्रुपद- ये क्या है पिंकी?
पिंकी- लाल पेंसिल, यह तो चपरासी के पास थी। उसने तो इसे बहुत दूर फेंक दिया था। फिर यह यहाँ कैसे आ गई? और ये इतनी बड़ी कैसे हो गई?
(पिंकी पलटती है।)
माँ– ले ले, ले ले, लिख ले।
डॉली- हाँ हाँ, ले ले वरना कुछ भी नहीं लिखाएगा।
पिंकी- मुझे नहीं लिखना इस लाल पेंसिल से।
माँ- तो कैसे लिखेगी कविता?
पिंकी- मैं नहीं लिखूँगी कविता।
डॉली- तो सब दोस्त, दुश्मन हो जाएँगे। सब तेरा नाम भूल जाएँगे।
पिंकी- मुझे लाल पेंसिल से डर लग रहा है।
माँ- जब जब यह लाल पेंसिल कविता लिखेगी...
डॉली- तब तब यह बड़ी होती जाएगी।
माँ- यह तेरी दोस्त है।
डॉली- सच्ची दोस्त।
सभी- यह ले।
पिंकी- अ अ अ...
(इसमें द्रुपद के हाथ में बड़ी हो चुकी लाल पेंसिल है जिसे वह उछालता रहता है। और नीतू और प्रत्युश को उसे एक चक्कर में घुमाते रहते हैं। पिंकी अंत में चिल्लाकर बिस्तर में अपना चेहरा डर के मारे छुपा लेती है।)
(Black Out)
Scene 7
सारे बच्चे अलग अलग count पर उठते हैं मानो सर ने उन्हें उठाया है या वह कुछ पूछने के लिए उठे हैं। यह सब पपेट की तरह होता है। फिर अचानक उन्हें समझ में आता है कि वे पपेट हैं। उनके दोनों हाथ बिना उनकी इच्छा के उठ जाते हैं। वे उस धागे (अदृश्य) को देखते हैं जिसके ज़रिये उनके हाथ जुड़े हुए हैं। वे उस धागे को छूकर देखते हैं। फिर सभी अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते हैं और अपने से जुड़े सभी धागों को तोड़ देते हैं। धागे टूटते ही सारे बच्चे गिर जाते हैं। फिर अचानक उठते हैं। और कंधे उचकाते हुए, हँसते हुए अपनी नई मिली आज़ादी का मज़ा लेते हैं। तभी वे सभी एक-दूसरे से टकराते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि वे अकेले नहीं हैं। वे डर जाते हैं। और अपने हाथ फैलाकर एक-दूसरे के क़रीब आने लगते हैं। क़रीब आते-आते वे एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। इतने एक-दूसरे से चिपक जाते हैं कि साँस लेना मुश्किल हो जाता है। सभी चीख़ मारकर एक-दूसरे से अलग होते हैं और वापस पपेट बनकर, फिर से वही खेल शुरू करते है कि मानो उन्हें कोई उठा रहा है। या वे कुछ पूछ रहे हैं। तभी द्रुपद क्लास में आता है। सभी अपने काउंट पर ऊपर-नीचे होते रहते हैं।)
द्रुपद- पिंकी, तुम कविता लाई? प्रिंसिपल सर मँगा रहे हैं।
पिंकी- नहीं सर, मैंने कविता नहीं लिखी है।
द्रुपद- क्या? तुमने कविता नहीं लिखी, क्यों? अरे आज जमा करनी है कविता!
(पिंकी कुछ भी नहीं बोलती है। द्रुपद पूछता रहता है।)
द्रपद- बंद करो यह, बंद करो। चलो जाओ, क्लास ख़त्म! जाओ!
(द्रुपद सभी बच्चों को भगा देता है। पिंकी को रुकने के लिए कहता है।)
नंदु- सर, पर हमारी पीटी की क्लास थी।
रोमा- सर, एक ही तो क्लास होती है हमारी पीटी की।
द्रुपद- अरे कभी तुमने निराला, नागार्जुन, मुक्तिबोध को पीटी करते हुए देखा है, हें! कवि हैं वे लोग। एक कवि लिख नहीं पा रहा है और तुम लोग उससे पीटी करवा रहे हो। बेटा पिंकी, तुम्हें नहीं मैं तो इन लोगों को डाँट रहा हूँ। (फिर डाँटना चालू करता है।) मैंने कभी पीटी नहीं की लाइफ़ में। (कुछ बच्चे हँसने लगते हैं।) कौन हँसा, कौन हँसा? मैं कवि नहीं हो पाया पर मेरे अंदर कवि का दिल है। चलो जाओ यहाँ से। चले जाओ।
(सभी चले जाते हैं।)
द्रुपद- क्यों नहीं लिखी कविता? आज जमा करनी है, प्रिंसपल साहब कितने ख़ुश हैं मुझसे, मतलब तुमसे भी। आज कैसे भी कविता लिखनी है। तुम यहीं क्लास में बैठो। कोई तुम्हें तंग करने नहीं आएगा। आराम से कविता लिखो। ठीक है?
पिंकी- पर सर, मुझे कविता लिखनी नहीं आती है। बहुत मुश्किल काम है।
द्रुपद- आसान होता तो मैं क्या सबसे बड़ी प्रतियोगिता में पैंतिसवें स्थान पर आता? लिखो, मैं दरवाज़े के बाहर खड़ा इंतज़ार करता हूँ। जैसे ही कविता ख़त्म हो जाए मुझे आवाज़ लगा देना। मैं तुरंत अंदर आ जाऊँगा। आराम से बैठकर कविता लिखो। ठीक है, मैं बाहर हूँ।
(द्रुपद चला जाता है। पिंकी अकेली बैठी रहती है। उसे समझ में नहीं आता कि कैसे लिखे। तभी बाहर से लुढ़कती हुई लाल पेंसिल भीतर आती है। पिंकी डर जाती है। वह उसे उठाती है। अपनी डेस्क पर आती है और लाल पेंसिल से लिखना शुरू करती है- और वैसे ही वो पिंकी को बीच-बीच में उठाकर गिराती है... तेज़-तेज़। पिंकी लिखते-लिखते थक जाती है और बेहोश हो जाती है। कुछ वक़्फ़े के बाद रोमा कहती है- ‘पिंकी!’ और उठकर पिंकी के बग़ल में बैठ जाती है। फिर सोनू, पीहू और भूमिका भी आकर पिंकी के बग़ल में बैठ जाते हैं।)
प्रत्युश- तो भइया! फिर एक सपना शुरू होता है।
नंदू- किसका सपना?
डॉली- अरे यार प्रत्युश, बोला था इसे अपनी टीम में नहीं लेते हैं।
नंदू- अच्छा, मैं समझ गया। पिंकी का? फिर...
प्रत्युश- हाँ फिर, पिंकी के सपने में...
नंदू- बापू आए, हे ना?
डॉली- अरे यार! इसके सिक्के में चव्वनी कम है।
नीतू- सुन, बापू नहीं आए। एक बूढ़ा आदमी आया जो बापू के जैसा दिखता था। ठीक है?
प्रत्युश- तुम्हीं सब बोल दो। बोलो?
डॉली- सॉरी भाई! बोलो।
प्रत्युश- तो बापू, एक नदी के किनारे बैठे हुए थे।
डॉली- कवि है यार तू, मैं भी बोलूँ- तभी उन्हें एक नाव दिखी, लाल रंग की नाव।
नीतू- मैं भी बोलूँ- जिसमें एक लड़की बेहोश पड़ी हुई थी। कैसा है यह?
नंदू- हट! यह तो पिंकी है! सो रही है क्या?
डॉली- अरे यह पिंकी है। लाल रंग की नाव वाली।
नंदू- अच्छा! यह पिंकी है लाल रंग की नाव वाली, तो मैं नदी किनारे बैठा हूँ।
(नंदू उठकर आगे बैठ जाता है।)
सभी- अबे तू!
(रोमा अचानक नंदू को बापू कहने लगती है। नंदू चौंक पड़ता है।)
रोमा- बापू।
नंदू- हें! मैं?
रोमा- बापू।
नंदू- बोलो बेटी क्या बात है?
(नंदू को हँसी आ जाती है। पीछे से डॉली, नीतू और प्रत्युश भी हँसने लगते हैं।)
रोमा- बापू यह तो सब उल्टा हो गया।
नंदू- मुझे तो सब सीधा दिख रहा है।
(नंदू को फिर हँसी आ जाती है। पर तब तक वह बापू के बैठने की मुद्रा बना चुका होता है।)
सोनू- बापू! बापू!
नंदू- क्या है?
(नंदू बापू हो जाता है।)
सोनू- बापू, सीधा कुछ भी नहीं है। बहुत टेंशन है। वह द्रुपद बाहर दरवाज़े पर खड़ा है कविता के लिए। और यह पेंसिल है कि मेरे हाथ से छूट ही नहीं रही है।
नंदू- तो कविता तो लिख दी ना तुमने?
पीहू- बापू, सभी लिखवाना चाहते हैं मुझसे। माफ़ी! मैंने आपका promise तोड़ दिया, पर सच में मैं नहीं लिखना चाहती थी।
नंदू- नहीं! जो तुम चाहती थी, वही हुआ है।
भूमिका- मैं सब बदल दूँगी।
नंदू- तो बदल दो।
रोमा- मैं इस पेंसिल को जला दूँगी। तोड़ डालूँगी। कहीं गाड़कर आ जाऊँगी।
नंदू- तुम्हें तो सब पता है, तो कर दो।
सोनू- कर दूँ ना बापू?
नंदू- जो सही लगे वही करो।
पीहू- यही सही है बापू। मैं यही करूँगी।
(इसी बीच पीछे गाँधी का शैडो उभर आता है। डॉली, प्रत्युश और नीतू घबराकर नंदू के पास खिसक आते हैं। डॉली नंदू को एक चपत लगाती है।)
डॉली- अबे नंदू! क्या कर रहा था बे?
प्रत्युश- हाँ बे। डरा दिया तूने बे।
नीतू- अबे यह पिंकी का सपना है, तू क्यों इतना सीरियस हो रहा है?
(नंदू की कुछ समझ में नहीं आता कि उसे क्या हुआ था। तभी बाहर से द्रुपद की आवाज़ आती है। पिंकी झटके से उठती है और सपना टूट जाता है। सभी अपनी-अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं।)
द्रुपद- पिंकी बेटा, कविता लिख ली? पिंकी? मैं अंदर आ जाऊँ?
(पिंकी झटके से उठती है। वह उस बड़ी सी पेंसिल को अपने हाथ में लेती है। कुछ फैसला करके, अपनी कविता को वहीं छोड़कर चली जाती है। द्रुपद भीतर आता है।)
द्रुपद- वाह! यही हैं बड़े कवि के लक्षण, कविता ख़तम हुई और कवि निकल लिया, वाह क्या कविता लिखी है वाह! वाह!
बच्चे- सर, आप रो रहे हैं?
द्रुपद- कौन है?
(द्रुपद वापस रोते हुए कविता पढ़ने लगता है।)
(Black Out)
Scene 8
डॉली- प्रत्युश यार, तू जो कविता लिखता है ना, बहुत सही है। मेरी समझ में ज़्यादा नहीं आती, पर दिल को छूती जाती है!
नीतू- अरे निराला जी की कविता किसको समझ में आती है, पर वो फ़ेमस है ना।
डॉली- निराला, भवानी प्रसाद मिश्र, मुक्तिबोध और फिर अपना प्रत्युश, कवि है यार तू।
प्रत्युश- अरे छोड़ो यार जाने दो।
नीतू- अरे नहीं यार, वो कल की छोकरी, सही नहीं है, दाल में कु्छ काला है!
(तभी तीन लड़कियाँ खड़ी होती हैं। तीनों पिंकी की भूमिका में हैं।)
डॉली- हाँ यार, वो कैसे लिख सकती है?
प्रत्युश- वो किसी से लिखवाती है, मैं कह रहा हूँ ना।
(तीनों पिंकी अलग-अलग पूछती हैं तीनों से। फिर तीनों अपनी अपनी पिंकी से संवाद करते हैं।)
पिंकी 1- क्या कहा? (प्रत्युश से)
पिंकी 2- क्या कहा? (डॉली से)
पिंकी 3- क्या कहा? (नीतू से)
प्रत्युश- आज पता कर ही लेते हैं। क्यों पिंकी जी, लिख ली कविता, कहाँ, किससे लिखवाई?
नीतू- हाँ बोलो कवयित्री?
डॉली- आजकल तो कोई भी कविताएँ लिख लेता है। क्यों? बहुत कविताएँ लिख रही हो पिंकी जी।
(तभी बीच में बैठा नंदू बड़ी-सी लाल पेंसिल उठाता है और पूछता है।)
नंदू- ऐ, ये लाल पेंसिल किसकी है?
(तीनों पिंकी चीखती हैं और दूर जाकर बैठ जाती हैं। उनकी चीख़ सुनकर प्रत्युश, डॉली और नीतू भी अलग-अलग जगह छुप जाते हैं।)
नंदू- क्या हुआ यार, क्या हुआ?
डॉली- चुप कर।
(भूमिका और रोमा अचानक खड़ी हो जाती हैं। जो इस चीख़ के बाद जानना चाहते हैं कि क्या हो रहा है।)
पिंकी 1- यह पेंसिल तो पीछे ही पड़ गई है।
पिंकी 2- यह तो मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही है।
(वक़्फ़ा)
रोमा- ओ तेरी, क्या हुआ बे?
भूमिका- कुछ समझ में नहीं आया यार। ओए छोटू, ओए छोटू...
नंदू- मेरा नाम छोटू नहीं है।
रोमा- अबे, बता ना क्या हुआ बे?
नंदू- मुझे नहीं पता यार।
पिंकी 1- ऐ, यह लाल पेंसिल यहाँ कैसे आई?
पिंकी 2- तुम तो इसे जलाने वाली थी ना?
पिंकी 3- हाँ, मैंने इसे जला दिया था।
रोमा- फिर?
भूमिका- फिर?
पिंकी 3- जली नहीं।
पिंकी 2- हाँ यार जली नहीं।
रोमा- फिर क्या हुआ?
भूमिका- फिर क्या हुआ?
पिंकी 2- तोड़ा-मरोड़ा।
पिंखी 3- टूटी नहीं, इसे कुछ भी नहीं हुआ।
रोमा- तो फिर क्या हुआ?
भूमिका- तो फिर क्या हुआ?
पिंकी 1- गाड़ दिया था।
पिंकी 2- हाँ, गहरा गड्ढा खोदकर।
पिंकी 3- नीचे बहुत नीचे दबा दिया था।
पिंकी- ऐ! यह पेंसिल तुम्हारे पास कैसे आई?
नंदु- अरे मुझे क्या पता, मुझे तो पड़ी मिली थी।
(और नंदु पेंसिल को अपने सामने पटक देता है।)
डॉली- प्रत्युश भाई! प्रत्युश भाई!
प्रत्यश- अबे बहुत टेंशन है, छुपे रह।
डॉली- मैं तो कह रही थी, लाल पेंसिल को लपक लो।
प्रत्युश- हाँ सही है, उठा लेते हैं। सुन, तू उठा ले लाल पेंसिल।
डॉली- ना ना, मैं नहीं। ओए नीतू, तू जा, उठा ले।
नीतू- ना, मैं तो ऐसी चीज़ों को हाथ भी नहीं लगाती।
प्रत्युश- अरे डरपोक हो तुम दोनों।
डॉली- अरे तो प्रत्युश, तू ही उठा ले ना।
नीतू- हाँ आप ही उठा लो।
(प्रत्युश, नीतू और डॉली। तीनों पेंसिल उठाने जाते हैं। जैसे ही पेंसिल के पास पहुँचते हैं, नंदू चीख देता है। तीनों भी डर के मारे वापस छुप जाते हैं।)
नंदू- आआआ... अरे वह हिली थी! हिली थी!
(नंदू भागकर पीछे चला जाता है।)
प्रत्युश- अबे बहुत डेंजर है बे। बाद में देखते हैं, अभी निकलो यहाँ से। और तुझे तो बाद में देख लूँगा पिंकी, समझी!
डॉली- हाँ, बाद में देख लेंगे।
नीतू- हाँ, बाद में देख लेंगे।
(तीनों चले जाते हैं। भूमिका और रोमा पेंसिल की तरफ़ देखते हैं। और धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ना चालू करते हैं। जैसे ही पेंसिल के पास पहुँचते हैं। उन्हें पेंसिल हिलती हुई दिखती है। दोनों चीख मारकर पीछे भाग जाते हैं।)
भूमिका- वह हिली थी! वह हिली थी!
रोमा- हाँ, मैंने देखा, वह हिली थी!
(अब सिर्फ़ तीनों पिंकी बचते हैं और बीच में बड़ी सी लाल पेंसिल रखी होती है। तीनों पिंकी धीरे-धीरे उठती हैं। पिंकी धीरे से पेंसिल की तरफ़ जाती है उसे उठाती है और वह पेंसिल उसे नचाना चालू करती है। पीछे दोनों पिंकी भी काल्पनिक पेंसिल को लिए झटके खाती रहती हैं।)
(Black Out)
Scene 9
(पीछे शैडो में बहुत बड़ी लाल पेंसिल दिखाई देती है और वह बोलने लगती है। दूसरी तरफ़ शैडो में पिंकी के अलग-अलग डरे हुए शैडो बदलते रहते हैं।)
लाल पेंसिल- हेलो पिंकी! कैसी हो? तुम्हें मज़ा आ रहा है ना?
(पिंकी की चीखने की आवाज़ आती है।)
लाल पेंसिल- डरो मत पिंकी। मैं तुम्हारी ही इच्छा हूँ, तुम्हारी desire! तुम्हारी चाह! देखो तुम्हारे साथ-साथ मैं भी कितनी बड़ी होती जा रही हूँ। इतनी आसानी से तुम मुझसे छुटकारा नहीं पा सकती। यह तो अभी शुरुआत है पिंकी। तुम तो बस ऐश करो और देखो मैं कैसे तुम्हें ऐश करवाती हूँ।
(लाल पेंसिल अचानक पिंकी की तरफ़ बढ़ने लगती है। पिंकी का शैडो डर के मारे ग़ायब हो जाता है। यहाँ तीनों पिंकी गिर के बेहोश हो जाती हैं।)
(Black Out)
Scene 10
(Down stage- एक तरफ़ एक जूता लटका हुआ है। सारे बच्चे पूरे नाटक में सिर्फ़ एक ही जूता पहने हुए हैं। एक पैर खाली है। सारे बच्चे पीछे लेटे हुए हैं। सभी अपना सिर उठाते हैं एक साथ। जूते को देखते हैं।)
सोनू- यह खेल क्या है?
नंदू- इसके नियम किसने बनाए हैं?
भूमिका- क्या हम सब किसी एक ही आदमी के लिए खेलते हैं?
पीहू- जो लगातार जीत रहा होता है?
नीतू- वह जीतकर करता क्या है?
रोमा- फिर वह वापस हमारे जैसा क्यों दिखना चाहता है?
प्रत्युश- अगर हमें पूरी ज़िंदगी एक ही जूता पहनना है तो हमें दूसरे जूते का सपना क्यों आता है?
डॉली- अबे तो खेलना ज़रूरी है क्या?
सभी- हाँ।
(रेंगते हुए उस जूते की तरफ़ जाते हैं। सभी एक-दूसरे को खींचते हैं और आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। इसमें ‘संघर्ष जीतने का’ बहुत ज़रूरी है। जो भी कोई पहले जूते को छू लेता है वह जीत जाता है। वह उस जूते को निकालता है। सभी चुप-चाप उसे देखते हैं। और तभी अचानक पूरा दृश्य स्लो-मोशन में बदल जाता है। जीता हुआ व्यक्ति स्टेज के एक सिरे से दूसरे सिरे की तरफ़, अपनी जीत का जश्न मनाता हुआ बढ़ता है। बाक़ी जो हार चुके हैं वे ज़मीन पर पड़े रोने लगते हैं। यह सब कुछ बहुत ही धीमी गति में होता है। वे कोसते हैं, अपने एक पैर को जिसमें एक जूता नहीं है। भगवान को, ख़ुद को, वह जो जीता है। वह स्टेज के दूसरी तरफ़ पहुँचता है और वहाँ से एक छुपाया हुआ बैग निकालता है जिसमें बहुत सारे एक पैर के जूते रखे हैं। वह उस बैग में एक और जीता हुआ जूता डाल देता है। बाक़ी बच्चे बार-बार कभी अपने एक पैर को देखते हैं, जिसमें जूता नहीं है और कभी उस बैग को देखते हैं जिसमें जूते ही जूते हैं। तभी द्रुपद भीतर प्रवेश करता है। सारे लोग अपनी-अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं।)
द्रुपद- आप लोगों को जानकर बहुत ख़ुशी होगी कि पूरे स्कूल में मेरी कक्षा की पिंकी प्रथम आई है। आ जाओ पिंकी, अंदर आ जाओ।
(पिंकी के गले में मेडल है। पीछे बड़ी सी पेंसिल फँसी हुई है। वह झुकी हुई चल रही है।)
द्रुपद- अरे खड़े हो।
(सभी खड़े होकर तालियाँ बजाते हैं। पिंकी पीछे अपनी जगह बैठने जाती है। द्रुपद उसे आगे बैठने को कहते हैं।)
द्रुपद- अरे पीछे कहाँ पिंकी, तुम्हारी जगह अब यहाँ है। तुम यहाँ बैठोगी अब से। (प्रत्युश से) चलो तुम पीछे जाओ। आओ पिंकी। अब सारे स्कूलों के बीच जो प्रतियोगिता होगी, वह बहुत कठिन है। बहुत बड़े कवि डॉ रमेश उसे जज करने आने वाले हैं। मैं ख़ुद उस प्रतियोगिता में तीसवें स्थान पर आया था।
नंदु- सर, पिछली बार तो आप चालीसवें स्थान पर आए थे?
द्रुपद- चुप! तो मैं ख़ुद इस प्रतियोगिता में अठाइसवें स्थान पर आया था। पूरे शहर के सारे स्टूडेंट इसमें भाग लेते हैं। विषय भी उसी वक़्त मिलता है। पिंकी इसमें तुम जीत सकती हो। इस कविता को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि सच में तुम जीत सकती हो। सुनो, पिंकी की कविता-
परियों के भी लोक से सुंदर, छोटा सा प्यारा मेरा घर
सपने जो भी रहते मेरे, कुछ सीधे कुछ टेढ़े-मेड़े
हर रात मेरी आँखों से चुराकर, अपनी आँखों में बंद कर लेते
पापा मेरे, उन सारे सपनों को, सोने का बनाकर वापस कर देते
बिठा के काँधे पे मुझको, वो आसमान की सैर कराते
चलते-चलते जब थक जाऊँ, झट से वो घोड़ा बन जाते
माँ तो मेरी, थाली में हर दिन मेरी ख़ुशियाँ लाती है
जितने भी निवाले खा लूँ मैं, भूख बढ़ती ही जाती है।
(जब द्रुपद इसे पढ़ता है तो धीरे-धीरे लाइट जाती है और पीछे खड़ी उसकी माँ पर लाइट आती है। माँ भी चुपचाप कविता सुनती है। द्रुपद कविता ख़त्म करता है।)
माँ- पापा घोड़ा बन जाते? पिंकी, यह तो झूठ है। तुमने झूठ लिखा है?
(माँ पर से लाइट जाती है। सिर्फ़ पिंकी पर लाइट रह जाती है। वह बापू को देखती है। बापू की तस्वीर पर लाइट आती है।)
पिंकी- बापू, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं बस सोना चाहती हूँ। इस झूठ ने मेरी नींद उड़ा दी है। बापू, लाल पेंसिल मेरा पीछा नहीं छोड़ रही है। जहाँ जाती हूँ वहाँ पहुँच जाती है। मैं क्या करूँ? मुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे नहीं चाहिए यह सब। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।
द्रुपद- पिंकी, पिंकी, अरे कहाँ जा रही हो? पिंकी?
(द्रुपद पिंकी के पीछे जाता है। सभी पहले द्रुपद को देखते हैं फिर पिंकी जिस मेडल को फेंककर चली गई है, से देखते हैं। धीरे-धीरे लेटते हैं। इसी बीच प्रत्युश, डॉली और नीतू, पिंकी के पीछे भाग लेते हैं। बाक़ी लोग वापस से competition शुरू करते हैं। चपरासी आकर घंटी बजाता है।)
(Black Out)
Scene 11
(पिंकी अकेली बैठी है। पीछे से चपरासी बहुत से पेपर लेकर आता है और बिछाने लगता है। उसकी निगाह पिंकी पर पड़ती है।)
चपरासी- अरे पिंकी, घर नहीं गई तुम अभी तक?
पिंकी- ना!
चपरासी- क्यों, स्कूल में ही सोना है क्या?
पिंकी- अंकल, मैं कई रातों से सोई नहीं हूँ।
चपरासी- कवि कोई गहरी कविता तो नहीं सोच रहा है? अरे तेरा ख़ुशी का टाइम ख़त्म हो गया है क्या? चल कोई कविता ही सुना दे अपनी।
पिंकी- कविता नहीं अंकल, समस्या है। मेरी एक दोस्त बहुत समस्या में है। वह असल में मेरी बेस्ट फ्रेंड है। उसने ना, एक झूठ बोला।
(इसी बीच प्रत्युश, डॉली और नीतू पीछे से छुपते हुए आते हैं और छुपे रहते हैं।)
चपरासी- क्या झूठ?
पिंकी- वह जाने दो।
चपरासी- फिर क्या हुआ?
पिंकी- फिर वह ना, उस झूठ में बुरी फँस गई।
चपरासी- कैसे?
पिंकी- लोग उस झूठ को सच मानने लगे, जबकि वह कहना चाहती है अब कि वह झूठ था। पर उसका सच कोई सुनने को ही तैयार नहीं।
चपरासी- मतलब जो झूठ था, वह सच हो गया है? और अब जो सच है, वह झूठ हो रहा है? यह तो बहुत बड़ी समस्या है।
पिंकी- झूठ अब बहुत बड़ा हो गया है और भारी भी। अब बताओ, मेरी बेस्ट फ्रेंड को क्या करना चाहिए?
चपरासी- तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड का नाम पिंकी है क्या?
पिंकी- अंकल!
चपरासी- अरे मैं तो मज़ाक कर रहा था। मेरे ख़याल से तुम्हारी दोस्त को...
पिंकी- हाँ मेरी दोस्त को क्या?
चपरासी- मेरे ख़याल से तुम्हारी दोस्त को अपने किसी पक्के दोस्त के साथ चाय पीनी चाहिए।
पिंकी- चाय?
चपरासी- हाँ चाय। कौन है तुम्हारी दोस्त का पक्का दोस्त?
पिंकी- उसका तो... कोई दोस्त नहीं है।
चपरासी- अरे कोई तो होगा?
पिंकी- बस एक बापू हैं।
चपरासी- किसका बापू?
पिंकी- अरे बापू, अंकल आपने इतिहास नहीं पढ़ा?
चपरासी- अरे बस तो आराम से बापू को बिठा और उनके साथ चाय पी। सब सही होगा।
(चपरासी चला जाता है। वह बापू से बात करने को होती है कि एक काग़ज़ उसे आकर लगता है, फिर दूसरा, फिर तीसरा।)
प्रत्युश- अब फँसी है अकेली।
डॉली- अब नहीं छोड़ेंगे बेटा।
नीतू- अब सब सच-सच बोलना पड़ेगा।
प्रत्युश- बता किसने लिखी है कविता?
नीतू- तेरे बस की तो है नहीं।
डॉली- अरे बोल।
प्रत्युश- पापा लिखते हैं?
डॉली- अरे मम्मी से लिखवाती होगी।
नीतू- जब तक बोलेगी नहीं, तब तक नहीं छोड़ेंगे तेरे को।
सभी- बोल! बोल! बोल!
प्रत्युश- रुको! उठो तो कवयित्री जी! अब बताओगी कि और पिटना है?
(तभी पीछे से रोमा आ जाती है।)
रोमा- ऐ!
(रोमा आती है पिंकी पीछे चली जाती है। रोमा तीनों के बीच में आकर बुरी तरह चिल्लाकर कराटे की एक मुद्रा बनाती है। तीनों डर जाते है। फिर तीनों कराटे की मुद्रा बनाने की कोशिश करते हैं।)
प्रत्युश- हमें भी तो आता है कराटे।
डॉली- हाँ हाँ, हमने भी क्लासेज़ की हैं।
नीतू- मेरे पास तो यलो बेल्ट भी है।
(तभी रोमा कराटे के कुछ दाव करती है और खड़ी हो जाती है। तीनों अपना पैर उठाकर चिल्लाने लगते हैं। रोमा सबको चुप होने को कहती है।)
रोमा- चुप! पिंकी! पिंकी!
(पर पिंकी वहाँ नहीं है।)
रोमा- अरे, पिंकी कहाँ चली गई!
तीनों- हम देखकर आते हैं।
(Black Out)
Scene 12
पीछे शैडो में पिंकी जाती हुई दिखती है। तभी पीछे से लाल पेंसिल उसके पीछे-पीछे चल रही होती है। पिंकी रुककर उसको देखती है। पेंसिल भी रुक जाती है। पिंकी फिर चलना शुरू करती है। लाल पेंसिल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगती है। तभी सामने गाँधी जी का शैडो आता है और पिंकी गाँधी जी से बात करती है। पीछे लाल पेंसिल का भी शैडो है।)
बापू- पिंकी!
पिंकी- बापू!
बापू- क्या बात है?
पिंकी- बापू, आप चाय पीते हैं?
बापू- तुम्हारे साथ पी लूँगा।
पिंकी- बापू मैं ना बुरी फँसी हूँ।
बापू- कैसे?
पिंकी- आप तो जानते हैं कि मैंने कविताएँ नहीं लिखी हैं। पर अब कोई मेरी बात का यक़ीन ही नहीं कर रहा है। और यह पेंसिल है कि सब झूठ लिखती ही चली जा रही है।
बापू- और झूठ बड़ा होता जा रहा है।
पिंकी- बड़ा नहीं बापू, बहुत बड़ा। अब मैं कुछ भी करूँ, ये झूठ पीछा ही नहीं छोड रह है। मैं सो भी नहीं पा रही हूँ। मैं क्या करूँ?
बापू- सच बोलो, बस!
पिंकी- मैं कहना चाहती हूँ पर कोई सुनना ही नहीं चाहता।
बापू- किसी से नहीं, अपने से। ख़ुद से सच कहो। पहले ख़ुद सुनो फिर सब सुन लेंगे।
पिंकी- पर मैं कह तो रही हूँ।
बापू- तुम्हारा झूठ तुम्हारी कविताओं में है। है ना?
पिंकी- हाँ।
बापू- तो बस वहाँ सच बोलो।
पिंकी- पर मैं कविता नहीं लिख सकती।
बापू- जब झूठ लिख सकती हो तो सच लिखना तो आसान ही है।
पिंकी- सच क्या लिखूँ?
बापू- अब वह तुम जानो।
पिकी- बापू, मैं सच लिखूँगी।
बापू- चाय का क्या हुआ?
पिंकी- लाती हूँ। लाती हूँ।
(Black Out)
Scene 13
(कविता की अंतिम प्रतियोगिता है। पीछे मास्क पहने चार जज हैं। जिसमें एक डॉ रमेश हैं। सामने सारे लोग मास्क पहने लिखने की मुद्रा में बैठे हैं। पिंकी ने मास्क नहीं पहना है।)
जज 1- मुख्य अतिथी डॉ रमेश का स्वागत है!
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 2- भविष्य के कवि हमारे सामने बैठे हैं।
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 3- अंतिम और निर्णायक प्रतियोगिता है।
जज 1- सफल कवि बड़ा कवि होगा।
जज 2- चुनाव रमेश जी करेंगे।
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 3- तो कवियों, आप लोग तैयार हो?
(सारे लोग अपनी मुद्रा बदलकर लिखने को तैयार हो जाते हैं।)
जज 1- रमेश जी, कविता का विषय बताएँ।
रमेश- मेरा सौभाग्य!
जज 2- रमेश जी, विषय... विषय बताना है।
रमेश- हाँ, मुझे यह बताते हुए बहुत ख़ुशी होती है कि...
जज 1- तो आज की कविता का विषय है- ‘ख़ुशी, Happiness!’
(सारे लोग तुरंत लिखना शुरू करते हैं और लिखते-लिखते लोगों की (happiness के साउंड) आवाज़ें सुनाई देती हैं। सारे जज भी अपनी मुद्राएँ बदलते रहते हैं। सारे लिखना बंद करके अपने-अपने कागज़ों को हवा में उठाते हैं। जज ताली बजाकर समय समाप्ति की घोषणा करते हैं। फ्रीज़! पिंकी अपना काग़ज़ नीचे करती है।)
पिंकी- मेरी इच्छा थी कि मैं किसी और की तरह दिखूँ। कुछ और बन जाऊँ। लाल पेंसिल ने वह कर दिया। उसने एक दूसरी पिंकी पैदा कर दी। वह पिंकी बड़ी होती जा रही थी। हाँ बड़ी, बहुत बड़ी! मैं उसमें गुमने लगी थी, पर मैं वह नहीं हूँ। लाल पेंसिल मेरी नहीं है। मैं सिर्फ़ पिंकी हूँ, जिसे कविता लिखना नहीं आता है।
(पिंकी के इस संवाद के बीच में पीछे शैडो में पेंसिल टूटती है। जज आकर सबके काग़ज़ लेते हैं। सारे कागज़ रमेश जी को देते हैं। रमेश सबको रिजेक्ट कर देता है और एक काग़ज़ पर थोड़ा सा हँसता है। और वह काग़ज़ जज 1 को देता है। जज 1 कहता है।)
जज 1- अरे यह तो कोई रमेश ही जीता है।
(बच्चों में से एक बच्चा अपना हाथ उठाता है। बाक़ी सारे लोग अपना सिर झुका लेते हैं। फ्रीज़!)
पिंकी- बापू मुझे नींद आ रही है। मैं सोना चाहती हूँ। मुझे बहुत तेज़ नींद आ रही है।
(पिंकी सोने लगती है और सारे बच्चे अपना सिर उठाकर पिंकी को देखते हैं- सोता हुआ। फिर सभी अपना मास्क उतारते हैं और लेट जाते हैं। सभी embryo की मुद्रा में वापस लेट जाते हैं। नाटक फिर शुरू से शुरू होता है... जैसे नाटक शुरु हुआ था embryo की मुद्रा में..। तभी लाल पेंसिल गिरती है। नंदू झटके से उठता है। बाक़ी लोग नाटक की शुरुआत दोहराते हैं। वह लाल पेंसिल को उठाता है। सबसे पूछता है कि यह किसकी है? जब उसे कोई जवाब नहीं मिलता तो वह उस पेंसिल को देखता है और फिर आश्चर्य से दर्शकों की तरफ़ देखता है कि वह इस लाल पेंसिल का क्या करे। तब तक सभी नाटक की शुरुआत का एक अंश पूरा कर लेते हैं। (Embryo से पैदा होने तक का) धीरे-धीरे लाइट जाती है। और अचानक अँधेरा हो जाता है।...)
(Black Out)
The End…..