aRANYA
तुम्हारे बारे में...
A play by Manav kaul
(शो दर शो पहला सीन बदला है। इस बार हमने musical chair की तरह नाटक शुरु किया और उसमें दो लोग एक साथ बैठने में Musical Chair वाले गेम के रूल ब्रेक कर देते हैं और उस ब्रेक में सब अपने पार्टनर को खजने के चक्कर मे कुर्सियाँ लेकर एक रिदम में अलग अलग जगह बैठते हैं और कुछ ही देर में वो खुद को एक कैफे की व्यवस्था में पाते हैं। और नाटक शुरु होता है। इस पहले मोनटार्ज को आप कैसे भी शुरु कर सकत हैं जैसे आपको नाटक समझ आएगा वैसे ये बदलता रहेगा।)
स्टेज के बीच में पाँच कुर्सियाँ रखी हुई हैं और एक कुर्सी Down stage पर रखी हुई है। लाईट आती है तो हम देखते हैं उन पाँच कुर्सियों पर घेरा बनाकर छे लोग खडे हैं। तीन लडके तीन लडकियाँ। वो सभी एक दूसरे को देखते हैं, स्पेस को देखते हैं। कठपुतली की तरह वो आश्चर्यचकित हैं कि वो इस वक़्त कहा है और उन्हें क्या करना है। तभी उन्हें पता चलता है कि कुर्सीयाँ पाँच है और वो लोग छे। सभी दौड़ने की मुद्रा बनाते हैं। उसमें एक लड़की देर से समझती है कि उसे क्या करना है तब तक दौड़ने की मुद्रा के बाद पाँच लोग जाकर कुर्सी पर बैठ जाते हैं। वो जब तक कुर्सीयों तक पहुचती है तब तक छटी कुर्सी (जो अलग रखी हुई है) पर लाइट आती है। वो एक खड़ी हुई लड़की उदास हो जाती है। दो लडकियाँ अपनी कुर्सी पर से खड़ी होती हैं, उन्हे देखकर दो लड़के भी खडे हो जाते हैं। लड़को को खडा देखकर वो दोनों लड़कियाँ बैठ जाती हैं। लड़कियों के बैठते ही वो दोनों लडके भी बैठ जाते हैं। वो लड़की ये सब देख रही होती है। सभी उस उस कुर्सी को देखते हैं जो अलग रखी हुई है, फिर वो सब उस लड़की को देखते हैं। तीनों लड़के उसे उस कुर्सी पर जाने के लिए कहते इशारा करते हैं। वो उदास होकर उस कुर्सी पर जाती है। लड़की दूर रखी कुर्सी पर अकेले जाकर बैठ जाती है। सभी उसे देखते हैं फिर एक दूसरे को देखते है। कुछ देर में वे लड़की हंस देती है, ये ख़ुशी की मुक्त हंसी की आवाज़ थी जो पहली बार सबने सुनी थी। पीछे बैठे पाँचों लोग उस हंसी सुनकर एक दूसरे को देखते हैं फिर उस लड़की की हंसी जैसी आवाज़ निकालने की कोशिश करते हैं, आवाज़ मशीनी निकली है। लड़की अपनी जगह खुश हैं। वो पाँचों फिर कोशिश करते हैं पर फिर भी आवाज़ में हंसी में सच्ची ख़ुशी नहीं झलकती। पाँच में से कुछ लोग अपनी कर्सी उठाकर लड़की की तरह अकेले जाकर बैठ जाते हैं। बाक़ी लोग भी कुर्सी उठाकर स्टेज के अलग अलग हिस्सों पर अलग अलग तरीक़े से बैठने की कोशिश करते हैं। जो लड़की अकेली जाकर हंसी थी वो भी सबके जैसा अलग अलग जगह बैठने की कोशिश करने लगती है। तभी हर किसी को एक ऐसी स्थिति मिलती है कि सब सहज महसूस करते हैं। तभी कैफ़े का संगीत शुरू होता है। चारु वेटर बनकर समीर के पास आती है।
चारु- सर कुछ आर्डर?
(समीर अपने phone में busy है, वो इशारे से दिखाता है कि काफी रखी है।)
चारु- oh, you’ve Already ordered.
समीर- yes, I am waiting for someone.
चारु- मेम आर्डर (इति से)
इति- मैं किसी का इंतज़ार कर रही हूँ, कुछ देर में।
चारू- (रोहित से) सर आपके… लिए…
रोहित- चारु?
(रोहित चारु को देखते ही रोने लगता है चारु उसे रोता देखकर मंच पर से चली जाती है। तभी शील अपनी कुर्सी से उठती है और अपनी कुर्सी को लेकर समीर के पास आती है। उसके सामने कुर्सी रखती है…. उसे विश्वास नहीं होता है कि समीर उससे पहले आ गया है।)
शील- हाय!
समीर- (फोन पर मेसेज टाईप करते हुए) हाय! हाय! कैसी हो?
शील- तम्हारे सामने हूँ, खुद ही देख लो।
समीर- मतलब अच्छी हो, सही है एकदम।
शील- (शील कुर्सी पर बैठती है।) समीर क्या मैं....
समीर- (अभी भी फोन पर है।) क्या हुआ बोलो?
शील- नहीं पहले तुम काम खत्म कर लो।
समीर- अरे ये तो बस ऐसे ही है, तुम बोलो।
शील- कोई जरुरी काम होगा।
समीर- कोई काम जरूरी नहीं है, तुम जरुरी हो।
शील- (शील समीर को हंसते हुए देखती है, ये सालों से ऐसा ही है वाले अंदज में) सारी क्या मैं लेट हो गई हूँ?
समीर- नहीं मैं ही जल्दी आ गया था, मैंने तुम्हारी काफ़ी आर्डर कर दी थी, वो ठंडी हो गई है।
शील- कोई बात नहीं, मुझे कोल्ड काफ़ी पीने की इच्छा थी।
समीर- तुम्हें कब से कोल्ड काफ़ी अच्छी लगने लगी। रुको मैं इसे गर्म करवाता हूँ। Excuse me, कोई है?
शील- अरे ठीक है, मुझे अब कोल्ड काफ़ी ही पसंद आती है।
समीर- What! सच में, कब से?
शील- इसका क्या हिसाब दूँ।
समीर- मैं हिसाब थोड़ी माँग रहा हूँ?
शील- पूछ तो वैसे ही रहे हो।
समीर- ‘अरे वाह! तुम्हें अब कोल्ड काफ़ी पसंद आने लगी है’- ये ठीक है।
शील- perfect… ओह! ये कैफ़े तो वही है ना..
समीर- of course…. सात साल पहले हम यही मिले थे।
शील- ओह! Yes…
समीर- सात साल हो चुके हैं।
शील- पर i don’t think हम यहाँ बैठे थे।
समीर- हाँ हम उस टेबल पर बैठे थे जहाँ वो लड़की बैठी है। मुझे क्या पता था कि ये कैफ़े चलने लगेगा।
शील- तुम्हें याद है तुम कैसे झेंपते हुए इस कैफ़े में आए थे।
(उदय अपनी कुर्सी से उठता है और कैफ़े मे आने का अभिनय करता है।)
समीर- मैं झेंपते हुए नहीं आया था।
शील- तुम बहुत झेंपते हुए आए थे, तुम्हें याद नहीं है, मैं बैठी थी और तुम मेरे बग़ल में खड़े होकर मुझे खोज रहे थे।
(उदय अपना फोन हाथ में लिए इति के बग़ल मे खड़ा होकर उसे खोज रहा होता है।)
समीर- नहीं, मैं बैठा था और तुम बग़ल में मुझे खोज रही थीं।
शील- नहीं बाबा, मैं बैठी थी।
(इति और उदय जो इनकी वजह से उठक बैठक कर रहे होते हैं, फिर वो रुक कर समीर और शील को देखने लगते हैं।)
समीर- सारी, तुम बैठी थी, मैं ढूँढ रहा था, ठीक है। रुको मैं ये काफ़ी गर्म करवाता हूँ।
(समीर काफ़ी कप लेकर चला जाता है।)
शील- समीर जाने दो.. समीर..
(इति बैठी इंतज़ार करती है, उदय फ़ोन हाथ में लिए प्रवेश करता है।)
इति- उदय?
उदय- इति?
इति- हाँ, तुम तो (फ़ोन देखते हुए)
उदय- हाँ और तुम तो (फ़ोन पर इति का चेहरा देखते हुए।)
इति- मैं क्या?
उदय- मतलब तुम अपने बंबल की तस्वीर से अलग दिखती हो सामने से?
इति- अग़ल मतलब?
उदय- in a good way… और मैं।
इति- तुम.. बढ़िया।
उदय- शुक्रिया।
इति- ठीक दिखते हो।
इति- अरे, अभी तो बढिया कहा।
उदय- ठीक! मतलब, वैसे ही जैसे दिखते हो।
उदय- कैसा?
इति- तुमने आघार कार्ड की तस्वीर बंबल पर लगा रखी है। उससे तो ठीक ही दिख रहे हो।
उदय- आजकल कभी भी प्रूफ़ देना पड़ सकता है अपने बारे में, सो मैंने अपना आधार कार्ड ही लगा दिया बंबल पर कि ये मैं ही हूँ। तो बताओ क्या लोगी।
इति- तुम क्या लोगे?
उदय- कोल्ड काफ़ी, मुझे कोल्ड काफ़ी से अच्छा कुछ नहीं लगता है।
इति- और मुझे hot coffee.. तुम आर्डर कर दोगे, मैं जरा washroom होकर आती हूँ।
(रोहित बैठा हुआ है और चारु उसके पीछे खड़ी हुई है तभी इति वेटर बनकर आती है। वो चारु को देखती है और चारु उसे इशारा करती है कि रोहित की तरफ़।)
वेटर- हेलो सर, सर
इति- सर!
चारु- सर!
रोहित- चारु!
(रोहित देखता है पर उसे सिर्फ़ इति दिखती है।)
इति- कौन चारु?
(रोहित कुछ नहीं कहता है और वापिस अपने दुखी अवतार में चला जाता है। इति फिर से चारु को देखती है। चारु फिर इशारा करती है कि चारु मैं ही हूँ, और इति से एक बार और कोशिश करने को कहती है। इति मुस्कुराती है और रोहित की तरफ़ मुख़ातिब होती है।)
इति- सर आर्डर?
रोहित- सारी, क्या कहा आपने?
वेटर- आर्डर? आप बहुत देर से अकेले बैठे हैं इसलिए सोचा मैं ही पूछ लेती हूँ।
रोहित- हाँ, मुझे क्या चाहिए? मुझे …
वेटर- कोई आने वाला है? Is someone joining you?
(रोहित वेटर को देखकर रोने लगता है। इति चारु को देखती है।)
वेटर- Intense … मैं पानी लाती हूँ।
रोहित- हाँ पानी, पानी।
(वेटर जाता है।)
चारू- क्या है ये? (मुस्कुराते हुए)
रोहित- तुम चुप रहो।
चारू- मतलब इतना ड्रामा।
रोहित- ये तुम्हें ड्रामा लग रहा है?
चारू- you can do better
रोहित- ये सच के आंसू है… देख लो।
चारू- ओके ओके, रो लो, रोने से मन हल्का हो जाता है।
(रोहित रोना रोकने की कोशिश करता है, पर फिर रो देता है।)
चारू- सुनो, she was hot.
रोहित- कौन?
चारू- वो वेटर
रोहित- चारू! शट अप!
चारु- रोहित, मूव आन।
रोहित- कैसे करते हैं मूव आन… कैसे? ये कोई बेंगन की सब्ज़ी है कि आज से बेंगन नहीं भिंडी खाएँगे।
चारु- what!
उदय- what!
रोहित- (उदय को देखकर) what!
(एक वेटर, जो शील भी हो सकती है, उदय के पास जाती है।)
वेटर- what would you like to have sir?
उदय- हाँ, एक Hot coffee और एक… नहीं रुको, Fuck cold coffee, दो हाट काफी।
वेटर- ओके।
चारु- तुम रोते हुए अच्छे नहीं लगते।
(रोहित और तेज़ रोने लगता है।)
रोहित- अब मैं रोते हुए भी अच्छा नहीं लगता?
चारु- रोहित, मैंने तो कहा था ना।
रोहित- ऐसे तो सब कहते हैं, पर कोई चला थोड़ी जाता है?
चारू- मैंने जाने के लिए नहीं कहा था।
रोहित- पर तुम तो चली गई ना?
चारू- मैं गई नहीं।
रोहित- तो तुम मेरे सामने बैठी हो?
(वेटर पानी लाता है। रोहित वेटर से )
रोहित- मेरे सामने चारू बैठी है?
वेटर- सर!
रोहित- कोई भी बैठा है मेरे सामने?
वेटर- मैं समझ सकती हूँ, पानी।
चारू- look at her.
रोहित- नो।
वोटर- ओ नहीं चाहिए पानी। कुछ और लाऊँ।
चारू- देखो! कितनी प्यारी है।
(चारु को देखकर इति मुस्कुराती है, रोहित उन दोनों को देखता है और ग़ुस्से में कहता है।)
रोहित- कोल्ड काफ़ी… एकदम ठंडी काफ़ी, बर्फ़ डालकर।
वेटर- ओके।
चारु- कोल्ड काफ़ी, वाह! देखो तुम बदल रहे हो।
रोहित- मैं बदल नहीं रहा हूँ। मैं वापिस उन चीजों पर मुड़ रहा हूँ जो मुझे अच्छी लगा करती थीं।
चारू- Flexible…. Nice
(रोहित रोने लगता है।)
(इति उदय)
इति- तो क्या आर्डर किया?
उदय- काफ़ी। दोनों के लिए hot coffee.
इति- अच्छा!
उदय- मतलब मैं भी hot coffee पी रहा हूँ।
इति- ये कैसा कैफे चुना है तुमने?
उदय- तुम्हें ठीक नहीं लगा।
इति- ठीक है पर यहाँ तो बहुत कम लोग हैं ना, शायद चलता नहीं है।
उदय- हाँ तभी तो मैंने सोचा कि पहली मुलाक़ात के लिए सही जगह होगी।
इति- अच्छा।
उदय- नहीं मतलब वैसा नहीं है, तुमने ही अपने bio में लिखा था ना कि तुम्हें poetry अच्छी लगती है।
इति- हाँ।
उदय- तो ये open mic कैफे है, देखो यहाँ चारों तरफ़ कविताएँ बिखरी पड़ी हैं। यहाँ पर पहले लोग अपनी कविताएँ आकर सुनाते थे। इसलिए यहाँ कस्टमर्स ने आना बंद कर दिया।
(इति हंसने लगती है।)
उदय- हाँ और अग़ल बग़ल की बिल्डिंगों के फ़्लैट भी सस्ते दामों पर बिकने लगे थे क्योंकि कवियों की आवाज़ बाहर तक जाती थी। (इति हंसती है।) बाहर बाज़ार लगना भी बंद हो गया था।
(समीर और शील)
समीर- आ रही है काफ़ी। ये लोग इतना टाइम लगा रहे हैं ना। सुनो शील हमें उस रात के बारे में बात करनी होगी।
शील- तो कांउस्लिंग कैसी रही?
समीर- ठीक ही है। अकेले कांउसलिंग करना, अकेले डांडिया खेलने जैसा है।
शील- मेरे पास वक़्त नहीं है समीर।
समीर- शील हमें Couples therapy की जरूरत है, डाक्टर कह रहा था तुम्हें भी आना पड़ेगा।
शील- तुम कुछ ज़्यादा ही सीरियसली ले रहे हो।
समीर- ये सीरियस है। शील आजकल सब जाते है इस Couples therapy में
शील- और इंटेग्राम पर फ़ोटो डालते हैं hashtag Couple Goles.
समीर- तुम्हें पता है कितने लाइक्स मिलते हैं ऐसी चीजों पर, people love it.
शील- हम एक फ़ोटो यहाँ ले लें कि कितने सालों बाद हम वही काफ़ी पी रहे हैं जहां पहली बार मिले थे।
समीर- सुपर आईडिया है, लेट्स डू दिस।
शील- रियली
समीर- इसमें क्या ग़लत है, people love it.
(समीर sefie लेने ही वाला होता है कि शील का फ़ोन वाइब्रेट होता है।)
शील- दो मिनिट ( समीर अपने फोन मे मेसेज देखने लगता है।) येस जय, कल मिलेंगे ना, नो उसके पहले बिजी हूँ । Cool bye.
(समीर फ़ोन पर कुछ पढ़कर हंसता है।)
शील- क्या हुआ?
समीर- मेरी एक दोस्त है वो बहुत लेम जाक भेजती है।
शील- सुनाओ।
समीर- एकदम घटिया है।
शील- तुम हंस रहे थे। सुनाओ
समीर- एक शेर ने बेड पर अपनी शेरनी से पूछा कि तुम्हारा किसी और शेर से एफैयर तो नहीं चल रहा है? तो शेरनी शरमाते हुए जवाब देती है कि इस बात पर मुझे एक शेर याद आया।
शील- ये तुम्हें Funny लगा?
(उदय और इति)
उदय- funny नहीं क्यूट है।
(रोहित और चारु, चारू हंसती है।)
रोहित- मुझे बिल्कुल भी funny नही लगा।
चारू- मैं बस चाहती थी कि तुम हंस दो।
रोहित- तुम्हें पता है मुझे ऐसा सपना आया था।
चारू- ये शेर शेरनी वाला?
रोहित- हाँ
चारू- फिर झूठ।
रोहित- नहीं क़सम से, विध्या माता की क़सम, धरती माता की क़सम।
चारू- और देखो मैंने तुम्हारे सपने का मज़ाक़ बनाकर तुम्हें ही सुना दिया।
(समीर और शील)
शील- वो देखो वो उधर जो आदमी रो रहा है मुझे बहुत ही funny लग रहा है।
(रोहित)
रोहित- तुम जान बूझकर मुझे रूला रही हो ना? मेरे इतने सेसंटिव सपने का जोक बना दिया।
(शील और समीर)
समीर- हाँ देखा मैंने, I can’t see that.
शील- क्या? मुझे तो हंसी आ रही है उसे देखकर
समीर- मुझे तो अपना भविष्य दिख रहा है।
शील- सच में… (हंसती है।)
समीर- ऐसे अकेले नहीं रह जाना है मुझे। (समीर रोहित की तरह रोने लगता है।)
शील- aww.
(इति और उदय)
इति- ये सारे पन्ने जो बिखरे पड़े हैं यहाँ, इनमें ये ज़ग खाई कविताएँ किसकी हैं?
उदय- इस कैफ़े ने कुछ चुनिंदा कविताएँ रखी है, अगर आपकी इच्छा हो तो इसे पढ़कर आप सुना सकते है पर अपनी कविता सुनाना बेन हो गया है।
(रोहित दूसरी तरफ़ सुन लेता है, वो कहता है।)
रोहित- पता है।
इति- तो तुम रेग्युलर हो इस कैफ़े में?
उदय- हाँ, मुझे ये कैफ़े पसंद है, यहाँ टूटे-बिखरे लोग आते हैं।
इति- और तुमने पहली मुलाक़ात के लिए ये कैफ़े चुना? वाह!
उदय- हाँ, क्योंकि हमें पता होना चाहिए ना कि कुछ भी हो जाए हमें ऐसे नहीं बनना है।
इति- अच्छा, पर वो दोनों तो happy couple लग रहे हैं।
उदय- पर ऐसा है नहीं, वो आदमी इसी कैफ़े में एक दूसरी लड़की से मिलता है, और मैंने दूसरे कैफ़े में उस लड़की को एक जवान लड़के से मिलते हुए देखा है।
(शील और समीर)
समीर- बेबी हमें उस रात के बारे में बात करनी होगी।
शील- (फोन पर busy होते हुए) एक मिनिट।
समीर- यार ये लोग काफ़ी नहीं ला रहे हैं, सब मुझे ही करना पड़ेगा, मैं देखकर आता हूँ।
शील- समीर आ जाएगी काफ़ी।
(समीर पीछे जाता है। इति और उदय)
इति- और वो आदमी जो इतनी देर से रो रहा है, वो?
उदय- वो, उसी के कारण अपनी कविताएँ सुनाना इस कैफ़े में बैन हुआ है।
रोहित- संस्कृति और सभ्यता को ताक पर रखकर वो चली गई।
लाज और शर्म के सारे धागे वो तोड़कर चली गई।
गुमान है उसे अपने जाने की अदा पर
मेरे आंसू को गंदा पानी मानकर वो चली गई।
चारु- फिर तुम अपनी कविता पेल रहे हो, यहाँ सख़्त मना है।
रोहित- मैं कवी हूँ।
चारु- हम अपनी ग़लतियों को कविता की शक्ल देकर सुधार नहीं सकते हैं।
रोहित- पर उसका चुटकुला बनाकर सुना सकते हैं?
चारू- For a good laugh…. Why not.
रोहित- क्रूर!
चारु- क्रूर? (चारु हंसी है।)
रोहित- तुम्हारा चला जाना क्रूरता ही तो थी।
चारू- मैं गई नहीं थी, मैं...........?
रोहित- उड़ गई थी, हाँ वो ही, ऐसे कोई उड़ जाता है क्या?
चारू- मैंने कहा था कि मैं जब पैंतीस की होऊँगी तो उड़ जाऊँगी।
रोहित- अब मैं क्या करूँ? मैं किसी को बता भी नहीं सकता।
चारू- क्या बताना है।
रोहित- अरे अगर तुम चली जाती तो कह देता कि वो चली गई छोड़कर, पर तुम उड़ गई थीं। अब क्या इस उम्र में आकर ये कहना अच्छा लगता है कि, अरे नहीं नहीं, चारु गई नहीं है, वो तो उड़ गई।
चारु- कोई अगर पूछे तो कहना कि तुमने एक अच्छा सपना देखा था और अब मैं जाग चुका हूँ।
रोहित- तो क्या सारा कुछ सपना ही था। जब हम पहली बार इस कैफ़े में मिले थे वो भी सपना था?
चारू- वो सपना नहीं था वो एक अच्छी कविता थी।
रोहित- और मैं चुटकुला हूँ? (चारु हंसती है।)
चारु- Funny (रोहित रोता है, और चिढ़ जाता है।)
रोहित- मेरी कोल्ड काफ़ी नहीं आई अभी तक, क्या कर रहे हैं ये लोग। I want my coffee.
(रोहित पीछे जाता है।)
रोहित- क्या है भाई coffee का क्या हुआ? इतनी देर क्यों लग रही है।
समीर- मैं भी यही पूछ रहा हूँ। कह रहे हैं कि आदमी कम हैं।
रोहित- काफ़ी बनाने में कितना टाईम लगता है।
समीर- हेलो, कोई है।
(इति और उदय, जो बाहर उनकी आवाज़ें सुन रहे हैं।)
उदय- ये कैफ़े ऐसा है नहीं, पता नहीं आज क्या हो गया है। सच में बहुत टाईम लगा दिया।
इति- आ जाएगी काफ़ी।
समीर- (अंदर से) अरे भाई क्या हो रहा है यार, कुछ तो बताओ
रोहित- (अंदर से) हाँ कोई कुछ तो बताओ, ये आदमी रो रहा है यहाँ।
उदय- अंदर वो लोग लड़ रहे हैं... Bloody Men! (वक्फ़ा)
इति- तुम जाना चाहते हो?
उदय- है ना, I think मुझे भी जाना चाहिए।
इति- उदय coffee is not important.
उदय- हाँ। (कुछ देर दोनों असहज बैठते हैं।) पर ये तो coffee date है ना, coffee तो important होगी ही।
इति- सुनो, तुमसे नहीं होगा, तुम जाओ।
उदय- मैं बस अभी देखकर आता हूँ।
(उदय अंदर जाता है। भीतर से अब तीनों की आवाज़ें आ रही हैं।)
उदय- क्या हो गया, हेलो कोई है, दो hot coffee बोली थी।
रोहित- हम भी उसी लिए खड़े हैं।
समीर- मैं उससे कह रहा हूँ और वो ऐसे मुझे देख रहा है जैसे मैंने उससे सोना माँग लिया है।
उदय- भई Coffee दे दो दोस्त।
रोहित- मेरी तो कोल्ड काफ़ी है उसे उबालोगे क्या?
समीर- यार मैंने तो काफ़ी गर्म करने को कहा है बस.. और ऐसे देख क्या रहा है भाई, क्या देख रहा है? (समीर ग़ुस्सा हो जाता है, शील उठकर पीछे की तरफ़ जाती है पर तब तक समीर चुप हो जाता है।)
उदय- वो इशारा कर रहा है कि आ रही है आ रही है।
(तीनों लड़कियाँ बाहर अकेले रह जाती हैं। वो अंदर से आती आवाज़ों में ख़ुद को असहज महसूस करती हैं। शील वापिस अपनी जगह जाकर बैठ जाती है।)
शील- I don’t know how to explain कि अब मैं कोल्ड काफ़ी पीती हूँ।
इति- सारी, आप मुझसे कह रही हैं?
शील- नहीं मैं तो असल में, anyways जाने दो।
इति- उदय ने मेरी वजह से Hot coffee आर्डर की है, जबकि उसे भी कोल्ड काफी ही पसंद है, ये बडा Decision है, I find it cute.
चारु- और मुझे अब सिर्फ़ चाय अच्छी लगती है।
इति- चाय, I can’t have chai.
(चारु नीचे पड़े पेपर पलट पलटकर देख रही होती है, उसे देखकर शील भी कुछ पेपर उठा लेती है और उन्हें पलटकर देखती है।)
शील- (इति से ) जब मैं सात साल पहले इस कैफ़े में आई थी तो मैं वहीं बैठी थीं जहां आप बैठी हैं और तब मैं सिर्फ़ हाट काफ़ी पीना पसंद करती थी।
इति- अच्छा।
चारु- That’s strange, और जब मैं एक साल पहले इस कैफे मे आई थी तो मैं वहा बैठी थी आपकी जगह और तब मैं कोल्ड काफ़ी पीती थी।
शील- ओह!
(इति भी एक पेपर उठा लेती है और उसे उलट पलटकर देखने लगती है।)
शील- सारी, (इति से) Do I know you? क्या हम पहले कहीं मिले हैं?
इति- मुझे नहीं लगता।
चारु- और मैं कब से आपको देखते हुए सोच रही थी कि मैं आपसे पहले कहाँ मिली हूँ? क्या हम मिले हैं?
शील- पता नहीं, मुझे तो याद नहीं आता।
(शील दो तीन अलग अलग पन्नों को उठाती है उन्हें पढ़ती है और उसे अजीब लगता है।)
शील- क्या यहाँ सारी कविताएँ आदमियों ने ही लिखी है?
चारु- mostly.
शील- और औरतों की बातें? उनकी कविताएँ?
चारु- वो भी लिखी हैं पर वो भी mostly आदमियों ने ही लिखी हैं। जैसे ये नाटक भी एक आदमी ने ही लिखा है।
इति- नो!
शील- सच में।
चारु- हाँ।
शील- ये नाटक है? मतलब हम आदमियों के खेले जा रहे नाटक का हिस्सा हैं?
चारु- हाँ।
शील- then I don’t want to do this.
इति- हाँ, मैं भी नहीं करना चाहती।
शील- ये तो ग़लत है।
चारु- इसलिए जब एक साल पहले मैं इस कैफ़े में आई थी तब मैंने अपना एक सपना लिख दिया था, मैं उसे ही ढूँढ रही हूँ।
(शील और इति दोनों पन्नों को उठाकर, चारु का सपना ढूँढने में लग जाते हैं।)
शील- क्या लिखा था सपने में?
चारु- वो मेरे उड़ जाने के बारे में था।
(शील और इति दोनों स्तब्ध रह जाते हैं। वो मुड़कर चारु को देखते हैं। चारु अभी भी पन्नों में अपना सपना ढूँढ रही होती है।)
शील- तो क्या तुम उड़ गई थीं?
(चारु पलटकर देखती है। वो इस सवाल की उम्मीद नहीं कर रही थी। वो उन दोनों के क़रीब आती है और एक क्षण आता है और तीनों को लगता है वो एक दूसरे को जानते हैं।)
चारु- हाँ मैं उड़ गई थी।
(शील और इति चारु की तरफ बढ़ते हैं। शील जैसे ही चारु के क़रीब पहुँचती है चारु अपनी जगह छोड़ देती है और शील उसकी जगह पर जाकर खड़ी हो जाती है। और उसे वहाँ से कुछ अलग ही दिखाई देने लगता है। इति शील की जगह आती है, फिर इति जहाँ इस वक्त शील खड़ी है वहाँ बढ़ती है। शील उसके लिए जगह छोड़ती है। चारु उन दोनों को मुस्कुराते हुए देखती है। शील मानो वर्तमान है, इति अतीत और चारु भविष्य है। तभी पीछे से तीनों लड़कों की आवाज़ें आती हैं और वो तीनों भीतर प्रवेश कर रहे होते हैं।)
रोहित- यार गैस ख़त्म हो गई है तो ये बात उन्हें बताना चाहिए था ना।
उदय- हाँ साथ में लेडीज़ लोग हैं हमारे, उन्हें समझना चाहिए।
समीर- और हम यहाँ पागलों की तरह Coffee-coffee चिल्ला रहे हैं।
(तीनों भीतर प्रवेश करते हैं और वो तीनों लड़कियों को देखकर चौंक जाते हैं। वो तीनों एक दूसरे को देख रही हैं।)
रोहित- चारू?
समीर- शील… क्या हुआ। चलो अपनी जगह बैठते है, चलो बेबी।
उदय- आल ओके? Chill, coffee आ रही है।
(तानों लड़कियाँ अपनी अपनी जगह जाकर बैठती हैं पर उनका दिमाग़ अब वहाँ नहीं है।)
समीर- ये ऐसी नहीं है, चलो बेबी।
उदय- सब ठीक है?
समीर- you know, मेरे followers की तरह इन दोनों को भी लगता है कि I look 28. उन्हें यकीन नही हुआ कि I am 38. यार क्या हुआ तुम्हें, यही problem है बेबी तुम ना बहुत बदल गई हो, पहले तुम्हे hot coffee पसंद आती थी और अब तुम cold coffee पीने लगी हो। Anyways, मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया था क्योंकि मुझे उस रात के बारे में बात करनी है।
उदय- एक बहुत सफल आदमी ने कहा है कि हर successful पुरुष के पीछे कोई ना कोई महिला का हाथ होता है। I believe in that. वैसे तुम्हारी hobbies क्या हैं?
रोहित- वैसे उड़ना क्या होता है? हम इंसानों का क्या लेना देना उड़ने से? मैं चिड़िया हो जाना चाहती हूँ! ये बच्चों जैसी बातें एक उम्र तक ही ठीक लगती हैं, मैं ही पागल थी मुझे तब ही समझ जाना चाहिए था कि तुम सच में उड़ जाओगी जब तुमने कहा थी कि मुझे बहुत हल्का लग रहा है।
समीर- हमें उस रात के बारे में बात करनी है शील।
उदय- तुमने अपने bio में नहीं लिखा कि तुम्हारी hobbies क्या हैं?
रोहित- मुझे हल्का लग रहा है मुझे तब ही समझ जाना चाहिए था कि तुम उड़ जाओगी।
समीर- हमें उस रात के बारे में बात करनी है शील।
उदय- तुमने अपने bio में नहीं लिखा कि तुम्हारी hobbies क्या हैं?
रोहित- मुझे हल्का लग रहा है मुझे तब ही समझ जाना चाहिए था कि तुम उड़ जाओगी।
समीर- हमें उस रात के बारे में बात करनी है शील।
उदय- तुमने अपने bio में नहीं लिखा कि तुम्हारी hobbies क्या हैं?
रोहित- मुझे हल्का लग रहा है मुझे तब ही समझ जाना चाहिए था कि तुम उड़ जाओगी।
(तीनों लड़के एक लूप में अटक जाते हैं, जैसे ही शील बोलना शुरु करती है वो तीनों mute हो जाते हैं।)
शील- कैसे उड़ी थीं?
इति- क्या तुम कूदी थीं?
शील- तुम्हें डर नहीं लगा था?
इति- क्या तुमने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली थी?
शील- उड़ते वक़्त कैसा लगता है?
इति- क्या सच में उड़ा जा सकता है?
शील- मैं हमेशा से उड़ जाना चाहती थी।
इति- मैं भी।
चारु- उस सपने में सारा कुछ लिखा हुआ है।
(तीनों लडके un-mute होते हैं... और वापिस लूप में बोलना शुरु कर देते हैं।शील और इति वो काग़ज़ ढूँढने लगते हैं और धीरे धीरे करके चारु को पकड़ाते हैं। तीनों लड़के अभी भी उसी बात की रट लगा रहे होते हैं। बहुत से काग़ज़ों के बीच चारु के हाथ वो काग़ज़ लगता है।चारु पढ़ती है।)
चारु- रोहित।
रोहित, उदय और समीर कहते हैं एक साथ- क्या है?
(तीनों लड़कों का लूप बंद होता है। चारु अपनी कुर्सी पर चढ़ती है। रोहित उसके सामने आता है और वो उसे अपना सपना पढ़ती है।)
चारु- एक दिन मैंने सपना देखा था कि मैं चिड़िया के घोंसले में दुबकी हुई बैठी हूँ। मेरे अग़ल बग़ल बाक़ी चिड़िया के बच्चे हैं। ये पंख निकलने का मौसम था। चिड़िया के बाक़ी बच्चे लंबी अंगड़ाइयों के साथ अपने पंख खोल रहे थे। उड़ जाने के पहले की ख़ुशबू आने लगी थी।( इति और शील एक अंगड़ाई के साथ अपने पंख महसूस करने लगते हैं।) ये वही ख़ुशबू है जो बंजर ज़मीन पर बारिश की पहली बूँदों के बाद, ज़मीन की नाभी से कहीं फूटती है। धीरे धीरे सारे चिड़िया के बच्चे घोंसले से कूदने लगे थे। (इति और शील कूद जाते हैं।) मैं उनका लड़खड़ाते हुए ऊपर आसमान में उड़ना भी देख सकती थी। अब मेरी बारी थी। मैंने अपने दोनों हाथ खोल लिए थे, अपने परों को झाड़ा, फैलाया, पर कूदने के ठीक पहले मुझे घोंसले के नीचे एक भूखी बिल्ली दिखी जो मेरे कूदने का इंतज़ार कर रही थी। उसका चेहरा अपनों से मिलता था। मैंने एक गहरी साँस ली और छलांग लगाने के ठीक पहले मैंने अपनी आँखें कस कर बंद कर ली थी।
(चारू कूदती है, रोहित चीखता है। इति और शील उसे थाम लेते हैं। चारु के कूदते ही उदय और समीर भी खड़े हो जाते हैं। चारू कुछ कदम रोहित की तरफ़ बढ़ाती है पर तभी उसे वो उस कुर्सी को देखती है जिसपर शील बैठी थी, वो उस कुर्सी की तरफ़ बढ़ती है। शील, चारु को जाता देख इति की कुर्सी की तरफ़ देखती है और उस तरफ़ बढ़ती है। इति चारु की कुर्सी पर जाकर बैठ जाती है। तीनों एक दूसरे की कुर्सियों पर बैठे हैं।)
शील - वो डर गया ।
चारू - वो तब भी डर गया था जब मैंने उसे यहीं इसी कैफे में यह सपना सुनाया था ।
रोहित- तुमने आँखें बंद कर ली थी।
चारु- हाँ।
रोहित- ये अधूरा सपना मुझे कभी पसंद नहीं आया था।
इति - मैं जब बहुत छोटी थी तब मुझे यह सपना आया था।
उदय - तो यह सपना मुझे तुमने पहले क्यूँ नही सुनाया ?
इति- पहले कब?
समीर- पहले, जब हम पहली बार मिले थे?
शील - क्योंकि मुझे नहीं लगा था कि यह कभी पूरा होगा ।
समीर - बेबी, यह अधूरी चीज़ लेके क्यूँ घूमती हो अपने साथ ?
चारू - हर अधूरी चीज़ याद रह जाती है।
शील - सपने पूरे होते ही जीने की बोरियत में शामिल हो जाते हैं।
रोहित - मुझे पूरी चीज़ें पसंद हैं, मैं कोई कहानी भी पढ़ता हूँ तो उस कहानी के अंत का बोझ पूरे वक़्त मैं अपने ऊपर महसूस कर सकता हूँ।
उदय- बेबी मैं अपना पूरा सपना सुनाऊँ ?
इति - नहीं ।
चारू - तुम्हें सपने कभी याद नहीं रहते।
रोहित - अरे मैं खुली आँखों से देखे सपने की बात कर रहा हूँ।
उदय - हमारे भविष्य का सपना, तुम्हें कितना मज़ा आता था सुनकर। सुनाऊँ ?
चारू - नहीं।
समीर- क्यों बेबी?
चारु- क्योंकि तुम्हारे सपने झूठे थे।
रोहित - पर तुम उसके भीतर कितने मज़े से उड़ती थीं।
शील- उसे उड़ना नहीं कहते हैं।
रोहित- हाँ! मुझे याद आया , जब तुमने मुझे इसी कैफे में मुझे अपना ये अधूरा सपना सुनाया था तो मैंने ही तो इसे पूरा किया था।
समीर - वो सुनाऊँ ?
शील - नहीं।
उदय - सुनाने दो ना ?
शील- नहीं।
रोहित - जो हुआ था वो तो सुनाना पड़ेगा ना।
(रोहित उठकर चारु की तरह कुर्सी पर खड़ा हो जाता है जहां वो खड़े होकर सपना सुना रही थी।)
रोहित- चारु देखो, उस चिड़िया ने एक गहरी साँस ली और कूदने के ठीक पहले अपनी आँखें बंद कर ली, और फिर क्या हुआ पता है, फिर कूदते ही उसे पता चला कि वो चिड़िया नहीं है वो तो एक पेंग्विन है। उसके पंख दिखावे के हैं, वो कभी उड़ ही नहीं सकती है। जब वो गिर रही थी तो नीचे अपनों के चेहरे की बिल्ली उसे थाम लेती है……(रोहित चारु की तरह कूदता है और उसे चोट लग जाती है। चारू उसे सहारा देकर उठाती है, वो चारु के कंधे पर हाथ रखकर उठता है और मुस्कुराने लगता है।) ऐसे, ऐसे थाम लेती है।(चारु हंसती है, और रोहित चारु की आँखों पर हाथ रखकर उसे पीछे की तरफ़ ले जाता है।)
रोहित- फिर वो बिल्ली चिड़िया को, जो असल में पेंग्विन है, उसे अपने घर ले जाती है। चिड़िया घर जाते ही चौंक जाती है। बिल्ली का घर घर नहीं बल्कि एक घोंसला है। उस घोंसले में चिड़िया का नर्म बिस्तर है, सुंदर बाथरूम है, रंगीन पीले पर्दे हैं, बड़ा टीवी है जिसमें पेंग्विन की वो फ़िल्म चल रही है जिसमें एक जोड़ा कितनी कठिनाइयों का सामना करने के बाद अपने बच्चे को बड़ा होता देखता है। फिर बिल्ली और चिड़िया बिस्तर पर बैठकर अपने बच्चों के छोटे सुंदर परों की कल्पना करते हैं और वो कैसे पेंग्विन की तरह ठुमक ठुमककर चलेंगे ये सोचते हैं, दिखावे के पर कितने सुंदर होते हैं ना चारु, चारु, सो गई।
(शील और समीर…)
समीर- मैं उस रात गहरी नींद सो रहा था, मेरी गलती नहीं थी। मैंने सुन लिया तुम्हारा सपना, अब मैं उस रात के बारे में बात करना चाहता हूँ।
शील- तुम सात साल बाद इस कैफ़े में आकर क्यों उस रात की बात करना चाहते हो?
समीर- मेरे डाक्टर ने कहा है कि बात करना ज़रूरी है, और फिर..
शील- और फिर क्या?
समीर- फिर एक हैप्पी सेल्फ़ी लेकर पोस्ट करना है।
शील- seriously.
समीर- हाँ, उसका कहना है कि ये वर्क करता है, शील हमने कोई holiday selfie नहीं डाली, कोई missing you selfie नहीं डाली, love दिखाने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है।
शील- (परेशान होकर कहती है) 0kay.
समीर- (समीर फ़ोन निकालता है।) come close.
शील- सल्फी नहीं, उस रात के बारे में बात करते हैं, क्या हुआ था।
(समीर कहना शुरु करता है, ज़मीन पर सो रहे रोहित और चारू, और पीछे की तरफ़ इति और उदय, उसके कहे पर उस रात की घटना को दोहराते हैं।)
समीर- (समीर जल्दी जल्दी बोलता है।) उस रात मैं गहरी नींद सो रहा था, तुम प्यार करने मेरे पास आई। मैं डर के मारे उठ गया। तुम वापिस दूसरी तरफ़ करवट करके लेट गई। मैंने सिगरेट जलाई।
उदय- ऐ भाई।
रोहित- ऐ भाई थोड़ा धीरे….।
समीर- सारी।
शील- आराम से।
रोहित- wait wait… मैं ये क्यो कर रहा हूँ?
शील- please… एक बार कर लो
रोहित- क्यों?
चारु- ताकि तुम्हें समझ आए।
रोहित- क्या?
चारु- please लेट जाओ ना, please.
शील- साँस लो, अब बोलो, तुम्हारे हिसाब से क्या हुआ था उस रात।
(रोहित बेमन से सबको घूरते हुए वापिस लेटता है।समीर एक गहरी साँस लेता है और कहना शुरु करता है।)
समीर- उस रात मैं गहरी नींद सो रहा था, तुम प्यार करने मेरे पास आई। मैं डर के मारे उठ गया। तुम वापिस दूसरी तरफ़ करवट करके लेट गई। मैंने सिगरेट जलाई। तुम्हारे पास आया। तुम शायद सो गई थीं। मैं रात में काफ़ी बनाने गया। काफ़ी बनाकर खिड़की पर खड़ा हो गया। तुमने पीछे से हाथ रखा और काफ़ी गिर गई।
शील- मैंने सारी कहा और तुम्हारे लिए काफ़ी बनाने चली गई। तुम किचन के बाहर अपनी सारी बातों को कह देने के इंतज़ार में खड़े रहे। मैं तुम्हारे लिए काफ़ी लेकर आई।
समीर- और मैंने सारा कुछ कह दिया।
(उस घटना को पीछे सब दोहराने में, रोहित, चारू, इति, उदय एक लूप में फँस जाते हैं जो तेज़ होता जाता है।)
शील- समीर मैंने सब सुना था।
समीर- अब तुम्हारी बारी थी।
शील- मैं अपनी बात कभी कह नहीं पाई थी।
समीर- क्यों?
शील- क्योंकि मैं कभी कह नहीं पाती हूँ, मैं दिखा सकती हूँ।
समीर- तो अब दिखा दो।
शील- यहाँ, इस कैफ़े में?
समीर- हाँ, देखो मैंने कैसे सारा कुछ कह दिया था।
शील- पर वो तो तुमने उस रात की घटना सुना दी, जो उस घटना के भीतर घट रहा था उसका क्या?
समीर- यही तो घटा था शील।
शील- समीर ये तो बस जुगनू की चमक थी, जुगनू की असली कहानी तो उस अंधेरे में है जिसे वो दो चमकने के बीच में जीता है। मैं उस अंधेरे की बात करना चाहती हूँ।
(पीछे चल रहा लूप ख़त्म हो जाता है। अब सभी एक दूसरे के सामने खड़े हैं।)
समीर- शील मुझे अंधेरे से डर लगता है।
शील- आज उस अंधेरे की बात करते हैं।
समीर- शील मैं बस पेंग्विन होना चाहता हूँ।
शील- और मैं बस उड़ना चाहती हूँ।
(दोनों एक दूसरे के गले लग जाते हैं। पीछे से एक एक करके सभी आते हैं और उन दोनों के गले लग जाते हैं। वो पूरा एक समूह बन जाता है। इसमें समीर जैसे कैसे अपना फ़ोन जेब से निकालता है और एक सेल्फ़ी खींचने की कोशिश करता है। शील उस सेल्फ़ी के लिए जैसे तैसे हंसती है। दोनों सेल्फ़ी लेने के बाद एक दूसरे को प्यार से देखते हैं फिर अचानक उन्हें वो प्यार ज़्यादा लगता है और वो एक दूसरे से कुछ दूर होना चाहते हैं। पर सारे लोग उन्हें गले लगाए हुए हैं सो वो दूर नहीं हो पा रहे हैं। वो दोनों एक दूसरे को धक्का देते हुए दूर होने की कोशिश करते हैं। फिर जैसे कैसे पलटते हैं और एक दूसरे से विपरीत दिशा में भागने की कोशिश करते हैं। अचानक वो गोला टूटता है और सारे लोग चारों तरफ़ बिखर जाते हैं। समीर के साथ रानी (जो इति है) और शील के साथ जय (जो उदय है।) हो लेता है। अंत में स्थिति ऐसी बनती है कि पीछे चारु की गोद में रोहित है, और सामने की तरफ़ शील, जय की गोद में और समीर रानी की गोद में है।)
शील- जय।
जय- हाँ, मैं हूँ यहाँ तुम्हारे पास।
शील- मैं जब भी तुम्हें बुलाती हूँ तुम चले आते हो तुम्हें बुरा नहीं लगता?
जय- नहीं, मैं जानता हूँ ये संबंध क्या है, और तुम्हें क्या लगता है तुम्हारा समीर किसी और से इस तरह नहीं मिलता होगा?
शील- I hope so.
समीर- रानी।
रानी- हाँ, क्या हुआ?
समीर- कुछ कहो,
रानी- क्या?
समीर- कुछ भी..
रानी- अच्छा बताओ एक पेड़ ने दूसरे पेड़ से क्या कहा,
समीर- क्या कहा?
रानी- आओ पत्ते खेलते हैं।
(समीर हंसता है।)
शील- हंसो मत, सच में अब मैं तुमसे बाहर नहीं मिल सकती हूँ।
जय- क्यों?
शील- पब्लिक प्लेस में तुम्हारे हाथों को क्या हो जाता है? तुम्हारे हाथ तुम्हारे क़ाबू में ही नहीं रहते हैं।
जय- ये कमीने हाथों को मैं इतना डाँटता हूँ…. सालें कुत्ते कहीं के, क़ाबू में रहो।
रानी- शील कैसी है?
समीर- अच्छी है।
जय- समीर को कभी शक नहीं हुआ तुमपे?
शील- मैं चाहती हूँ कि एक बार वो मुझे ऐसे रंगे हाथों पकड़ ले।
(समीर रानी के साथ एक सेल्फ़ी लेता है।)
रानी- ये फ़ोटो शील को दिखा देना।
समीर- दिखा दूँगा, कम से कम उसे पता तो चलेगा कि मुझमें अभी भी वो बात है।
रानी- क्या बात है?
समीर- look at me… look at my jawline.
शील- जय, मैं उड़ना चाहती थी हमेशा से।
जय- paragliding.
शील- नहीं।
जय- skydiving.
शील- मैं उड़ना चाहती हूँ, ये सीधी बात समझ क्यों नहीं आती है।
समीर- अरे कैसे समझूँ मैं ये बात।
रानी- उसे डाक्टर के पास जाना चाहिए।
समीर- हैं ना, मैंने भी यही कहा।
जय- ओके, मत जाओ डाक्टर के पास, मान लो मैं ही हूँ डाक्टर, Talk to me.
रानी- बोलो… ओके मैं पूछती हूँ। सेक्स लाईफ़ कैसी है?
समीर- हमममम….
जय- हममममम क्या?
रोहित- (दुखी होकर) मेरी कोल्ड काफ़ी अभी तक नहीं आई।
चारु- और पीयो cold coffee.
रोहित- इस बार मैं नहीं बदलूँगा, i want my cold coffee
चारू- okay, अरे कोई काफ़ी लाओ इनकी, आ रही है coffee.
रानी- सच बोलो।
समीर- मैं जब बिस्तर में उसके साथ होता हूँ तो तुम्हारे बारे में सोचता हूँ।
रानी- what.
समीर- एक उम्र के बाद यही होता है आपको दूसरों के बारे में सोचना पड़ता है।
रानी- सच में?
जय- समीर तुमसे बार बार उसी रात के बारे में क्यों बात करना चाहता है?
शील- क्योंकि मैं उस रात तुम्हारे बारे में सोच रही थी और शायद उसने सूंघ लिया था।
जय- क्या सोच रही थी तुम मेरे बारे में?
शील- मैं सोच रही थी कैसे तुमने फ़िल्म देखते हुए अंधेरे में अपना हाथ मेरे कपड़ों के भीतर घुसा दिया था।
जय- वो मैं ही था ना?
शील- शट अप।
जय- अरे इतना अंधेरा था वहाँ इसलिए पूछा, फिर।
शील- फिर मुझे गिल्ट होने लगा, मैं उस गिल्ट में उसकी तरफ़ मुड़ गई, मैं अपना गिल्ट हटाने के लिए तुम्हारे बारे में सोचते हुए उसे प्यार करना चाहती थी।
(रोहित और चारु)
रोहित- (कैफ़े का एक पन्ना पढ़ते हुए।) बग़ल के तकिये पर रोज़ सुबह मुझे तुम्हारे बाल बड़े दिखते हैं।
मेरे सपनों की नदी सूख चुकी है, हम दोनों जमे दौड़ लगाते दिखते हैं। (वो उस पन्ने को फेंकता है और दूसरा पन्ना उठाता है।) मैं तुमसे कभी कह नहीं पाया कि तुम्हारा होना जवाब था और मैं उस जवाब की पहेली। मैं तुम्हें बता नहीं पाया कि मैं पगलाया हिरन था और तुम उसकी कस्तूरी। तुम गई नहीं कभी, तुम आई नहीं थी कभी। (वो फिर उस पन्ने को फेंकता है दूसरा उठाता है।) तुम बिना धागे की पतंग थी और मैं अपनी छत पर गीला, उलझा पड़ा माँझा। (रोहित रोने लगता है।)
चारू- क्या हुआ।
रोहित- ये क्या सब फालतू कविताएँ हैं... सब सच सच लिखा हुआ है इनमें। मैं नहीं पढ़ूँगा।
चारु- मैं तुम्हें कभी बता नहीं पाई कि जब सुख घट रहा होता है तब उसका स्वाद बहुत सख़्त होता है। उसके बीत जाने के बाद वो चाशनी सा बूँद बूँद टपक रहा होता है। मैं तुम्हें कभी बता नहीं पाई कि मैं तुम्हारे समाने बहुत सुंदर दिखना चाहती थी। तुम्हारे कपड़ों के भीतर घुसकर मैं तुम्हारे साथ उड़ना चाहती थी।
तुम्हें पता है मैं रोज़ अपनी सूख चुकी नदी के पास एक लोटा पानी लेकर जाती थी। बीच नदी में खड़े होकर लोटे के पानी से कल-कल की ध्वनि बनाती थी। मैं नदी की सूख चुकी मिट्टी को पानी के सपने देखने का हुनर सिखाना चाहती थी।
जय- सॉरी मुझे हंसी आ रही है, मतलब तुम मेरे बारे में सोचकर मूड में थी और उसने तुम्हें झिड़क दिया।
शील- हाँ, वो सारी सारी,
(शील रोहित को इशारा करती है)
शील- शू शू…
(रोहित अपने सीन में होता है और वो शील को देखता है, शील उसे वापिस लेट जाने का इशारा कहती है।)
रोहित- अरे फिर लेटना है?
शील- हाँ।
रोहित- नहीं।
शील- प्लीज।
रोहित- अरे एक दुखी आदमी से जो भी बोलोगे वो करता रहेगा?
चारु- हाँ, कर दो, ये तुम्हारी ही कहानी है।
रोहित- लास्ट टाइम।
(रोहित लेटता है, चारु उसके पास आती है उसे प्रेम करने वो चौंक कर उठ जाता है, फिर वो सारी सारी बोलता है। और बोलते ही वो शील को देखकर इशारा करता है कि उससे जो कहा था उसने कर दिया।)
शील- उसने सारी सारी बोला और फिर वो ऐसे देख रहा था मुझे मानो किसी भूत को देख लिया हो। हम कितने सालों से साथ रह रहे हैं… ये क्या है?
(जय हंसने लगता है। समीर रानी से)
समीर- मैं डर गया था, मेरे मुँह से उस डर में सब निकलने वाला था।
रानी- क्या?
समीर- वही बातें जो मैं शील से करना चाहता था। मैं घबराकर उठा और सिगरेट जला ली।
(शील जय से)
शील- मुझे सिगरेट की बदबू आई। मैं चुप चाप सोने का नाटक करती रही। कुछ देर में वो मेरे पास आया और उसने कहा
(समीर रानी से)
समीर- शील
रोहित - शील सो गई हो क्या?
समीर - शील, सुनो मुझे तुमसे बात करनी है।
(शील जय से)
शील- पता नहीं क्यों मर्द लोग किसी भी संजीदा बात करने के लिए ऐसी बच्चों जैसी आवाज़ में क्यों बात करने लगते हैं।
(समीर रानी)
समीर- बेबी
उदय- जानू।
रोहित- शोना।
समीर- मेरी कुच्ची कू, शील।
(चारु, शील और इति हंसने लगती हैं। उनकी हंसी रुकती नहीं है। तीनों लड़को को गुस्सा आता है वो कुर्सीयों को एक सीधी पद्धति में जामाते हैं और फिर वो तीनों तीन कोनों में जाकर खडे हो जाते हैं। लडकियाँ बीच में हैं।)
चारु - ये क्या है ! (कुर्सीयों को एक पद्धति में जमा हुआ देखकर)
समीर - मैने तुम से पहले ही कहा था
शील- क्या?
रोहित - घर में सब चलता हैं बाहर नहीं
इति - बाहर क्या नहीं ?
उदय - हँसना नहीं बाहर मुझ पर
शील -पर मैं तो बस बता रही थी कि क्या हुआ था
उदय- नहीं अब सब शुरू से होगा
चारु – शुरु से? क्या ?
रोहित - मेरी कोल्ड कॉफ़ी नहीं आयी अभी तक
उदय- मेरी हॉट कॉफ़ी
समीर - मेरी भी हॉट कॉफ़ी
रोहित - कॉफ़ी कहाँ है (लडकियों से गुस्से और अधिकार से)
उदय- कॉफ़ी कहाँ है
समीर - कहाँ है कॉफ़ी
इति - शुरू में क्या हुआ था? (चारू से)
चारु - शुरू में सब ऐसा ही था (कुर्सियों को दिखाते हुए)
शील - और फिर?
चारु - और फिर मैंने सब बदल दिया था
शील - क्या बदला था ? ............. फ़िर क्या हुआ था ?
चारु - फ़िर कॉफ़ी आयी थी
Music
(चारु का हाथ ऊपर उठता है मानो उसने काफी की ट्रे पकडी हो। सारे लोग उससे अपनी अपनी काफी ले रहे होते हैं।)
उदय - भाई साहब ओ.... भाई साहब, लो आ गई आप की कोल्ड कॉफ़ी...
रोहित- अरे वाह मेरी कोल्ड काफी।
समीर- मेरी हाट है।
(तीनों लडकियाँ देखती रह जाती है। इति आगे जाकर उदय के साथ बैठ जाती है ऐसे जैसे वो काफी shop में बैठें हों।)
उदय- कैसी लगी काफ़ी?
इति- मुझे तो hot coffee पसंद है, पर तुम्हे कैसी लगी।
उदय- मेरी जीभ जल गई, थोड़ी ठंडी होने पर पियूँगा।
इति- तो hot coffee का मतलब क्या हुआ?
उदय- धीरे धीरे आदत डलेगी। अच्छा वैसे तुमने अपने bio में एक अजीब बात लिखी थी।
इति- हाँ, मैं चिड़िया हो जाना चाहती हूँ।
उदय- (उदय हंसता है, बमुश्किल हंसी रोककर वो पूछता है) चिड़िया? क्यों?
इति- क्योंकि वो उड़ती फिरती है…. कहीं भी।
उदय- पर उनका कोई भरोसा नहीं है ना। मतलब, वो तो आज यहाँ है कल कहीं और।
इति- उनके पास पंख है, तो वाजिब है आज यहाँ कल वहाँ।
उदय- इसलिए मुझे पेंग्विन बहुत अच्छे लगते हैं।
इति- पेंग्विन!
उदय- हाँ। पंख होने के बावजूद भी वो एकदम भरोसेमंद है। आज यहाँ कल वहाँ जैसे नहीं है, आज भी यहीं और कल भी यहीं।
इति- तुम पेंग्विन के बारे में कुछ जानते भी हो?
उदय- हाँ, ठुमक ठुमककर चलते हैं, काले सफ़ेद होते हैं, यिंग-यांग जैसे।
इति- तुम्हें पता है पेंग्विन हर साल अपना जोड़ा बदल चुके होते हैं।
उदय- नहीं, नहीं, तुम्हे नही पता कुछ। उनकी कहानी हैप्पीली एवर आफटर पर ख़त्म होती है। तुमने March of the Penguins फ़िल्म देखी नहीं होगी।
इति- हाँ वो तो नहीं देखी है पर पेंग्विन के बारे में जानती हूँ।
उदय- पेंग्विन होते हैं क्यूट, प्यार में कुछ भी कर देने वाले।
इति- क्यूट तो होते हैं पर साथ में वो रेप भी करते हैं, वो sexual psychopaths होते हैं, वो prostitution भी करते हैं और वो pedophile भी होते हैं।
उदय- क्या? जाने दो मुझे नहीं जानना, मेरे लिए वही कहानी सही है जब अंत में सब सही हो जाता है।
इति- ओके।
उदय- मैंने पहले भी तुमसे पूछा था, तुमने बंबल में लिखा नहीं कि तुम्हारी हॉबीज़ क्या हैं?
इति- (हंसने लगती है।) तुम सच में बहुत क्यूट हो। पहले तुम बताओ तुम्हें क्या करना सबसे अच्छा लगता है?
उदय- मुझे, इधर आओ, (उदय अपनी कुर्सी आगे लाता है और उसपर खडा हो जाता है, इति भी अपनी कुर्सी ले आती है और उसपर खडी हो जाती है।) मुझे शोरूम के बाहर खंडे होकर कांच से भीतर झांकना बहुत अच्छा लगता है।
इति- सच में, हाँ।
उदय- वो देखो, सामने रंगीन टंगे हुए पर्दे, वो गद्देदार बिस्तर, टेबल लेंप, किचन सेट… मैं घटों इन्हें देख सकता हूँ।
इति- क्या करते हो देखकर।
उदय- अपने घर की कल्पना। मेरे घर देखा वो वाले पर्दे होंगे… वैसा बिस्तर.. और दीवारों का रंग उस पीली चादर जैसा।
इति- ओ!
उदय- हम दीवारों के रंग पर बात कर सकते हैं, ऐसा कुछ भी फ़िक्स नहीं है। हल्का पीला भी हो सकता है। अच्छा अब बताओ तुम्हें क्या करना सबसे अच्छा लगता है।
इति- मैं बता नहीं पाऊँगी, मैं दिखाती हूँ।
(इति उदय को अपनी आँखें बंद करने के लिए कहती है फिर वो उदय को अपनी कुर्सी पर खड़े होने में मदद करती है।)
इति- अपनी आखें बंद करो और मेरी जगह खडे हो (उदय आखे बंद करके खडा होता है।) जिस जगह से खड़े होकर मैं दुनिया देखती हूँ वो ये है, अपनी आँखें खोलो।
उदय- ये तो पहाड़ हैं। चीड़ से लदे पहाड़।
इति- चीड़ नहीं देवदार से लदे पहाड़ हैं।
उदय- जानवर हैं, चिड़िया हैं।
इति- और खुला आसमान है। (चारु कुर्सी पर बैठती है।) मुझे लगता है कि हमारा जीवन एक ख़त है- किसी के लिए। पूरा जीवन जी लेने के बाद, हम चाहते हैं कि बुढ़ापे में एक दिन हम बरामदे में बरगद की छाया तले बैठें हुए चाय पी रहे हों, ठंड में हल्की मुलायम धूप फैली हो और उस दिन काँपते हाथों से हम अपना पूरा जीवन जो एक ख़त-सा किसी लिफ़ाफ़े में है, उसे किसी को सुना दें। जब हमारा जीवन कोई सुनेगा तो उसे सब काल्पनिक लगेगा, किसी सपने सा। और उसे सुनाते हुए हम उस सपने को फिर से जी लेंगे, उसके सारे झूठ के साथ। पर मुझे डर है कि अपना ही जीवन सुनाते हुए अगर मैं बोर हो गई तो?
उदय- तो ऐसा जियो कि अपने ही जीवन से ऊब ना हो।
इति- क्या जब मैं आज के दिन के बारे में सोच रही होऊँगी तो भविष्य में हंस रही होऊँगी?
(शील और चारू हंसते हैं, उन्हें देखकर इति भी हंसने लगती है।
हंसते हंसते चारु नीचे लेट जाती है, और सब लोग रोहित को देखने लगते हैं, रोहित चारु को देखता है और आश्चर्य से सबको देखने लगता है।)
रोहित- अरे फिर लेटना है? ना ना मैं नहीं लेटूँगा अब। मैंने पहले ही कह दिया था वो लास्ट टाइम था।
इति- लेट जाओ ना, मुझे बहुत मज़ा आ रहा है, ऐसी बेतरतीब बिखरी कहानियाँ सुनकर।
रोहित- इतने मज़े मत लो ये कहानी तुम्हारी भी हो सकती है।
उदय- अरे पर तुम मान क्यों नहीं लेते कि ये हम सबकी कहानी है, चलो यार तुम लेटो ना।
रोहित- यार समझ तो गए हैं कि उस रात क्या हुआ था। हम इस लूप में क्यों अटके पड़े हैं?
चारू- तुमने ही कहा कि तुम्हें मेरा उड़ना समझ नहीं आया।
रोहित- तो इससे क्या समझ आ रहा है।
शील- थकान... इससे थकान समझ आएगी।
उदय- तो समीर लेटा था?
इति - नहीं, तुम सिगरेट पी रहे थे।
उदय- नहीं, समीर सिगरेट पीने के बाद तुम्हारे सामने क्यूट बन रहा था। जानू, बेबी, मेरी कुच्ची कू, शोना।
समीर- मैं क्यूट बनने की कोशिश नहीं कर रहा था, मैं क्यूट हूँ।
शील- और तुम्हें पता है उस वक़्त मेरे तलुओं में ऐसी तेज़ खुजली हो रही थी।
समीर- तो कर देती खुजली।
शील- अगर कर देती तो तुम्हें पता चल जाता ना कि मैं सोने का नाटक कर रही हूँ। तो मैंने धीरे से अपने दाहिने पैर से बाएँ पैर को खुजाया, जैसे नींद में करते हैं।
समीर- जैसे ही तुम्हारे पैर हिले मुझे लगा कि तुम गहरी नींद में कोई बुरा सपना देख रही हो।
(शील रोहित से)
शील- और फिर मुझे कट कट की आवाज़ आई। वो गैस जला रहा था।
(समीर चारू से)
समीर- मैं किचन में काफ़ी बना रहा था और तुम बिस्तर में पड़ी हुई थी।
(शील रोहित से)
शील- मुझे काफ़ी की ख़ुशबू आई।
समीर- आज भी मुझे नींद नहीं आने वाली थी।
शील- वो किचन में क्या सोच रहा होगा ?
(समीर चारू से)
समीर- उसे कौन सा बुरा सपना आया होगा?
(रोहित और चारू)
(रोहित शील के पास है, चारु समीर के पास खडी होती है और वो हंसने लगती है।)
रोहित- मैं तुम्हारी चिंता कर रहा हूँ और तुम हंस रही हो?
चारु- तुम्हें कब से मेरे सपनों की चिंता होने लगी, तुम्हें तो सपने कभी याद भी नहीं रहते थे।
रोहित- पर तुम्हारे लिए मैं उन्हें बनाकर तुम्हें सुनाता था।
चारू- झूठे सपने।
रोहित- सपने तो झूठे ही होते हैं ना….
चारु- तुम्हारे झूठे सपनों की मुझे आदत लग गई थी।
रोहित- तुम्हें याद है ना मैंने तुम्हें पंख दिए थे, खूबसूरत पंख।
चारु- हाँ वो पंख लगी कान की बालियाँ, याद है मुझे, तुम चाहते थे कि मैं अपने पंख आपने कानों में टांग लूँ।
रोहित- और नहीं तो क्या वो पंख कानों में टंगे ही सुंदर दिखते हैं, तुम्हें वो मेरी माँ ने मुझे दिए थे, और उन्हें उनकी माँ ने।
चारु- ये कब से चला आ रहा है ना?
रोहित- क्या?
चारु- यही, अपने पंखों को कान में टांग लेने का चलन।
रोहित- तुम्हें कुछ पता नहीं है कि वो पंख तुम्हारे कानों में कितने खूबसूरत दिखते थे।
चारु- पर मैंने तो वो पंख कभी पहने ही नहीं, तुमने कहा देखा?
रोहित- अपने सपनों में, मेरी कल्पना में तुम पंखों की बालियाँ पहने कितना उड़ती फिरती थीं।
चारु- और जब मैं तुम्हारी झूठी कल्पनाओं में उड़ती फिरती, मुझे पिंजरे का सपना आता था।
रोहित- पिंजरा……. (रोहित हंसता है।) तुम्हें पता है ना पिंजरे की सबसे खूबसूरत चीज़ क्या होती है?
चारु- क्या?
रोहित- वही जो मैं हमेशा तुम्हारे सपनों में लेकर आता था?
चारू- क्या?
रोहित- वही जिसका सपना मैंने तुम्हें सबसे पहले दिखाया था?
(ये कहते ही रोहित एक छोटा सा ताला जेब से निकालता है और उसे शील के सामने ले आता है। उदय
और समीर भी अपनी जेब से ताला निकालते हैं।)
शील- ये क्या है?
उदय- ताला।
इति- इसका क्या करेंगे?
उदय- ये घर बनाने की शुरुआत है।
इति- मुझे घर सजाना बहुत पसंद है।
उदय- ये घोषणा है कि सुनो सब लोग इस ताले के इस तरफ़ आना मना है, यहाँ हम रहते हैं। इति- लेकिन ताला लगाएँगे कहा?
उदय- दरवाज़े पर…
इति- और दरवाज़ा कहा है?
उदय- वो लाना है।
इति- उदास मत हो, ताला ले लिया है तो इसे लगाने की जगह भी मिल जाएगी।
उदय- हाँ हमें ख़ाली जगह चाहिए पहले, घर ख़ुद ब ख़ुद बन जाएगा।
इति- मेरे पास बहुत जगह है।
उदय- कहाँ?
इति- मेरे सपनों में, मेरी निगाह से देखो।
उदय- नहीं, तुम्हारी कल्पना के जंगल में मैं अपना ताला कहाँ लगाऊँगा?
इति- एक पेड़ पर ताला टांग देते है और मान लेंगे कि यहाँ से घर शुरु होता है।
उदय- अब हम बच्चे थोड़ी रहे इति, हम घर घर थोड़ी खेल रहे हैं?
इति- हम अब खेल नहीं रहे हैं?
उदय- नहीं, मुझे एक आडिया आया, हम बाज़ार जाते है। वहाँ जाकर तुम्हारी जगह को ख़रीद लेते हैं। बाज़ार इसे ख़ाली कर देगा।
इति- बाज़ार तो इसे सपाट कर देगा।
उदय- हाँ।
इति- सारे देवदार, जानवर, चिड़िया सब सपाट हो जाएँगे।
उदय- हाँ, पर तुम्हारी कल्पना सपाट होते ही वहाँ कितना सुंदर हमारा घर खड़ा होगा इन्हीं खूबसूरत देवदारों से उस घर का दरवाज़ा बना होगा जिसपर मैं अपना ताला लगाऊँगा।
इति- और मैं कहा होऊँगी।
उदय- उठो, अपनी जगह खाली करो।
(उदय अपनी कुर्सी इति की कुर्सी के ऊपर लगाता है)
उदय- अब ये हमारी जगह है।
(उदय पहले ख़ुद खड़ा होकर इति को हाथ देता है। दोनों एक के ऊपर एक रखी कुर्सी पर खड़े होते हैं।)
उदय- अब देखो तुम वहाँ हो अंदर घर में, जानवरों की खाल से बने नर्म बिस्तर पर।
इति- पर मैं तो उड़ना चाहती थी?
उदय- तो उड़ो घर में, जितना उड़ना है।
इति- पर वो तो तुम्हारी कल्पना का घर है।
उदय- तो जाओ और बाहर जंगलों में उड़ो।
इति- जंगल वहाँ है नहीं।
उदय- अरे वो देखो हैं ना, तुम भी, लो मेरा चश्मा लगाकर देखो। (वो उसका चश्मा लगाती है।) अब देखो तुम उड़ना चाहती थीं और मेरी कल्पना में तुम खूब लंबा उड़ भी रही हो। है ना?
इति- क्या मैं उड़ रही हूँ?
उदय- हाँ।
(उदय और इति आँखें बंद कर देते हैं। शील उन दोनों को धक्का देकर गिरा देती है। फिर वो एक तरीक़े से जमी सारी कुर्सियों को बिखरा देती है, पर वो देखती है कि वो कुर्सियाँ फिर से वापिस जम गई है। समीर, उदय और रोहित उसे तुरंत जमा देते हैं। शील फिर उन्हें बिखेर देती है, वो फिर जमा देते हैं। अंत में वो कुर्सियाँ बिखेर रही होती है और तीनों तुरंत उसके बिखेरते ही जमा देते हैं। वो थक जाती है। तभी वो देखती है कि इति जल्दी से जाकर अपनी जमी हुई कुर्सी पर खड़ी हो जाती है और वो उदय को बुलाती है, वो दोनों वापिस वैसे ही खड़े हो जाते हैं अपने सपने में। इसे देखकर शील टूट जाती है। वो चारु को देखती है। वो दोनों इति और उदय के ठीक सामने बिल्कुल उन्हीं की तरह खड़े हो जाते हैं। चारु ने पीछे से शील को गले लगाया हुआ है। और शील उसकी बाँहों में समर्पण सी खड़ी है।)
शील- काश ये जीवन शतरंज की तरह होता। हमारे बहुत से प्यादे मर गए थे। घोड़े शहीद हो गए थे। रानी ख़ुद को घिरा हुआ पर रही थी। वो जिधर कदम उठाने का सोचती उसे लगता कि मारी जाएगी वो। वो गलती नहीं करेगी में पूरा खेल रुका पड़ा है। और जीवन बोरियत से भर चुका है। क्या मैं सारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती हूँ, क्या हम पूरा खेल फिर से जमा नहीं सकते हैं, फिर से खेलना शुरु नहीं कर सकते? फिर से कह नहीं सकते कि ये जीवन मेरा है, और इसकी कल्पना भी मेरी ही होगी। वो कौन सा क्षण है जब हमने खेलना बंद कर दिया था?
(शील चारु को चूमने ही वाली होती है कि रोहित की आवाज़ आती है)
रोहित- चारु! चारु!
चारु- हाँ।
रोहित- क्या कर रही हो?
चारु- किचन में काम कर रही हूँ।
(रोहित दर्शकों को देखकर मुस्कुराता है। चारु और शील मुस्कुराते हुए अलग होते हैं।)
रोहित- जंगली जानवर जब घरेलू व्यवहार करते हैं तो कितना आनंद आता है, हे ना। हाथी दो पैरो पर खड़ा होकर हाथ जोड़ता है। शेर आग के घेरे से छलांग लगाकर कुर्सी पर बैठ जाता है। चिड़िया ख़ुद जाकर पिंजरे में बैठती है और पिंजरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर देती है। वो अंदर खाना बना रही है। मेरी माँ भी किचन में जब काम करती थी तो इतनी सुंदर लगती थीं। और मेरी दादी को तो सूरज देखे कई बार महीनों गुजर जाते, पर उनके हाथ की दाल ओह! मेरे मुँह में पानी आ गया। मेरी माँ भी बढ़िया दाल बनाती थीं, चारु बस एक बार वैसी दाल बनाना सीख जाए बस।
चारू- बाहर खुला नीला आकाश था
और भीतर एक पिंजरा लटका हुआ था।
बाहर मुक्ति का डर था
और भीतर सुरक्षित जीने की थकान।
उसे उड़ने की भूख थी
और पिंजरे में खाना रखा हुआ था।
(उदय और इति दूर गगन की छाँव में देखते हुए खड़े थे। इति कहती है।)
इति- सुनो फिर क्या हुआ?
उदय- कहाँ?
इति- उस बेतरतीब बिखरी कहानी में?
उदय- फिर वो काफ़ी लेकर खिड़की पर आकर खड़ा हो गया था।
(इति और उदय दोनों रोहित को देखते हैं, रोहित इशारे से ही मना कर देता है और दूसरी तरफ़ देखने लगता है।)
उदय- सुनो, मैं करता हूँ तुम्हारे लिए।
(उदय हटता है और पीछे की तरफ़ जाकर खड़ा हो जाता है मानो वो खिड़की पर खड़ा हो, उसके हाथ में काफ़ी का कप है।)
इति- अरे, क्या हुआ?
शील- मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया है, जब तुम काफ़ी लेकर बाहर आए तो मैं तुम्हें देखकर मुस्कुराई थी, पर तुम सीधा खिड़की की तरफ़ चले गए, मानो मैं वहाँ हूँ ही नहीं। मैंने सोचा, छोड़ो मैं ही पूछ लेती हूँ। सो मैं तुम्हारे पास आई तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा और पूछा कि
इति- समीर क्या हुआ?
समीर- मैं डर गया था। मेरे हाथ से काफ़ी गिर गई।
शील- तुम मुझे भौंचक्के होकर मुझे देख रहे थे।
समीर- मैं जाने कब से इसी वक़्त का इंतज़ार कर रहा था कि एक दिन तुम पूछो समीर क्या हुआ?
शील- मैं तुम्हें देखकर डर गई थी इसलिए मैंने जल्दी में कहा कि
इति- रुको मैं काफ़ी बनाकर लाती हूँ।
समीर- मैं कुछ कह पाता उसके पहले तुम किचन में भाग गई।
शील- मैं जैसे ही काफ़ी लेकर किचन से बाहर आई तुम सामने खड़ा थे।
समीर- तुम्हारे आते ही मैंने तुमसे कह दिया था जो भी मुझे कहना था।
शील- और मै इंतजार कर रही थी कि काश तुम कहते
(उदय जो इति के सामने खडा है वो पलटता है और शील की तरफ़ हाथ बढ़ाता है,)
उदय- शील!
(शील उसे ऐसे देख रही है जैसे उसने पहली बार समीर को देखा हो)
उदय- I am sorry, मुझे माफ कर दो।
(शील उठकर उदय के गले लग जाती है। समीर उन दोनों को साथ में गले लगते हुए देखता है और गुस्सा हो जाता है।)
समीर- नही नही, ये नहीं हुआ था, उस वक़्त मुझे अपनी बात कहनी थी, मुझे बताना था कि मैं ग़लत नहीं था, ताली दोनों हाथों से बजती है। अब तुम्हारी बारी थी। ये सब क्या है?
(इति समीर के मुहँ पर हाथ रखती है और समीर चुप हो जाता है। इति समीर के गले लगी हुई है और उदय शील के)
(चारु पीछे की तरफ़ छाया आकृति में ईजल पर कुछ पेंट करती हुई दिख रही है। रोहित बाहर कुर्सी पर बैठा है।)
रोहित- चारु चारु देखो टीवी पर वो ही पेंग्विन वाली फिल्म आ रही है, जल्दी आओ। चारु चारु।
चारू- क्या है?
रोहित- क्या कर रही हो?
चारु- मैं किचन में पूरी बना रही हूँ।
रोहित- अरे तुमने कहा था कि तुम दाल बनाओगी?
चारु- आज मैं पूरी ही बनाऊँगी।
रोहित- आज अचानक पूरी क्यों?
चारू- आज मैं पैंतीस ही होने वाली हूँ। मैं ख़ुद को बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ।
रोहित- तो तुम क्या करोगी?
चारू- पूरी के बाद पतली आलू टमाटर की सब्ज़ी बनाऊँगी।
रोहित- अरे, पैंतीस की होने के बाद क्या करोगी?
चारू- मैं उड़ जाऊँगी।
(पीछे से चारु का गाना सुनाई देता है। समीर इति से अगल होगर उससे पूछता है।)
समीर- शील! कहाँ हो तुम ?
शील- मैं तो यही हूँ तुम्हारे पास, और तुम?
समीर- मैं? मैं थक गया हूँ शील। विद्या माता की कसम, धरती माता की कसम मैं अब Penguin नहीं होना चाहता हूँ। तुम भी अपनी चिड़िया होने की ज़िद छोड़ दो।
शील- अब तो देर हो चुकी है।
समीर- किस बात की देर ?
शील- सालों की देर, सदियों की देर, हमारे पास अब इसका कोई हिसाब नहीं है।
समीर- तो अब तुम क्या करोगी?
शील- मैने कहा था ना कि मै उड़ जाऊँगी।
(उदय इति को कस कर पकड लेता है, दिखता है कि वो गले लगा रहा है पर वो उसे पकडे भी हुए है।)
रोहित- हाँ तो उड़ जाओ, जाओ, उड जाओ।
शील- पर इस पिंजरे का ख्याल मेरे दिमाग से निकल नहीं रहा है।
समीर- ये पिंजरा नहीं है बेबी, ये तो प्रेम है।
शील- अगर ये प्रेम है तो मेरा उड़ना हमेशा स्थगित क्यूँ रहता है?
समीर- क्योंकि तुम्हे लगता है ये पिंजरा है। पिंजरा तुम्हारे दिमाग में है। देखो, कहाँ है पिंजरा ? कहीं दिख रहा है? मुझे तो नहीं दिख रहा है ?
शील- हाँ शायद पिंजरा मेरे दिमाग मे ही है।
समीर- हाँ बेबी।
शील- मैं इसे सबको दिखाना चाहती हूँ।
समीर- जो है ही नहीं उसे कैसे दिखाओगी।
शील- मेरे पास कला है दिखाने की, देखोगे?
समीर- नहीं।
शील- ताली बजाओ।
समीर- क्या?
शील- बजाओ ताली।
(इति ताली बजाती है... उदय अपनी पकड ढीला कर देता है। शील ताली बजाने लगती है और उदय और समीर भी देखा देखी ताली बजाने लगते हैं। धीरे धीरे वो ताली, तेज तालियों में तबदील हो जाता है। सभी मुड़ते हैं और ईज़ल के साथ पीछे से चारु प्रवेश करती है। वो इतने सारे लोगों को देखकर खुश हो जाती है। उसकी ख़ुशी वैसी है जैसे मिस वर्ड का ख़िताब मिलने पर किसी लड़की को होती है।)
चारु- Oh my God, this is so unreal, आप सब लोग आए हैं। Thank you, thank you, Oh God, प्लीज बैठ जाईये, प्लीज। देखो मुझे रोना आ रहा है। Oh God i am embarrassing my self. Please बैठिये। Thank you for coming, मैं आर्ट लेकर आती हूँ।
(सब लोग अलग अपनी अपनी कुर्सी लिए बैठ चुके हैं, मानो सब लोग किसी आर्ट एग्ज़ीबीशन में बैठे हों। शील भीतर जाती है।)
उदय- (खुसफुसाहट, इति से) मुझे हमेशा लगता है तुम्हारे अंदर कोई आर्ट छुपा है, मै उसे तराशना चाहता हूँ।
इति- What, seriously.
उदय- yaa, yaa
समीर- ये कहाँ आ गए हम?
शील- शू…।
(चारू एक ब्लैक बोर्ड लेकर आती है और उसे ईज़ल पर रख देती है। उस ब्लैकबोर्ड पर एक सुंदर पिंजरा बना हुआ है। रोहित भी सबके साथ बैठा है वो धीरे से पूछता है।)
चारु- ये है मेरा आर्ट ‘दि पिंजरा’, आप में से किसी के भी पास कोई सवाल है तो वो पूछ सकता है। (रोहित हाथ उठाता है।)
रोहित- ये क्या है चारु?
चारू- ये वो चित्र है जिसके भीतर हम रह रहे थे।
रोहित- पर इसमें हम कहाँ है।
चारु- हमने ही तो इसे बनाया है…. ये सेल्फ़ पोट्रेट नहीं है।
रोहित- तो ये क्या है?
चारू- (सब से कहती है।) ये मेरे सपाट जंगल के मैदान में किसी और के घर की कल्पना थी।
उदय- वाह!
इति- वाह!
(चारु फिर एक पानी से भरा हुआ लोटा उठाती है और उस लोटे से कुछ देर कल कल की ध्वनि निकालती है। फिर उस लोटे को पानी को ब्लैकबोर्ड पर उड़ेल देती है। जो पिंजरा ब्लैकबोर्ड पर बाना हुआ था वो धीरे धीरे बहता हुआ दिखता है।)
उदय- (खड़े होकर) bravo bravo.
इति- Bravo.
(तभी वही म्यूज़िक शुरु होता है जिससे नाटक की शुरुआत हुई थी। सभी एक दूसरे को देखते हैं। फिर उस पिंजरे को देखते हैं जो पिघल रहा है। रोहित चारु के बग़ल में आकर बैठ जाता है मानो साथ फ़ोटो खिंचा रहा हो। समीर केमरा निकलाकर गलते हुए पिंजरे की तस्वीर लेता है, फिर वो चारु और रोहित की साथ मे तस्वीर लेता है। चारु रोहित के बगल में होने से असहज है पर फिर भी वो तस्वीर के लिए मुस्कुराना नही छोड़ती। समीर और उदय भी अपनी कुर्सी लेकर पेंटिंग के बग़ल में बैठ जाते हैं मानो उन्होंने उसे ख़रीदा हो।इति और शील एक दूसरे को आश्चर्य से देखते हैं, फिर वो दोनों दर्शकों को अश्चर्य से देखते हैं। फिर सभी एक दूसरे को देखते हैं। चार के count पर वो वापिस अपनी कुर्सी उठाकर अलग अलग जगह से उस पिंजरे को देखने की कोशिश करते हैं। मानो हर अलग जगह से उस पिंजरे का मतलब बदलता हो।। हम धीरे धीरे Fade out करते हैं। अंतिम छवी हमें उस पिघलते पिंजरे की दिखती है जिसके आस पास लोग उसे अलग अलग तरीक़े से देखने की कोशिश कर रहे हैं।)
Black out.
End.
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